NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 6 क्षमावीरो विजयते (क्षमाशीलों में वीर विजयी होता है)
पाठपरिचयः, सारांशः च
          पाठपरिचयः
          
          अयं निबन्धमूलकः पाठः अस्ति। अस्य लेखकः अज्ञातः अस्ति। अस्मिन् लेखे क्षमावीरः भगवान् महावीरः तपोमय-जीवनेन कथम् अस्माकम् आदर्शभूतः इति विस्तरेण चर्चितः।
         
          सारांशः
          
          भगवान् महावीरः लोककल्याणाय महान्ति कष्टानि अनुभवन् तपोमयं जीवनम् अयापयत्। अयं तपस्वी ख्रिष्टाब्दात् पूर्व प्रायः पञ्चम्यां शताब्द्याम् आविरभूत्। अस्य पिता राजा सिद्धार्थः माता च त्रिशला आसीत्। बाल्ये एष भयङ्कर-विषधरात् स्वमित्राणि अरक्षत्। अनन्तरं सर्व राज्यलोभं परित्यज्य स्वाग्रजस्य अनुमत्या घोरतरं तपः अतपत्। द्वादश-वर्षपर्यन्तं मौनम् अधारयत्। एवं कैवल्यज्ञानम् अनुभूय स अरिहन्ता अभवत्। तस्य स्पर्शमात्रेण चन्द्रनबालायाः हस्तगतं मृत्तिकापात्रं स्वर्णपात्रम् अभवत्। चन्दनबाला संसारस्य निस्सारताम् अनुभूय आर्यिका अभवत्। अहिंसा-प्रचारेण भगवान् महावीरः न केवलं मानुषेषु अपितु पशुपक्षिषु वनस्पतिषु अपि हिंसायाः निषेधम् उपादिशत्। अस्य प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति-सम्यग्दर्शनम्, सम्यग् ज्ञानम्, सम्यक् चरित्रम्। अहिंसा परमो धर्मः इति तस्य उद्घोषः अद्य तावत् जनान् प्रेरयति प्रेरयिष्यति च।
         
भगवान् महावीरः द्विसप्ततितमे वयसि पावानगर्या निर्वाणम् आप्तवान्। अस्माकं भारते प्रजातान्त्रिक शासनम् अस्ति। अस्य शासनस्य चत्वारः प्रमुखाः स्तम्भाः सन्ति-स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुता न्यायः च। भगवान् महावीरः सार्धद्विसहस्त्रवर्षाणि पूर्व एतेषां जीवनमूल्यानां स्थापनाम् अकरोत्। भोगादिविषयेभ्यः निवृत्तिः, सर्वसत्त्वेभ्यः अभयदानम्, तेषां दु:खनिवारणम्, अरिषु मित्रेषु च समभावः, सार्वभौमिकबन्धुत्वे विश्वासः, तर्कपूर्णः व्यवहारः इत्येषां जीवनमूल्यानां साक्षात् आदर्शमूर्तिः एव आसीत् अयं महापुरुषः। तेषां तपोमयजीवनम् सर्वेभ्यः शिक्षाप्रदम् अस्ति।
          हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः
          
          यह निबन्धमूलक पाठ है। इसका लेखक अज्ञात है। इस लेख में क्षमावीर भगवान् महावीर ने किस प्रकार अपने तपोमय जीवन से आदर्श जीवन की स्थापना की इसकी विशेष चर्चा है।
          
          लोक कल्याण हेतु कष्ट सहन करते हुए भगवान् महावीर ने तपोमय जीवन व्यतीत किया। ये ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी में आविर्भूत हुए। इनके पिता सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला थीं। बचपन में ही इन्होंने भयानक सर्प से अपने मित्रों की रक्षा की। कालान्तर में सब राज्य लोभ त्यागकर अपने बड़े भाई से अनुमति लेकर इन्होंने घोर तप किया तथा बारह वर्षों तक मौन धारण करके रखा। इस तरह कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति कर वे अरिहन्ता बन गए। इनके स्पर्शमात्र से चन्दनबाला के हाथ का मिट्टी का पात्र सोने का बन गया। इनकी शिष्या बनकर चन्दनबाला संसार की निस्सारता का अनुभव कर आर्यिका बन गई। भगवान् महावीर ने न केवल मनुष्यों की अपितु पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों की हिंसा के निषेध का प्रचार किया। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चरित्र-ये तीन रत्न इनके प्रमुख उपदेश-बिन्दु थे। इनका ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का उद्घोष लोगों को आज भी प्रेरित कर रहा है तथा आगे भी करता रहेगा। 72 वर्ष भी आयु में इन्होंने पावानगरी में निर्वाण प्राप्त किया।
         
हमारे भारत में प्रजातान्त्रिक शासन है। इस शासन के चार आधार स्तम्भ हैं-स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुता तथा न्याय। भगवान् महावीर ने ढाई हजार वर्ष पूर्व ही इन मूल्यों की स्थापना की थी। भोग आदि विषयों से छुटकारा, सब प्राणियों को अभय प्रदान करना, उनके दु:ख दूर करना, शत्रु तथा मित्रों के प्रति एक जैसा भाव तथा सार्वभौमिक बन्धुत्व में विश्वास, तर्कपूर्ण व्यवहार-इन जीवन मूल्यों की साक्षात् आदर्शमूर्ति थे-महावीर जैन। इनका तपोमय जीवन सबके लिए आदर्श है।
क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च
1. धन्यः अयं भगवान् महावीरः यः लोककल्याणाय महान्ति कष्टानि अनुभवन् तपोमयं जीवनम् अयापयत्। अयं तपस्वी ख्रिष्टाब्दात् पूर्व प्रायः पञ्चम्यां शताब्दयाम् आविरभूत्। अस्य पिता राजा सिद्धार्थः माता च त्रिशला आसीत्। बाल्यादेव बालमित्रैः सह विविधाः क्रीडाः कुर्वन्नपि कदापि दोषपूर्णम् आचरणं न कृतवान्। एकदा स भयङ्करविषधरात् स्वमित्राणि अरक्षत। तस्मादेव क्षणात् अतुलितबलशाली एषः वर्धमानः महावीरः इति प्रसिद्धः अभवत्।
शब्दार्थाः- अयापयत्- यापितवान् (बिताया)। आविरभूत- प्रकटितः अभवत् (प्रकट हुए)। सरलार्थ- धन्य हैं ये भगवान् महावीर जिन्होंने लोकमंगल के लिए बड़े-से-बड़े कष्ट झेलते हुए तपोमय जीवन बिताया। ये तपस्वी ईसा पूर्व प्रायः पाँचवीं शताब्दी में प्रकट हुए। इनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला थी। बचपन में बाल मित्रों के साथ अनेक प्रकार के खेल करते हुए भी इन्होंने कभी दोषपूर्ण आचरण नहीं किया। एक बार उन्होंने भयंकर सर्प से अपने मित्रों की रक्षा की। उसी क्षण से ये अतुलितबलशाली वर्धमान महावीर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
2. अयं महात्मा संसारस्य सारहीनतां जानन् अपि, संन्यासदीक्षाम् इच्छन् अपि मातापित्रोः अनुरोधेन विवाहम् अकरोत्। अष्टादशवर्षपर्यन्तं वैराग्यपूर्वकं गृहस्थधर्म पालयतः तस्य पितरौ दिवंगतौ। ततः सर्व राज्यलोभं परित्यज्य स्वाग्रजस्य अनुमत्या वनं प्राविशत् घोरतरं तपः च अतपत्। सुखदुःखे, मानापमानौ च तस्य कृते समौ आस्ताम्। असौ बहुवारं तस्करैः दुष्टैः च गृहीतः पीडितश्च। विविधैः वन्यैः पशुभिः दष्टः अपि स व्रतभङ्गम् न अकरोत्। द्वादशवर्षपर्यन्तं मौनम् अधारयत्। शनैः शनैः तस्य हृदयात् सर्वे विकाराः अपगताः। एवं कैवल्यज्ञानम् अनुभूय स अरिहन्ता (जीवन्मुक्तः) अभवत्। तदा लोककल्याणाय धर्मप्रचाराय च भारते स्थानात् स्थानम् अभ्रमत्।
शब्दार्थाः – पालयतः- पालनं कुर्वतः (पालन करते हुए उसके)। तपः- तपस्याम् (तपस्या को)। कैवल्यज्ञानम्मोक्षस्य ज्ञानम् (मोक्ष के ज्ञान को)। अरिहन्ता- विषयवासनादि-शत्रूणां हन्ता जीवनमुक्तः (सांसारिक विषय-वासनाओं से दूर)।
सरलार्थ – इस महापुरुष ने संसार की सारहीनता को जानते हुए तथा, संन्यास की इच्छा होते हुए भी माता-पिता के अनुरोध से विवाह किया था। 18 वर्ष तक वैराग्यपूर्वक गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए उनके माता-पिता स्वर्ग सिधार गए। उसके बाद सब राज्य लोभ छोड़कर इन्होंने अपने बड़े भाई की अनुमति से वन में प्रवेश किया तथा घोर तप किया। सुख-दुख, मान और अपमान उनके लिए बराबर थे। ये अनेक बार डाकुओं तथा दुष्टों द्वारा पकड़े गए व सताए गए। अनेक जंगली पशुओं द्वारा काटे जाने पर भी इन्होंने कभी व्रतभंग नहीं किया। 12 वर्ष तक मौन धारण करके रखा। धीरे-धीरे उनके हृदय से सब मनोविकार निकल गए। इस प्रकार कैवल्य ज्ञान का अनुभव कर वे अरिहन्त बन गए। तब लोक कल्याण के लिए व धर्मप्रचार के लिए ये भारत में स्थान-स्थान पर घूमे।
          3. एकदा कश्चन विद्याधरः महाराजचेटकस्य कनिष्ठां पुत्री चन्दनबालाम् अपहृत्य आपणे विक्रयणार्थम् आनीतवान्। धर्मपरायणः एकः श्रेष्ठी तां कुलीनां मत्वा तस्याः मूल्यं प्रदाय गृहञ्च आनीय पुत्रीवत् अपालयत्। कालान्तरे स श्रेष्ठी विदेशं गतवान्। तस्य पत्नी चन्दनबालाम् अन्धप्रकोष्ठे अपातयत्, प्रतिदिनं च मृत्तिकापात्रे केवलं मुष्टिकामात्रम् ओदनं भोजनाय अयच्छत्। दैववशात् भगवान् महावीरः श्रेष्ठिनः गृहस्य पुरतः भिक्षार्थ गच्छति स्म।
          
          शब्दार्था:- अपातयत्- पातिपवती (गिरा दिया, डाल दिया)। मृत्तिकापात्रे- मृतिकायाः भाजने (मिट्टी के बर्तन में)। मुष्टिकामात्रम्- एक मुष्टी (मुट्ठीभर)। पुरत:- अग्रतः (सामने)।
          
          सरलार्थ- एक बार कोई विद्याधर, कन्या महाराज चेटक की सबसे छोटी बेटी चन्दनबाला का हरण करके बाज़ार में बेचने लाया। एक धर्मात्मा सेठ ने उसे उच्च कुल की कन्या जानकर उसकी कीमत चुका कर घर ले आया और उसे पुत्री के समान पाला। कुछ दिन बाद से वह सेठ विदेश चला गया। उसकी पत्नी ने चन्दनबाला को अन्धेरी कोठरी में डाल दिया व और प्रतिदिन मिट्टी के बर्तन में केवल मुट्ठी भर भात उसे खाने के लिए देती थी। संयोगवश भगवान महावीर उस सेठ के घर के सामने भिक्षा के लिए गए।
         
4. चन्दनबाला स्वमृत्तिकापात्रे स्थितं सर्वम् ओदनं भगवते समर्पितवती। भगवान् आहारं स्वीकृत्य अग्रे गतवान्। मृत्तिकापात्रं तस्य स्पर्शमात्रेण स्वर्णपात्रम् अभवत्। एषः समाचारः सम्पूर्णवत्सदेशे प्रासरत्। वत्सदेशस्य पट्टमहिषी मृगावती अपि तं समाचारं श्रुत्वा तस्याः दर्शनार्थम् आगता, चन्दनबालां च दृष्ट्वा ज्ञातवती यत् सा तस्याः एव पूर्वापहृता भगिनी आसीत्। सा चन्दनबाला राजभवनम् अनयत् परन्तु चन्दनबाला अल्पे एव वयसि संसारस्य निस्सारताम् अनुभूय ‘आर्यिका’ अभवत्, अपि च तपोबलात् षट्त्रिंशत्सहस्त्राणाम् आर्यिकाणां संघस्य प्रमुखगणिनी जाता।
शब्दार्था:- प्रासरत्- प्रसृतवान् (फैल गया)। षट्त्रिंशत्सहस्त्राणाम्- षट् च त्रिंशत् च सहस्त्रं च तेषाम् (छत्तीस हजार)। आर्यिका (आर्यक + टाप)-आदरणीया। गण- नेत्री (आदरणीय गण की नेत्री)। आर्य:कर्तव्यमाचरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन् तिष्ठति प्रकृताचारे सैवार्य इति स्मृतः। (कर्तव्य का आचरण करने वाला, अकरणीय कार्यो को न करने वाला जो व्यक्ति सदाचार में स्थित रहता है, उसे आर्य कहते हैं।)
सरलार्थ- चन्दनबाला ने अपने मिट्टी के पात्र में रखे हुए मुट्ठी भर भात को भगवान महावीर को समर्पित किया। उन्होंने चन्दन बाला दिए गए आहार को स्वीकार कर आगे चल पड़े। किंतु मिट्टी का पात्र उनके स्पर्श से स्वर्णपात्र बन गया। यह समाचार सम्पूर्ण वत्स प्रदेश में फैल गया। वत्स प्रदेश की पटरानी मृगावती भी उस समाचार को सुनकर उसके दर्शन के लिए आई और चन्दनबाला को देखकर जान गई कि वह उसकी ही पहले हरी गई बहन है। वह चन्दनबाला को राजभवन में ले गई पर चन्दनबाला छोटी आयु में ही संसार की सारहीनता को अनुभव कर आर्यिका बन गई तथा तपस्या के बल से 36000 आर्यिकाओं के संघ की प्रमुख पथ प्रदर्शिका बन गई।
5. अहिंसायाः प्रचारं कुर्वन् भगवान् महावीरः न केवलं मानुषेषु अपितु पशुपक्षिषु वनस्पतिषु अपि हिंसायाः निषेधम् उपादिशत्। अस्य प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति-सम्यग्दर्शनम्, सम्यग्ज्ञानम्, सम्यक् चरितम् च। इमे रत्नत्रयम् इति मन्यन्ते। तस्य मते आचार एव श्रेष्ठतायाः कारणम्। जीवेषु सर्वेषु दया कर्तव्या। न कश्चिद् गर्हणीयः। भोगाः दुःखदाः। क्षमया, धैर्येण, मनसः दमेन, इन्द्रियाणां निग्रहेण, शान्त्या च मनोविकारान् दूरीकृत्य कैवल्याय प्रयतनीयम्।
          शब्दार्था:-अहिंसायाः- हिंसा निषेधस्य (अहिंसा का)। मानुषेषु- मनुष्येषु (मनुष्यों में)। पशुपक्षिषु- पशुषु पक्षिषु च (पशुओं और पक्षियों में)। वनस्पतिषु- पादपेषु (वृक्षों में)। उपादिशत्- उपदेशम् अकरोत् (उपदेश
          
          किया)। सम्यक् दर्शनम्- सम्यक् दृष्टिः हिताहितविवेकः (भले-बुरे, सत्य-असत्य की पहचान)। गर्हणीयःनिन्दनीयः (निन्दा के योग्य)। दुखदाः- दुःखदायकाः (दुःखदायी)।
         
सरलार्थ- अहिंसा का प्रचार करते हुए भगवान् महावीर ने न केवल मनुष्यों की अपितु पशु-पक्षियों की तथा पेड़-पौधों की भी हिंसा के निषेध का उपदेश दिया। उनके प्रमुख उपदेश हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चरित्र। इन्हें ‘तीन रत्न’ माना जाता है। उनके मत में आचार ही श्रेष्ठता का कारण है। सभी जीवों के प्रति दया करनी चाहिए। कोई निन्दा के योग्य नहीं है। भोग दुःख देने वाले हैं। क्षमा से, धैर्य से, मन को वश में रखने से, इन्द्रियों के नियन्त्रण से और शान्ति से मन के विकारों को दूर करके कैवल्य के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
6. अन्ते द्विसप्ततितमे वयसि कार्त्तिकमासस्य अमावस्यायां (कृष्णां रात्रिमपि दीपानाम् आलोकेन प्रभामयीं कारयन्) एष ‘पावा’ नगर्या निर्वाणम् आप्तवान्। अहिंसा परमो धर्मः इति तस्य उद्घोषः अद्यतावत् जनान् प्रेरयति प्रेरयिष्यति च। शब्दार्थः-अन्ते- अन्त समये (अन्तिम समय में)। द्विसप्ततितमे वयसि- द्वि-अधिक-सप्ततितमे आयुषः वर्षे (72 वर्ष की आयु) में। अद्यतावत्- अद्य पर्यन्त (आज तक)। सरलार्थ- अन्त में 72 वर्ष की आयु में कार्तिक मास की अमावस्या को (काली रात को भी दीपकों के प्रकाश से प्रकाशमान कराते हुए) इन्होंने ‘पावा’ नगरी में निर्वाण को प्राप्त किया। ‘अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है’ उनका यह उद्घोष आज तक लोगों को प्रेरित करता है तथा प्रेरित करता रहेगा।
          7. संसारदावानलदाहनीरं
          
          सम्मोहधूलिहरणे समीरम्।
          
          मायारसादारणसारसीरम्,
          
          नमामि वीरं गिरिसारधीरम॥
          
          शब्दार्थाः – दावानलः वनस्य अग्निः (जंगल की आग)। दाहः- ज्वलनम् (जलन, गर्मी, तपिश)। नीरम्- जलम् (पानी)। सम्मोहः- अज्ञानम्, मतिविभ्रमः (सम्मोह, माया-मोह से उत्पन्न मूर्छा)। रसा- पृथ्वी (भूमि)। दारणम्विदारणम् (फाड़ना)। सारसीरम्- दृढं हलम् (मजबूत हल)। गिरिसारधीरम्- यस्य धैर्य पर्वतस्य दृढतानुरूपमस्ति (पर्वत के समान अचल धैर्यवान्)।
          
          सरलार्थ – मैं संसार रूपी दावानल (वन की अग्नि) की गर्मी के लिए जल-रूप; अज्ञान (मतिविभ्रम) रूपी धूलि को हरने वाली वायु-रूप माया रूपी पृथ्वी को विदीर्ण करने वाले दृढ़ हल-रूप तथा पर्वत के समान अचल धैर्यवान् महावीर को प्रणाम करता हूँ।
         
ख. अनुप्रयोगस्य-प्रश्नोत्तराणि
          1. अधोलिखितशब्दान् उच्चैः पठत (निम्न शब्दों को ऊँचे स्वर में पढ़िए) –
          
          मानापमानौ, समौ, तस्करैः, दुष्टः, विविधैः, वन्यैः, मौनम्, शनैः शनैः, कैवल्यज्ञानम्, दैववशात्, धैर्येण।
         
          2. अधोलिखितवाक्येषु सङ्ख्यावाचकपदैः रिक्तस्थानपूर्ति कुर्वन्तु (निम्नलिखित वाक्यों में संख्यावाचक पदों से
          
          खाली स्थान भरिए)
          
          (क) भगवान् महावीरः ख्रिष्टात् पूर्व …………………. शताब्द्याम् आविरभूत्।
          
          (ख) ……………….. वर्षपर्यन्तं महावीरः गृहस्थधर्मं पालितवान्।
          
          (ग) ……………. वर्षपर्यन्तं महावीरः मौनम् अधारयत्।
          
          (घ) चन्दनबाला …………………. आर्यिकाणां सङ्घस्य गणिनी जाता।
          
          (ङ) एतानि ………….. रत्नानि मन्यन्ते।
          
          (च) ………………. वयसि कार्तिकमासस्य अमावस्यायां निर्वाणं प्राप्तवान्।
          
          उत्तरः
          
          (क) पञ्चम्यां
          
          (ख) अष्टादश
          
          (ग) द्वादश
          
          (घ) षट्-त्रिंशत्सहस्त्राणाम्
          
          (ङ) त्रीणि
          
          (च) द्विसप्ततितमे।
         
          3. पाठात् चित्वा अधोलिखितशब्दानां विलोमपदानि लिखत (पाठ से चुनकर निम्नलिखित शब्दों के विलोम पद लिखिए) –
          
          (क) सारयुक्ताम् …………………….
          
          (ख) अनुजस्य …………………….
          
          (ग) मानः …………………….
          
          (घ) आदाय …………………….
          
          (ङ) पृष्ठतः …………………….
          
          (च) सुखदाः …………………….
          
          (छ) आदौ …………………….
          
          (ज) प्रशंसनीयः …………………….
          
          उत्तरः
          
          (क) निस्सारताम्
          
          (ख) अग्रजस्य
          
          (ग) अपमानः
          
          (घ) प्रदाय
          
          (ङ) पुरतः
          
          (च) दु:खदाः
          
          (छ) अन्ते
          
          (ज) गर्हणीयः
         
          4. विशेषणानि विशेष्यैः सह मेलयत (विशेषणों का विशेष्यों से मिलान कीजिए) –
          
 
          उत्तरः
          
 
          5. क्त्वा/ल्यप् प्रत्ययस्य प्रयोगेण वाक्यद्वयं योजयत (क्त्वा/ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग करके दो-दो वाक्यों को जोड़िए) –
          
          (क) अ. कश्चित् श्रेष्ठी चन्दनबालां कुलीनां मन्यते।
          
          आ. मूल्यं प्रदाय तां गृहं नीतवान्।
          
          (ख) अ. मृगावती चन्दनबाला पश्यति।।
          
          आ. मृगावती ज्ञातवती यत् चन्दनबाला तस्याः एव भगिनी आसीत्।
          
          (ग) अ. मृगावती समाचारं शृणोति।
          
          आ. मृगावती चन्दनबालायाः दर्शनार्थ गच्छति।
          
          (घ) अ. महावीरः राज्यलोभं परित्यजति।
          
          आ. महावीरः स्वाग्रजस्य अनुमत्या वनं गच्छति।
          
          (ङ) अ. महावीरः कैवल्यज्ञानम् अनुभवति।
          
          आ. महावीरः अरिहन्ता अभवत्।
          
          (च) अ. महावीरः आहारं स्वीकृतवान्।
          
          आ. महावीरः अग्रे गच्छति।
          
          उत्तरः
          
          (क) कश्चित् श्रेष्ठी चन्दनबाला कुलीनां
          
           मत्वा
          
          मूल्यं प्रदाय तां गृहं नीतवान्।
          
          (ख) मृगावती चन्दनबालां
          
           दृष्ट्वा
          
          ज्ञातवती यत् चन्दनबाला तस्याः एव भगिनी आसीत्।
          
          (ग) मृगावती समाचारं
          
           श्रुत्वा
          
          चन्दनबालायाः दर्शनार्थ गच्छति।
          
          (घ) महावीरः राज्यलोभं
          
           परित्यज्य
          
          स्वाग्रजस्य अनुमत्या वनं गच्छति।
          
          (ङ) महावीरः कैवल्यज्ञानम्
          
           अनुभूय
          
          अरिहन्ता अभवत्।
          
          (च) महावीरः आहारं
          
           स्वीकृत्य
          
          अग्रे गच्छति।।
         
          6. अधोलिखितक्रियापदेषु ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य स्थाने लङ्लकारस्य, लङ्लकारे प्रयुक्तानां क्रियापदानां स्थाने ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोगः क्रियताम् (निम्नलिखित क्रियाओं में ‘क्तवतु’ प्रत्यय के स्थान पर लङ्लकार तथा लङ्लकार के स्थान पर ‘क्तवतु’ प्रत्यय का प्रयोग कीजिए) –
          
 
          उत्तरः
          
          (ख) अकरोत्
          
          (ग) भूतवान्
          
          (घ) अतपत्
          
          (ङ) आनयत्
          
          (च) दत्तवान्
          
          (छ) अगच्छत्
          
          (ज) ज्ञातवान्
          
          (झ) प्राप्तवान्
          
          (ब) प्रासरत्।
         
          7. अधोलिखितेषु एकं कथनम् अशुद्धम् अस्ति। तत् कथनं चिह्नीकुरुत (निम्नलिखित में एक कथन अशुद्ध है उसे चिह्नित कीजिए) –
          
          (क) भगवान् महावीरः पशुपक्षिषु अपि हिंसायाः निषेधम् अकरोत्।
          
          (ख) चन्दनबाला वत्सदेशस्य पट्टमहिषीमृगावत्याः भगिनी आसीत्।
          
          (ग) सम्यग्दर्शनम्, सम्यक्पूजनं, सम्यक्चरित्रं च रत्नत्रयम् आसीत्।
          
          (घ) श्रेष्ठिनः पत्नी चन्दनबाला प्रति सम्यक् व्यवहारं न करोति स्म।
          
          (ङ) विकारहीनः भूत्वा स कैवल्यज्ञानं प्राप्तवान्।
          
          उत्तरः
          
          (ग) सम्यग्दर्शनम्, सम्यक्पूजनं, सम्यक्चरित्रं च रत्नत्रयम् आसीत्।
         
          8. अधोलिखितशिक्षासु रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत (निम्नलिखित शिक्षाओं में रिक्त स्थानों में उचित पद भरिए) –
          
          (क) भगवतः महावीरस्य मते …………………. एव श्रेष्ठतायाः कारणम्।
          
          (ख) जीवेषु ……………….. कर्तव्या।
          
          (ग) मनुष्येण …………………. दूरीकृत्य कैवल्याय प्रयतनीयम्।
          
          (घ) वनस्पतिषु अपि स ………………….. निषेधम् अकरोत्।
          
          (ङ) ……………….. दु:खं प्रयच्छन्ति।
          
          (च) नरः …………….. लिप्तः न भवेत्।
          
          उत्तरः
          
          (क) आचारः
          
          (ख) दया
          
          (ग) मनोविकारान्
          
          (घ) हिंसायाः
          
          (ङ) भोगाः
          
          (च) भोगेषु।
         
          9. अधोलिखितभावार्थे रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम् (निम्नलिखित भावार्थ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए) –
          
          अहं भगवन्तं महावीरं …………………. यः संसाररूपिदावाग्ने: दाहं दूरीकर्तु जलम् इव अस्ति, यः सम्मोहस्य धूलिं निवारयितुं …………………. यः च मायारूपिपृथ्वीं विदारयितुम् ………………… एव अस्ति, यश्च पर्वतसमं ………………………….. अस्ति ।
          
          उत्तरः
          
          नमामि, समीरः, सारसीरः, धीरः।
         
ग. पाठ-विकासः
          1. सम्यक्त्वम् इति किम्?
          
          (सम्यक्त्व क्या होता है?)
          
          तत्त्वरुचिः सम्यक्त्वं, तत्त्वप्रख्यापकं भवेज्ज्ञानम्
          
          पापक्रियानिवृत्तिश्चरित्रमुक्तं जिनेन्द्रेण। (ज्ञानार्णवः पृ० 91)
          
          (क) सम्यक् दर्शनम् तत्त्वं प्रति श्रद्धा।
          
          भावार्थ:- तत्त्व के प्रति श्रद्धा सम्यक् दर्शन होती है।
          
          (ख) सम्यक् ज्ञानम् तत्त्वस्य परमसत्यस्य ज्ञानं, विवेकबुद्धिः।
          
          भावार्थ:- सत्य असत्य का ठीक ज्ञान, विवेकबुद्धि, सम्यक् ज्ञान होता है।
          
          (ग) सम्यक् चरितम् पापकर्मेभ्यः निवृत्तिः, शुद्धाचरणम्।
          
          भावार्थः- पाप कर्म से छुटकारा दिलाने वाला शुद्ध आचरण सम्यक् चरित होता है।
         
          2. अहिंसा
          
          (क) हिंसैव दुर्गतेर, हिंसैव दुरितार्णवः।
          
          हिंसैव नरकं घोरं, हिंसैव गहनं तमः॥
          
          भावार्थ:- हिंसा दुगर्ति का द्वार है, हिंसा ही पाप का सागर है। हिंसा ही घोर नरक है तथा हिंसा ही घना अंधेरा है।
         
          (ख) यत्किञ्चित्संसारे शरीरिणां दुःखशोकभयबीजम्।
          
          दौर्भाग्याविसमस्तं तद्धिंसासम्भवं ज्ञेयम्॥ (ज्ञानार्णवः पृ० 120)
          
          भावार्थ:- संसार में शरीरधारियों के दुःख, शोक तथा भय का दुर्भाग्य आदि सम्पूर्ण कारण हिंसा से ही पैदा होता है।
         
          3. कैवल्यम्/केवलज्ञानम्
          
          (क) मोक्षः- आत्मनः चरमविकासः। जन्ममरणबन्धनाद् मुक्तिः।
          
          भावार्थ:- कैवल्य अर्थात् केवल ज्ञान का अर्थ है, मोक्ष, आत्मा का पूर्ण विकास, जन्म-मरण के बन्धन से छुटकारा।
         
घ. पठितांश-अवबोधनम्
          1. अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितप्रश्नान् उत्तरत –
          
          (क) धन्यः अयं भगवान् महावीरः यः लोककल्याणाय महान्ति कष्टानि अनुभवन् तपोमयं जीवनम् अयापयत्। अयं तपस्वी ख्रिष्टाब्दात् पूर्व प्रायः पञ्चम्यां शताब्दयाम् आविरभूत्। अस्य पिता राजा सिद्धार्थः माता च त्रिशला आसीत्। बाल्यादेव बालमित्रैः सह विविधाः क्रीडाः कुर्वन्नपि कदापि दोषपूर्णम् आचरणं न कृतवान्। एकदा स भयङ्करविषधरात् स्वमित्राणि अरक्षत्। तस्मादेव क्षणात् अतुलितबलशाली एषः वर्धमानः महावीरः इति प्रसिद्धः अभवत्।।
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) महावीरः स्वमित्राणि कस्मात् अरक्षत्?
          
          (ii) बालमित्रैः क्रीडन् महावीरः कीदृशम् आचरणं न कृतवान्?
          
          (iii) भगवतः महावीरस्य माता का आसीत्?
          
          (iv) महावीरः किमर्थ महान्ति कष्टानि अनुभूतवान्?
          
          उत्तरः
          
          (i) भयङ्करविषधरात्
          
          (ii) दोषपूर्णम्
          
          (iii) त्रिशला
          
          (iv) लोक कल्याणाय।
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          महावीरः कदा आविरभूत्?
          
          उत्तरः
          
          महावीरः ख्रिष्टाब्दात् पूर्व प्रायः पञ्चम्यां शताब्द्याम् आविरभूत्।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘वर्धमानमहावीरः’ इति विशेष्य पदस्य विशेषणपदं किम् अस्ति?
          
          (क) एषः
          
          (ख) अतुलितः
          
          (ग) बलशाली
          
          (घ) अतुलित बलशाली
          
          उत्तरः
          
          (घ) अतुलितबलशाली
         
          (ii) ‘अस्य’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
          
          (क) महावीराय
          
          (ख) कष्टाय
          
          (ग) जीवनाय
          
          (घ) मात्रे
          
          उत्तरः
          
          (क) महावीराय
         
          (iii) ‘दोषरहितम्’ इति अस्य विपर्ययपदं किम् अत्र प्रयुक्तम्?
          
          (क) दोषी
          
          (ख) निर्दोषः
          
          (ग) दोषपूर्णम्
          
          (घ) निर्दोषम्
          
          उत्तरः
          
          (ग) दोषपूर्णम्
         
          (iv) अनुच्छेदे ‘जनकः’ इति पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (क) तातः
          
          (ख) पिता
          
          (ग) राजा
          
          (घ) नृपः
          
          उत्तरः
          
          (ख) पिता
         
(ख) अयं महात्मा संसारस्य सारहीनतां जानन् अपि, संन्यासदीक्षाम् इच्छन् अपि मातापित्रोः अनुरोधेन विवाहम् अकरोत्। अष्टादशवर्षपर्यन्तं वैराग्यपूर्वकं गृहस्थधर्म पालयतः तस्य पितरौ दिवंगतौ। ततः सर्व राज्यलोभं परित्यज्य स्वाग्रजस्य अनुमत्या वनं प्राविशत् घोरतरं तपः च अतपत्। सुखदुःखे, मानापमानौ च तस्य कृते समौ आस्ताम्। असौ बहुवारं तस्करैः दुष्टैः च गृहीतः पीडितश्च। विविधैः वन्यैः पशुभिः दष्टः अपि स व्रतभङ्गम् न अकरोत्। द्वादशवर्षपर्यन्तं मौनम् अधारयत्। शनैः शनैः तस्य हृदयात् सर्वे विकाराः अपगताः। एवं कैवल्यज्ञानम् अनुभूय स अरिहन्ता (जीवन्मुक्तः) अभवत्। तदा लोककल्याणाय धर्मप्रचाराय च भारते स्थानात् स्थानम् अभ्रमत्।
          I. एकपवेन उत्तरत –
          
          (i) महावीरस्य कृते सुखदुःखे कीदृशे आस्ताम्?
          
          (ii) महावीरः कस्य अनुमत्या वनं प्राविशत्?
          
          (iii) महावीरस्य हृदयात् कदा सर्वे विकाराः अपगताः?
          
          (iv) कैवल्यज्ञानम् अनुभूय महावीरः कीदृशः अभवत्?
          
          उत्तरः
          
          (i) समौ
          
          (ii) स्वाग्रजस्य
          
          (iii) शनैः शनैः
          
          (iv) अरिहन्ता।
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          अष्टादशवर्षपर्यन्तं महावीरः किम् अकरोत्?
          
          उत्तरः
          
          अष्टादशवर्षपर्यन्तं महावीरः वैराग्यपूर्वकं गृहस्थधर्मम् अपालयत्।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) गृहस्थधर्म पालयतः तस्य पितरौ दिवंगतौ। अत्र क्रियापदं किम्?
          
          (क) पालयतः
          
          (ख) दिवं
          
          (ग) गतौ
          
          (घ) दिवंगतौ
          
          उत्तरः
          
          (i) (ग) गतौ
         
          (ii) सर्वे विकाराः अपगताः। अत्र विशेषणपदं किम् अस्ति?
          
          (क) विकाराः
          
          (ख) अपगताः
          
          (ग) गताः
          
          (घ) सर्वे
          
          उत्तरः
          
          (घ) सर्वे
         
          (iii) ‘सः अरिहन्ता अभवत्।’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
          
          (क) पितृभ्याम्
          
          (ख) महावीराय
          
          (ग) पित्रे
          
          (घ) नृपाय
          
          उत्तरः
          
          (ख) महावीराय
         
          (iv) अनुच्छेदे ‘काननम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः?
          
          (क) वनम्
          
          (ख) विपिनम्
          
          (ग) वन्यम्
          
          (घ) अटवी
          
          उत्तरः
          
          (क) वनम्।
         
(ग) एकदा कश्चन विद्याधरः महाराजचेटकस्य कनिष्ठां पुत्रीं चन्दनबालाम् अपहृत्य आपणे विक्रयणार्थम् आनीतवान्। धर्मपरायणः एकः श्रेष्ठी तां कुलीनां मत्वा तस्याः मूल्यं प्रदाय गृहञ्च आनीय पुत्रीवत् अपालयत्। कालान्तरे स श्रेष्ठी विदेशं गतवान्। तस्य पत्नी चन्दनबालाम् अन्धप्रकोष्ठे अपातयत्, प्रतिदिनं च मृत्तिकापात्रे केवलं मुष्टिकामात्रम् ओदनं भोजनाय अयच्छत्। दैववशात् भगवान् महावीरः श्रेष्ठिनः गृहस्य पुरतः भिक्षार्थं गच्छति स्म।
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) कः महाराज चेटकस्य पुत्रीम् अपहृतवान्?
          
          (ii) श्रेष्ठी कीदृशः आसीत्?
          
          (iii) श्रेष्ठी चन्दनबालाम् कीदृशम् अपालय?
          
          (iv) कः श्रेष्ठिनः गृहं भिक्षार्थं गच्छति स्म?
          
          उत्तरः
          
          (i) विद्याधरः
          
          (ii) धर्मपरायणः
          
          (iii) पुत्रीवत्
          
          (iv) महावीरः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          श्रेष्ठिनः पत्नी चन्दनबाला किम् अयच्छत्?
          
          उत्तरः
          
          श्रेष्ठिनः पत्नी चन्दनबाला प्रतिदिनं मृत्तिका पात्रे केवलं मुष्ठिका मात्रम् ओदनं भोजनाय अयच्छत्।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘तस्य पत्नी चन्दन बालाम्।’ अत्र ‘तस्य’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
          
          (क) चन्दनबालायै
          
          (ख) विद्याधराय
          
          (ग) चेटकाय
          
          (घ) श्रेष्ठिने
          
          उत्तरः
          
          (i) (घ) श्रेष्ठिने
         
          (ii) ‘अपालयत्’ क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
          
          (क) धर्मपरायणः
          
          (ख) एकः
          
          (ग) श्रेष्ठी
          
          (घ) गृहम्
          
          उत्तरः
          
          (ग) श्रेष्ठी
         
          (iii) अनुच्छेदे ‘पुत्रीम्’ इति विशेष्यस्य विशेषणं किम्?
          
          (क) कनिष्ठां
          
          (ख) चन्दन बालाम्
          
          (ग) विक्रयणार्थम्
          
          (घ) महाराजचेटकस्य
          
          उत्तरः
          
          (क) कनिष्ठां
         
          (iv) अत्र अनुच्छेदे ‘सुताम्’ पदस्य कः पर्यायः आगतः?
          
          (क) कनिष्ठाम्
          
          (ख) पुत्रीम्
          
          (ग) चन्दनबालाम्
          
          (घ) कुलीनाम्
          
          उत्तरः
          
          (ख) पुत्रीम्
         
(घ) चन्दनबाला स्वमृत्तिकापात्रे स्थितं सर्वम् ओदनं भगवते समर्पितवती। भगवान् आहारं स्वीकृत्य अग्रे गतवान्। मृत्तिकापात्रं तस्य स्पर्शमात्रेण स्पर्शमात्रेण स्वर्णपात्रम् अभवत्। एषः समाचारः सम्पूर्णवत्सदेशे प्रासरत्। वत्सदेशस्य पट्टमहिषी मृगावती अपि तं समाचारं श्रुत्वा तस्याः दर्शनार्थम् आगता, चन्दनबाला च दृष्ट्वा ज्ञातवती यत् सा तस्याः एव पूर्वापहृता भगिनी आसीत्। सा चन्दनबाला राजभवनम् अनयत् परन्तु चन्दनबाला अल्पे एव वयसि संसारस्य निस्सारताम् अनुभूय ‘आर्यिका’ अभवत्, अपि च तपोबलात् षत्रिंशत्सहस्त्राणाम् आर्यिकाणां संघस्य प्रमुखगणिनी जाता।
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) चन्दनबाला सर्वम् ओदनं कस्मै समर्पितवती?
          
          (ii) अल्पे एव वयसि का आर्यिका अभवत्?
          
          (iii) वत्सदेशस्य पट्टमहिषी का आसीत्?
          
          (iv) तपोबलात् चन्दनबाला कति आर्यिकाणां संघस्य प्रमुखगणिनी जाता?
          
          उत्तरः
          
          (i) भगवते
          
          (ii) चन्दनबाला
          
          (iii) मृगावती
          
          (iv) षट्त्रिंशत्सहस्त्राणाम्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          भगवतः स्पर्श मात्रेण मृत्तिका पात्रं किम् अभवत्?
          
          उत्तरः
          
          भगवतः स्पर्श मात्रेण मृत्तिकापात्रं स्वर्ण पात्रम् अभवत्।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) अनुच्छेदे ‘समर्पितवती’ इत्यस्याः क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
          
          (क) सर्वम्
          
          (ख) चन्दनबाला
          
          (ग) भगवते
          
          (घ) ओदनम्
          
          उत्तरः
          
          (ख) चन्दनबाला
         
          (ii) ‘पट्टमहिषी’ इति विशेषणस्य अनुच्छेदे विशेष्यपदं किम् अस्ति?
          
          (क) मृगावती
          
          (ख) आगता
          
          (ग) चन्दनबाला
          
          (घ) ज्ञातवती
          
          उत्तरः
          
          (क) मृगावती
         
          (iii) ‘यत् सा तस्याः ‘। अत्र ‘तस्याः ‘ पदं कस्यै प्रयुक्तम्?
          
          (क) चन्दन बालायै
          
          (ख) भगिन्यै
          
          (ग) महिष्यै
          
          (घ) पट्टमहिष्यै
          
          उत्तरः
          
          (घ) पट्टमहिष्यै
         
          (iv) ‘पृष्ठे’ इति पदस्य कः विपर्ययः अनुच्छेदे आगतः?
          
          (क) पश्चात्
          
          (ख) पुरतः
          
          (ग) अग्रे
          
          (घ) पुनः
          
          उत्तरः
          
          (ग) अग्रे
         
          (ङ) अहिंसायाः प्रचारं कुर्वन् भगवान महावीरः न केवलं मानुषेषु अपितु पशुपक्षिषु वनस्पतिषु अपि हिंसायाः निषेधम् उपाविशत्। अस्य प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति-सम्यग्दर्शनम्, सम्यग्ज्ञानम्, सम्यक् चरितम् च। इमे रत्नत्रयम् इति मन्यन्ते। तस्य मते आचार एव श्रेष्ठतायाः कारणम्। जीवेषु सर्वेषु दया कर्तव्या। न कश्चिद् गर्हणीयः। भोगाः दुःखदाः। क्षमया, धैर्येण, मनसः दमेन, इन्द्रियाणां निग्रहेण, शान्त्या च मनोविकारान्
          
          दूरीकृत्य कैवल्याय प्रयतनीयम्।
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) भगवान् महावीरः कस्याः प्रचारं करोति स्म?
          
          (ii) भोगाः कीदशाः सन्ति?
          
          (iii) भगवतः प्रमुखाः उपदेशाः किं मान्यते?
          
          (iv) भगवान् महावीरः कस्याः निषेधम् उपदिश?
          
          उत्तरः
          
          (i) अहिंसायाः
          
          (ii) दुःखदाः
          
          (iii) रत्नत्रयम्
          
          (iv) हिंसायाः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          भगवतः महावीरस्य के प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति?
          
          उत्तरः
          
          भगवतः महावीरस्य प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति-सम्यग्दर्शनम् ,सम्यग्ज्ञानम् सम्यक्चरितम् च।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘भगवान् महावीरः’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?
          
          (क) उपादिशत्
          
          (ख) निषेधम्
          
          (ग) उपदिशत्
          
          (घ) आदिशत्
          
          उत्तरः
          
          (क) उपादिशत्
         
          (ii) अनुच्छेदे ‘हिंसायाः’ इति पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
          
          (क) श्रेष्ठायाः
          
          (ख) श्रेष्ठतायाः
          
          (ग) अहिंसायाः
          
          (घ) दयायाः
          
          उत्तरः
          
          (ग) अहिंसायाः
         
          (iii) अनुच्छेदे ‘उपदेशाः’ इति विशेष्यस्य विशेषणपदं किम् आगतम्?
          
          (क) दु:खदाः
          
          (ख) सुखदाः
          
          (ग) गर्हणीयाः
          
          (घ) प्रमुखाः
          
          उत्तरः
          
          (घ) प्रमुखाः
         
          (iv) ‘इमे रत्नत्रयम्’। अत्र ‘इमे’ पदं केभ्यः आगतम्?
          
          (क) उपदेशाय
          
          (ख) उपदेशेभ्यः
          
          (ग) आदेशेभ्यः
          
          (घ) संदेशेभ्यः
          
          उत्तरः
          
          (ख) उपदेशेभ्यः
         
(च) अन्ते द्विसप्ततितमे वयसि कार्त्तिकमासस्य अमावस्यायां (कृष्णां रात्रिमपि दीपानाम् आलोकेन प्रभामयीं कारयन्) एष ‘पावा’ नगर्या निर्वाणम् अवाप्तवान्। अहिंसा परमो धर्मः इति तस्य उद्घोषः अद्यतावत् जनान् प्रेरयति प्रेरयिष्यति च।
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) भगवान् महावीरः कस्मिन् वयसि निर्वाणं प्राप्तवान्?
          
          (ii) कः परमो धर्मः विद्यते?
          
          (iii) सः भगवान् कुत्र निर्वाणम् अवाप्तवान्?
          
          (iv) भगवतः महावीरस्य कः अद्यतावत् जनान् प्रेरयति?
          
          उत्तरः
          
          (i) द्विसप्ततितमे
          
          (ii) अहिंसा
          
          (iii) पावानगर्याम्
          
          (iv) उद्घोषः
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          अन्ते किम् अभवत्?
          
          उत्तरः
          
          अन्ते द्विसप्ततितमे वयसि कार्तिकमासस्य अमावस्याम् एषः ‘पावा’ नगर्या निर्वाणन् अवाप्तवान्।
         
          III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
          
          (i) ‘प्रेरयति’ इति क्रियायाः अनुच्छेदे कर्तृपदं किम्?
          
          (क) अद्य
          
          (ख) तावत्
          
          (ग) उद्घोषः
          
          (घ) जनान्
          
          उत्तरः
          
          (ग) उद्घोषः
         
          (ii) ‘एष पावा’। अत्र ‘एष’ ‘पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
          
          (क) महावीराय
          
          (ख) ईश्वराय
          
          (ग) चन्दनबालायै
          
          (घ) सन्ताय
          
          उत्तरः
          
          (क) महावीराय
         
          (iii) ‘प्रकाशेन’ इति पदस्य कः पर्यायः अत्र आगतः?
          
          (क) तमसा
          
          (ख) अवलोकेन
          
          (ग) आलोकेन
          
          (घ) ज्योतिषाः
          
          उत्तरः
          
          (ग) आलोकेन
         
          (iv) अनुच्छेदे ‘कृष्णां रात्रिम्’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
          
          (क) रत्रिः
          
          (ख) कृष्णा
          
          (ग) कृष्णां
          
          (घ) रात्रिम्
          
          उत्तरः
          
          (ग) कृष्णां
         
          2. निम्न श्लोकं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत –
          
          संसार दावानल दाहनीरं,
          
          सम्मोह धूलिहरणे समीरम्।
          
          माया रसादारणसारसीरम्,
          
          नमामि वीरं गिरिसारधीरम्॥
         
          I. एकपदेन उत्तरत –
          
          (i) दावानलं कः नाशयति?
          
          (ii) कः धूलिं हरति?
          
          (iii) कविः कीदृशं वीरं नमति?
          
          (iv) सारसीरः कां विदीर्णा करोति?
          
          उत्तरः
          
          (i) नीरः
          
          (ii) समीरः
          
          (iii) गिरिसारधीरम्
          
          (iv) रसाम्
         
          II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
          
          माया रूपी रसां कः विदीयति?
          
          उत्तरः
          
          माया रूपी रसां सारसीरः विदीरयति।
         
          III. निर्देशानुसार उत्तरत –
          
          (i) ‘वीरं गिरिसारधीरम्’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
          
          (क) वीरं
          
          (ख) गिरिसारम्
          
          (ग) घीरम्
          
          (घ) गिरिसारधीरम्
          
          उत्तरः
          
          (घ) गिरिसारधीरम्
         
          (ii) नमामि वीरं गिरिसारधीरम्। अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम् अस्ति? .
          
          (क) नमामि
          
          (ख) वीरं
          
          (ग) सारधीरम्
          
          (घ) गिरिसारधीरम्
          
          उत्तरः
          
          (क) नमामि
         
          (iii) ‘वायुम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः श्लोके आगतः?
          
          (क) सम्मोहम्
          
          (ख) समीरम्
          
          (ग) नीरम्
          
          (घ) धीरम्
          
          उत्तरः
          
          (ख) समीरम्
         
          (iv) ‘नमामि वीरं’। अत्र ‘वीरम्’ पदं कस्मै आगतम्?
          
          (क) गिरये
          
          (ख) सारधीराय
          
          (ग) महावीराय
          
          (घ) वीराय
          
          उत्तरः
          
          (ग) महावीराय
         
          3. निम्न वाक्यानि ‘कः कम् कथयति’ इति लिखत –
          
          (i) सर्वेषु जीवेषु दया कर्तव्या।।
          
          (ii) न कश्चित् गर्हणीयः।
          
          (iii) योगाः दुःखदाः।
          
          (iv) क्षमया, धैर्येण, मनसः दमेन, इन्द्रियाणां निग्रहेण शान्त्या च मनोविकारान् दूरीकृत्य कैवल्याय प्रयतनीयम्?
          
          उत्तरः
          
 
          4. निम्न वाक्यानां श्लोकस्य च भावं मञ्जूषायाः सहायतया रिक्तस्थानेषु सम्पूर्य लिखत –
          
          I. अस्य प्रमुखाः उपदेशाः सन्ति- “सम्यग्दर्शनम्, सम्यग्ज्ञानम् सम्यक् चरितम् च।
          
          अर्थात्- भगवतः महावीरस्य प्रमुखाः (i) …………………… जनेभ्यः इमे सन्ति यत् संसारे सम्यक् दृष्टिः (ii) …………………… च विवेकः सम्यक् ज्ञानम् अर्थात् सर्वेषाम् पदार्थाणाम् वास्तविकं (iii) …………………… सम्यक् चरितम् अथवा अहिंस अहिंसाया: (iv) ……………………. प्राणिमात्र प्रति भवेत्। अनेन ज्ञानेन आचारणेन च कैवल्यं प्राप्नोति।
          
          मञ्जूषा – आचरणम्, सत्यासत्यस्य, ज्ञानम्, उपदेशाः ।
          
          उत्तरः
          
          (i) उपदेशाः
          
          (ii) सत्यासत्यस्य
          
          (iii) ज्ञानम्
          
          (iv) आचरणम्।
         
          II. “अहिंसा परमो धर्मः”।
          
          अर्थात्- अस्मिन् (i) …………………… सर्वेषां जनानाम् कृते ये (ii) …………………… धर्माः वा सन्ति। तेषु नियमेषु (iii) …………………… अर्थात् कस्यचिदपि जीवस्य केनापि प्रकारेण पीड़ा प्रदानं (iv) …………………… वर्तते। यतः सर्वे जीवाः स्व जीवनं जीवितुं स्वतन्त्राः सन्ति। कस्यापि हिंसा अन्यस्य कर्तव्यं नास्ति अपितु पापम् एव भवति। अतः अहिंसा सर्वश्रेष्ठः धर्मः वर्तते।
          
          मञ्जूषा-निषिद्धम्, संसारे, नियमाः, हिंसा
          
          उत्तरः
          
          (i) संसारे
          
          (ii) नियमाः
          
          (iii) हिंसा
          
          (iv) निषिद्धम्।
         
          III ‘नमामि वीरं गिरिसारधीरम्’।
          
          अस्य भावोऽस्ति- यः भगवान् महावीरः संसार रूपी (i) …………………… ज्वलनस्य जलमिव, अज्ञान स्वरूपां (ii) …………………… हरणे (iii) …………………… इव माया रूपां धरां विदीर्णकर्तारं हलमिव पर्वतमिव अचलः (iv) …………………… चास्ति तं देवम् अहं नमस्करोमि।
          
          मञ्जूषा – वायुः, वनस्य, धैर्यवान्, धूलिम्
          
          उत्तरः
          
          (i) वनस्य
          
          (ii) धूलिम्
          
          (iii) वायुः
          
          (iv) धैर्यवान्।
         
          5. निम्नश्लोकं पठित्वा उचितैः पदैः तस्य अन्वयपूर्तिः कर्तव्या –
          
          I. संसारदावानलदाहनीरं
          
          सम्मोह धूलिहरणे समीरम्।
          
          मायारसादारणसारसीरम्,
          
          नमामि वीरं गिरिसारधीरम्॥
          
          अन्वयः –
          
          संसार-दावानल (i) …………………… सम्मोह धूलि (ii) …………………… समीरम्, माया रसा-दारण (iii) …………………… गिरिसारधीरम् (iv) …………………… (अहं) नमामि।
          
          उत्तरः
          
          (i) दाहनीरम्
          
          (ii) हरणे
          
          (iii) सारसीरम्
          
          (iv) वीरम्।
         
          6. निम्नलिखितानि वाक्यानि कथाक्रमानुसारं पुनः लिखत –
          
          (क) (i) भगवान् महावीरः ख्रिष्टात् पूर्व पञ्चम्यां शताब्द्याम् अविरभूत्।
          
          (ii) महावीरः कैवल्य ज्ञानं प्राप्य प्रचार कार्ये संलग्नः अभवत्।
          
          (iii) महावीरः पावानगरे निर्वाणम् अवाप्तवान्।
          
          (iv) महावीरः द्वादशवर्ष यावत् मौनम् अधारयत्।
          
          (v) महावीरः चन्दनबालायाः उद्धारम् अकरोत्
          
          (vi) महावीरः स्वाग्रजस्य अनुमत्या वनं प्राविशत्।
          
          (vii) महावीरस्य पिता राजा सिद्धार्थः आसीत्।
          
          (viii) चन्दनबाला षट् त्रिंशत्सहस्त्र-आर्यिकाणां संघस्य प्रमुखा जाता।
          
          उत्तरः
          
          (i), (vii), (vi), (iv). (ii), (v), (viii), (iii)
         
          (ख) (i) अस्य उपदेशाः सन्ति-सम्यग्दर्शनम्, सम्यग्ज्ञानम् सम्यक्चरित्रम् च।
          
          (ii) पट्टमहिषी मृगावती चन्दनबालां दृष्ट्वा ज्ञातवती यत् सा तस्याः पूर्वापहृता भगिनी आसीत्।
          
          (iii) इमे रत्नत्रयम् इति मन्यन्ते।
          
          (iv) नमामि वीरं गिरिसारधीरम्।
          
          (v) ‘अहिंसा परमो धर्मः’ इति भगवतः महावीरस्य उद्घोषः अद्यतावत् जनान् प्रेरयति।
          
          (vi) वत्सदेशस्य पट्टमहिषी मृगावती तं समाचारं श्रुत्वा दर्शनार्थम् आगता।
          
          (vii) भगवान, महावीरः सर्वेषु अहिंसायाः निषेधम् उपादिशत्।
          
          (viii) भगवतः महावीरस्य पित्रोः नामनी सिद्धार्थः त्रिशला च आस्ताम्।
          
          उत्तरः
          
          (viii), (vi), (ii), (vii), (i), (iii), (v), (iv)
         
          (ग) (i) तस्मात् दिनात् एव सः बलशाली वर्धमानः महावीरः इति अभिधानेन प्रसिद्धः जातः।
          
          (ii) अस्य पिता सिद्धार्थः माता च त्रिशला आस्ताम्।
          
          (iii) महावीरः लोक कल्याणार्थ महत् कष्टं सोढ़वा तपोमयं जीवनम् अजीवत्।
          
          (iii) बाल्ये सः कदापि दोषपूर्णम् आचरणं न कृतवान्।
          
          (v) सः कैवल्यज्ञानम् अनुभूय ‘अरिहन्ता’ भूत्वा लोककल्याणार्थ धर्मप्रचारं सम्पूर्ण भारते अभ्रमत्।
          
          (vi) अयं महात्मा संसारस्य असारतां जानन् अपि माता पित्रोः अनुरोधेन विवाहम् अकरोत्।
          
          (vii) भगवान् महावीरः चन्दनबालायाः उद्धारम् अकरोत्।
          
          (vii) चन्दबाला महाराज-चेटकस्य विद्याधेरण अपहृता कनिष्ठा पुत्री आसीत्।
          
          उत्तरः
          
          (ii), (ii), (iv), (i), (vi), (v), (viii), (vii)
         
          (घ) (i) अहिंसायाः प्रचारं कुर्वन् भगवान् महावीरः मानुषेषु, पशुपक्षिषु, वनस्पतिषु चापि हिंसायाः निषेधं कृतवान्।
          
          (ii) चन्दनबाला भगवतः महावीरस्य उपदेशात् प्रभाविता अभवत्।
          
          (iii) अन्ते सः द्विसप्ततितमे वयसि पावा-नगर्यां निर्वाणं प्राप्नोत्।
          
          (iv) भगवान् चन्दनबालायाः भिक्षाहारं प्राप्य अग्रे गतवान्।
          
          (v) भगवतः स्पर्शेण तद्मृत्तिका पात्रं स्वर्णपात्रम् अभवत्।
          
          (vi) अस्य प्रमुखाः उपदेशाः सम्यग्दर्शनम्, सम्यग्ज्ञानम् सम्यक् चरितम् च सन्ति।
          
          (vii) एकदा सः भयङ्कर-विषधरात् स्वमित्राणि अरक्षत।
          
          (viii) भगवान् महावीरः ख्रिष्टाब्दात् पूर्व पञ्चमी शताब्द्यां जन्म अलभत।
          
          उत्तरः
          
          (viii), (vii), (iv), (v), (ii), (i), (vi), (ii)
         
          7. निम्न ‘क’ वर्गीयाणां पदानां ‘ख’ वर्गीय-अर्थैः सह मेलनं कुरुत –
          
 
          उत्तरः
          
          (i) 6. अजायत
          
          (ii) 4. सात्
          
          (iii) 5. माता च पिता च
          
          (iv) 7. चौरैः
          
          (v) 3. मोक्षम्
          
          (vi) 6. जीवनमुक्तः
          
          (vii) 7. लध्वीम्
          
          (viii) 1. व्यापारी
          
          (ix) 9. कक्षे
          
          (x) 12. महाराज्ञी
          
          (xi) 14. आयुषि
          
          (xii) 11. त्यक्तव्यः
          
          (xiii) 13. सर्वश्रेष्ठः
          
          (ivx) 9. जलम्
         
 
 
 
 
