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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

April 10, 2019 by LearnCBSE Online

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ are part of NCERT Solutions for Class 12 Hindi . Here we have given NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ.

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है? (CBSE-2009)
उत्तर:
शीर्षक किसी भी रचना के मुख्य भाव को व्यक्त करता है। इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ पूरे अध्याय में व्याप्त है।
‘जूझ’ का अर्थ है-संघर्ष। इसमें कथा नायक आनंद ने पाठशाला जाने के लिए संघर्ष किया। यह एक किशोर के देखे और भोगे हुए गाँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ व परिवेश को विश्वसनीय ढंग से व्यक्त करता है। इसके अतिरिक्त, आनंद की माँ भी अपने स्तर पर संघर्ष करती है। लेखक के संघर्ष में उसकी माँ, देसाई सरकार, मराठी व गणित के अध्यापक ने सहयोग दिया। अत: यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। इस कहानी के कथानायक में संघर्ष की प्रवृत्ति है। उसका पिता उसको पाठशाला जाने से मना कर देता है। इसके बावजूद, कथा नायक माँ को पक्ष में करके देसाई सरकार की सहायता लेता है। वह दादा व देसाई सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखता है तथा अपने ऊपर लगे आरोपों का उत्तर देता है। आगे बढ़ने के लिए वह हर कठिन शर्त मानता है। पाठशाला में भी वह नए माहौल में ढलने, कविता रचने आदि के लिए संघर्ष करता है। इस प्रकार यह शीर्षक कथा-नायक की केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है।

प्रश्न 2.
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ? (सैंपल पेपर-2007)
उत्तर:
लेखक को मराठी का अध्यापक बड़े आनंद के साथ पढ़ाता था। वह भाव छंद और लय के साथ कविताओं का पाठ करता था। बस तभी लेखक के मन में भी यह विचार आया कि क्यों न वह भी कविताएँ लिखना शुरू करें। खेतों में काम करते-करते और भैंसे चराते-चराते उसे बहुत-सा समय मिल जाता था। इस कारण लेखक ने कविताएँ लिखनी आरंभ कर दी और अपनी सारी कविताओं को वह मराठी के अध्यापक को दिखाता था ताकि उसकी कमियों को दूर किया जा सके।

प्रश्न 3.
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई? (CBSE-2009, 2014)
उत्तर:
श्री सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक थे। लेखक बताता है कि पढ़ाते समय वे स्वयं में रम जाते थे। उनका कविता पढ़ाने का अंदाज बहुत अच्छा था। सुरीला गला, छद की बढ़िया लय-ताल और उसके साथ ही रसिकता थी उनके पास। पुरानी-नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ उन्हें अनेक अंग्रेजी कविताएँ भी कंठस्थ थीं। पहले वे एकाध कविता गाकर सुनाते थे-फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते। उसी भाव की किसी अन्य की कविता भी सुनाकर दिखाते। वे स्वयं भी कविता लिखते थे। याद आई तो वे अपनी भी एकाध कविता यह सब सुनते हुए, अनुभव करते हुए लेखक को अपना भान ही नहीं रहता था। लेखक अपनी आँखें और | प्राणों की सारी शक्ति लगाकर दम रोककर मास्टर के हाव-भाव, ध्वनि, गति आदि पर ध्यान देता था। उससे प्रभावित होकर लेखक भी तुकबंदी करने का प्रयास करता था। अध्यापक लेखक की तुकबंदी का संशोधन करते तथा उसे कविता के लय, छद, अलंकार आदि के बारे में बताते। इन सब कारणों से लेखक के मन में कविताओं के प्रति रुचि जगी।

प्रश्न 4.
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया? (CBSE-2009)
उत्तर:
जब लेखक को कविता के प्रति कोई लगाव नहीं था तो उसे अपना अकेलापन काटने को दौड़ता था। इसी अकेलेपन ने उसके मन पर निराशा की छाया डाल दी थी। इसी कारण वह जीवन के प्रति निर्मोही हो गया था। लेकिन जब उसका लगाव कविता के प्रति हुआ तो उसकी धारणा एकदम बदल गई। उसे अकेलापन अब अच्छा लगने लगा था। वह चाहता था कि कोई उसे कविता रचते समय न टोके। वास्तव में कविता के प्रति लगाव होने के बाद लेखक के लिए अकेलापन ज़रूरी हो गया था। इसी अकेलेपन में वह कविताएँ रच सकता था।

प्रश्न 5.
आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें। (CBSE-2018)
उत्तर:
पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था। लेखक का दृष्टिकोण पढ़ाई के प्रति यथार्थवादी था। उसे पता था कि खेती से गुजारा नहीं होने वाला। पढ़ने से उसे कोई-न-कोई नौकरी अवश्य मिल जाएगी और गरीबी दूर हो जाएगी। वह सोचता भी है-पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आण्णा की तरह कुछ धंधा-कारोबार किया जा सकेगा। दत्ता जी राव का रवैया भी सही है। उन्होंने लेखक के पिता को धमकाया तथा लेखक को पाठशाला भिजवाया। यहाँ तक कि खुद खर्चा उठाने तक की धमकी लेखक के पिता को दी। इसके विपरीत, लेखक के पिता का रवैया एकदम अनुचित था। उसकी यह सोच, ‘तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है बालिस्टर नहीं होने वाला है तू”-एकदम प्रतिगामी था। वह खेती के काम को ज्यादा बढ़िया समझता था तथा स्वयं ऐयाशी करने के लिए बच्चे की खेती में झोंकना चाहता था।

प्रश्न 6.
दत्ताजी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर:
यदि झूठ का सहारा न लेते तो लेखक अनपढ़ रह जाता और वह जीवनभर खेतों में कोल्हू के बैल की तरह जुता रहता। उसे सिवाय भैंसे चराने अथवा खेती करने के और कोई काम न होता। वह दिन-भर खेतों पर काम करता और शाम को घर लौट आता। उसका पिता अय्याशी करता रहता। लेखक के सारे सपने टूट जाते। वह अपना जीवन और प्रतिभा ऐसे ही व्यर्थ जाने देता। बिना झूठ का सहारा लिए उसकी प्रतिभा कभी भी न चमक पाती। केवल एक झूठ ने लेखक के जीवन की दिशा ही बदल दी।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जूझ’ उपन्यास में लेखक ने क्या संदेश दिया है? क्या लेखक अपने उद्देश्य में सफल रहा है?
उत्तर:
इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने यही संदेश देना चाहा है कि व्यक्ति को संघर्षों से जूझते रहना चाहिए। समस्याएँ तो जीवन में आती रहती हैं। इन समस्याओं से भागना नहीं चाहिए बल्कि इनका मुकाबला करना चाहिए। इसके लिए आत्मविश्वास का होना जरूरी है। बिना आत्मविश्वास के व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता। जो व्यक्ति संघर्ष करता है उसे एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलती है। संघर्ष करना तो मानव की नियति है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में जीवनभर संघर्ष करता है। यदि संघर्ष नहीं किया तो मानव जीवन एकाकी एवं नीरस बन जाएगा। इन संघर्षों से जूझ कर व्यक्ति सफलता के ऊँचे शिखर पर पहुँच सकता है। लेखक का जीवन भी बहुत संघर्षशील रहा है। इन संघर्षों से दो चार होकर ही उसने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर लिया। इस तरह हम कह सकते हैं कि लेखक अपना उद्देश्य प्रस्तुत करने में सफल रहा है।

प्रश्न 2.
लेखक का पाठशाला में पहला अनुभव कैसा रहा?
उत्तर:
लेखक फिर से पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठने लगा। वहाँ उसे पुनः नाम लिखवाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ‘पाँचवीं ना पास’ की टिप्पणी उसके नाम के आगे लिखी हुई थी। पहले दिन गली के दो लड़कों को छोड़कर कोई भी लड़की उसका जानकार नहीं था। लेखक को बहुत बुरा लगा। वह सोचने लगा कि उसे अब उन लड़कों के साथ बैठना पड़ेगा जिन्हें वह मंद बुधि समझता था। उसके साथ के सभी लड़के तो आगे की कक्षाओं में चले गए थे। इसलिए वह कक्षा में स्वयं को बहुत अकेला महसूस कर रहा था।

प्रश्न 3.
‘जूझ’ उपन्यास की संवाद योजना की समीक्षा करें।
उत्तर:
संवाद योजना की दृष्टि से यह उपन्यास बहुत सफल रहा है। इस उपन्यास के संवाद रोचक, मार्मिक, छोटे किंतु प्रभावशाली हैं। उपन्यासकार ने पात्रों के अनुकूल संवाद प्रस्तुत किए हैं। इसीलिए उनकी संवाद योजना पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ भी प्रस्तुत करती हैं। इस उपन्यास के सभी पात्र अपने स्तर और स्थिति के अनुसार संवाद बोलते हैं। लगभग सभी संवाद पात्रों की मनोस्थिति को प्रस्तुत करते हैं। छोटे संवाद अधिक प्रभावशाली हैंटेबल पर मटमैला गमछा देखकर उन्होंने पूछा “किसका है रे?” “मेरा है मास्टर।” “तू कौन है?” “मैं जकाते। पिछले साल फेल होकर इसी कक्षा में बैठा हूँ।”

प्रश्न 4.
कविताएँ पढ़ते हुए लेखक को कितनी शक्तियाँ प्राप्त हुई?
उत्तर:
लेखक बताता है कि कविताएँ पढ़ते हुए अथवा कविताओं के साथ खेलते हुए उसे दो बड़ी शक्तियाँ प्राप्त हुई। पहली लेखक को डोल पर चलते हुए अकेलापन और ऊबाऊपन महसूस होता था लेकिन कविताएँ पढ़ने से लेखक का यह ऊबाऊपन बिलकुल दूर हो गया। लेखक अपने आप ही खेलने लगा। लेखक को ऐसी, लगने लगा कि यदि वह अकेला रहे तो ही अच्छा है क्योंकि अकेले रहने से वह ज्यादा कविताएँ लिख सकता था। दूसरे लेखक को कविता गाना आ गया। अब वह काव्य पाठ करते-करते नाचने-गाने लगता। उसे लय तुकबंदी और छंद का ज्ञान होने लगा। गाने के साथ-साथ अभिनय करना भी लेखक सीख गया। कविता पाठ ने लेखक को न केवल श्रेष्ठ कवि बना दिया बल्कि उसकी काव्य प्रतिभा को कई लोगों ने पहचाना।

प्रश्न 5.
लेखक कविता किस ढंग से लिखता था और कविता बंदी के प्रति उसकी लगन कैसी थी?
उत्तर:
जब लेखक मराठी अध्यापक सौंदलगेकर से प्रभावित हुआ तो उसने खेतों में काम करते-करते कविताएँ लिखने अथवा रचन का निश्चय किया। भैंस चराते-चराते लेखक फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करता। ज़ोर-ज़ोर गुनगुनाता। कविताएँ लिखता फिर उन्हें मास्टर जी को भी दिखाता। कविता रचने के लिए लेखक खीसे में कागज और पेंसिल भी रखने लगा। कभी यदि उसके पास कागज और पेंसिल नहीं होता तो लेखक लकड़ी के छोटे से टुकड़े से भैंस की पीठ पर रेखा खींचकर लिखता था। कभी-कभी तो वह पत्थर पर भी कंकड़ों से कविता लिख दिया करता था। जब कविता याद हो जाती तो वह कविता को मिटा देता। वास्तव में कविता के प्रति लेखक की लगन बहुत ज्यादा थी। कविता के लिए वह अपना पूरा जीवन बिता देना चाहता था।

प्रश्न 6.
दत्ताजी राव ने दादा की खिंचाई किस प्रकार की?
उत्तर:
सरकार ने आनंदा की पढ़ाई के मामले पर दादा पर खूब गुस्सा किया। उन्होंने दादा की खूब हजामत बनाई। देसाई के मफ़ा (खेत) को छोड़ देने के बाद दादा का ध्यान किस तरह काम की तरफ नहीं रहा। मन लगाकर वह खेत में किस तरह श्रम नहीं करता है; फसल में लागत नहीं लगाता है, लुगाई और बच्चों को काम में जोतकर किस तरह खुद गाँव भर में खुले साँड़ की तरह घूमता है और अब अपनी मस्ती के लिए किस तरह छोरा के जीवन की बलि चढ़ा रही है।

प्रश्न 7.
पहले दिन शरारती लड़के चव्हाण ने लेखक के साथ क्या किया?
उत्तर:
जब पहले दिन लेखक स्कूल आया तो वह सहमा हुआ था। उसके पास ढंग के कपड़े तथा बस्ता भी नहीं था। उसकी जान-पहचान भी नहीं थी। शरारती चव्हाण ने पूछा कि वह नया लगता है या फिर वह गलती से आ बैठा है। लेखक बालुगड़ी की लाल माटी के रंग में मटमैली धोती व गमछा पहने हुए था। चव्हाण ने उसका गमछा छीन लिया और उसे अपने सिर पर लपेट कर मास्टर की चकल की। उसने उसे उतारकर टेबल पर रखा और अपने सिर पर हाथ फेरते हुए हुश्श की आवाज़ की। मास्टरजी के आने पर वह चुपचाप अपनी जगह पर जा बैठा।

प्रश्न 8.
किस घटना से पता चलता है कि लेखक की माँ उसके मन की पीड़ा समझ रही थी? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए। (CBSE नमूना प्रतिदर्श -2012)
उत्तर:
लेखक की इच्छा पढ़ाई जारी रखने की थी, परंतु उसका पिता उसे खेत का काम व पशु चराने का काम कराना चाहता था। इसलिए उसने लेखक की पढ़ाई छुड़वा दी। इस बात से लेखक बहुत परेशान रहता था। उसका मन दिन-रात पढ़ाई जारी रखने की योजनाएँ बनाता रहता था। इसी योजना के अनुसार लेखक ने अपनी माँ से दत्ताजी राव सरकार के घर चलकर उनकी सहायता से अपने पिता को राजी करने की बात कही। माँ ने लेखक का साथ देने की बात को तुरंत स्वीकार कर लिया। वह दत्ताजी राव से जाकर बात भी करती है और पति से इस बात को छिपाने का आग्रह भी करती है। इससे पता चलता है कि वह अपने बेटे के मन की पीड़ा को समझती थी।

प्रश्न 9.
जूझ’ शीर्षक कहानी के मुख्य चरित्र की चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है।-स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2012)
उत्तर:
शीर्षक किसी रचना का मुख्य आधार होता है। इससे पाठक को विषयवस्तु का बोध होता है। ‘जूझ’ शीर्षक अपने आप में अपनी बात को प्रकट करता है। जूझ’ का अर्थ है- संघर्ष। इस कहानी में लेखक का संघर्ष दिखाया गया है। यह शीर्षक आत्मकथा के मूल स्वर के रूप में सर्वत्र दिखाई देता है। कथानायक को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तरों पर संघर्ष करना पड़ा। परिवार, समाज, आर्थिक, विद्यालय आदि हर स्तर पर उसका संघर्ष दिखाई देता है। यह शीर्षक कथानायक के पढ़ाई के प्रति जूझने की भावना को उजागर करता है।

प्रश्न 10.
दत्ताजी राव की सहायता के बिना ‘जूझ’ कहानी का ‘मैं’ पात्र वह सब नहीं पा सकता जो उसे मिला। टिप्पणी कीजिए। (CBSE-2008)
अथवा
कहानीकार के शिक्षित होने के संघर्ष में दत्ताजी राव देसाई के योगदान को जूझ’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2009, 2014)
उत्तर:
लेखक के पिता ने खेत के काम के नाम पर उसका स्कूल जाना बंद कर दिया। उसे लगता था कि उसका बेटा बिगड़ जाएगा। माँ-बेटे के प्रयास असफल हो गए। उनके गाँव में दत्ता साहब सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति थे। लेखक का पिता उनका दबाव मानता था। माँ-बेटे ने एक झूठ के सहारे दत्ताजी राव से सहायता माँगी। दत्ताजी राव ने पिता को खूब डाँट लगाई तथा उसके कहने पर लेखक का पिता उसे पढ़ाने के लिए तैयार हो जाता है। पाठशाला में लेखक अन्य बच्चों के संपर्क में आकर पढ़ने लगता है। इस प्रकार दत्ता जी राव लेखक के जीवन में बड़ा बदलाव लेकर आए। इनके बिना लेखक की पढ़ाई नहीं हो सकती थी और वह अनपढ़ ही रह जाता।

प्रश्न 11.
जूझ’ कहानी में आपको किस पात्र ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यों? उसकी किंहीं चार चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2008, 2013)
उत्तर:
‘जूझ’ कहानी में दत्ता जी राव देसाई एक प्रभावशाली चरित्र के रूप में हैं। वे आम लोगों के कष्ट दूर करने की कोशिश भी करते हैं। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. तर्कशील – दत्ता जी राव तर्क के माहिर हैं। लेखक की पढ़ाई के संबंध में वे लेखक के पिता से तर्क करते हैं। जिसके कारण वह उसे पढ़ाने की मंजूरी देता है।
  2. मददगार – दत्ता जी राव लोगों की मदद करते हैं। वे लेखक की पढ़ाई का खर्च भी उठाने को तैयार हो जाते हैं।
  3. प्रेरक – दत्ता साहब का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। वे अच्छे कार्यों के लिए दूसरों को प्रोत्साहित भी करते हैं। इसी की प्रेरणा से लेखक का पिता बेटे को पढ़ाने को तैयार होता है।
  4. समझदार – दत्ता बेहद सूझबूझ वाले व्यक्ति थे। लेखक उसकी माँ की बात का अर्थ वे शीघे ही समझ जाते हैं। वे लेखक के पिता को बुलाकर उसे समझाते हैं कि वह बेटे की पढ़ाई करवाए। वह माँ-बेटे की बात को भी गुप्त ही रखता है।

प्रश्न 12.
‘जूझ’ कहानी के प्रमुख पात्र को पढ़ना जारी रखने के लिए कैसे जूझना पड़ा और किस उपाय से वह सफल हुआ? (CBSE-2012)
उत्तर:
लेखक के पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहता था जबकि लेखक व उसकी माँ पिता के रवैये से सहमत नहीं थे। उन्होंने दत्ताजी राव की सहायता से यह कार्य करवाया। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लड़कों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह के प्रयास करता है। स्कूल में वर्दी, किताबों आदि की समस्या से उसे दो-चार होना पड़ा। यहीं पर मराठी के अच्छे अध्यापक के प्रभाव से वह कविता भी रचने लगा था। वह खेती के काम के समय भी अपने आसपास के दृश्यों पर कविता बनाने लगा था। उन कविताओं को अपने अध्यापक सौंदलेकर को दिखलाता। यह सब कार्य उसने एक झूठ के सहारे किया अगर वह झूठ न बोलता तो दत्ताजी राव उसके पिता पर दबाव नहीं डालते। इस तरह उसका जीवन विकसित नहीं होता।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 13.
‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ताजी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। क्या ऐसा कहना ठीक है? क्यों ? (CBSE-2008)
उत्तर:
लेखक का मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता है। उसके पिता ने खेती के काम के बहाने उसे स्कूल जाने से रोक दिया। माँ और बेटा पिता को नहीं मना सकते थे। अब उनके पास अंतिम उपाय दत्ताजी राव थे जो गाँव में सर्वाधिक प्रभावशाली थे। माँ और बेटा उनके पास जाकर पिता की शिकायत करते हैं। वे पिता के बारे में झूठ भी बोलते हैं। दत्ताजी राव ने लेखक के पिता को बुलाकर बेटे की पढ़ाई के संबंध में डाँट लगाई तथा उसे स्कूल भेजने का आदेश दिया। पिता ने भी कुछ शर्तों के साथ हामी भर दी। इस तरह लेखक का स्कूल जाना शुरू हो गया। वहाँ वह मित्रों से मिला तथा एक शिक्षक के प्रभाव से कविता भी लिखने लगा। यह सब झूठ के जरिए हुआ। नैतिकता की दृष्टि से यह झूठ गलत था, परंतु वह झूठ भी सही माना जाता है जो कल्याणकारी हो, लेखक की पढ़ाई इस झूठ के बिना नहीं हो सकती थी। आज यह कहानी हमें संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। इस तरह झूठ का सहारा लेने से जीवन व सपनों का विकास होता है जिसके आधार पर नए सृजन समाज के समक्ष आते हैं।

प्रश्न 14.
‘जूझ’ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच संघर्ष की कहानी है। सिद्ध कीजिए। (CBSE-2011, 2012, 2016)
उत्तर:
यह कहानी एक किशोर के देखे और भोगे ग्राम्य जीवन के यथार्थ की गाथा है। इस कहानी में एक किशोर को पिता के तानाशाही रवैये के कारण खेती में लगना पड़ा था। उसका मन पाठशाला के लिए तड़पता था। वह परिस्थितियों से जूझता है। यह एक किशोर को देखे और भोगे गए आँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और परिवेश को विश्वसनीय ढंग से प्रतिबिंबि भी करता है। कथानायक शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तर पर जूझता है। पहले वह घर में संघर्ष करता है, इसके बाद स्कूल में भी उसे पढ़ाई के लिए जूझना पड़ता है। आर्थिक संकट से भी उसे परेशानी उठानी पड़ती है। इन सब संघर्षों के बावजूद वह अपनी पढ़ाई जारी रखता है। वह कविता पाठ करने लगा था। गणित में भी वह अव्वल था। इस कारण सभी उसे आनंद कहने लगे थे। लेखक ने आत्मकथा में अपने जीवन संघर्ष को ही व्यक्त किया है। यह कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष की कहानी है। कथानायक को अंत में अपने संघर्ष में सफलता मिलती है।

प्रश्न 15.
‘जूझ’ कहानी आधुनिक किशोर-किशोरियों को किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा दे सकती है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2014, 2017)
उत्तर:
‘जूझ’ कहानी में किशोर युवक के संघर्ष को व्यक्त किया गया है। यह संघर्ष आधुनिक युवाओं को प्रेरणा दे सकता है जो निम्नलिखित हैं

  1. दूरदर्शिता – कहानी का नायक ‘आनंदा’ दूरदर्शी है। वह किशोर अवस्था में ही पढ़ाई के महत्त्व को समझ गया था। उसे पता था कि खेती में ज्यादा आमदनी नहीं है। वह नौकरी या व्यवसाय का महत्त्व समझ गया था।
  2. मेहनती – आनंदा बेहद मेहनती था। वह खेत में कठोर मेहनत करता था तथा पढ़ाई में भी वह अव्वल था। यह प्रेरणा नए युवा ले सकते हैं।
  3. संघर्षशीलता – आधुनिक किशोर-किशोरियाँ कम संघर्ष से सफलता अधिक चाहते हैं। आनंदा ने पढ़ाई, खेती, स्कूल, समाज हर जगह प्रतिकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी सफलता पाई उसको संघर्ष प्रेरक है।
  4. अभ्यास – आनंदा पढ़ाई में बेहद ध्यान देता था। कविता का अभ्यास वह भैंस की पीठ पर, पत्थर पर, खेतों में हर जगह करता था। गणित में भी वह बेहद होशियार था। नए विद्यार्थी अभ्यास का पाठ ले सकते हैं।

प्रश्न 16.
जूझ कहानी का नायक किन परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई जारी रख पाता है? अगर उसकी जगह आप होते तो उन विषम परिस्थितियों में किस प्रकार अपने सपने को जीवित रख पाते? (सैंपल पेपर-2015)
उत्तर:
‘जूझ’ कहानी के नायक के सामने संकट था। उसके पिता के लिए खेती ही सब कुछ था। शिक्षा को वह निरर्थक मानते थे। उसने लेखक का स्कूल जाना भी बंद करवा दिया था क्योंकि वे खेती व पशु चराने का काम उससे करवाना चाहते थे। लेखक व उसकी माँ पढ़ाई के बारे में उससे बात करते डरते थे। उन्होंने दत्ताराव के जरिए अपनी बात मनवाई। पिता ने खेती के काम करने की शर्त पर स्कूल भेजने की मंजूरी दी। स्कूल में लेखक अपनी उम्र के हिसाब से छोटी कक्षा में था। शरारती बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे। पैसे की कमी के कारण वर्दी आदि की भी दिक्कत थी। लेखक ने अपने परिश्रम से अपना सम्मान अर्जित किया और कविता व गणित में अव्वल स्थान प्राप्त किया। अगर मैं लेखक की जगह होता तो मैं भी मेहनत, संघर्ष व लगन से अपना लक्ष्य हासिल करता।

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