NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 7 महाजनो येन गतः स पन्थाः (वही मार्ग है जिससे महापुरुष जाते हैं)
पाठपरिचयः, सारांश: च
          पाठपरिचयः
          
          अस्मिन् पाठे षट् श्लोकाः विष्णुपुराण-नीतिशतक-वैराग्यशतक-महाभारतादिभ्यः विविधग्रन्थेभ्यः संगृहीताः सन्ति। एतानि सुभाषितानि क्रमशः महाकवीनां ग्रन्थेभ्यः संगृहीतानि सन्ति। सत्कवीनां काव्येभ्यः सङ्कलितानि पद्यरत्नानि सहृदयानां पाठकानां मनांसि रञ्जयन्ति।
         
          सारांश:
          
          एतेषु पद्येषु भारतवन्दना, विद्यायाः उपयोगिता, समयस्य महिमा, परोपकारस्य गरिमा, पदार्थानाम् असारता, सज्जनदुर्जनयोः प्रकृतिभेदः, धर्मस्य गहनता, महापुरुषैः दर्शितस्य मार्गस्य श्रेष्ठता च प्रतिपादिता अस्ति।
         
          हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः
          
          इस पाठ में संगृहीत सुभाषित विष्णुपुराण, नीतिशतक, वैराग्यशतक तथा महाभारत आदि ग्रन्थों से लिए गए हैं। इन पद्यों में भारत की वन्दना, विद्या की उपयोगिता, समय का महत्त्व, परोपकार की महिमा, पदार्थों की सारहीनता, सज्जन व दुर्जनों के स्वभाव की भिन्नता, धर्मतत्त्व की गहनता तथा महापुरुषों के द्वारा दिखाए गए मार्ग की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है।
         
क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च
          गायन्ति देवाः किल गीतकानि
          
          धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
          
          भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥ (विष्णुपुराणम्)
          
          शब्दार्थः – किल- निश्चयेन (निश्चयपूर्वक)। गीतकानि- स्तोत्राणि, गीतानि (गीत, स्तुति)। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूतेस्वर्गस्य अपवर्गस्य च आपस्पदम् तस्य च मार्गभूतम् साधनरूपम् तस्मिन् (स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति में साधनरूप)। सुरत्वात्देवत्व प्राप्त कर लेने के बाद। भूयः- पुनः (फिर)। पुरुषा:- मानवा भवन्ति- उत्पन्नाः भवन्ति (होते हैं, जन्म लेते हैं)।
         
सरलार्थ – देवता निश्चय ही स्तुति करते हैं कि वे पुरुष भाग्यशाली हैं जो स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति के साधन रूप भारत में देवत्व प्राप्त कर लेने के बाद फिर से जन्म लेते हैं।
          2. विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति
          
          बुद्धिं विचारविषये प्रखरीकरोति।
          
          कर्तव्यपालनपरां धियमादधाति
          
          विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
         
शब्दार्थाः – विशदीकरोति- स्पष्टं करोति (प्रकाशित करती है)। प्रखरीकरोति- तीव्रां करोति (प्रखर, तेज करती है)। आदधाति- स्थापयति (स्थापित करती है)।
सरलार्थ – विद्या उन्नति के मार्ग को प्रशस्त करती है, बुद्धि को विचार के क्षेत्र में तीव्र करती है तथा कर्तव्यपालन में तत्पर करती है। इस लोक में विद्या मित्र व परम बन्धु है।
          3. नष्टं द्रव्यं प्राप्यते ह्युद्यमेन
          
          नष्टा विद्या प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या।
          
          नष्टारोग्यं सूपचारैः सुसाध्यं
          
          नष्टा वेला या गता सा गतैव॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
          
          शब्दार्थः – आरोग्यम्- स्वास्थ्यम् (स्वास्थ्य)। सूपचारैः- उत्तमचिकित्साप्रयोगैः (अच्छे इलाज से)। सुसाश्म्सम्यक् साधयितुं शक्यम् (ठीक करने योग्य)।
          
          सरलार्थ – खोया धन उद्यम करने से प्राप्त हो जाता है। नष्ट हुई विद्या अभ्यास तथा युक्ति से प्राप्त हो जाती है। नष्ट हुआ स्वास्थ्य भी उत्तम उपचारों से ठीक हो जाता है, पर जो समय बीत गया, वह तो बीत गया। वह लौटा कर नहीं लाया जा सकता।
         
          4. पद्मकरं दिनकरो विकचीकरोति
          
          चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्।
          
          नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
          
          सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः॥ (नीतिशतकम्)
          
          शब्दार्थः – पद्मकरम्- कमलानां समूहम् (कमलों के समूह को)। कैरवचक्रवालम्- कुमुदानां समूहम् (कुमुद के गुच्छों को)। नाभ्यर्थितः- अयाचितः (न माँगने पर भी)। कृताभियोगा:- प्रयत्ने रताः (प्रयत्न में लीन)।
          
          सरलार्थ – सूर्य स्वयं कमलों के समूह को खिला देता है। चन्द्रमा स्वयं कुमुदों के समूहों को खिला देता है। बादल स्वयं बिना माँगे जल बरसाते हैं। ऐसे ही सन्त भी सदा दूसरों के भले में स्वेच्छा से लगे रहते हैं।
         
          5. भोगा न भुक्ताः वयमेव भुक्ताः
          
          तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।
          
          कालो न यातो वयमेव याताः
          
          तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः॥ (वैराग्यशतकम्)
          
          शब्दार्थः – तप्ताः- पीड़िताः (पीड़ित)। जीर्णाः- वृद्धाः (वृद्ध)।
          
          सरलार्थ – भोग समाप्त नहीं हुए हम समाप्त हो गए। तप पूरे नहीं हुए हम ही पीड़ित हो गए। समय समाप्त नहीं हुआ हम ही चलते बने। लालसा पूरी नहीं हुई, हम ही बूढ़े हो गए।
         
          6. कटु क्वणन्तो मलदायकाः खलाः
          
          तुदन्त्यलं बन्धनश्रृङ्खला इव।
          
          मनस्तु साधुध्वनिभिः पदे पदे
          
          हरन्ति सन्तो मणिनूपुरा इव॥ (कादम्बरीमुखम्)
          
          शब्दार्थः – कटु- कठोरं (कठोर)। क्वणन्तः- रणन्तः (झनझनाते हुए)। मलदायका:- दोषारोपणकर्तारः (दोषारोपण करने वाले)। साधुध्वनिभिः- मधुरशब्दैः (मीठी वाणी से)। मणिनूपुरा:- मणिजटितनूपुराः (मणि जड़ित बिछुए)।
          
          सरलार्थ – कठोर ध्वनि करने वाली, मैल पैदा करने वाली बन्धन की जंजीरों के समान कठोर वचन बोलने वाले, दोषारोपण करने वाले दुर्जन अत्यधिक कष्ट पहुँचाते हैं किन्तु मणि जटित बिछुओं के समान मधुर ध्वनि करने वाले सज्जन मन को हर लेते हैं।
         
          7. तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः
          
          नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
          
          धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्
          
          महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ (महाभारतम्)
          
          शब्दार्थः – अप्रतिष्ठः- न प्रतिष्ठितः, अनिश्चितः (जो सुनिश्चित नहीं है)। श्रुतयः- शास्त्राणि, वेदाः (वेदों से सम्बन्धित शास्त्र)। प्रमाणम्- सिद्धम् (सबूत)। निहितम्- गूढम् (छिपा हुआ)।
          
          सरलार्थ – तर्क की कोई निश्चित सीमा नहीं है। वेद-शास्त्र विविधताओं से युक्त हैं। कोई ऐसा एक तत्त्ववेत्ता नहीं है जिसका सिद्धान्त प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए। धर्म का रहस्य गुफा या अन्धकार में छुपा हुआ है। ऐसी स्थिति में महापुरुष जिस मार्ग से गए हैं वही सही मार्ग है।
         
ख. अनुप्रयोगस्य प्रश्नोत्तराणि
          1. अधोलिखितान् शब्दान् उच्चैः पठत, सञ्चिकायां च लिखत। (निम्नलिखित शब्दों को ऊँचे स्वर से पढ़िए तथा कॉपी में लिखिए) –
          
          (क) तर्कोऽप्रतिष्ठः, प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या, जलधरोऽपि
          
          (ख) अभ्यर्थितः, ह्युद्यमेन, परमबन्धुरथेह
         
          2. ‘अ’ स्तम्भस्य श्लोकांशाः ‘ब’ स्तम्भस्य श्लोकांशैः सह संयोज्यन्ताम् (‘अ’ स्तम्भ के श्लोकांशों का मिलान ‘ब’ स्तम्भ के श्लोकांशों से कीजिए) –
          
 
 
          उत्तरः
          
 
          3. अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत (निम्नलिखित पदों में सन्धि या सन्धि विच्छेद करके रिक्त स्थान भरिए)
          
          (क) ………………………………. = प्राप्यते + अभ्यासयुक्त्या
          
          (ख) जलधरोऽपि = ……………. + …………………
          
          (ग) ………………………………. = धन्याः + तु
          
          (घ) तर्कोऽप्रतिष्ठः = ……………. + …………………
          
          (ङ) ………………………………. = परमबन्धुः + अथ + इह
          
          (च) नैकोमुनिर्यस्य = ……………. + …………………
          
          (छ) ………………………………. = तुदन्ति + अलम्
          
          (ज) मनस्तु = ……………. + …………………
          
          उत्तरः
          
          (क) प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या
          
          (ख) जलधरः + अपि
          
          (ग) धन्यास्तु
          
          (घ) तर्क: + अप्रतिष्ठः
          
          (ङ) परमबन्धुरथेह
          
          (च) न + एकः + मुनिः + यस्य
          
          (छ) तुदन्त्यलम्
          
          (ज) मनः + तु।
         
          4. पाठात् विचित्य समस्तपदानि रचयत (पाठ से चुन कर समस्तपद बनाइए) –
          
 
          उत्तरः
          
          (क) भारतभूमिभागः
          
          (ख) दिनकरः
          
          (ग) साधुध्वनिभिः
          
          (घ) महाजनः
          
          (ङ) कर्तव्यपालनपराम्
          
          (च) बन्धनशृङ्खला
          
          (छ) मणिनूपुराः
          
          (ज) परहितेषु।
         
          5. अधोलिखितानां वाक्यानां कर्तृवाच्ये परिवर्तनं कुर्वन्तु (निम्नलिखित वाक्यों का कर्तृवाच्य में परिवर्तन कीजिए) –
          
 
          उत्तरः
          
          (क) विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति।
          
          (ख) दिनकरः पद्माकरं विकचीकरोति।
          
          (ग) चन्द्रः कैरवचक्रवालं विकासयति।
          
          (घ) जलधरः जलं ददाति।
          
          (ङ) मलदायकाः खलाः सज्जनान् तुदन्ति।
          
          (च) सन्तः मनः हरन्ति।
         
          6. (अ) पाठात् उपयुक्तानि पदानि चित्वा अधोलिखिततालिकायां रिक्तस्थानानि पूरयन्तु (पाठ से उपयुक्त पद चुनकर निम्नलिखित तालिका के रिक्त स्थान भरिए) –
          
 
          उत्तरः
          
          (क) द्रव्यम्
          
          (ख) भुक्ताः
          
          (ग) वयम्
          
          (घ) जीर्णा
          
          (ङ) खलाः
          
          (च) विभिन्नाः
          
          (छ) वेला
          
          (ज) तप्तम्।
         
          6. (ब) विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत (विलोम पदों को पाठ से चुनकर लिखिए) –
          
 
          उत्तरः
          
          (क) देवाः
          
          (ख) धर्मः
          
          (ग) स्वर्गम्
          
          (घ) कटु
          
          (ङ) सन्तः
          
          (च) कर्तव्यम्।
         
          7. प्रश्नान् उत्तरत (प्रश्नों के उत्तर दीजिए) –
          
          (क) धर्मस्य तत्त्वं कुत्र निहितम् अस्ति?
          
          (ख) का जीर्णा न भवति?
          
          (ग) सज्जनाः कथं मनः हरन्ति?
          
          (घ) कः स्वयम् एव जलं ददाति?
          
          (ङ) नष्टरोग्यं कैः सुसाध्यं भवति?
          
          (च) विद्या किं करोति?
          
          उत्तरः
          
          (क) धर्मस्य तत्त्वं गुहायां निहितम् अस्ति।
          
          (ख) तृष्णा जीर्णा न भवति।।
          
          (ग) सज्जनाः साधुध्वनिभिः मनः हरन्ति।
          
          (घ) जलधरः स्वयम् एव जलं ददाति।
          
          (ङ) नष्टारोग्यं सूपचारैः सुसाध्यं भवति।
          
          (च) विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति विचारविषये बुद्धिं प्रखरीकरोति, कर्तव्यपालनपरां धियम् आदधाति।
         
          8. अधोलिखिताः सूक्ती: पठित्वा समभावसूक्तयः पाठात् विचित्य तत्समक्षं लिखत (समान भाव वाली सूक्तियों को निम्नलिखित सूक्तियों के सामने लिखिए) –
          
          (क) दुर्लभं भारते जन्म मानुष्यं तत्र दुर्लभम्।
          
          …………………………………………
          
          (ख) गतः कालः कृते प्रयत्नेऽपि पुनः न आयाति।
          
          …………………………………………
          
          (ग) अयाचितः अपि मेघः जलं ददाति।
          
          …………………………………………
          
          (घ) सः तु भवति दरिद्रः यस्य तृष्णा विशाला।
          
          …………………………………………
          
          (ङ) विद्या बन्धुः विदेशगमने।
          
          …………………………………………
          
          (च) परोपकाराय सतां विभूतयः।
          
          …………………………………………
          
          उत्तरः
          
          (क) गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।।
          
          (ख) नष्टा वेला या गता सा गतैव।
          
          (ग) नाऽभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति।
          
          (घ) तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः।
          
          (ङ) विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके।
          
          (च) सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः।
         
          9. अन्वयं पूरयत (अन्वय पूरा कीजिए) –
          
          (क) देवाः किल ……………….. गायन्ति। ते पुरुषाः तु ……………….. (ये) स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते ……………….. सुरत्वात् भूयः भवन्ति।
          
          उत्तरः
          
          (क) गीतकानि, धन्याः, भारतभूमिभागे।
         
          (ख) तर्कः …………. श्रुतयः विभिन्नाः, एकः मुनिः न यस्य ………….. प्रमाणम्। धर्मस्य तत्त्वं गुहायां …………………, येन महाजनः गतः स पन्थाः ।
          
          उत्तरः
          
          (ख) अप्रतिष्ठः, मतं, निहितं।
         
          (ग) विद्या समुन्नतिपथं …………. करोति विचारविषये …. … प्रखरीकरोति, कर्तव्यपालनपरां धियम् …………….. आदधाति, इह लोके ……………. सखा अथ परमबन्धुः।
          
          उत्तरः
          
          (ग) विशदी, बुद्धि, विद्या।
         
          10. पाठगतश्लोकानां भावस्पष्टीकरणम् उचितपदैः कुर्वन्तु (पाठगत श्लोकों के भाव का स्पष्टीकरण उचित पदों से कीजिए) –
          
          (क) संसारे ……………….. अपि सन्ति दुर्जनाः अपि। तयोः व्यवहारे महान् भेदः। ……………. कटु भाषन्ते कुव्यवहारं च कुर्वन्ति। ते ………………….. इव मानवं पीडयन्ति किन्तु सज्जनाः मणिनूपुराः इव भवन्ति। ते ………………….वदन्ति प्रियं च कुर्वन्ति।
          
          उत्तरः
          
          (क) सज्जनाः, दुर्जनाः, बन्धन शृङ्खलाः, मधुरध्वनि।
         
          (ख) ……………… इयं प्रकृतिः भवति यत् ते स्वयम् एव परेषां हितम् आचरन्ति। सूर्यः स्वयमेव …………. विकासयति। ………………. स्वकिरणैः कुमुदानां विकासं करोति। मेघाः स्वयमेव …………… कृत्वा
          
          लोकस्य उपकारं कुर्वन्ति।
          
          उत्तरः
          
          (ख) सज्जनानाम्, कमलं, सूर्यः, वर्षां।
         
          (ग) जीवनकालः स्वल्पः किन्तु ……………… अनन्ताः। ते अस्मिन् स्वल्पकाले भोक्तुं न शक्यन्ते। तपः अपि …………… न शक्यते। आयुषः अन्तः भवति न तु कालस्य। वयं …………… भवामः किन्तु तृष्णा सदा तरुणी तिष्ठति। एतद् …………….. मानवजीवनस्य सत्यम्।
          
          उत्तरः
          
          (ग) भोगाः, तप्तुं, वृद्धाः, एव।
         
          ग. पाठ-विकासः
          
          (क)
           
          (ख) समानान्तरसूक्तयः (चाणक्यनीति: 5/15)
          
          1. विद्या मित्रं प्रवासेषु।
          
          भावार्थः- प्रवास के दौरान विद्या तभारी में मित्र होती है।
         
          2. लोभेन बुद्धि-चलति, लोभो जनयते तृषाम्।
          
          तृषार्तो दुःखमाप्नोति, परत्रेह न मानवः।। (हितोपदेशः मित्रलाभः/140)
          
          भावार्थ:- लोभ से बुद्धि चंचल हो जाती है। लोभ तृष्णा को जन्म देता है। तृष्णा से पीड़ित जन परलोक तथा इस लोक में दुःख प्राप्त करता है।
         
          3. स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला।
          
          मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः॥ (वैराग्यशतकम्/45)
          
          भावार्थ:- वही निर्धन है जिसकी तृष्णा विशाल है। मन के सन्तुष्ट होने पर कौन धनी है, कौन दरिद्र है।
         
          4. व्यर्थः कालातिपातो न, कर्तव्यश्चतुरैनरैः।
          
          गतः कालः प्रयत्नेऽपि, पुन याति कर्हिचित्।।
          
          भावार्थ:- चतुर लोगों को समय व्यर्थ नहीं बिताना चाहिए। बीता हुआ समय प्रयत्न करने पर फिर से कभी नहीं लौटता।
         
          ‘च्चि’ प्रत्ययः –
          
          ‘च्चि’ प्रत्ययः अभूततद्भावार्थकः। यद् वस्तु पूर्व यस्मिन् रूपे न आसीत्, किन्तु सम्प्रति तत् परिवर्तितं रूपं धारयति, एतस्य बोधनाय ‘च्चि’ प्रत्ययः प्रयुज्यते।
          
          एषः प्रत्ययः ‘कृ-भू-अस्’ धातूनाम् एव योगे भवति। प्रक्रियायां प्रत्ययः लुप्तः भवति। पूर्वपदस्य अन्तिमः अकारः आकार: वा ईकाररूपं धारयति। पूर्वपदस्य अन्ते यदि स्वराः भवन्ति ते दीर्घाः जायन्ते।
          
          ‘च्वि’ प्रत्यय ‘न हुए के होने के’ अर्थ को देता है। जो वस्तु पहले जिस रूप में नहीं थी पर अब बदले रूप को धारण करती है उसे बताने के लिए ‘च्चि’ प्रत्यय प्रयुक्त होता है। इसमें कृ, भू व अस् धातुओं का योग होता है। प्रक्रिया में प्रत्यय का लोप हो जाता है। पूर्वपद में अन्तिम अकार/आकार के स्थान पर ईकार हो जाता है। पूर्वपद के अन्त में यदि स्वर हैं तो दीर्घ हो जाते हैं।
         
          उदाहरणानि –
          
          अकृष्णः कृष्णः क्रियते = कृष्णीक्रियते
          
          (कृष्ण + च्चि + क्रियते = कृष्ण + ई + क्रियते)
          
          अविशदं विशदं करोति = विशदीकरोति
          
          अप्रखरं प्रखरं करोति = प्रखरीकरोति
          
          अविकचं विकचं करोति = विकचीकरोति
         
          घ. पठितांश-अवबोधनम्
          
          1. निम्नलिखित श्लोकं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत –
          
          (क) गायन्ति देवाः किल गीतकानि
          
          धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
          
          भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥ (विष्णुपुराणम्)
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) के गीतकानि गायन्ति?
          
          (ii) के धन्याः सन्ति?
          
          (iii) भारतभूमि भागं कीदृशं वर्तते?
          
          (iv) कथं पुरुषाः भूयः भवन्ति?
          
          उत्तरः
          
          (i) देवाः
          
          (ii) ते (पुरुषाः)
          
          (iii) स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूतम्
          
          (iv) सुरत्वात्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          भारतभूमिभागः कीदृशः वर्तते?
          
          उत्तरः
          
          भारतभूमिभागः स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूतः वर्तते।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) श्लोके ‘देवाः’ इत्यस्य कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
          
          (क) भवन्ति
          
          (ख) गायन्ति
          
          (ग) धन्याः
          
          (घ) गीतकानि
          
          उत्तरः
          
          (ख) गायन्ति
         
          (ii) ‘भारत भूमिभागे’ इत्यस्य पदस्य किं विशेषणं श्लोके प्रदत्तम्?
          
          (क) स्वर्गात्
          
          (ख) स्वर्णापवर्गास्पद
          
          (ग) स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
          
          (घ) मार्गभूते
          
          उत्तरः
          
          (ग) स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
         
          (iii) श्लोके ‘नूनम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (क) ते
          
          (ख) धन्याः
          
          (ग) धन्यास्तु
          
          (घ) किल
          
          उत्तरः
          
          (घ) किल
         
          (iv) ‘असुराः’ पदस्य कः विपर्ययः श्लोके लिखितः?
          
          (क) देवाः
          
          (ख) धन्याः ।
          
          (ग) पुरुषाः
          
          (घ) धन्यास्तु
          
          उत्तरः
          
          (क) देवाः
         
          (ख) विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति
          
          बुद्धिं विचारविषये प्रखरीकरोति।
          
          कर्तव्यपालनपरां धियमादधाति
          
          विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) विद्या किं विशदीकरोति?
          
          (ii) का मनुष्यस्य लोके सखा अस्ति?
          
          (iii) अथ इह लोके मनुष्यस्य कः विद्यास्ति?
          
          (iv) विद्या का विचारविषये प्रखरीकरोति?
          
          उत्तरः
          
          (i) समुन्नतिपथम्
          
          (ii) विद्या
          
          (iii) परमबन्धुः
          
          (iv) बुद्धिम्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          विद्या काम् आदधाति?
          
          उत्तरः
          
          विद्या कर्तव्यपालनपरां धियम् आदधाति।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) श्लोके ‘अस्मिन् संसारे’ इति पदस्य अर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
          
          (क) लोके
          
          (ख) अथेह
          
          (ग) इह
          
          (घ) इहलोके
          
          उत्तरः
          
          (घ) इहलोके
         
          (ii) ‘विशदीकरोति’ इति क्रियायाः कर्तपदं किम्?
          
          (क) विद्या
          
          (ख) समुन्नतिः
          
          (ग) पथं
          
          (घ) समुन्नतिपथम्
          
          उत्तरः
          
          (क) विद्या
         
          (iii) ‘अवनति पथम्’ इति पदस्य कः विपर्ययः श्लोके आगतः?
          
          (क) कर्तव्यम्
          
          (ख) कर्तव्य पालन पराम्
          
          (ग) धियम्
          
          (घ) समुन्नतिपथम्
          
          उत्तरः
          
          (घ) समुन्नतिपथम्
         
          (iv) अत्र श्लोके ‘धियम्’ पदस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः?
          
          (क) समुन्नतिपथम्
          
          (ख) बुद्धिम्
          
          (ग) कर्तव्य पालमनपराम्
          
          (घ) परमबन्धुः
          
          उत्तरः
          
          (ख) बुद्धिम्
         
          (ग) नष्टं द्रव्यं प्राप्यते ह्युद्यमेन
          
          नष्टा विद्या प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या।
          
          नष्टारोग्यं सूपचारैः सुसाध्यं
          
          नष्टा वेला या गता सा गतैव। (वैद्यकीयसुभाषितम्)
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) का नष्टा पुनः न आगच्छति?
          
          (ii) नष्टं द्रव्यं केन प्राप्यते?
          
          (ii) किं पुनः सुसाध्यं वर्तते?
          
          (iv) सूपचारैः आरोग्यं नष्टमपि कीदृशं वर्तते?
          
          उत्तरः
          
          (i) वेला
          
          (ii) उद्यमेन
          
          (iii) आरोग्यम्
          
          (iv) सुसाध्यम्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
          
          नष्टा विद्या कथं पुनः प्राप्यते?
          
          उत्तरः
          
          नष्टा विद्या अभ्यासयुक्त्या पुनः प्राप्यते।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) श्लोके ‘नष्टं द्रव्यम्’ इति कर्तृपदस्य क्रिया पदं किम्?
          
          (क) उद्यमेन
          
          (ख) युद्यमेन
          
          (ग) प्राप्यते
          
          (घ) गता
          
          उत्तरः
          
          (ग) प्राप्यते
         
          (ii) ‘गता सा गतैव’। अत्र ‘सा’ पदं कस्यै प्रयुक्तम्?
          
          (क) घनाय
          
          (ख) वेलायै
          
          (ग) द्रव्याय
          
          (घ) आरोग्याय
          
          उत्तरः
          
          (ख) वेलायै
         
          (iii) श्लोके ‘स्वास्थ्यम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (क) आरोग्यम्
          
          (ख) सुसाध्यम्
          
          (ग) द्रव्यम्
          
          (घ) युक्त्या
          
          उत्तरः
          
          (क) आरोग्यम्
         
          (iv) ‘नष्टं द्रव्यम्’ इत्यनयोः पदयोः विशेषण पदं किमस्ति?
          
          (क) द्रव्यम्
          
          (ख) द्रव्य
          
          (ग) नष्टम्
          
          (घ) नष्ट
          
          उत्तरः
          
          (ग) नष्टम्
         
          (घ) पद्मकरं दिनकरो विकचीकरोति
          
          चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्।
          
          नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
          
          सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः॥
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) पद्मकरं कः विकचीकरोति?
          
          (ii) चन्द्रः कम् विकासयति?
          
          (iii) कीदृशः जलधरः जलं ददाति?
          
          (iv) बादलः किं ददाति?
          
          उत्तरः
          
          (i) दिनकरः
          
          (ii) कैरवचक्रवालम्
          
          (iii) नाभ्यर्थितः
          
          (iv) जलम्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          सन्तः स्वयं किं कुर्वन्ति?
          
          उत्तरः
          
          सन्तः स्वयं परहितेषु कृतभियोगाः भवन्ति।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) श्लोके ‘सूर्यः’ पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (क) पद्मकरम्
          
          (ख) चन्द्रः
          
          (ग) दिनकरः
          
          (घ) जलधरः
          
          उत्तरः
          
          (ग) दिनकरः
         
          (ii) ‘विकासयति’ इति क्रियायाः श्लोके कर्तृपदं किम् वर्तते?
          
          (क) चन्द्रः
          
          (ख) सूर्यः
          
          (ग) दिनकरः
          
          (घ) विधुः
          
          उत्तरः
          
          (क) चन्द्रः
         
          (iii) अत्र श्लोके ‘नाभ्यर्थितः’ इति विशेषणस्य विशेष्यपदं किम्?
          
          (क) सन्तः
          
          (ख) चनुः
          
          (ग) दिनकरः
          
          (घ) जलधरः
          
          उत्तरः
          
          (घ) जलधरः
         
          (iv) ‘दुष्टाः’ इत्यस्य पदस्य क: विपर्ययः अत्र श्लोके प्रदत्तः?
          
          (क) सन्तः
          
          (ख) कृताभियोगाः
          
          (ग) जलधरः
          
          (घ) चन्द्रः
          
          उत्तरः
          
          (क) सन्तः
         
          (ङ) भोगा न भुक्ताः वयमेव भुक्ताः
          
          तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।
          
          कालो न यातो वयमेव याताः
          
          तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः॥ (वैराग्यशतकम्)
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) के अस्मान् भुञ्जन्ति?
          
          (ii) तपरहिताः वयं कीदृशाः भूतवन्तः?
          
          (iii) अस्माभिः के न भुज्यन्ते?
          
          (iv) कालेन वयं कीदृशाः अभवाम?
          
          उत्तरः
          
          (i) भोगाः
          
          (ii) तप्ताः
          
          (iii) भोगाः
          
          (iv) याताः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          तृष्णया वयं कीदृशाः भूताः?
          
          उत्तरः
          
          तृष्णया वयं जीर्णाः भूताः।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘भोगाः भुक्ताः’ इत्यनयोः पदयोः विशेषणं किम्?
          
          (क) भुक्तः
          
          (ख) भोगः
          
          (ग) भोगा:
          
          (घ) भुक्ताः
          
          उत्तरः
          
          (घ) भुक्ताः
         
          (ii) ‘तप्ताः’ इति क्रियायाः श्लोके कर्तृपदं किम्? ।
          
          (क) तपः
          
          (ख) वयमेव
          
          (ग) वयम्
          
          (घ) तप्तम्
          
          उत्तरः
          
          (ग) वयम्
         
          (iii) ‘सन्तोषः’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः अत्र लिखितः?
          
          (क) तृष्णा
          
          (ख) जीर्णा
          
          (ग) तप्ताः
          
          (घ) भुक्ताः
          
          उत्तरः
          
          (क) तृष्णा
         
          (iv) ‘नष्टः’ इत्यस्य पदस्य अर्थे श्लोके किं पदं प्रयुक्तम्?
          
          (क) कालः
          
          (ख) यातः (यातो)
          
          (ग) याताः
          
          (घ) जीर्णा
          
          उत्तरः
          
          (ख) यातः (यातो)
         
          (च) कटु क्वणन्तो मलदायकाः खला: तुदन्त्यलं बन्धनश्रृखला इव।
          
          मनस्तु साधुध्वनिभिः पदे पदे हरन्ति सन्तो मणिनूपुरा इव॥
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) मलदायकाः के सन्ति?
          
          (ii) खला: के इव तुदन्ति?
          
          (iii) मनः के हरन्ति?
          
          (iv) मणिनुपूराः इव के सन्ति?
          
          उत्तरः
          
          (i) खलाः
          
          (ii) बन्धनशृङ्खलाः
          
          (iii) सन्तः
          
          (iv) सन्तः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          सज्जनाः किं कुर्वन्ति?
          
          उत्तरः
          
          सज्जनाः साधुध्वनिभिः मणिनूपुराः इव पदे पदे मनः हरन्ति।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘सन्तः’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
          
          (क) चलन्ति
          
          (ख) गायन्ति
          
          (ग) हरन्ति
          
          (घ) भवन्ति
          
          उत्तरः
          
          (ग) हरन्ति
         
          (ii) ‘सन्तः’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः अत्र आगतः?
          
          (क) खलाः
          
          (ख) मलाः
          
          (ग) श्रृंखलाः
          
          (घ) बन्धनं
          
          उत्तरः
          
          (क) खलाः
         
          (iii) ‘खलाः’ इति पदस्य विशेषणम् किम्?
          
          (क) बन्धन शृंखला
          
          (ख) मलदायकाः
          
          (ग) दायकाः
          
          (घ) मणिनूपुराः
          
          उत्तरः
          
          (ख) मलदायकाः
         
          (iv) ‘सज्जनाः’ इति पदस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः?
          
          (क) खलाः
          
          (ख) मलदायकाः
          
          (ग) श्रृङ्खलाः
          
          (घ) सन्तः
          
          उत्तरः
          
          (घ) सन्तः
         
          (छ) तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
          
          धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः॥
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) विभिन्नाः काः सन्ति?
          
          (ii) एकस्यापि मुनेः मतम् कीदृशं नास्ति?
          
          (iii) धर्मस्य तत्त्वं कुत्र निहितम्?
          
          (iv) येन महाजनः गच्छति असौ कोऽस्ति?
          
          उत्तरः
          
          (i) श्रुतयः
          
          (i) प्रमाणम्
          
          (iii) गुहायाम्
          
          (iv) पन्थाः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          पन्थाः तर्केण, श्रुतिभिः, मुनीनां मतैर्वा केन निर्धारितो भवति।
          
          उत्तरः
          
          पन्थाः तर्केण, श्रुतिभिः, मुनीनां मतैर्वा न केनापि निर्धारितो भवति।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) तर्कस्य विशेषणपदम् श्लोके किं लिखितम्?
          
          (क) प्रतिष्ठः
          
          (ख) अप्रतिष्ठः
          
          (ग) विभिन्नाः
          
          (घ) भिन्नाः
          
          उत्तरः
          
          (ख) अप्रतिष्ठः
         
          (ii) ‘समाः’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः लिखितः?
          
          (क) विभिन्नाः
          
          (ख) भिन्नाः
          
          (ग) ग्रन्थाः
          
          (घ) अप्रतिष्ठाः
          
          उत्तरः
          
          (क) विभिन्नाः
         
          (iii) ‘येन’ सर्वनामपदं श्लोके कस्मै प्रयुक्तम्?
          
          (क) पथे
          
          (ख) महाजनाय
          
          (ग) घर्माय
          
          (घ) तत्त्वाय
          
          उत्तरः
          
          (क) पथे
         
          (iv) श्लोके ‘गतः’ क्रियायाः कर्तृपदं किं लिखितम्?
          
          (क) सः
          
          (ख) महाजनः
          
          (ग) पन्थाः
          
          (घ) येन
          
          उत्तरः
          
          (घ) येन।
         
          2. निम्न पद्यांशानां सन्दर्भग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिख्येताम्
          
          (i) गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          (ii) विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके।
          
          (iii) नष्टावेला या गता सा गतैव।
          
          (iv) सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः।
          
          (v) भोगा न भुक्ताः वयमेव भुक्ताः।
          
          (vi) कटु क्वणन्तो मलदायकाः खलाः, तुदन्त्यलं बन्धन शृखला इव।
          
          (vii) महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
          
          उत्तरः
          
 
          3. मञ्जूषायाः सहायतया निम्न श्लोकानां भावार्थ रिक्तस्थान पूर्ति माध्यमेन लिखत –
          
          (क) गायन्ति देवाः किल गीतकानि
          
          धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
          
          भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥ (विष्णुपुराणम्)
          
          अस्य भावोऽस्ति यत- देवाः इमां निश्चितरूपेण (i) …………………. कुर्वन्ति यत् ते पुरुषाः (ii) …………………. सन्ति के स्वर्ग मुक्ति प्राप्तिः साधन रूपस्य (iii) …………………. कस्मिंश्चिदापि भागे (iv) …………………. पुनः मानवरूपे जायन्ते।
          
          मञ्जूषा – सुरत्वात्, स्तुतिं. भारतभूमेः, धन्याः
          
          उत्तरः
          
          (i) स्तुति
          
          (ii) धन्याः
          
          (iii) भारतभूमेः
          
          (iv) सुरत्वात्
         
          (ख) विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति
          
          बुद्धिं विचारविषये प्रखरीकरोति।
          
          कर्तव्यपालनपरां धियमादधाति
          
          विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
          
          भावार्थ:- विद्या जनेभ्यः (i) …………………. मार्ग स्पष्टं करोति, तेषां बुद्धि (ii) …………………. तीव्रां करोति तथा कर्तव्यपालने बुद्धि (iii) …………………. करोति अत: अस्मिन् लोके विद्या जनानां (iv) …………………. सखा च वर्तते।
          
          मञ्जूषा – विचार विषये, तत्परां, उन्नतेः, परमबन्धुः।
          
          उत्तरः
          
          (i) उन्नतेः
          
          (ii) विचार विषये
          
          (iii) तत्परां
          
          (iv) परमबन्धुः
         
          (ग) नष्टं द्रव्यं प्राप्यते ह्युद्यमेन
          
          नष्टा विद्या प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या।
          
          नष्टारोग्यं सूपचारैः सुसाध्यं
          
          नष्टा वेला या गता सा गतैव॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
          
          अस्य आशयोऽस्ति यत्- नष्टं (i) …………………. परिश्रमेण प्राप्यते। नष्टा विद्या (ii) …………………. युक्त्या च प्राप्यते, नष्ट स्वास्थ्यम् उत्तमाभिः (iii) …………………. पुनः प्राप्तुं शक्यते। किन्तु नष्टः (iv) …………………. कदापि पुनः प्राप्तुं न शक्यते।
          
          मञ्जूषा – चिकित्साभिः, समयः, धनम्, अभ्यासेन
          
          उत्तरः
          
          (i) धनम्
          
          (ii) अभ्यासेन
          
          (iii) चिकित्साभिः
          
          (iv) समयः
         
          (घ) पद्मकरं दिनकरो विकचीकरोति
          
          चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्।
          
          नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं दाति
          
          सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः॥ (नीतिशतकम्)
          
          अस्य आशयो वर्तते- उदितः सूर्यः (i) …………………. विकासयति, चन्द्रमाः स्वकिरणैः (ii) …………………. स्वयं विकसितं करोति। अयाचितः अपि (iii) …….. जलं यच्छति (वर्षति)। एवमेव सज्जनाः स्वयमेव अन्येषां (iv) ……… प्रयासरताः भवन्ति।
          
          मञ्जूषा – बद्दलः, कमलं, कल्याणाय, कुमुददलं
          
          उत्तरः
          
          (i) कमलं
          
          (ii) कुमुददलं
          
          (iii) बद्दलः
          
          (iv) कल्याणाय
         
          (ङ) भोगा न भुक्ताः वयमेव भुक्ताः
          
          तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।
          
          कालो न यातो वयमेव याताः
          
          तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः।। (वैराग्यशतकम्)
          
          अस्य श्लोकस्य भावोऽस्ति- कविः कथयति यत् भोगाः (i) …………………. न प्राप्ताः वयमेव (भोक्तारः एव) (ii) …………………. वयं (iii) …………………. न तप्ताः वयमेव तपांसि तपन्तः पीड़िताः अभवाम। अस्माकं समयः न समाप्तः वयमेव समाप्ताः अभवाम, भोगान् भोक्तुम् इच्छा न जरां प्राप्ता वयमेव (iv) …………………. अभवाम।
          
          मञ्जूषा – जीर्णाः, तपः, समाप्ति, समाप्ताः
          
          उत्तरः
          
          (i) समाप्ति
          
          (ii) समाप्ताः
          
          (iii) तपः
          
          (iv) जीर्णाः
         
          (च) कटु क्वणन्तो मलदायकाः खलाः
          
          तुदन्त्यलं बन्धनशृखला इव।
          
          मनस्तु साधुध्वनिभिः पदे पदे
          
          हरन्ति सन्तो मणिनूपुरा इव।। (कादम्बरीमुखम्)
          
          अस्य भावार्थोऽयं वर्तते यत्- अस्मिन् संसारे कटुवचनानां वक्तारः अन्येषु (i) …………………. दुर्जनाः कठोरां ध्वनि कुर्वन्तः (ii) …………………. इव जनान् अतीव पीडयन्ति परन्तु (iii) …………………. मणि जटिताः नूपुराः इव स्व मधुर-ध्वनिभिः पदे-पदे जनानाम् (iv) ………………… स्वं प्रति आकर्षयन्ति।
          
          मञ्जूषा – मनांसि, दोषारोपणकर्तारः, सज्जनाः, बन्धनशृङ्खलाः
          
          उत्तरः
          
          (i) दोषारोपणकर्तारः
          
          (ii) बन्धनशृङ्खला
          
          (ii) सज्जनाः
          
          (iv) मनांसि
         
          (छ) तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः
          
          नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
          
          धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्
          
          महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ (महाभारतम्)
          
          अस्य भावार्थोऽयं वर्तते यत्- अस्मिन् कलियुगे सम्प्रति तर्कः (i) …………………. अभवत्। वेदादीनि शास्त्राणि अपि विविधानि सन्ति। अद्य एतादृशः एकः अपि मुनिः (तत्त्ववेत्ता) नास्ति यस्य विचारः (ii) …………………. स्यात्, अद्य। (iii) …………………. रहस्यम् अनिश्चिततायाः अन्धकारे अदृश्यं वर्तते अतः अधुना (iv) …………………. येन मार्गेण गच्छन्ति अगच्छन् वा सः एव मार्गः स्वीकरणीयः वर्तते।
          
          मञ्जूषा – प्रामाणिकः, महापुरुषाः, धर्मस्य, अनिश्चितः
          
          उत्तरः
          
          (i) अनिश्चितः
          
          (ii) प्रामाणिकः
          
          (iii) धर्मस्य
          
          (iv) महापुरुषाः
         
          4. निम्न श्लोकं पठित्वा तस्य अन्वय पूर्ति समुचितैः पदैः करोतु भवान्( –
          
          क) गायन्ति देवाः किल गीतकानि
          
          धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
          
          स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
          
          भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्॥ (विष्णुपुराणम्)
          
          अन्वयः – देवाः किल (i) ………………. गायन्ति, ते (पुरुषाः तु) धन्याः (सन्ति) (ये) (ii) ………………. मार्गभूते भारतभूमिभागे (iii) ………………. भूयः (iv) ………………. भवन्ति।
          
          उत्तरः
          
          (i) गीतकानि
          
          (ii) स्वर्गापवर्गास्पद
          
          (iii) सुरत्वात्
          
          (iv) पुरुषाः ।
         
          (ख) विद्या समुन्नतिपथं विशदीकरोति
          
          बुद्धिं विचारविषये प्रखरीकरोति।
          
          कर्तव्यपालनपरां धियमादधाति
          
          विद्या सखा परमबन्धुरथेह लोके॥ (वैद्यकीयसुभाषितम्)
          
          अन्वयः – विद्या (i) ………………. विशदी करोति, विचारविषये (ii) ………………. प्रखरी करोति, (iii) ………………. धियम् आदधाति। इह लोके विद्या (iv) ……… अथ परम बन्धुः (अस्ति )।
          
          उत्तरः
          
          (i) समुन्नतिपथम्
          
          (ii) बुद्धिम्
          
          (iii) कर्तव्यपालनपराम्
          
          (iv) सखा।
         
          (ग) नष्टं द्रव्यं प्राप्यते ह्युद्यमेन
          
          नष्टा विद्या प्राप्यतेऽभ्यासयुक्त्या। नष्टारोग्यं सूपचारैः सुसाध्यं नष्टा वेला या गता सा गतैव॥
          
          (वैद्यकीयसुभाषितम्)
          
          अन्वयः – नष्टं (i) ………………. हि उद्यमेन प्राप्यते, (ii) ………………. विद्या अभ्यास युक्त्या प्राप्यते। नष्टम् आरोग्यम्, (iii) ………………. सुसाध्यम् (वर्तते), या नष्टा (iv) ……………… . . गता, सा गता एव (भवति)।
          
          उत्तरः
          
          (i) द्रव्यम्
          
          (ii) नष्टा
          
          (iii) सूपचारैः
          
          (iv) वेला।
         
          (घ) पद्मकरं दिनकरो विकचीकरोति
          
          चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्।
          
          नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
          
          सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः।। (नीतिशतकम्)
          
          अन्वयः – दिनकरः (i) ……… (अनभ्यर्थितोऽपि) विकचीकरोति, (ii) ……… कैरवचक्रवालम् विकासयति। जलधरः नाभ्यर्थितः अपि (iii) ………………. ददाति, सन्तः स्वयम् (iv) ………………. कृताभियोगाः (भवन्ति)।
          
          उत्तरः
          
          (i) पद्मकरं
          
          (ii) चन्द्रः
          
          (iii) जलम्
          
          (iv) परहितेषु।
         
          (ङ) भोगा न भुक्ताः वयमेव भुक्ताः
          
          तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।
          
          कालो न यातो वयमेव याताः
          
          तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः। (वैराग्यशतकम्)
          
          अन्वयः – भोगाः न (i) ………………. वयम् एव भुक्ताः (ii) ………………. न तप्तम् वयम् एव तप्ताः । कालः न यातः वयम् एव (iii) ………………. , तृष्णा न (iv) ………………. वयम् एव जीर्णाः
          
          उत्तरः।
          
          (i) भुक्ताः
          
          (ii) तपः
          
          (iii) याताः
          
          (iv) जीर्णा।
         
          (च) कटु क्वणन्तो मलदायकाः खलाः
          
          तुदन्त्यलं बन्धनश्रृजला इव।
          
          मनस्तु साधुध्वनिभिः पदे पदे
          
          हरन्ति सन्तो मणिनूपुरा इव॥ (कादम्बरीमुखम्)
          
          अन्वयः – कटु (i) ………………. मलदायकाः खलाः (ii) ………………. इव अलम् तुदन्ति। सन्तः (iii) ………………. इव साधुध्वनिभिः पदे-पदे (iv) ………………. हरन्ति।
          
          उत्तरः
          
          (i) क्वणन्तः
          
          (ii) बन्धनशृङ्खला:
          
          (iii) मणिनूपुराः
          
          (iv) मनः।
         
          (छ) तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः
          
          नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
          
          धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्
          
          महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ (महाभारतम्)
          
          अन्वयः – तर्क: अप्रतिष्ठ: (i) ………………. विभिन्नाः , एकः मुनिः न यस्य (ii) ………………. ्रमाणम् (भवेत्)। धर्मस्य (iii) ………………. गुहायाम् निहितम् (iv) ………………. येन गतः सः (एव) पन्थाः (अस्ति)।
          
          उत्तरः
          
          (i) श्रुतयः
          
          (ii) मतम्
          
          (iii) तत्त्वम्
          
          (iv) महाजनः।
         
          (क) वर्गीय-पदानाम् उचितम् अर्थ ‘ख’ वर्गीय-पदेषु चित्त्वा मेलनं कुरुत –
          
 
 
          उत्तरः
         
- (x) निश्चितरूपेण
- (v) मोक्षः
- (xxiii) मार्गम्
- (xvii) तीव्रां करोति
- (xvi) बुद्धिम्
- (viii) संसारे
- (xxii) मित्रम्
- (xiv) धनम्
- (xxi) स्वास्थ्यम्
- (xviii) उत्तमचिकित्साभिः
- (ix) समयः
- (xix) कमलम्
- (v) सूर्यः
- (iv) कुमुदः
- (vii) याचितः
- (i) वस्तूनि
- (vi) गतः
- (xi) वृद्धा
- (xiii) रणन्तः (वदन्तः )
- (i) कष्टं यच्छन्ति (पीडयन्ति)
- (iii) वेदाः
- (xii) गूढम्
- (xx) श्रेष्ठः जनः
 
 
 
 
