NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 2 सूर्यः एव प्रकृतेः आधारः (सूर्य ही पृथ्वी का आधार है)
पाठपरिचयः सारांशः च
प्रस्तावना :
सूर्य ही प्रकृति का आधार है। ऋग्वेद, उपनिषद् तथा कालिदास व भास आदि महाकवि एवं पण्डित अम्बिकादत्त व्यास सरीखे आधुनिक कवियों ने सूर्य की आध्यात्मिक, लौकिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से महत्ता बताई है। प्रस्तुत पाठ का उद्देश्य भी यह बताने के लिए है कि सूर्य किस प्रकार प्रकृति का आधार है।
पाठ-सन्दर्भ :
प्रस्तुत पाठ पण्डित अम्बिकादत्त व्यास के गद्य उपन्यास ‘शिवराजविजय’ के प्रथम अध्याय से लिया गया है। शिवाजी महाराज के गुरु सेवा में तत्पर एक शिष्य अपनी पर्णकुटी से बाहर निकलकर उदित होते हुए तथा चमकते हुए सूर्य को प्रणाम करता हुआ उसकी महिमा का वर्णन करता है। यह पाठ निश्चित रूप से न केवल ज्ञानवर्द्धक ही है अपितु भाषा के सौन्दर्य का भी उत्कृष्ट उदाहरण है।
पाठ-सार :
क्या आप जानते हैं कि हमारी सृष्टि का आधार क्या है? किसके चारों ओर यह पृथ्वी नित्य भ्रमण कर रही है? निश्चय ही यह सूर्य ही है। आधार के बिना पृथ्वी आकाश में कैसे ठहरती है? कैसे ऋतुओं का तथा दिन-रात का परिवर्तन होता है। वनस्पतियों का तथा औषधियों का भी सूर्य के बिना अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वेदों तथा उपनिषदों में सर्वत्र ही सूर्य की महिमा का वर्णन है। शिवराजविजय के प्रारम्भ में भी रम्य, अद्भुत, विज्ञानमय वर्णन उपलब्ध होता है जो यहाँ इस पाठ में दिया गया है।
मूलपाठः, शब्दार्थः, भावार्थः, सरलार्थश्च
1. अरुण एष प्रकाशः पूर्वस्यां भगवतो मरीचिमालिनः। एष भगवान् मणिराकाश-मण्डलस्य, चक्रवर्ती खेचरचक्रस्य, कुण्डलम् आखण्डलदिशः, दीपकः ब्रह्माण्डभाण्डस्य, प्रेयान् पुण्डरीकपटलस्य, शोकविमोकः कोकलोकस्य, अवलम्बो रोलम्बकदम्बस्य, सूत्रधारः सर्वव्यवहारस्य, इनश्च दिनस्य।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- अरुणः- रक्तवर्णः, लाल, अरुण (पुं०, प्रथमा विभक्तिः, एकवचनम् विशेषणपदम्। एष- एषः, यह, एतत् (पुं०), प्रथमा विभक्तिः , एकवचनम्। प्रकाश:- ज्योतिः, प्रकाश, प्र० वि०, ए०व०। पूर्वस्याम्-पूर्वदिशायाम्, प्राच्याम् दिशि, पूर्व दिशा में, पूर्व (स्त्री०), सप्तमी विभक्ति, एकवचनम्। भगवतः- ऐश्वर्य सम्पन्नस्य, भगवत्, षष्ठी विभक्तिः , एकवचनम्, विशेषणम्, भगवान् (ऐश्वर्य सम्पन्न) का। मरीचिमालिनः- मरीचिमालिन्, षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्, सूर्यस्य, सूर्य का, मरीचिनां किरणानां माला यस्य सः, मरीचिमालिन्, मरीचिमाला + इन्। मणिः (संज्ञा), मणिः, पुं०, प्रथमा विभक्तिः , एकवचनम्, द्युतिमत् रत्नम्, चमकता हुआ रत्न। आकाशमण्डलस्य- आकाशवृत्तस्य, आकाशस्य, आकाश का, आकाश प्रदेश का। चक्रवर्ती- चक्रवर्तिन्, प्र०वि०, ए०व०, सम्राट, राजचक्रं राजसमूहः यस्य सः। खेचर-चक्रस्य-खे चरति इति खेचरम् नक्षत्रम् उपपद तत्पुरुषः, खेचराणाम् चक्रम् समूहः, षष्ठी तत्पुरुषः, नक्षत्रमण्डलस्य, नक्षत्रमण्डल का।
कुण्डलम् (संज्ञा) – कुण्डल, नपुं०, प्रथमा विभक्तिः, एकवचनम्, कर्णाभूषणम्। आखण्डल-दिशः (संज्ञा)-आखण्डनस्य इन्द्रस्य दिशः, पूर्वदिशः, इन्द्र की दिशा का, पूर्ण दिशा का। दीपकः-दीपः, दीपयति (जगत्) इति, दीपक। ब्रह्माण्ड-भाण्डस्य-ब्रह्माण्डम् एव भाण्डम् तस्य, विश्व-सदनस्य, विश्वरूपी सदन (घर) का। प्रेयान्- प्रियतरः, प्रियः। पुण्डरीक-पटलस्य- पुण्डरीकाणां पटलम्, षष्ठी तत्पुरुषः, तस्य, कमलसमूहस्य, कमलों के समूह (कुल) का। शोकविमोकः-शोकस्य विमोकः, षष्ठी तत्पुरुषः, चिन्ताहरः, शोक-विनाशक, शोक (चिन्ता) को हरनेवाला। कोकलोकस्यकोकानाम् चक्रवाकानाम् लोकस्य समूहस्य, चकवों के समूह का। अम्बलम्बः- आश्रयः, सहारा। रोलम्ब-कदम्बस्य- रोलम्बानां भ्रमराणां कदम्बस्य समूहस्य, भौंरों के समूह का। सूत्रधारः- सूत्रम् धारयति इति, सूत्र को धारण करनेवाला। व्यवस्थापकः-प्रबन्धक। सर्व-व्यवहारस्य-सर्वस्य व्यवहारस्य कार्यजातस्य, सब कार्यों का। इनश्च-इनः + च, इनः (संज्ञा)- इन, पुं०, प्रथमा विभक्तिः, एकवचनम् स्वामी। दिनस्य- दिन का।
          भावार्थ:- भगवान् सूर्य आकाश, नक्षत्र, पूर्वदिशा, ब्रह्माण्ड, चक्रवाक-भ्रमर-समूह, व्यवहार तथा दिन के प्राण हैं, ज्योति हैं, जीवन हैं, आनन्द हैं तथा व्यवस्थापक एवं स्वामी हैं।
          
          सरलार्थ- पूर्व दिशा में भगवान् सूर्य का यह लाल प्रकाश है। ये भगवान् (सूर्य) आकाशमण्डल के रत्न हैं, नक्षत्र समूह के सम्राट हैं, इन्द्र की पूर्व दिशा के कर्णाभूषण (कुण्डल) हैं, ब्रह्माण्ड रूपी घर के दीपक हैं, चकवों के समूह के प्रिय हैं, भौंरों के समूह के आश्रय हैं। सब व्यवहारों के व्यवस्थापक हैं तथा दिन के स्वामी हैं।
         
2. अयमेव अहोरात्रं जनयति। अयम् एव वत्सरं द्वादशसु भागेषु विभनक्ति। अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्। एष एव अङ्गीकरोति उत्तरं दक्षिणं चायनम्। अनेन एव सम्पादिताः युगभेदाः। अनेन एव कृताः कल्पभेदाः। एनम् एव आश्रित्य भवति परमेष्ठिनः परार्द्धसङ्ख्या। वेदा एतस्य एव वन्दिनः। गायत्री अमुम् एव गायति। धन्य एष कुलमूलं श्रीरामचन्द्रस्य। प्रणम्यः एषः विश्वेषाम्।
शब्दार्थः, पर्यायवाचिशब्दाः टिप्पण्यश्चः- अहोरात्रम्- अहः च रात्रिः स; समाहार द्वन्द्व समासः दिनं च निशा च तम् तयोः समाहार: दिन-रात को। जनयति – जन्, णिच्, लट्, प्र०पु०, ए०व०, उत्पादयति, उत्पन्न करता है। वत्सरम्-वर्षम्, वर्ष को। द्वादशसु- द्वादश-भागेषु, बारह (भागों) में। बारह महीनों में, द्वादश मासेषु। विभनक्ति – वि, भज्, लट्, प्र० पु०, ए०व०, विभाजयति, विभक्त करता है, विभजते। कारणम्- हेतुः, निमित्तम्, कारण। षण्णाम्- षट् सङ्ख्यात्मकानां छह संख्या वाली ऋतुओं) का। ऋतूणां- ऋतु, षष्ठी, बहुवचनम्-वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर, प्रत्येक ऋतु दो-दो मास तक रहती है।
पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति से इनका निर्माण होता है। पृथ्वी का अपने गिर्द घूमने से दिन-रात का निर्माण होता है। कोणार्क के सूर्य मन्दिर में एक विशाल सूर्य के रथ के माध्यम से इसको स्पष्ट किया गया है। अङ्गीकरोति – अङ्ग च्चि कृ, लट् लकार, प्रथम पुरुषः, एकवचनम्, स्वीकरोति, स्वीकार करता है। उत्तरम् अयनम्उत्तरायणम्, मकर संक्रान्ति से कर्क संक्रान्ति तक छह मासों तक का काल उत्तरायण कहलाता है। इसमें दिन अपेक्षाकृत बड़े होते हैं तथा रातें छोटी होती हैं, दक्षिणम् अयनम्- दक्षिणायनम्, कर्क संक्रान्ति से मकर संक्रान्ति का छह मास का काल दक्षिणायन कहलाता है।
इसमें दिन छोटे होते हैं तथा रात्रि बड़ी होती है। इन दोनों में उत्तरायण के काल को श्रेष्ठ माना जाता है। हर एक अयन में तीन-तीन ऋतुएँ होती हैं। अनेन-अनेन सूर्येण, इस सूर्य में द्वारा। युगभेदाः- सत्युग, द्वापर, त्रेता तथा कलियुग-ये चार युग भी सूर्य की अन्य ग्रहों के गिर्द गति के परिणाम से बनते हैं। सम्पादिताः- सम् + पद् + णिच्, क्त, पुं०, प्रथमा वि०, बहुवचनम् रचिताः, बनाए गए हैं। कृताः-कृ + क्त। कल्पभेदाः- कल्पों के भेद अनादि सृष्टि में, सर्ग, प्रतिसर्ग की परम्परा से विविध कल्पों का निर्माण भी सूर्य की कृपा से होता है। परमेष्ठिन:-परमेष्ठिन, षष्ठी विभक्तिः, एकवचनम्।
ब्राह्मण, विधातुः, ब्रह्मा को विधाता की। परार्द्ध-सङ्ख्या- परार्द्धा सङ्ख्या, कर्मधारय समास, अन्तिमा परार्द्धनामा सङ्ख्या, गिनती में सबसे अन्तिम सङ्ख्या। एक के साथ सत्रह बिन्दु लगाकर परार्द्ध सङ्ख्या बनती है। सङ्कल्प पाठ का आरम्भ ब्रह्मणः परार्द्ध (ब्रह्मा की परार्द्ध सङ्ख्या ) से होता है। वेदाः- चतुर्वेदाः, चारों वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा सामवेद। अस्य-सूर्यस्य, इस सूर्य की। वन्दिन:- स्तोतः, स्तुति करनेवाले। गायत्री- गायत्री मन्त्रः, गायत्री मन्त्र, यह सवितृदेव की स्तुति में गाया जाता है। सवितृदेव भी सूर्य ही है। अमुम्- एनम्, इसको। गायति- गै,
लट् लकार, प्र०पु, ए०व०। धन्यः- स्तुत्यः, स्तुति के योग्य। कुलमूलम्- कुलस्य आधारः अधिष्ठातृदेवः, भगवान् राम सूर्यवंशी थे। सूर्य से ही उनकी वंश परम्परा आरम्भ होती है। प्रणम्यः- प्रणाम-योग्यः, प्रणमनीयः, प्रणाम के योग्य। विश्वेषाम्सर्वेषाम् सत्त्व के द्वारा। सबको भगवान् सूर्य को अवश्व प्रणाम करना चाहिए।
सरलार्थ – यह (सूर्य) ही दिन-रात को पैदा करता है। यह ही वर्ष को बारह भागों में बाँटता है। यह ही छः ऋतुओं का कारण है। यह ही दक्षिण और उत्तर इन दानो अयनों को स्वीकार करता है। इसके द्वारा ही युगों के भेदों का सृजन किया गया है। इससे ही कल्पभेदों की रचना हुई है। इसी पर आश्रित होकर ब्रह्मा जी की परार्द्ध संख्या होती है। वेद इसकी वन्दना करनेवाले हैं। गायत्री इसी का गान करती है। धन्य है यह श्रीरामचन्द्र जी के कुल का आधार। यह सबके द्वारा प्रणाम योग्य है।
अनुप्रयोगः
          प्रश्न: 1.
          
          अधोलिखितशब्दानां स्थाने पाठे ये शब्दाः प्रयुक्ताः तेषां मेलनं कुरुत’
          
 
          उत्तरम्:
          
 
          प्रश्न: 2.
          
          कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत
          
          (i) भगवतः मरीचिमालिनः उदयः कस्यां दिशायां भवति? ……………………….. (पूर्वस्याम्/उत्तरस्याम्/पश्चिमदिशायाम्)
          
          (ii) सूर्यः वर्ष कतिभागेषु विभजते?………………….. (चतुर्भागेषु द्वयोः भागयो: द्वादशभागेषु)
          
          (iii) अहोरात्रं कः जनयति?…………………. (ब्रह्मा/सूर्य:/चन्द्रमा)
          
          (iv) ‘आदित्यो ह वै प्राणः’ इति कस्मिन् उपनिषदि वर्णितम्?………………. (तैत्तिरीये/छान्दोग्ये प्रश्ने)
          
          (v) सूर्यः केषाम् आत्मा?………….. (जड़वस्तूनाम् चेतनानाम्/जड़चेतनानाम्)
          
          उत्तरम्:
          
          (i) पूर्वस्याम्
          
          (ii) द्वादशभागेषु
          
          (iii) सूर्यः
          
          (iv) तैत्तिरीये
          
          (v) जड़चेतनानाम्
         
          प्रश्न: 3.
          
          अधोलिखितानि पदानि कस्य पदस्य पर्यायवाचिनः इति पाठात् चित्वा कोष्ठके लिखतयथा-
          
 
          उत्तरम्:
          
          (ii) रात्रेः
          
          (iii) परमेष्ठिनः
          
          (iv) सूत्रधारस्य
          
          (v) मरीचेः
          
          (vi) भ्रमरस्य
          
          (vii) प्रशंसायोग्यस्य
          
          (viii) आधारस्य
         
          प्रश्न: 4.
          
          विशेषणानि विशेष्यैः सह मेलयतविशेषणानि
          
 
          उत्तरम्:
          
 
          प्रश्नः 5.
          
          समस्तपदानि रचयत
          
 
          उत्तरम्:
          
          (i) मरीचिमालिनः
          
          (ii) खेचरचक्रस्य
          
          (iii) ब्रह्माण्डमाण्डस्य
          
          (iv) पुण्डरीकपटलस्य
          
          (v) रोलम्बकदम्बस्य
          
          (vi) अहोरात्रम्
          
          (vii) कल्पभेदाः
          
          (viii) पर्णकुटीरात्
         
          प्रश्न: 6.
          
          समानध्वन्यात्मकशन्दान् मेलयत
          
 
          उत्तरम्:
          
 
 
          प्रश्नः 7.
          
          अधोलिखितवाक्येषु क्रियापदानि योजयत –
          
          (i) अयमेव अहोरात्रम् …………………।
          
          (ii) एष एव उत्तरं दक्षिणं च अयनम् ………………।
          
          (iii) परमेष्ठिनः परार्द्धसंख्या एनम् एव आश्रित्य ……………….।
          
          (iv) प्रजानां प्राणः एषः सूर्यः ………………….।
          
          (v) सूर्यः वत्सरं द्वादशसु भागेषु ……………………..।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) अयमेव अहोरात्रम् जनयति।
          
          (ii) एष एव उत्तरं दक्षिणं च अयनम् अङ्गीकरोति।
          
          (iii) परमेष्ठिनः परार्द्धसंख्या एनम् एव आश्रित्य भवति।
          
          (iv) प्रजानां प्राणः एषः सूर्यः प्रकाशते।
          
          (v) सूर्यः वत्सरं द्वादशसु भागेषु विभनक्ति।
         
          प्रश्नः 8.
          
          शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं च प्रदर्श्य तालिकां पूरयत
          
 
          उत्तरम्:
          
 
 
          प्रश्नः 9.
          
          सन्धि कृत्वा लिखत
          
 
          उत्तरम्:
          
          (i) भगवतो मरीचिमालिनः
          
          (ii) मणिराकाशमण्डलस्य
          
          (iii) अवलम्बो रोलम्बकदम्बस्य
          
          (iv) इनश्च
          
          (v) चायनम्
          
          (vi) परमेष्ठिन्
         
          प्रश्न: 10.
          
          अधोलिखितवाक्येषु अव्ययपदानि योजयत –
          
          (i) सूर्यः ……………… आत्मा जगतः तस्थुषः च।
          
          (ii) इनः …………………………. दिनस्य।
          
          (iii) सूर्यस्य वर्णनं ……………….. केवलं ज्ञानवर्धकम् ……………… भाषायाः सौन्दयस्य उत्कृष्टम् उदाहरणम्।
          
          (iv) अयम् ………………. कारणं षण्णाम् ऋतूनाम्।
          
          (v) निजपर्णकुटीरात् …………………. बटुः सूर्यस्य महिमानं वर्णयति।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) सूर्यः एव आत्मा जगतः तस्थुषः च।
          
          (ii) इनः च दिनस्य।
          
          (iii) सूर्यस्य वर्णनम् न केवलं ज्ञानवर्धकम् अपितु भाषायाः सौन्दर्यस्य उत्कृष्टम् उदाहरणम्।
          
          (iv) अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूनाम्।
          
          (v) निजपर्णकुटीरात् निर्गत्य बटुः सूर्यस्य महिमानं वर्णयति।
         
पाठ विकासः
          (क) लेखक व ग्रंथ का परिचय
          
          यह पाठ विविध उपनिषदों से तथा शिवराजविजय नामक गद्यकाव्य के प्रथम अध्याय से संकलित व संपादित किया गया है। शिवराजविजय के रचयिता श्री अंबिकादत्त व्यास हैं। श्री अंबिकादत्त व्यास आधुनिक युग के ऐतिहासिक उपन्यास लेखन की विधा के प्रवर्तक हैं।
         
          (ख) भावविकास
          
          सूर्य ही गतिशील जंगम व स्थायी (स्थावर) की आत्मा है। ऐसा ऋग्वेद में वर्णन है। छान्दोग्य उपनिषद् में कहा गया है
          
          ‘आदित्यो ह वै प्राणः’ (सूर्य ही प्राण है)। तैत्तिरीय उपनिषद् की सूचना है –
          
          ‘आदित्येन वाव सर्वे लोकाः महीयन्ते’ (सूर्य से ही सब लोक महत्त्व को प्राप्त करते हैं) प्रश्नोपनिषद् में भी लिखा गया है कि जो हज़ार किरणोंवाला सौ प्रकार से प्रजाओं में विद्यमानप्राण का उदय होता है, यह सूर्य ही है
         
- नवो नवो भवसि जायमानः। (उत्पन्न होते हुए तुम बार-बार नए होते हो) – अथर्व० 7/81/2
- कः शक्तः सूर्यं हस्तेनाच्छादयितुम्? (सूर्य को कौन हाथ से ढक सकता है?) भासकृत-अविमारक।
- आनन्दमयो ज्ञानमयो विज्ञानमय आदित्यः। (सूर्य आनंदमय, ज्ञानमय के साथ विज्ञानमय भी है।) – सूर्योपनिषद्
- सहस्रगुणमुस्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः।। (सूर्य हज़ार गुणा करके छोड़ने के लिए जल (रस) ग्रहण करता है।) – अभिज्ञानशाकुन्तलम्
- एकः श्लाघ्यः विवस्वान् परहितकरणायैव यस्य प्रयासः। (एक प्रशंसायोग्य सूर्य है जिसका प्रयत्न सदा दूसरों का हित करना है।) हर्ष-नागानन्द, 3/18
सूर्याष्टक :
          आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर
          
          दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥
          
          सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्ड कश्यपात्मजम्
          
          श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्॥2॥
          
          बृहितं तेजः पुजं च वायुमाकाशमेव च।
          
          प्रभु च सर्वलोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम्॥5॥
          
          बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्
          
          एकचक्रधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्॥6॥
         
          अर्थ – हे आदिदेव सूर्य (भास्कर) तुम्हें मेरा प्रणाम। आप कृपा करें। हे दिन को बनानेवाले तुम्हें प्रणाम, हे प्रकाश देनेवाले, तुम्हें प्रणाम। सात घोड़े के रथ पर चढ़े हुए, तीक्ष्ण, कश्यप के पुत्र, हे सफेद काम को धारण करनेवाले सूर्यदेव, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। महत् तेज:पुञ्ज, वायु तथा आकाश रूप, तथा सब लोकों के स्वामी, आपको प्रणाम। गुडहल के फूल के समान, हार तथा कुंडल से सुभूषित, एकचक्र को धारण करनेवाले देव सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ।
          
          भाव – अवबोधनम् –
          
          जगतः तस्थुषश्च – जो चेतन जीव हैं तथा जो अचेतन (जड़) हैं, सूर्य उन सबकी आत्मा है।
          
          चक्रवर्ती खेचरचक्रस्य – सब नक्षत्र समूहों का सम्राट भी सूर्य ही है क्योंकि सूर्य से ही सब नक्षत्र प्रकाशित होते हैं। सूर्य के चारों ओर ही सब नक्षत्र घूमते हैं।
          
          कुण्डलम् आखण्डलदिश – इंद्र से संबंधित पूर्व दिशा नायिका है उसके कर्णाभूषण कुंडल के समान सूर्य शोभा देता है।
          
          शोकविमोकः कोकलोकस्य – चकवा पक्षी रात को अपनी पत्नी से अलग हो जाता है। प्रातः उन दोनों का मेल होता है। प्रात:काल का जनक सूर्य उन दोनों के शोक को दूर करता है।
          
          अवलम्बः रोलम्बकदम्बस्य – भौंरे रात में कमल के फूलों में बंद हो जाते हैं। सवेरे जब कमल खिलते हैं, सूर्य कमलों से उन्हें मुक्त कर पुनः जीवनदान देता है।
          
          कुलमूलं श्रीरामचन्द्रस्य – सूर्य ही भगवान् श्रीराम के कुल का जनक है। इसी कारण श्रीराम सूर्यवंशी कहलाते हैं।
          
 
          सी.बी.एस.ई. पाठ्यपुस्तक ऋतिक-2 पृष्ठ संख्या 22 पर प्रहेलिका देखें।
         
          प्रहेलिकायाः प्रश्नाः उत्तराणि च॥
          
          उपरिष्टात् अधः (ऊपर से नीचे) (वर्णसङ्ख्या )
         
          प्रश्न: 1.
          
          हेमन्तात् पश्चात् अयं ऋतुः आयाति।
          
          (हेमंत के बाद यह ऋतु आती है।)
          
          उत्तरम्:
          
          वसन्तः।
         
          प्रश्न: 2.
          
          अस्मिन् युगे कृष्णस्य जन्म अभवत्।
          
          (इस युग में कृष्ण का जन्म हुआ।)
          
          उत्तरम्:
          
          द्वापरे।
         
          प्रश्न: 3.
          
          अस्मिन् मासे होलिकोत्सवः भवति।
          
          (इस महीने में होली का उत्सव होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          फाल्गुने।
         
          प्रश्न: 4.
          
          विक्रमाब्दस्य प्रारम्भः अस्मात् मासात् भवति।
          
          (विक्रमसंवत् का आरंभ इस मास से होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          चैत्रात्।
         
          प्रश्न: 5.
          
          अस्मिन् ऋतौ .मेघान् दृष्ट्वा मयूराः नृत्यन्ति, नद्यः वेगेन वहन्ति।
          
          उत्तरम्:
          
          वर्षायाम्।
         
          प्रश्न: 6.
          
          अस्मिन् मासे रावणं हत्वा रामः विजयी अभवत्।
          
          (इस महीने में रावण को मारकर राम विजयी हुए।)
          
          उत्तरम्:
          
          आश्विने।
          
          वामतः दक्षिणम् (बायें से दाहिने)
         
          प्रश्न: 7.
          
          शप्तः यक्षः अस्मिन् मासे मेघम् अपश्यत्।
          
          (शापग्रस्त यक्ष ने इस महीने में बादल को देखा) उत्तरम्- भाद्रपदः।
         
          प्रश्नः 8.
          
          वेदाध्ययनम् अस्मिन् मासे स्थगितं भवति।
          
          (वेदों का अध्ययन इस मास में रोक दिया जाता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          श्रावणे।
         
          प्रश्न: 9.
          
          मान्धाता महीपतिः आस्मिन युगे अभवत्।
          
          (मान्धाता राजा इस युग में हुए।)
          
          उत्तरम्:
          
          कृतयुगे
          
          उपरिष्टात् अधः (ऊपर से नीचे)
         
          प्रश्नः 10.
          
          वैशाखादनन्तरम् एष मासः भवति।
          
          (वैसाख के बाद यह मास होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          ज्येष्ठः।
         
          प्रश्न: 11.
          
          अस्य मासस्य अमावस्यायां दीपावलिः मान्यते। .
          
          (इस महीने की अमावस्या में दीपावली मनाई जाती है।)
          
          उत्तरम्:
          
          कार्तिकस्य।
          
          वामतः दक्षिणम् (बायें से दाहिने)
         
          प्रश्न: 12.
          
          अस्य ऋतोः आदौ ‘हे’ भवति।
          
          (इस ऋतु का आदि अक्षर ‘हे’ होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          हेमन्तः।
         
          प्रश्न: 13.
          
          अस्य मासस्य पूर्णिमायां चन्द्रमसः करेभ्यः अमृतवर्षणं भवति।
          
          (इस महीने की पूर्णिमा में चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है।)
          
          उत्तरम्:
          
          आश्विने।
         
          प्रश्न: 14.
          
          अस्मिन् ऋतौ तापतप्ताः जनाः पर्वतीयस्थलेषु गच्छन्ति।
          
          (गर्मी से बेहाल लोग इस ऋतु में पर्वतों पर जाते हैं।)
          
          उत्तरम्:
          
          ग्रीष्मे।
         
          प्रश्न: 15.
          
          कृष्णे दिवं प्रयाते एषः युगः प्रारब्धः।
          
          (कृष्ण के स्वर्ग को प्रयाण करने पर यह युग प्रारंभ हुआ।)
          
          उत्तरम्:
          
          कलिः ।
         
          प्रश्न: 16.
          
          विशाखानक्षत्रम् अस्मिन् मासे भवति।
          
          (विशाखा नक्षत्र इस महीने में होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          वैशाखे
         
          प्रश्न: 17.
          
          रामः अस्मिन् युगे जातः।
          
          (राम इस युग में पैदा हुए।)
          
          उत्तरम्:
          
          त्रेता।
          
          उपरिष्टात्अधः (ऊपर से नीचे)
         
          प्रश्न: 18.
          
          उत्तरायणादनन्तरम् एतत् अयनम् आगच्छति।
          
          (उत्तरायण के बाद यह अयन आता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          दक्षिणायनम्।
          
          वामतः दक्षिणम् (बायें से दाहिने)
         
          प्रश्न: 19.
          
          माघमासात् पूर्वं भवति अयं मासः।
          
          (माघ महीने से पहले यह मास होता है।)
          
          उत्तरम्:
          
          पौषः।
         
          प्रश्न: 20.
          
          (क) शिशुपालवधस्य लेखकस्य नाम अपि अस्य मासस्य नाम्नः सदृशः।
          
          (शिशुपालवध के लेखक का नाम भी इस मास के नाम के सदृश है।)
          
          उत्तरम्:
          
          माघस्य।
          
          उपरिष्टात्अधः (ऊपर से नीचे)
          
          (ख) मृगशिरा नक्षत्रात् सम्बद्धः अयं मासः।
          
          (मृगशिरा नक्षत्र से यह मास संबद्ध है।
          
          उत्तरम्:
          
          मार्गशीर्षः।
          
          वामतः दक्षिणम् (बायें से दाहिने)
         
          प्रश्न: 21.
          
          भीष्मः अस्मिन् अयने प्राणान् अत्यजत्।
          
          (भीष्म ने इस अयन में प्राण छोड़े।)
          
          उत्तरम्:
          
          उत्तरायण।
         
          प्रश्न: 22.
          
          दिनञ्च रात्रिश्च।
          
          (दिन भी और रात भी)
          
          उत्तरम्:
          
          अहोरात्रम्।
         
अतिरिक्त-अभ्यासः
          प्रश्न: 1.
          
          अधोलिखितम् गद्यांशं पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत् –
          
          (क) अरुण एष प्रकाशः पूर्वस्यां भगवतो मरीचिमालिनः। एष भगवान् मणिराकाश-मण्डलस्य, चक्रवर्ती खेचरचक्रस्य, कुण्डलम् आखण्डलदिशः, दीपकः ब्रह्माण्डभाण्डस्य, प्रेयान् पुण्डरीकपटलस्य, शोकविमोकः कोकलोकस्य, अवलम्बो रोलम्बकदम्बस्य, सूत्रधारः सर्वव्यवहारस्य, इनश्च दिनस्य।
         
          I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
          
          1. मरीचिमालिनः प्रकाशः कीदृशः?
          
          2. एषः भगवान् सूर्यः कस्य दीपकः?
          
          3. सर्वव्यवहारस्य सूत्रधारः कः?
          
          4. सूर्यः कस्याः नायिकायाः कुण्डलम्?
          
          उत्तरम्:
          
          1. अरुणः
          
          2. बह्माण्डभाडस्य
          
          3. सूर्यः
          
          4. आखण्डलदिशः .
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (1x 1 = 1)
          
          भगवान् मरीचिमाली कस्य चक्रवर्ती अस्ति?
          
          उत्तरम्:
          
          भगवान् मरीचिमाली खेचर चक्रस्य चक्रवर्ती अस्ति।
         
          III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1 x 2 = 2)
          
          1. तत् शब्दयुग्मं लिखतं यत्र ‘म्ब’ अक्षरस्य पुनरावृत्तिः अस्ति।
          
          2. ‘पूर्वस्यां’ इति पदे का विभक्तिः ?
          
          उत्तरम्:
          
          1. अवलम्बों रोलम्बकदम्बस्य
          
          2. सप्तमी विभक्तिः
         
          (ख) अयमेव अहोरात्रं जनयति। अयम् एव वत्सरं द्वादशसु भागेषु विभनक्ति। अयम् एव कारणं षण्णाम्
          
          ऋतूणाम्। एष एव अङ्गीकरोति उत्तरं दक्षिणं चायनम्। अनेन एव सम्पादिताः युगभेदाः। अनेन एव कृताः कल्पभेदाः। एनम् एव आश्रित्य भवति परमेष्ठिनः परार्द्धसङ्ख्या । वेदा एतस्य एव वन्दिनः, गायत्री अमुम् एव गायति। धन्य एष कुलमूलं श्रीरामचन्द्रस्य। प्रणम्यः एषः विश्वेषाम्।
          
          I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
          
          1. सूर्येण के सम्पादिताः?
          
          2. सूर्येण केषां भेदाः कृता?
          
          3. का सूर्यं गायति?
          
          4. अयं सूर्यः कस्य कुलमूलम्?
          
          उत्तरम्:
          
          1. युगभेदाः
          
          2. कल्पानाम्
          
          3. गायत्री
          
          4. श्रीरामचन्द्रस्य
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (2 x 1 = 2)
          
          सूर्यः वत्सरं केषु विभनक्ति?
          
          उत्तरम्:
          
          सूर्यः वत्सरं द्वादश भागेषु विभनक्ति।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
          
          1. ‘परमेष्ठिनः’ पदे विभक्तिं लिखत।
          
          2. ‘परार्द्धसङ्ख्या ‘ इत्यस्य विग्रहं कुरुत।
          
          उत्तरम्:
          
          1. षष्ठी विभक्तिः
          
          2. परार्द्धा सङ्ख्या (कर्मधारयः)
         
(ग) एष भगवान् मणिराकाश-मण्डलस्य, चक्रवर्ती खेचर चक्रस्य, कुण्डलम् आखण्डलदिशः, दीपकः ब्रह्माण्ड भाण्डस्य, प्रेयान्, पुण्डरीकपटलस्य, शोकविमोकः कोकलोकस्य, अवलम्बो रोलम्बकदम्बस्य, सूत्रधारः सर्वव्यवहारस्य।
          I. एकपदेन उत्तरत (1 x 2 = 2)
          
          (i) सूर्यः कस्य शोकं विमोचयति?
          
          (ii) भगवान् सूर्यः सर्वव्यवहारस्य कोऽस्ति?
          
          उत्तरम्:
          
          (i) कोकलोकस्य
          
          (ii) सूत्रधारः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (1 x 1 = 1)
          
          एषः भगवान् सूर्यः कस्य मणिः वर्तते?
          
          उत्तरम्:
          
          एषः भगवान् सूर्यः आकाशमण्डलस्य मणिः वर्तते।
         
          III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
          
          (i) ‘एष भगवान्’ इति पदद्वयम् कस्य विशेषणं वर्तते?
          
          (ii) ‘नक्षत्र समूहस्य’ इति पदस्य अर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
          
          (iii) ‘प्रजा’ इति पदस्य किं विपर्यय पदम् अत्र अनुच्छेदे प्रयुक्तम्?
          
          (iv) ‘प्रियः’ पदस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः?
          
          उत्तरम्:
          
          (i) सूर्यस्य
          
          (ii) खेचर चक्रस्य
          
          (iii) चक्रवर्ती
          
          (iv) प्रेयान्
         
          (घ) अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्। एष एव अङ्गीकरोति उत्तरं दक्षिणं चायनम्। अनेन एव सम्पादिताः युगभेदाः। अनेन एव कृताः कल्पभेदाः। एनम् एव आश्रित्य भवति परमेष्ठिनः परार्द्धसङ्ख्या। वेदाः एतस्य वन्दिनः, गायत्री अमुम् एव गायति। धन्यः एषः कुलमूलं श्रीरामचन्द्रस्य।
          
          I. एकपदेन उत्तरत (1/2 x 2 = 1)
          
          (i) केन कल्पानां भेदाः कृताः?
          
          (ii) उत्तरं दक्षिणञ्च किं भवति?
          
          उत्तरम्:
          
          (i) सूर्येण
          
          (ii) अयनम्
         
          II. पूर्ववाक्येन उत्तरत (2 x 1 = 2)
          
          (i) सूर्यम् आश्रित्य किं भवति?
          
          उत्तरम्:
          
          सूर्यम् आश्रित्य परमेष्ठिनः परार्द्ध सङ्ख्या भवति।
         
          III. निर्देशानुसारेण उत्तरत (1/2 x 4 = 2)
          
          (i) अनुच्छेदे ‘अमुम्’ पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (ii) ‘षण्णाम् ऋतूणाम्’ अत्र विशेषण पदं किम?
          
          (iii) ‘कृताः’ इति क्रिया पदस्य अनुच्छेदे कर्तृपदं किम्?
          
          (iv) अनुच्छेदे ‘निराश्रित्य’ पदस्य कः विपर्ययः प्रयुक्तो वर्तते?
          
          उत्तरम्:
          
          (i) एनम्
          
          (ii) षण्णाम्
          
          (iii) अनेन
          
          (iv) आश्रित्य
         
          प्रश्न: 2.
          
          ग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिखत (1 + 1 = 2)
          
          (i) ‘अरुण एष प्रकाशः पूर्वस्यां भगवतो मरीचिमालिनः।”
          
          (ii) ‘अयम् एव वत्सरं द्वादशसु भागेषु विभनक्ति।”
          
          (iii) ‘धन्य एष कुलमूलं श्रीरामचन्द्रस्य। प्रणम्यः एषः विश्वेषाम्।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) ग्रन्थः- शिवराजविजयः लेखकः- श्री पं० अम्बिकादत्तः व्यासः
          
          (ii) ग्रन्थः- शिवराजविजयः लेखक:- श्री पं० अम्बिकादत्तः व्यासः
          
          (iii) ग्रन्थः- शिवराजविजयः लेखक:- श्री पं० अम्बिकादत्तः व्यासः
         
          प्रश्न: 3.
          
          (क) अधोलिखितानां पङ्क्तिनां दत्तेषु भावार्थेषु शुद्ध भावं चित्त्वा लिखत (1 x 2 = 2)
          
          I. दीपकः ब्रह्माण्डभाण्डस्य।
          
          अर्थात्
          
          (i) सूर्यः ब्रहमाण्ड पात्रं प्रकाशयति।
          
          (ii) सूर्येण विश्व गृहं प्रकाशयति।
          
          (iii) सूर्यः ब्रहमाण्ड पात्रस्य दीपकोऽस्ति!
          
          उत्तरम्:
          
          (ii) सूर्येण विश्व गृहं प्रकाशयति।
         
          II. अयमेव अहोरात्रं जनयति।
          
          अर्थात्
          
          (i) सूर्येण एव दिवारात्रम् भवतः।
          
          (ii) सूर्यः दिवारात्रम् प्रकाशयति।
          
          (iii) सूर्यः एव दिवारात्र्योः कारणं वर्तते।
          
          उत्तरम्:
          
          (iii) सूर्य एव दिवारात्र्यो कारणं वर्तते।
         
          (ख) दत्तासु पंक्तिषु रिक्तस्थानपूर्ति माध्यमेन उचितं भावं लिखत (½ x 4 = 2)
          
          I. “वेदाः एतस्य एव वन्दिनः।” अस्य भावोऽस्ति यत् ऋग्वेदः, यजुर्वेदः सामवेदः अथर्ववेदश्च …..(i)…. वेदाः सदैव अस्य ………..(ii)……….. एव गुणगानं कुर्वन्ति। यतः अयमेव सम्पूर्ण संसारस्य एक मात्रमेव ………..(iii)………. वर्तते। एनं विना संसारस्य ………….(iv)………… अपि कर्तुं न शक्यते।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) चत्वारः
          
          (ii) सूर्यस्य
          
          (iii) कारणम्
          
          (iv) व्यवहारम्
         
          II. “अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्।” अर्थात्अयं ……….(i)………. एव वसन्त-ग्रीष्म-वर्षा-शरद्-हेमन्त-शिशिराणाञ्च ……..(ii)….. मूल कारणं वर्तते। तेन विना ऋतूणाम् …….(iii)……. एव न परिवर्तते। एतेषाम् ऋतूणाम् एव आधारेण ………(iv)……. अस्तित्त्वम् अस्ति।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) सूर्यः
          
          (ii) ऋतूणाम्
          
          (iii) चक्रम्
          
          (iv) जीवानाम्
         
          प्रश्न: 4.
          
          निम्न वाक्यांशानां सार्थक संयोजनं कृत्वा लिखत (1/2 x 8 = 4)
          
 
          उत्तरम्:
          
          (i) (3)
          
          (ii) (5)
          
          (iii) (7)
          
          (iv) (1)
          
          (v) (8)
          
          (vi) (4)
          
          (vii) (6)
          
          (viii) (2)
         
          प्रश्नः 5.
          
          प्रदत्त वाक्येषु रेखाङ्कितानां पदानां प्रसंगानुसारेण उचितार्थानां चयनं कुरुत (1 x 4 = 4)
          
          1. चक्रवर्ती
          
           खेचर चक्रस्य
          
          ।
          
          (i) पक्षिणां समूहस्य
          
          (ii) नक्षत्राणां समूहस्य
          
          (iii) कीटानां समूहस्य।
          
          उत्तरम्:
          
          (ii) नक्षत्राणां समूहस्य
         
          2.
          
           इनश्च
          
          दिनस्य।
          
          (i) स्वामी
          
          (ii) गणक:
          
          (iii) विघ्नः।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) स्वामी
         
          3. वेदा एतस्य एव
          
           वन्दिनः
          
          ।
          
          (i) बन्दीजनाः
          
          (ii) प्रशंसकाः
          
          (iii) स्तोतारः।
          
          उत्तरम्:
          
          (iii) स्तोतारः
         
          4. एष एव
          
           अङ्गीकरोति
          
          उत्तरं दक्षिणं चायनम्।
          
          (i) स्वीकरोति
          
          (ii) सम्मानयति
          
          (iii) उत्पादयति।
          
          उत्तरम्:
          
          (i) स्वीकरोति
         
 
 
 
 
