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NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम्

August 22, 2019 by LearnCBSE Online

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् (गुरु का उपदेश बिना पानी को स्नान है)

पाठपरिचयः, सारांशःच

पाठपरिचयः सारांशश्च –
अयं पाठः महाकवेः बाणभट्टस्य कादम्बरी-नामकात् गद्यकाव्यात् सङ्कलितः।
उज्जयिनीनगरे तारापीडः नाम एकः नृपः आसीत्। तस्य महामात्यः शुकनासः परमविद्वान् नीतिज्ञः च आसीत्। चन्द्रापीडः तु राज्ञः ज्येष्ठः पुत्रः अभवत्। यदा सः विद्याध्ययनं समाप्य प्रतिनिवृत्तः तदा राजा तस्य युवराजपदे अभिषेकं कर्तुम् ऐच्छत्। सः अभिषेकसामग्री सङ्ग्रहीतुं द्वारपालान् आदिशत्। यौवराज्याभिषेकात् पूर्व राजकुमारः चन्द्रापीडः दर्शनार्थम् आचार्य शुकनासम् उपगतः तदा आचार्यः शुकनासः अवदत्-” यद्यपि त्वम् अधीतशास्त्रः ज्ञेयस्य च ज्ञाता असि, अल्पः अपि उपदेशः ते न अपेक्षते, तथापि नवयौवनस्य, राज्यसुखस्य, लक्ष्याः च मदः दारुणः भवति। अतः सम्प्रति त्वम् मद्वचनानि सावधानतया शृणु।” ततः आचार्यः शुकनासः तस्य शुभम् इच्छन् तं सस्नेहम् उपदिष्टवान्। एषः शुकनासोपदेशः ‘कादम्बरी’ इति ग्रन्थे अतीव प्रसिद्धः अस्ति ।

हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः –
यह पाठ बाणभट्ट द्वारा लिखे गए ‘कादम्बरी’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। तारापोड राजा के पुत्र चन्द्रापोड को, तारापीड का मन्त्री शुकनास चन्द्रापीड के युवराज पद पर अभिषेक से पहले जो उपदेश देता है वही अंश रूप में यहाँ ग्रहण किया गया है। शकुनास चन्द्रापीड को गुरूपदेश का महत्त्व विशेषतः राजाओं के लिए बताता है क्योंकि राजाओं का स्वभाव अहंकारमूलक होता है। फिर उन्हें ऐश्वर्य, नवयौवन तथा रूप की प्राप्ति हो तो कहना ही क्या? शुकनास चन्द्रापीड को लक्ष्मी के अनेक दोष बताता है तथा लक्ष्मी के चंचल स्वभाव का भी उल्लेख करता है। अन्त में शुकनास चन्द्रापीड को ऐसा आचरण करने का उपदेश करता है जिससे उसे जनता का, साधुओं का, गुरुजनों का, मित्रों का एवं धूर्तों के कारण उपहास का पात्र न बनना पड़े। अन्त में वह चन्द्रापीड को शुभकामना प्रदान करता है।

क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च –

1. तात चन्द्रापीड! गुरूपदेशश्च नाम पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्। अयमेव ते काल: उपदेशस्य। भवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम्। विशेषेण राज्ञाम्। विरला हि तेषामुपदेष्टारः। अहङ्कारमूला हि राजप्रकृतिः। प्रतिशब्दक इवानुगच्छति राजवचनम् जनो भयात्। अपि च जन्मजातम् ऐश्वर्यम्, अभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिमरूपत्वञ्चेति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा सर्वा।

शब्दार्थः – गुरूपदेशः- आचार्यस्य उपदेशः (गुरु का उपदेश)। अखिलमलप्रक्षालनक्षमम्- सकल-दोष-उन्मूलन-सामर्थ्यम् (सभी दोषों को शान्त करने में समर्थ)। अजलम् स्नानम्- जलरहितम् स्नानम् (बिना जल के स्नान)। भवादृशाः- त्वादृशाः (आप जैसे)। भाजनानि- पात्राणि (पात्र)। उपदेष्टारः – उपदेशस्य दातारः (उपदेश देने वाले)। अहङ्कारमूला- अभिमानमूला
(अहंकार से युक्त)। राजप्रकृतिः- राज्ञां स्वभावः (राजाओं का स्वभाव)। प्रतिशब्दक:- प्रतिध्वनिः (गूंज की आवाज)। अभिनवयौवनत्वम्- नवयौवनम् (नई जवानी)। अप्रतिमरूपत्वम्- अतुलित-सौन्दर्यम् (अनुपम सौन्दर्य)।

सरलार्थ – वत्स चन्द्रापीड, गुरु का उपदेश निश्चय ही लोगों के समस्त मलों (दोषों) को धोने (दूर करने) वाला बिना जल का स्नान है। तुझे उपदेश देने का यही उचित समय है- आप जैसे ही उपदेशों के पात्र होते हैं। विशेषतः राजाओं के। उनको उपदेश देने वाले थोड़े होते हैं। राजाओं का स्वभाव अहंकारमूलक होता है। सामान्य लोग डर से राजा के आदेश का गूंज के समान अनुसरण करते हैं और भी, जन्म से प्राप्त ऐश्वर्य, नवयौवन तथा अद्वितीय सौन्दर्य-यह सब उनके लिए अनर्थो की महान शृङ्खला है।

2. आलोकयतु तावत् कल्याणाभिलाषी भवान् लक्ष्मीमेव प्रथमम्। इयं हि लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते। न परिचयं रक्षति। नाभिजनमीक्षते। न कुलक्रमम् अनुवर्तते, न शीलं पश्यति, नाचारं परिपालयति, न सत्यम् अनुबुध्यते, न वैदग्ध्यं गणयति। विनीतं पातकिनमिव नोपसर्पति। तरङ्गबुबुदवत् हि चञ्चला। यथा यथा चेयं चपला दीव्यते तथा तथा दीपशिखेव कज्जलमलिनमेव कर्म केवलम् उद्वमति।

शब्दार्थः – आलोकयतु- पश्यतु (देखें)। कल्याणाभिलाषी- मंगलाकाक्षी (कल्याण की कामना करने वाला)। अभिजनम्- कुलीनताम् (ऊँचे वंश में जन्म)। कुलक्रमम्- वंश परम्पराम् (कुल की परम्परा को)। अनुवर्तते- अनुसरति (अनुगमन करती है)। अनुबुध्यते- अवगम्यते (समझती है)। वैदग्ध्यम् – पाण्डित्यम् (विद्वता को)। उपसर्पति- समीपं गच्छति (पास जाती है)। तरङ्गबुबुदवत्- उर्मिभिः बुबुदैः तुल्यं गतिशीला (लहरों व बुलबुलों के समान चंचल)। दीपशिखेव- दीपकस्य ज्योतिः इव (दीपक की लौ की तरह)। कज्जलमलमिव- कज्जलवत् मलिनम् (काजल के समान काला)। उद्वमति- उद्गिरति (उगलती है)।

सरलार्थ – पहले तो मंगलों की इच्छा करने वाले आप इस लक्ष्मी को ही देखें। यह प्राप्त होकर भी कष्टपूर्वक रक्षा की जाती है। यह न परिचय का ध्यान रखती है। न कुछ का ध्यान करती है। न कुलपरम्परा का अनुगमन करती है। न उदार स्वभाव को देखती है। न आचार का पालन करती है। न सत्य को जानती है न पाण्डित्य को समझती है। यह विनम्र व्यक्ति के पास इसी तरह से जाती है जैसे पापी के पास यह लहरों तथा बुलबुले के समान अस्थिर होती है तथा जैसे-जैसे यह चञ्चला चमकती है वैसे-वैसे दीपक की ज्योति की तरह काजल के मैल को ही उगलती है।

3. कुमार! राज्यतन्त्रेऽस्मिन् महामोहकारिणि यौवने तथा प्रयतेथाः यथा नोपहस्यसे जनैः, न निन्द्यसे साधुभिः, न धिक्रियसे गुरुभिः, नोपालभ्यसे सुहृद्भिः, न वञ्च्यसे धूतैः।
कामं भवान् प्रकृत्यैव धीरः, पित्रा च महता प्रयत्नेन समारोपितसंस्कारः। तथापि भवद्गुणसन्तोषः मामेवं मुखरीकृतवान् “सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम्।”

शब्दार्थः – महामोहकारिणी- अज्ञानान्धकारिणी (विवेकशून्य बनाने वाली)। प्रयतेथाः- प्रयत्नं कुरु (प्रयत्न करो)। उपालभ्यसे- तुभ्यम् उपालम्भः दीयते (तुम्हें उलाहना दिया जाता है)। कामम्- सत्यम् (सच है)। प्रकृत्यैव- स्वभावेन एव (स्वभाव से ही)। समारोपितसंस्कार:- संस्थापितसंस्कारः (उत्तम संस्कारों से परिष्कृत)। मुखरीकृतवान्- प्रेरितवान् (तुम्हारे गुणों ने ही प्रेरित किया है)। नवयौवनराज्याभिषेकमङ्गलम्- नूतन-युवराज-पदे अभिषेकस्य कल्याणम् (नूतन युवराज पद पर अभिषेक के मङ्गल को)।

सरलार्थ – हे राजकुमार! इस राज्यतन्त्र को मोह के घने अन्धकार में ले जाने वाले यौवन में तुम इस प्रकार से प्रयत्न करो कि लोग तुम्हारा उपहास न करें, साधुजन तुम्हारी निन्दा न करें, गुरुजन तुम्हें धिक्कार न कहें, मित्रगण तुम्हें उलाहना न दें तथा धूर्त तुम्हें ठग न सकें।
यह सच है कि आप स्वभाव से ही गंभीर हैं और पिता के द्वारा बड़े प्रयत्न से आप के सब संस्कार किए गए हैं फिर भी आप के गुणों से प्राप्त सन्तोष ने मुझे इस प्रकार से कहने के लिए प्रेरित किया है। सब प्रकार कल्याणों के साथ आप पिता के द्वारा किए जाते हुए नवराज्याभिषेक के मंगल का अनुभव करें।

ख. अनुप्रयोगस्य-प्रश्नोत्तराणि

1. अधोलिखितपदानि शुद्धोच्चारणपूर्वकम् उच्चैः पठत (निम्नलिखित पदों को शुद्ध उच्चारण के साथ ऊँचे स्वर में पढ़िए) –
गुरूपदेशश्च, तेषामुपदेष्टारः, प्रकृत्यैव, कल्याणाभिलाषी, ऐश्वर्यम्, सुहृद्भिः।
उत्तरः
विद्यार्थी स्वयं अभ्यास करें।

2. (क) वर्णवियोजनं क्रियताम् (वर्णों का वियोजन कीजिए) –
यथा- रक्षति – र् + अ + क् + ष् + अ + त् + इ
(क) प्रथमम् – ……………………………………………….
(ख) मङ्गलम् – ……………………………………………..
(ग) पित्रा – ……………………………………………………..
उत्तरः
(क) प्रथमम् – प् + र् + अ + थ् + अ + म् + अ + म्।
(ख) मङ्गलम् – म् + अ + ङ् + ग् + अ + ल् + अ + म्।
(ग) पित्रा – प् + इ + त् + र् + आ।

(ख) वर्ण-संयोजनं क्रियताम् (वर्णों का संयोजन कीजिए) –
यथा – च् + अ + ञ् + च् + अ + ल् + आ – चञ्चला
(क) त् + अ + र् + अ + ङ् + ग् + अः – ………………
(ख) स् + अ + र् + व् + आ – ……………
(ग) र् + आ + ज् + ञ् + आ + म् ……………………
उत्तरः
(क) तरङ्गः
(ख) सर्वा
(ग) राज्ञाम्।

3. अधः सन्धिरहितपदानां सन्धियुक्तानि रूपाणि लिखत (सन्धिरहित पदों के सन्धियुक्तरूप लिखिए) –
यथा – गुरु + उपदेशः = गुरूपदेशः
(क) कल्याण + अभिलाषी = ………………………
(ख) लब्धा + अपि = ………………………
(ग) न + आचारम् = ………………………
(घ) महती + इयम् = ………………………
(ङ) भाजनानि + उपदेशानाम् = ………………………
(च) खलु + अनर्थपरम्परा = ………………………
(छ) च + इयम् = ………………………
(ज) दीपशिखा + इव = ………………………
उत्तरः
(क) कल्याणाभिलाषी
(ख) लब्धापि
(ग) नाचारम्
(घ) महतीयम्
(ङ) भाजनान्युपदेशानाम्
(च) खल्वनर्थपरम्परा
(छ) चेयम्
(ज) दीपशिखेव। ..

4. अधः प्रदत्तविग्रहपदानां स्थाने समस्तपदानि पाठादेव चित्वा लिखत (दिए गए विग्रहपदों के स्थान पर समस्त पद पाठ से ही चुनकर लिखिए) –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q4

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q4.1
उत्तरः
(क) प्रक्षालनक्षमम्
(ख) कुलक्रमम्
(ग) अनर्थपरम्परा
(घ) दीपशिखेव
(ङ) राजप्रकृतिः
(च) अहङ्कारमूला
(छ) कज्जलमलिनम्
(ज) नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम्।

5. विनयः विनीता च परस्परं वार्तालापं कुरुतः। विनयः कर्तवाच्ये पदति विनीता च कर्मवाच्ये भाववाच्ये वा। अत्र उदाहरणम् अनुसत्य विनीतायाः कथनानि लिखत (विनय और विनीता आपस में वार्तालाप करते हैं। विनय कर्तृवाच्य तथा विनीता कर्मवाच्य या भाववाच्य में बोलती है। उदाहरण के अनुसार विनीता के कथन लिखिए) –
यथा – विनयः – विनीते! किं तत्र आदित्यः वेदम् पठति?
विनीता – आम्, आदित्येन वेदः पठ्यते।
विनय: – किं त्वम् अत्र लेखम् लिखसि?
विनीता – आम्, अत्र मया लेखः लिख्यते।
विनय: – किं त्वम् विद्यालयं न गच्छसि?
(क) विनीता – नहि …………………… न ……………………।
विनय: – किं गुरुः माम् धिक्करोति?
(ख) विनीता – नहि, ………………….. न ……………………।
विनय: – किम् बालाः माम् उपहसन्ति?
(ग) विनीता – नहि, …………………… न ……………………।
विनयः – किम् मित्राणि माम् निन्दन्ति?
(घ) विनीता – नहि, ……………………….. न ……………………।
विनय: – धन्यवादः। अधुना अहम् पादपान् सिञ्चामि।
(ङ) विनीता – अस्तु, …………………… अपि …………………सिच्यन्ते।
उत्तरः
(क) नहि, मया विद्यालयः न गम्यते।
(ख) नहि, गुरुणा त्वं न धिक्क्रियसे।
(ग) नहि, बालैः त्वं न उपहस्यसे।
(घ) नहि, मित्रैः त्वं न निन्द्यसे।
(ङ) अस्तु, त्वया अपि पादपाः सिच्यन्ते।

6. निर्दिष्टशब्दरूपैः वाक्यपूर्ति कुरुत (निर्दिष्ट शब्द रूपों से वाक्य की पूर्ति कीजिए) –
यथा – अयम् एव काल: उत्सवस्य। (इदम् – प्रथमा)
(क) अस्य उत्सवस्य . .. सज्जा दर्शनीया। (सर्व – प्रथमा)
(ख) ……………. अपि आलोकयतु शोभाम्। (भवत् – प्रथमा)
(ग) हे मित्र! …………………. उत्सवपथम् निर्दिशतु। (अस्मद् – द्वितीया)
(घ) ………………… रमणीया वेला समारोहस्य।। (इदम् – प्रथमा)
(ङ) अत्र ………………… अपि मया सह उपविश। (युष्मद् – प्रथमा)
उत्तरः
(क) सर्वा
(ख) भवान्
(ग) माम्
(घ) इयं
(ङ) त्वम्।

7. निर्दिष्टधातुरूपैः वाक्यानि पूरयत (निर्दिष्ट धातुरूपों से वाक्य की पूर्ति कीजिए) –
यथा – नृपः प्रजाः पालयति। (पाल् – लट्)
(क) सैनिकाः देशं …………………….. (रक्ष् – लट्)
(ख) राजसत्तायाः मदं को न …………………… (ज्ञा – लट)
(ग) राज्ञाम् उपदेष्टारः विरलाः एव …………….. (भू — लट)
(घ) मूर्खः विद्वांसम् न ……………………. (गण् – लट्)
(ङ) राजकुमारः गुरोः उपदेशं …………… (श्रु – लट्)
(च) अहम् प्रसन्नः ………………… (अस् – लट)
(छ) त्वम् विजयी ………………… (भू – लोट)
(ज) वयम् सदा जनहितम् एव ………………………. (कृ – लुट)
उत्तरम्-
(क) रक्षन्ति
(ख) जानाति
(ग) भवन्ति
(घ) गणयति
(ङ)शृणोति
(च) अस्मि
(छ) भव
(ज) करिष्यामः।
उत्तरः
(क) रक्षन्ति
(ख) जानाति
(ग) भवन्ति
(घ) गणयति
(ङ)शृणोति
(च) अस्मि
(छ) भव
(ज) करिष्यामः।

8. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिख्यन्ताम् (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)।
(क) पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालने समर्थः कः भवति?
(ख) राजप्रकृतिः कीदृशी भवति?
(ग) लब्धापि दुःखेन का परिपाल्यते?
(घ) लक्ष्मीः किमिव चञ्चला भवति?
(ङ) लक्ष्मी: दीपशिखेव किम् उद्वमति?
(च) जनः भयात् राजवचनं किमिव अनुगच्छति?
(छ) पित्रा च समारोपितसंस्कारः कः आसीत्?
(ज) आचार्यः शुकनासः युवराजाय का शुभकामनाम् अयच्छत्?
(झ) अयं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्गहीतः, कश्च तस्य लेखकः?
उत्तरः
(क) पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालने गुरूपदेशः समर्थः भवति।
(ख) राजप्रकृतिः अहङ्कारमूला भवति।
(ग) लब्धापि दुःखेन लक्ष्मीः परिपाल्यते।
(घ) लक्ष्मीः तरङ्गबुबुद् इव चञ्चला भवति।
(ङ) लक्ष्मी: दीपशिखेव कज्जलमलम् उद्वमति।
(च) जनः भयात् राजवचनम् प्रतिशब्दक एव अनुगच्छति।
(छ) पित्रा च समारोपितसंस्कारः चन्द्रापीडः आसीत्।
(ज) आचार्यः शुकनासः युवराजाय इमां शुभकामनाम् अयच्छत् यत् सः सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम् अनुभवतु।
(झ) अयं पाठः कादम्बरीनामकात् ग्रन्थात् सगृहीतः, बाणभट्टश्च तस्य लेखकः।

9. पदानाम् अर्थमेलनं क्रियताम् –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q9
उत्तरः
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q9.1

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q9.2

10. कथयन्तु ‘आम्’ अथवा ‘न’ (‘हाँ’ अथवा ‘नहीं’ कहिए)।
(क) चन्द्रापीडः तारापीडस्य ज्येष्ठः पुत्रः आसीत्।
(ख) चन्द्रापीडः मूर्खः आसीत्।
(ग) गुरोः उपदेशः अजलं स्नानं कथ्यते।
(घ) राज्ञां स्वभावः अहङ्कारयुक्तः भवति।
(ङ) प्राप्ता लक्ष्मी: सुखेन रक्ष्यते।
(च) लक्ष्मी: दीपशिखेव कज्जलं न मुञ्चति।
(छ) आचार्यः शुकनासः यौवराज्याभिषेकात् पूर्व चन्द्रापीडम् उपदिष्टवान्।
(ज) चन्द्रापीडः तु गुरुणा समारोपितसंस्कारः आसीत्।
उत्तरः
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) आम्
(ङ) न
(च) न
(छ) आम्
(ज) न।

11. (क) समक्षम् कोष्ठकाद् विशेषणपदं चित्वा रिक्तस्थानं पूरयत (सामने कोष्ठक से विशेषण पद चुनकर रिक्त स्थान भरिए) –
(i) ……………… ऐश्वर्यम्। (राज्ञः । जन्मजातम्)
(ii) ………………….. यौवनत्वम्। (अभिनवम् । चन्द्रापीडस्य)
(iii) पिता पुत्रं ……………………….. प्रयत्नेन संस्कारयुक्तम् अकरोत्। (उपदेशं दत्वा । महता)
उत्तरः
(i) जन्मजातम्
(ii) अभिनवम्
(iii) महता।

(ख) रेखाङ्कितं सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्? (रेखाङ्कित सर्वनाम पद किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?)
(i) अयमेव ते कालः उपदेशस्य।
(ii) विरलाः हि तेषाम् उपदेष्टारः।
(iii) इयम् हि लब्धापि दु:खेन परिपाल्यते।
उत्तरः
(i) चन्द्रापीडाय
(ii) राजभ्यः
(iii) लक्ष्म्यै।

(ग) यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्॥
इति श्लोकस्य भावमूला का पक्तिः विद्यते पाठे ? पठित्वा अवबुध्य च लिखत।
इस श्लोक की भावामूलक पाठगत पंक्ति को पाठ से पढ़कर तथा समझकर लिखिए।
उत्तरः
अपि च जन्मजातम् ऐश्वर्यम्, अभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिमरूपत्वञ्चेति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा सर्वा।

12. द्वितीये अनुच्छेदे लक्ष्याः दोषाः वर्णिताः। तेषु केवलं पञ्चदोषान् अत्र वर्णयत। (द्वितीय अनुच्छेद में लक्ष्मी के दोष बताए गए हैं। उनमें से केवल पाँच दोषों को यहाँ लिखिए।) –
यथा – लक्ष्मी: परिचयं न रक्षति।
उत्तरः
(i) लक्ष्मीः अभिजनम् न ईक्षते।
(ii) लक्ष्मीः कुलक्रमम् न अनुवर्तते।
(iii) लक्ष्मी: शीलं न पश्यति।
(iv) लक्ष्मीः आचारं न परिपालयति।
(v) लक्ष्मीः सत्यम् न अवबुध्यते।

ग. पाठ-विकासः

(क) लेखकपरिचयः
महाकविः बाणभट्टः राज्ञः हर्षवर्धनस्य राजकविः आसीत्। हर्षवर्धनस्य शासनकालः 606 ईसवीतः 648 ई० पर्यन्तम् आसीत्। हर्षवर्धनः कन्नौजस्य राजा अभवत्। अतः सप्तमशताब्द्याः पूर्वार्द्ध बाणस्य स्थिति कालः मन्यते। अयं वत्सगोत्रोत्पन्नः द्विजः आसीत्। अस्य पिता चित्रभानुः माता च राज्यदेवी आस्ताम्। दुर्भाग्येन असौ बाल्यावस्थायामेव मातृपितृविहीनः जातः। ततः सः देशाटनाय निर्गतः। यदा बाणः गृहं प्रतिनिवृत्तः तदा सः विद्वान् परिपक्वबुद्धिः अनुभवी चासीत्। अनेन रचिताः चत्वारः ग्रन्थाः सन्ति –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् Q12
बाणभट्टः संस्कृतगद्यकाव्यस्य सम्राट् अस्ति। उक्तं च –
नवोऽर्थो जातिरग्राम्या श्लेषोऽश्लिष्टः स्फुटो रसः।
विकटाक्षरबन्धश्च कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम्॥ (हर्षचरितम्)
हर्षवर्धनस्य मृत्योः अनन्तरं बाणः स्वग्राम प्रोतिकूटं निवृत्तः। तत्रैव साहित्यरचनां कृतवान्।

लेखक परिचय –
महाकवि बाणभट्ट राजा हर्षवर्धन के राजकवि थे। हर्षवर्धन का शासनकाल 600 ई० से 648 ई० तक था। हर्षवर्धन कन्नौज के राजा थे। इसलिए सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध बाण का स्थिति काल माना जाता है। बाण वत्स गोत्र में उत्पन्न ब्राह्मण थे। इनके पिता चित्रभानु तथा माता राज्यदेवी थी। दुर्भाग्य से ये बाल्यावस्था में ही माता-पिता से वंचित हो गए। उसके बाद ये देश भर में घूमने के लिए निकल पड़े। जब बाण घर लौटे तो वे विद्वान तथा परिपक्व बुद्धि वाले व अनुभवी थे। इनके द्वारा रचे गए निम्न चार ग्रन्थ हैं –
1. हर्षचरितम् – आख्यायिका
2. कादम्बरी – कथा
3. चण्डीशतकम् – पद्यकाव्यम्
4. पार्वतीपरिणयः – नाटकम्
बाणभट्ट संस्कृत गद्यकाव्य के सम्राट हैं। कहा गया है –
नया अर्थ, स्वाभाविक स्वभावोक्ति, सरल श्लेष, स्पष्ट रस तथा समस्तपद (विकटाक्षरबन्ध)-ये चारों गुण एकत्र मिलने कठिन हैं (हर्षचरित)। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद बाण अपने गाँव प्रीतिकूट चले आए। वहीं ये साहित्य रचना करते रहे।

(ख) रचनापरिचयः
(i) ‘हर्षचरितम्’ ऐतिहासिकतथ्यप्रधानः आख्यायिकाग्रन्थः अस्ति। राज्ञः हर्षवर्धनस्य जीवनवृत्तमेव तत्र वर्णितम्।
(ii) ‘कादम्बरी’–‘कादम्बरी’ संस्कृतसाहित्यस्य सर्वोत्कृष्टा प्रेमगाथा अस्ति। इयं हि कविकल्पनामूलक-प्रेमकथा अस्ति।
एषा तु चन्द्रापीडस्य पुण्डरीकस्य च जन्मत्रयस्य कथा वर्तते। अस्य कथानकस्य प्रारम्भः एवं भवति-प्राचीनकाले शूद्रक: विदिशायाः शासकः आसीत्। यदा स राजसभायाम् उपविष्टः आसीत् तदैव काचित् चाण्डालकन्या वैशम्पायननामकं शुकं राज्ञे समर्पितवती। शुक: मानुषी वाणीं वक्तुमपि कुशलः आसीत्। तस्य पूर्वजन्मनः स्मरणमपि आसीत्। चकितः राजा यदा शुकस्य वृत्तान्तम् ज्ञातुम् ऐच्छत् तदा सः शुक: जाबालिमुनिना ज्ञापितं स्वपूर्वजन्मनः वृत्तान्तं श्रावयति –
शुक: जाबालिमुनिना ज्ञापितं स्वपूर्वजन्मनः वृत्तान्तं श्रावयति –
उज्जयिन्यां तारापीडः नृपः आसीत्। तस्य राज्याः नाम विलासवती आसीत्। तयोः पुत्रस्य नाम चन्द्रापीडः आसीत्। तारापीडस्य महामन्त्री शुकनासः परमविद्वान् आसीत्। तस्य पुत्रस्य नाम वैशम्पायनः अभवत्। तयोः कुमारयोः परस्परं गाढमैत्री आसीत्। यदा राजकुमारः चन्द्रापीडः विद्याध्ययनं समाप्य प्रतिनिवृत्तः तदा तस्य युवराजस्य अभिषेककाले महामन्त्रिणा शुकनासेन तस्मै चन्द्रापीडाय यः उपदेशः प्रदत्तः स एव ‘शुकनासोपदेशः’ इति नाम्ना प्रसिद्धः जातः। अत: शुकनासोपदेशः कादम्बरीग्रन्थस्य एव एकं प्रमुखं स्थलम् अस्ति।
कादम्बरीरसभरेण समस्त एव
मत्तो न किञ्चिदपि चेतयते जनोऽयम्।।

रचनाओं का परिचय –
(i) हर्षचरित- यह ऐतिहासिक तथ्य प्रधान आख्यायिका ग्रन्थ है। इसमें राजा हर्षवर्धन के जीवन-चरित का वर्णन किया गया है।
(ii) कादम्बरी- यह संस्कृत साहित्य की सबसे उत्तम प्रेमकथा है। यह कविकल्पनामूलक है। इसमें चन्द्रापीड तथा पुण्डरीक के तीन जन्मों की कथा है। कथानक का प्रारंभ यहाँ से होता है –
प्राचीन समय में विदिशा के राजा शूद्रक हुए। जब वे राज्यसभा में बैठे थे तो कोई चाण्डालकन्या वैशम्पायन नामक तोते को लेकर राजा को भेंट करती है। तोता मनुष्य की वाणी में बोल सकता था। उसने कहा कि उज्जयिनी में कोई तारापीड नाम का राजा था। चन्द्रापीड उसका पुत्र था। विलासवती चन्द्रापीड की माता थी। तारापीड का मन्त्री शुकनास बड़ा विद्वान था। मन्त्री के पुत्र का नाम वैशम्पायन था। उन दोनों कुमारों में आपस में मित्रता थी। चन्द्रापीड विद्याध्ययन समाप्त कर लौटा तो उसके युवराज पद पर अभिषेक के समय महामन्त्री शुकनास ने उसे जो उपदेश दिया वह ‘शुकनासोपदेश’ के नाम से प्रसिद्ध है। शुकनासोपदेश कादम्बरी का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
कादम्बरीरस समूह से पूरी तरह उन्मत्त जन को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता।

घ. पठितांश – अवबोधनम्:

1. निम्न गद्यांशान् पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
(क) तात चन्द्रापीड! गुरूपदेशश्च नाम पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्। अयमेव ते कालः उपदेशस्य। भवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम्। विशेषेण राज्ञाम्। विरला हि । तेषामुपदेष्टारः। अहङ्कारमूला हि राजप्रकृतिः। प्रतिशब्दक इवानुगच्छति राजवचनम् जनो भयात्। अपि च जन्मजातम् ऐश्वर्यम्, अभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिमरूपत्वञ्चेति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा सर्वा।

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम् किम्?
(ii) राजप्रकृतिः कीदृशी भवति?
(iii) जनः भयात् किम् अनुगच्छति?
(iv) अयं कस्य कालो वर्तते?
उत्तरः
(i) गुरूपदेशः
(ii) अहङ्कारमूला
(iii) राजवचनम्
(iv) उपदेशस्य

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
महती खलु अनर्थ परम्परा का अस्ति?
उत्तरः
महती खलु अनर्थ परम्परा जन्मजातम् ऐश्वर्यम्, अभिनव-यौवनत्वम् अप्रतिम-रूपत्वञ्च इति अस्ति ।

III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) ‘अजलम् स्नानम्’ इत्यनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
(क) स्नानम्
(ख) अजलम्
(ग) स्नानः
(घ) अजलः
उत्तरः
(ख) अजलम्

(ii) अनुच्छेदे ‘भाजनानि’ इत्यस्य कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
(क) भावदृशाः
(ख) एव
(ग) उपदेशानाम्
(घ) भवन्ति
उत्तरः
(घ) भवन्ति

(iii) ‘अयमेव ते कालः उपदेशस्य’ अत्र ‘ते’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) चन्द्रापीडाय
(ख) गुखे
(ग) पुरोहिताय
(घ) शिष्याय
उत्तरः
(क) चन्द्रापीडाय

(iv) ‘स्वभावः’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः?
(क) भाजनानि
(ख) अप्रतिमरूपम्
(ग) प्रकृतिः
(घ) राजप्रकृति
उत्तरः
(ग) प्रकृतिः

(ख) आलोकयतु तावत् कल्याणाभिलाषी भवान् लक्ष्मीमेव प्रथमम्। इयं हि लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते। न परिचयं रक्षति। नाभिजनमीक्षते। न कुलक्रमम् अनुवर्तते, न शीलं पश्यति, नाचारं परिपालयति, न सत्यम् अनुबुध्यते, न वैदग्ध्यं गणयति। विनीतं पातकिनमिव नोपसर्पति। तरङ्गबुबुदवत् हि चञ्चला। यथा यथा चेयं चपला दीव्यते तथा तथा दीपशिखेव कज्जलमलिनमेव कर्म केवलम् उद्वमति।

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कल्याणभिलाषी चन्द्रापीडः प्रथमं कां पश्यतु?
(ii) लक्ष्मी किं न अनुबुध्यते?
(iii) दीपशिखा किम् उद्वमति?
(iv) लक्ष्मी किं न पश्यति?
उत्तरः
(i) लक्ष्मीम
(i) सत्यम्
(iii) कज्जलमलिनम्
(iv) शीलम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
लक्ष्मी कथं परिपाल्यते?
उत्तरः
लक्ष्मी दुःखेन परिपाल्यते।

III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) अनुच्छेदे ‘चपला’ विशेषणं कस्यै आगतम?
(क) लक्ष्मीम्
ख) लक्ष्म्यै
(ग) लक्ष्म्याः
(घ) लक्ष्म्याम्
उत्तरः
(ख) लक्ष्म्यै

(ii) ‘आलोकयतु’ इति क्रियायाः कर्तृपदम् अनुच्छेदे किम्?
(क) प्रथमम्
(ख) लक्ष्मीम्
(ग) कल्याणाभिलाषी
(घ) भवान्
उत्तरः
(घ) भवान्

(iii) अनुच्छेदे ‘स्वभावम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः?
(क) शीलम्
(ख) सत्यम्
(ग) आचारम्
(घ) कुलक्रमम्
उत्तरः
(क) शीलम्

(iv) अत्र अनुच्छेदे ‘अनाचारम्’ इति पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
(क) नाचारम्
(ख) चारम्
(ग) आचारम्
(घ) कुराचारम्
उत्तरः
(ग) आचारम्

(ग) कुमार! राज्यतन्त्रेऽस्मिन् महामोहकारिणि यौवने तथा प्रयतेथाः यथा नोपहस्यसे जनैः, न निन्द्यसे साधुभिः, न धिक्क्रयसे गुरुभिः, नोपालभ्यसे सुहृद्भिः, न वञ्च्यसे धूर्तेः।। कामं भवान् प्रकृत्यैव धीरः, पित्रा च महता प्रयत्नेन समारोपितसंस्कारः। तथापि भवद्गुणसन्तोषः मामेवं मुखरीकृतवान् “सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम्।”

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) राजपुत्रे पित्रा महता प्रयत्नेन कः समारोपित:?
(ii) राजपुत्रः प्रकृत्या एव कीदृशः आसीत्?
(iii) किं महामोहकारणं कथितम्?
(iv) पित्रा सर्वथा कल्याणैः किं क्रियते?
उत्तरः
(i) संस्कारः
(ii) धीरः
(iii) यौवनम्
(iv) नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
कुमारः राज्यतन्त्रेऽस्मिन् महामोहकारिणि यौवने च कीदृशं प्रयतेत?
उत्तरः
कुमारः राज्यतन्त्रेऽस्मिन् महामोहकारिणि यौवने च तथा प्रयतेत यथा नोपहस्यते जनैः, न निन्द्यते साधुभिः, न धिक्क्रयते गुरुभिः, न उपलभ्यते सुहृद्भिः न च वञ्चते धूतैः।

III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) ‘न वञ्चसे धूर्तेः’। अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
(क) धूतैः
(ख) न
(ग) वञ्चसे
(घ) वञ्चनम्
उत्तरः
(क) धूर्तेः

(ii) ‘राज्यतन्त्रेऽस्मिन्’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
(क) राज्यतन्त्रम्
(ख) राज्यतन्त्रे
(ग) स्मिन्
(घ) अस्मिन्
उत्तरः
(घ) अस्मिन् ।

(iii) ‘शिष्यैः’ अस्य पदस्य कः विपर्ययः अत्र अनुच्छेदे आगतः?
(क) साधुभिः
(ख) जनैः
(ग) गुरुभिः
(घ) सुहृद्भिः
उत्तरः
(ग) गुरुभिः

(iv) ‘चौरैः’ अस्य पदस्य कः पर्यायः अत्र आगतः?
(क) सुहृद्भिः
(ख) धूर्तेः
(ग) तस्करैः
(घ) दुराचारिभिः
उत्तरः
(ख) धूर्तेः

2. I. निम्नलिखित-वाक्यानि पठित्वा तानि ‘कः कम् कथयति’ इति लिख्यताम् –
(i) तात चन्द्रापीड! गुरूपदेशश्च नाम पुरूषाणाम् अखिलमल प्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्।
(ii) अयमेव ते काल: उपदेशस्य।
(iii) विरला हि राज्ञाम् उपदेष्टारः।
(iv) अपि च जन्म जातम् ऐश्वर्यम्, अभिनव यौवनत्वम् अप्रतिमरूपत्वञ्चेति महतीयं खलु अनर्थपरम्परा सर्वा।
(v) इयं लक्ष्मी हि लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते।
(vi) तरङ्गबुद्बुद्वत् हि चञ्चला।
(vii) सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नवयौवनराज्याभिषेक मङ्गलम्।
उत्तरः
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् III Q2

II. निम्न-वाक्यानाम् सन्दर्भग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिखत
(i) अहङ्कारमूला हि राजप्रकृतिः।
(ii) प्रतिशब्दक इवानुगच्छति राजवचनम् जनो भयात्।
(iii) आलोकयतु तावत् कल्याणभिलाषी भवान् लक्ष्मीमेव प्रथमम्।
(iv) यथा-यथा चेयं चपला दीव्यते तथा-तथा दीपशिखेव कज्जलमलिनमेव कर्म केवलम् उद्वमति।
(v) कुमार! राज्यतन्त्रेऽस्मिन् महामोहकारिणी यौवने तथा प्रयतेथाः यथा नोपहस्यसे जनैः।
(vi) “सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नवयौवराज्याभिषेक मङ्गलम्”।
उत्तरः
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् III Q2.1

3. निम्नवाक्यानां भावार्थ मञ्जूषायाः सहायतया रिक्त स्थानानि पूरयन् लिखतु भवान् –
(क) “तात चन्द्रापीड! गुरूपदेशश्च नाम पुरुषाणाम् अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्।”
अस्य भावोऽस्ति- यत् नृपस्य तारापीडस्य सचिवः शुकनासः राजपुत्रं (i) ……….. सम्बोधयन् वदति-पुत्र! चन्द्रापीड! सदैव स्मर यत् सद्गुरूणाम् (ii) …………… शिष्याणाम् कृते जीवनस्य (iii) …………… मलानाम् शुद्धौ समर्थ (iv) ………………. विना स्नानम् इव भवति। यथा जनः स्नानं कृत्वा पवित्रो भवति तथैव श्रेष्ठ-गुरूणाम् उपदेशेन सः स्व जीवनं पवित्री करोति।
मञ्जूषा – समस्तानाम्, जलेन, चन्द्रापीड, उपदेशं
उत्तरः
(i) चन्द्रापीडं
(ii) उपदेशं
(iii) समस्तानाम्
(iv) जलेन।

(ख) “प्रतिशब्दक इवानुगच्छति राजवचनम् जनो भयात्।”
अर्थात् – प्रजायाः (i) …………… नृपाणाम् वचनानि (ii) …………………. आक्रान्ताः भूत्वा तानि (iii) ……………….. इव अहर्निशं अनुगच्छन्ति। यतः तेभ्यः नृपाणाम् (iv) …………………. सदैव कष्टप्रदम् अनुभूयते।।
मञ्जूषा – प्रतिध्वनिः, जनाः, भयम्, भयात्
उत्तरः
(i) जनाः
(ii) भयात्
(iii) प्रतिध्वनिः
(iv) भयम्।

(ग) “यथा-यथा चेयं चपला दीव्यते तथा-तथा दीपशिखेव कज्जल मलिनमेव कर्म केवलम् उद्वमति’।
भावार्थ: – मन्त्री शुकनासः राजपुत्रं चन्द्रापीडम् अभिवदति- तात! समयानुसारं यथा-यथा इयं चञ्चला (i) ……………… प्रकाशिता भवति। अर्थात् (ii) ……………….. याति तथा-तथा दीपकस्य (iii) ……………… इव इयं केवलं (iv) ……………….. एव प्रकटयति। अतः अस्याः समृद्ध्याः जनानां क्षयमपि भवति अस्मात् संरक्षणं भवितव्यम्।
मञ्जूषा – ज्योतिः, राजलक्ष्मी, धूम्रम्, समृद्धिम् |
उत्तरः
(i) राजलक्ष्मी
(ii) समृद्धिम्
(iii) ज्योतिः
(iv) धूम्रम्।

(घ) “इयं हि लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते”।
अस्य भावोऽस्ति- सचिवः शुकनासो वदति-हे तात चन्द्रापीड! इयं (i) ……………….. अतीव काठिन्येन (ii) …………. प्राप्नोति। परन्तु प्राप्ते सति तस्याः (iii) …………………. अतीव कष्टप्रदं भवति। राजलक्ष्म्याः संरक्षणे उन्नत्याम् च (iv) ………………… अधिकतरा शक्तिः आवश्यकी वर्तते।
मञ्जूषा – नृपाणाम्, राजलक्ष्मी, राज्ञः, परिपालनम्
उत्तरः
(i) राजलक्ष्मी
(ii) राज्ञः
(iii) परिपालनम्
(iv) नृपाणाम्।

(ङ) “सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नव यौवराज्याभिषेकमङ्गलम्’।
अर्थात् – सचिवः शुकनासः वदति-हे तात! भवान् गुणवान् संस्कारवान् च अस्ति अतः सम्प्रति पित्रा महाराजेन (i) ……………….. राज्याभिषेकस्य आनन्दं पित्रा चिन्तितः (ii) ……………….. सह एव भवान् (iii) ……………….. । यतः भवान् नवयौवनेन (iv) …………… वर्तते, अत: राज्यस्य आनन्दं प्राप्तुं योग्योऽपि अस्ति।
मञ्जूषा – अनुभवतु, क्रियमाणस्य, सम्पन्नः, कल्याणैः
उत्तरः
(i) क्रियमाणस्य
(ii) कल्याणैः
(iii) अनुभवतु
(iv) सम्पन्नः।

4. निम्नलिखितानां वाक्यानां कथाक्रमानुसारेण पुनःलेखनं करोतु भवान् –
I. (i) अहङ्कारमूला हि राजप्रकृतिः।
(ii) कामं भवान् प्रकृत्या एव धीरः, पित्रा च महता प्रयत्नेन समारोपितसंस्कारः।
(iii) इयं हि लब्धापि दुःखेन परिपाल्यते।
(iv) भवादृशाः एव भवन्ति भाजनानि उपदेशानाम्।
(v) तात चन्द्रापीड! गुरूपदेशः नाम पुरूषाणाम् अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्।
(vi) न कुलक्रमम् अनुवर्तते, न शीलं पश्यति।
(vii) तथापि भवद्गुणसन्तोषः माम् एव मुखरीकृतवान्।
(viii) सर्वथा कल्याणैः पित्रा क्रियमाणम् अनुभवतु भवान् नवयौवराज्याभिषेकमङ्गलम्।
उत्तरः
(v), (iv), (i), (iii), (vi), (ii), (vii), (viii)

II. (i) अपि च जन्मजातम् ऐश्वर्यम्, अभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिमरूपत्वं च खलु इयं महती अनर्थपरम्परा।
(ii) विनीतं पातकिनम् इव न उपसर्पति।
(iii) अयम् एष ते उपदेशस्य कालः।
(iv) त्वम् अस्मिन् यौवने तथा प्रयत्नं कुर्याः यथा जनाः न उपहसेयुः।
(v) अधुना भवान् युवराजपदे अभिषेकस्य सुखम् अनुभवतु।
(vi) प्रजाजनाः नृपाणां भयात् राजवचनम् प्रति ध्वनिः इव अनुकुर्वन्ति।
(vii) गुरूणाम् उपदेशाः जनेभ्यः जलं विना स्नानम् इव भवन्ति।
(viii) लक्ष्मी स्वपरिचयं न रक्षति।
उत्तरः
(vii), (iii), (vi), (i), (viii), (ii), (iv), (11)

5. निम्न ‘क’ वर्गीयाणां पदानां ‘ख’ वर्गीय-अथैः सह सम्मेलनं करोतु भवान् –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 8 गुरूपदेशः अजलं स्नानम् III Q5
उत्तरः
(i) 12. उन्मूलनम्
(ii) 9. वमनं करोति
(iii) 1. केचिद्
(iv) 11. पापिनम्
(v) 3. नृपाणां स्वभावः
(vi) 13. स्वभावेन
(vii) 5. कुलीनताम्
(viii) 14. प्रकाशयति
(ix), 2. प्रतिध्वनिः
(x) 4. उपदेशकाः
(xi) 8. पश्यति
(xii) 16. पात्राणि
(xiii) 15. कुल परम्पराम्
(xiv) 6. चौरैः
(xv) 10. विनम्रम्
(xvi) 7. अतीव सुन्दरता

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