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NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः

August 19, 2019 by LearnCBSE Online

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः (सब नीरोग रहें)

पाठपरिचयः, सारांशः च

पाठपरिचयः
अस्य पाठस्य मुख्यः विषयः चरकसंहितायाः सङ्कलितः। चरकसंहिता आयुर्वेदस्य प्रमुखः ग्रन्थः अस्ति। अस्मिन् ग्रन्थे अष्ट स्थानानि सन्ति। यथाहि (1) सूत्रस्थानम्, (2) निदानस्थानम्, (3) विमानस्थानम्, (4) शरीरस्थानम्, (5) इन्द्रियस्थानम्, (6) चिकित्सास्थानम्, (7) कल्पस्थानम्, (8) सिद्धिस्थानम् च इति। अत्र न केवलं रोगाणां चिकित्सा एव वर्णिता अपितु स्वास्थ्यस्य संरक्षणार्थम् आयुषः च संवर्धनार्थम् उपायाः अपि निर्दिष्टाः, अत एव अयम् आयुर्वेदस्य प्रमुखः ग्रन्थः मन्यते। चरकसंहितायाः लेखकः महर्षिः चरकः आसीत्। सः राज्ञः कनिष्कस्य राजवैद्यः आसीत्। अयम् ईसवीय-प्रथमशताब्द्याम् अभवत् इति मन्यते। एषः मूलतः गान्धारदेशवासी आसीत्।

सारांशः
अयं पाठः सन्दिशति यत् वयम् आहारविषयकाणां नियमानाम् पालनात् निरामयाः भवेम। आचार्यः विहगस्य ‘कोऽरुक्’ ध्वनेः उत्तरं ददाति यत् हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक् सदा स्वस्थः रोगरहितः च भवति। यः हितकरं भोजनं करोति सः हितभुक् भवति। फलसेवनम् हितकरम् भवति यतः फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि सन्ति। अन्यच्च हितकराः अपि पदार्थाः यदि अतिमात्रं भुज्यन्ते तदा तेऽपि हानिकराः भवन्ति। गरिष्ठभोजनम् अपि अल्पमात्रया सेवनेन सुपाच्यं भवति। अतः मात्रानुसारम् एव खादितव्यम्। यः तत्करोति सः मितभुक् भवति। यः ऋतोः अनुसारम् आहारं खादति सः ऋतुभुक् भवति। एवं संवादरूपेण शिष्येभ्यः आचार्यः विहगस्य ‘कोऽरुक्’ इति प्रश्नस्य उत्तरं सम्यक् ददाति।

‘शरीरम् आद्यं खलु धर्मसाधनम्’ इति प्रसिद्धा उक्तिः। स्वस्थं शरीरं विना वयं संसारे किमपि कार्यं कर्तुं समर्थाः न भवामः। स्वास्थ्यं तु आहारे आश्रितम्, उक्तञ्च-आहारशुद्धौ सत्त्वसंशुद्धिः। आहारः अपि हितकरः स्यात्, उचितमात्रायां स्यात्, ऋतु-अनुसारं च स्यात् इत्येव स्वास्थ्यस्य आहारः। आहारविषये कथ्यते यद् ‘अतिभोजनं स्वास्थ्यं नाशयति, आयुषः च क्षयं करोति’। अतः आहारविषयकाणां नियमानाम् अनुपालनं कृत्वा निरामयाः भवेम इत्येव सन्दिशति अयं पाठः-‘सर्वे सन्तु निरामयाः’।

हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः
इस पाठ का मुख्य विषय ‘चरकसंहिता’ से लिया गया है। चरकसंहिता आयुर्वेद का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में आठ स्थान हैं- (1) सूत्रस्थान, (2) निदानस्थान, (3) विमानस्थान, (4) शरीरस्थान, (5) इन्द्रियस्थान, (6) चिकित्सास्थान, (7) कल्पस्थान तथा (8) सिद्धिस्थान। इसमें न केवल रोगों का इलाज बताया गया है अपितु स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तथा आयु की वृद्धि के लिए भी उपाय बताए गए हैं। इसीलिए यह आयुर्वेद का प्रमुख ग्रन्थ माना जाता है। चरकसंहिता के लेखक महर्षि चरक थे। वे राजा कनिष्क के राजवैद्य थे। वे ईसा की प्रथम शताब्दी में हुए ऐसा माना जाता है। वे मूलतः गान्धार देशवासी थे।

सारांश –
यह पाठ सन्देश देता है कि आहार (भोजन) के नियमों का पालन करने से हम नीरोग हो सकते हैं। आचार्य एक पक्षी की ‘कोऽरुक्’ (क: + अरुक्) ध्वनि का उत्तर देते हैं कि हितभुक्, मितभुक् तथा ऋतुभुक् व्यक्ति सदा स्वस्थ व रोगरहित होता है। जो हितकर भोजन करता है वह हितभुक् होता है। फलों का सेवन हितकर होता है क्योंकि फल स्वास्थ्य के रक्षक होते हैं। और भी, हितकर पदार्थ भी यदि ज्यादा मात्रा में खाए जाएँ तो हानिकर होते हैं तथा गरिष्ठ (भारी) भोजन भी अल्प मात्रा में करने से सुपाच्य होता है अतः मात्रा के अनुसार ही खाना चाहिए। जो वैसा करता है वह मितभुक् होता है। जो ऋतु के अनुसार आहार करता है वह ऋतुभुक् होता है। इस प्रकार संवादरूप में शिष्यों को आचार्य पक्षी के ‘कोऽरुक्’ अर्थात् नीरोग कौन है? इस प्रश्न का उत्तर समझाते हैं।

शरीर धर्म का निश्चय ही प्रथम साधन है, यह प्रसिद्ध उक्ति है। स्वस्थ शरीर के बिना हम संसार में कुछ भी काम नहीं कर सकते। स्वास्थ्य तो आहार पर आश्रित होता है। कहा भी है-आहार की शुद्धि से मन की शुद्धि होती है। आहार भी हितकर होना चाहिए, उचित मात्रा में होना चाहिए तथा ऋतु के अनुसार होना चाहिए-यही स्वास्थ्य का आधार है। आहार के विषय में कहा जाता है कि अतिभोजन स्वास्थ्य का नाश कर देता है तथा आयु का क्षय करता है। अत: आहार के नियमों का बार-बार पालन कर हम नीरोग हो सकते हैं-यही है सन्देश, इस ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ पाठ का।

क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च

1. एकं वनम्। केचन शिष्याः गुरुः च वने विचरन्ति स्म। सहसा तत्र विचित्रः शब्दः श्रुतः-“कोऽरुक, कोऽरुक्”, इति। चकिता: शिष्याः इतस्ततः पश्यन्ति। ‘अये! विचित्रः खलु अयं ध्वनिः कुतः आयाति? इति चिन्तयन्ति। तदैव एकस्य शिष्यस्य दृष्टिः वृक्षस्थे विहगे अपतत्। सः पुनः पुनः रटति स्म ‘कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति। विस्मितः शिष्यः आचार्यं पृच्छति-गुरुवर! अयं किं वदति? आचार्यः अकथयत्-शोभनम् पृष्टम्। कथयिष्यामि। अस्य वृक्षस्य अधः उपविशन्तु! सर्वं कथयामि। (सर्वे उपविशन्ति)

आचार्यः – शिष्याः! शृणुत! एषः विहगः वदति ‘कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति! अर्थात् कः अरुक्? कस्तावत् स्वस्थः नीरोगः वा?
शिष्यः – आचार्य! तदा कः स्वस्थः?
आचार्यः – यः हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः।
शब्दार्थाः – अरुक्- नीरोगः, स्वस्थः (निरोग, स्वस्थ)। चकिताः- विस्मिताः (हैरान)। इतस्ततः- अत्र-तत्र (यहाँ-वहाँ, इधर-उधर)। हितभुक्- हितं भुङ्क्ते, यः हितकरं पदार्थं भक्षयति, सः (जो हितकारक पदार्थ का सेवन करता है)। मितभुक्- मितं भुक्ते, यः मितं, मात्रानुसारं वा खादति, सः (सीमित मात्रा में आहार सेवन करने वाला)। ऋतुभुक्ऋत्वनुसार, भुङ्क्ते, यः ऋत्वनुकूलं पथ्यं भोजनं भक्षयति, सः (ऋतु के अनुसार उपयुक्त भोजन करने वाला)।

सरलार्थ – एक वन था। कुछ शिष्य और आचार्य वन में विचरण कर रहे थे। अचानक वहाँ विचित्र शब्द सुनाई दिया-‘कोऽरुक, कोऽरुक, कोऽरुक्’। चकित शिष्य इधर-उधर देखते हैं। ‘अरे, यह विचित्र ध्वनि कहाँ से आ रही है?’ इस प्रकार सोचते हैं। तभी एक शिष्य की नजर वृक्ष पर बैठे एक पक्षी पर पड़ी। वह बार-बार रट रहा था-कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक्। चकित शिष्य ने आचार्य से पूछा-‘गुरुवर, यह क्या कह रहा है?’ आचार्य ने कहा-ठीक पूछा। मैं बताऊँगा। आप इस वृक्ष के नीचे बैठ जाएँ। मैं
सब कहूँगा। (सब बैठ जाते हैं।)
आचार्य – हे शिष्यों, सुनो। यह पक्षी कह रहा है-कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक् अर्थात् निरोग (अरुक्) कौन है?
स्वस्थ या निरोग कौन है?
शिष्य – आचार्य जी, तब स्वस्थ कौन होता है?
आचार्य – जो हितभुक् (अर्थात् हितकर भोजन करने वाला), मितभुक् (मात्रा के अनुसार भोजन करने वाला) तथा ऋतुभुक (ऋतु के अनुसार भोजन करने वाला) होता है वही सर्वदा स्वस्थ होता है।
शिष्यः – आचार्य! “हितभुक, मितभुक्, ऋतुभुक्’ इति एतेषां कः आशयः?
आचार्यः – अपि भवद्भिः महर्षेः चरकस्य नाम श्रुतम्? ।
सर्वे शिष्याः – आम्। जानीमः। तेन एव लिखिता ‘चरकसंहिता’ इति आयुर्वेदस्य महान् ग्रन्थः।
आचार्यः – शोभनम्। एतेषाम् आशयः तु तत्रैव वर्तते! अधुना शृणुत-हितभुक् कः? यः हितकरं भुक्ते। यथा हि
तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्॥
अर्थात् यस्य आहारस्य सेवनेन स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवेत्, न जातानाम् अनुत्पन्नानां विकाराणाम् उत्पत्तिः न भवेत्, स एव आहारः सेवनीयः।
शिष्याः – आचार्य! किं फलसेवनं “हितकरम्”?
आचार्यः – आम्! फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि एव।

शब्दार्थः – आशयः – अभिप्रायः (भाव)। अपि – किम् (क्या)। शोभनम् – सुष्ठु (ठीक है)। भुङ्क्ते – भोजनं करोति (खाता है)। अनुवर्तते – अनुसरति (अनुसरण करता है, पालन करता है)। अजातानाम् – न उत्पन्नानाम् (जो पैदा नहीं हुए उनका)। विकाराणाम् – दोषाणाम् (दोषों का)। अनुत्पत्तिकरम् – न उत्पत्तिकरम्, यत् विकारान् न उत्पादयति (जो विकारों को उत्पन्न न करे)। प्रयुञ्जीत – प्रयोग कुर्यात्, खादेत् (प्रयोग करे, सेवन करे)। फलसेवनम् – फलानाम् भक्षणम् (फलों का सेवन)। स्वास्थ्यरक्षकाणि – आरोग्यस्य कारकाणि (स्वास्थ्य के रक्षक)।

सरलार्थ
शिष्य – हे आचार्य जी, हितभुक्, मितभुक् तथा ऋतुभुक्-इनका क्या अभिप्राय है?
आचार्य – क्या आपने महर्षि चरक का नाम सुना है?
सब शिष्य – जी हाँ! हम जानते हैं। उनके द्वारा ही आयुर्वेद का महान ग्रन्थ ‘चरकसंहिता’ लिखा गया है।
आचार्य – ठीक है। उनका आशय (अभिप्राय) तो वहाँ ही बताया गया है। अब सुनो। हितभुक् कौन होता है? जो हितकारक भोजन करता है। जैसा कि (कहा गया है। जिससे स्वास्थ्य का पालन होता है और जो न पैदा हुए विकारों को (कभी) उत्पन्न नहीं होने देता है। उसे नित्य ही प्रयोग करना चाहिए। अर्थात्-जिसके सेवन से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा जो उत्पन्न न हुए दोषों को उत्पन्न न करने
वाला है वह भोजन नित्य करना चाहिए।
शिष्य – आचार्य जी! क्या फलों का सेवन हितकर होता है?
आचार्य – हाँ फल स्वास्थ्य के रक्षक ही हैं।

3. एकः शिष्यः-आचार्य! इदं वनं तु बहुफलम्। बुभुक्षा अपि वर्तते। अद्य तु वयं बहुनि फलानि भक्षयिष्यामः।
आचार्यः – मा मैवम्। हितकराः अपि पदार्थाः यदि अतिमात्रं भुज्यन्ते, तदा हानिकराः भवन्ति। पदार्थानां
लघुता गुरुता च मात्रायां निर्भरा। श्रूयताम् –
अल्पादाने गुरूणां च लघूनां चातिसेवने।
मात्रा कारणमुद्दिष्ट, द्रव्याणां गुरुलाघवे॥
शिष्याः – आचार्य! अस्य कः आशयः?
आचार्यः – शृणु! गरिष्ठद्रव्याणि अपि अल्पमात्रया सेवनेन सुपाच्यानि भवन्ति, लघुद्रव्याणि च अतिमात्रं सेवनेन हानिकराणि जायन्ते। अतः मात्रानुसारम् एव खादितव्यम्।
शिष्याः – अथ तावत् ऋतुभुक् इति कः भवति?
आचार्यः – साधु पृष्टम्। कति ऋतवः, जानीथ?

शब्दार्थाः – बहुफलम् – बहुफलयुक्तम् (बहुत फलों से युक्त)। बुभुक्षा – खादितुम् (भक्षयितुम्), इच्छा (भूख, खाने की इच्छा)। वर्तते – विद्यते (लगी है)। भक्षयिष्यामः – भक्षणं करिष्यामः (खाएँगे)। मैवम् – मा एवम् (इस प्रकार ठीक नहीं)। हितकराः – हितं कुर्वन्ति इति ते (हितकारक)। पदार्थाः – वस्तूनि (वस्तुएँ)। अतिमात्रम् – मात्रायाम् अधिकम् (अधिक मात्रा में)। खाद्यन्ते – भुज्यन्ते (खाई जाती हैं)। तदा – तस्मिन् काले (तब)। हानिकराः – हानि कुर्वन्ति इति ते (हानिकारक)। लघुता (लघु + तल्)-शीघ्रपचन योग्यता, सुपाच्यता (खाद्य पदार्थों का हल्कापन)। गुरुता (गुरु + तल)- चिरात् पचनयोग्यता (खाद्य पदार्थों का भारीपन)। गरिष्ठम् – (गुरु + इष्ठन्)-यत् कठिनतया पच्यते तत् भोजनम् (जो कठिनता से पचे, भारी)। अल्पादाने – अल्पमात्रया सेवने (थोड़ी मात्रा में लेने पर)। अतिसेवने – अधिकमात्रया सेवने (अधिक मात्रा में लेने पर)। उद्दिष्टम् -कथितम् (कहा गया है)।

सरलार्थ –
एक शिष्य- आचार्य जी, यह वन तो बहुत फलों वाला है। भूख भी लगी है। आज तो हम बहुत फल खाएँगे।
आचार्य – नहीं, ऐसा (ठीक) नहीं। कल्याण करने वाले पदार्थ भी यदि अधिक मात्रा में खाए जाते हैं तो वे हानि (नुकसान) पहुँचाने वाले होते हैं। पदार्थों की सुपाच्यता तथा दीर्घपाच्यता मात्रा पर निर्भर करती है। सुनिए-‘अल्पादाने गुरूणां च लघूनां चातिसेवने। मात्राकारणमुद्दिष्टं द्रव्याणां गुरुलाघवे।’ अर्थात् भोज्य पदार्थों के भारीपन (गुरुता) तथा हल्केपन (लघुता) में-भारी पदार्थो के कम मात्रा के
सेवन में तथा हल्के पदार्थों के अल्प मात्रा के सेवन में मात्रा को ही कारण माना गया है।
सभी शिष्य – गुरुवर, इसका क्या अभिप्राय है?
आचार्य – सुनो, भारी पदार्थ भी थोड़ी मात्रा में सेवन से सरलता से पचने वाले (सुपाच्य) हो जाते हैं तथा हल्के पदार्थ भी अधिक मात्रा में सेवन से हानिकारक हो जाते हैं। इसलिए मात्रा के अनुसार ही खाना चाहिए।
शिष्यगण – और इसके बाद (बताइए कि) ऋतुभुक् कौन होता है?
आचार्य – ठीक पूछा। कितनी ऋतुएँ हैं, जानते हो?

4. शिष्याः – जानीमः वयम्। ऋतवः षट् –
ग्रीष्मः, वर्षा, शरद, शिशिरः, हेमन्तः, वसन्तः चेति।
आचार्यः – सत्यम् उक्तम्। यदि आहारः ऋतोः अनुसारं न खाद्यते, तस्मादपि स्वास्थ्यस्य हानिः भवति।
यस्याशिताद्यादाहारात्, बलवर्णञ्च वर्धते।
तस्यतुसात्म्यं विदितम्, चेष्टाहारव्यपाश्रयम्॥ (चरकसंहिता सूत्रस्थान 6.3)
शिष्याः – न स्पष्टं भगवन्!
आचार्यः – श्रूयताम! यः पुरुषः आहारविषयकम् ऋतु-सात्म्यं जानाति, तथा आचरति, तस्य अशितं अर्थात् भुक्तं पीतं सर्वमपि बलवर्धकं, वर्णकान्तिजनकं, सुखवर्धकम् आयुवर्धकञ्च भवति। अतः ऋतोः अनुसारं भोक्तव्यम्।
शिष्याः – आचार्य! धन्यवादाः। अस्य विहगस्य स्वरेण नूनम् अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता।
आचार्यः – प्रियच्छात्राः! संक्षेपेण स्थास्थ्यस्य रक्षणाय चत्वारि सूत्राणि सर्वदैव स्मर्तव्यानि।

प्रातःकाले व्यायामः, नित्यं दन्तविशोधनम्।
स्वच्छजलेन सुस्नानं, बुभुक्षायाञ्च भोजनम्॥

अतएव अस्माकम् ऋषयः अपि प्रार्थनां कुर्वन्ति स्म –
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।

शब्दार्थाः – उक्तम्-कथितम् (कहा गया है)। यस्य-यस्य भोजकस्य (जिन भोजनकर्ता का)। चेष्टा-आहार-व्यपाश्रयम् = चेष्टा-आहार-विषयकम् (चेष्टा तथा आहार विषयक)। ऋतु-सात्म्यम्-ऋत्वनुसारं सेवनासेवनयोग्यानां खाद्यपेय पदार्थाणां ज्ञानम् (ऋतु के अनुसार सेवनीय तथा असेवनीय खाद्य तथा पेय पदार्थों का ज्ञान)। विदितम्-ज्ञातम् (ज्ञान होता है)। तस्य- तस्य जनस्य (उस व्यक्ति का)। अशिताद्यात्-अशितम्, खादितम्, पीतम् इति (खानपान से)। आहारात्-सेवनात् (सेवन से)। बलवर्णम्-बलं व वर्ण च (बल तथा वर्ण)। वर्धते-वृद्धिं गच्छति (बढ़ता है।)। बलवर्धकम्-बलवृद्धिकरं भोजनादिकम्। वर्णकान्तिजनकम्-वर्णस्य सौन्दर्यस्य उत्पादकम् (रूप-रंग निखारने वाला)। विहगस्य-पक्षिणः (पक्षी के)। सूत्राणि-नियमाः (नियम)। स्मर्तव्यानि-स्मरणीयानि (याद रखने चाहिए)। दन्त-विशोधनम्-दाँतों की भली प्रकार सफाई। निरामयाः-रोगरहिताः (रोगरहित)।

सरलार्थ –
शिष्य – हम जानते हैं। ऋतुएँ छह हैं-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त तथा वसन्त।
आचार्य – ठीक बताया है। यदि आहार का सेवन ऋतु के अनुसार न किया जाए तो उससे भी स्वास्थ्य की हानि होती है। जिसकी कार्य पद्धति (चेष्टाएँ), भोजन विषयक् ज्ञान और व्यवहारादि ऋतुओं के अनुसार होते हैं उसके खान-पान आदि से बल व कान्ति (सुन्दरता) आदि बढ़ते हैं।
एक शिष्य – भगवन्, स्पष्ट नहीं हुआ।
आचार्य – तो सुनिए, जो व्यक्ति ऋतुओं के अनुसार खाद्य तथा पेय पदार्थों के सेवनीय तथा असेवनीय ज्ञान
को जानता तथा उसके अनुसार आचरण करता है, उसका सब खाया-पिया बल को बढ़ाने वाला, शरीर के रंग में चमक पैदा करने वाला, सुख और आयु की वृद्धि करने वाला होता है। इसलिए
ऋतु के अनुसार भोजन करना चाहिए।
शिष्य – आचार्य जी, धन्यवाद। इस पक्षी के स्वर से निश्चय ही हमारे ज्ञान में वृद्धि हुई है।
आचार्य – प्रिय छात्रो, संक्षेप में स्वास्थ्य-रक्षा के चार नियम सदा याद रखने चाहिए –
(1) प्रात:कालीन व्यायाम, (2) प्रतिदिन दाँतों की भली प्रकार सफाई, (3) साफ जल से सुन्दर (भरपूर) स्नान तथा (4) भूख लगने पर भोजन।
इसीलिए हमारे ऋषि भी प्रार्थना करते थे-सब सुखी हों, सब निरोग हों।

टिप्पणी – ऋतुसत्म्यम् (ऋतु के अनुसार सेवनीय तथा असेवनीय पदार्थों का ज्ञान) –
1. हेमन्त में स्निग्ध, अम्ल, लवण रस, गोरस (दूध), गन्ने का रस, अरबी, तेल तथा नए चावल का सेवन।
2. शिशिर में कटु, तिक्त तथा वायुकारक व हल्के एवं शीतल अन्नपान का निषेध।
3. वसन्त में वमन कार्य करो। भारी, खट्टे, चिकने व मधुर पदार्थ तथा दिन में सोने का त्याग करें।
4. ग्रीष्म में ठंडे, शर्करायुक्त मट्ठा, जंगल के मृग, पक्षी, घी, दूध, धान आदि का सेवन।
5. वर्षा में पवन आदि कुपित होते हैं अत: सामान्य भोजन करना चाहिए।
6. शरद् ऋतु में मधुर, लघु (हल्के) ठंडे, तिक्त तथा पित्त का शमन करने वाले पदार्थों का सेवन।

व्यायाम – हल्का, सामर्थ्य के अनुसार इससे स्थिरता, दृढ़ता, कष्ट सहने की शक्ति, दोषों का नाश, पाचनशक्ति में वृद्धि होती है।
स्नान – पवित्र, वृत्ति के अनुसार, आयुवर्धक, पसीने व थकावट एवं मलों को नष्ट करने वाला, शरीर के बल को बढ़ाने वाला तथा ओज पैदा करने वाला होता है। उसका भोजन व खानपान बल तथा कान्ति को बढ़ाने वाला होता है जिसकी चेष्टाएँ तथा आहार-विहार ऋतु के साथ तालमेल करके होता है।

ख. अनुप्रयोगस्य-प्रश्नोत्तराणि

1. क. निम्नलिखितानां पदानां शुद्धम् उच्चारणं कुरुत (निम्नलिखित पदों का शुद्ध उच्चारण कीजिए) –
कोऽरुक्, ऋतुसात्म्यम्, प्रयुञ्जीत, गरिष्ठद्रव्याणि, पृष्टम्, बुभुक्षा, स्मर्तव्यानि।
ख. निम्नलिखितानां पदानां अनुलेखं कुरुत (निम्नलिखित पदों के अनुसार लेखनकार्य कीजिए) –
प्रयुञ्जीत, उद्दिष्टम्, ग्रीष्मः, अशिताद्यात्, गुरुलाघवे, अनुत्पत्तिकरम्।

2. पाठात् चित्वा अधोलिखितानां पदानां यथोचितं सन्धिं सन्धि विच्छेदं वा कुरुत –
(पाठ से चुनकर निम्नलिखित पदों में यथोचित सन्धि अथवा सन्धि विच्छेद कीजिए) –
(क) इतस्ततः = ………………………….. + …………………………..
(ख) उत्पत्तिर्न = ………………………….. + …………………………..
(ग) …………. = प्रिय + छात्राः
(घ) क आशयः = ………………………….. + …………………………..
(ङ) …………. = निर् + रोग
उत्तर:
(क) इतः + ततः।
(ख) उत्पत्तिः + न।
(ग) प्रियच्छात्राः।
(घ) कः + आशयः।
(ङ) नीरोगः।

3. अधोलिखितानां वाक्यानां रिक्तस्थानेषु कोष्ठकदत्तैः शब्दैः सह विभक्तिं प्रयुज्य कर्तपदानि पूरयत
(निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थानों से कोष्ठक से दिए गए शब्दों के साथ विभक्ति का प्रयोग कर कर्तृपद भरिए) –
(क) वृक्षस्थः (पक्षिन्) ………………………….. कोऽरुक् ! कोऽरुक् ! इति रटति स्म।
(ख) (लघुद्रव्य) ………………………….. अतिमात्रं सेवनेन हानि कुर्वन्ति।
(ग) (मितभुज) ……………………………. मात्रानुसारं भोजनं कुर्वन्ति।
(घ) (यत्) ………………………….. हितकर भोजनं खादति, स हितभुक् इति उच्यते।
(ङ) स्वास्थ्यरक्षायै (चतुर्) ………………………….. सूत्राणि महत्त्वपूर्णानि सन्ति।
उत्तर:
(क) पक्षी
(ख) लघुद्रव्याणि
(ग) मितभुजः
(घ) यः
(ङ) चत्वारि।

4. अधोलिखितानां वाक्यानां रिक्तस्थानेषु कोष्ठकदत्तैः धातुभिः उचितरूपं निर्माय क्रियापदानि पूरयत
(निम्नलिखित वाक्यों के रिक्त स्थानों से ‘कोष्ठक में’ दी गई धातुओं से उचित रूप बना कर क्रियापद भरिए) –
(क) किं यूयम् ऋतूणां नामानि (ज्ञा-लट) …………………………..
(ख) विहगः वृक्षस्योपरि (स्था-लङ्) …………………………..
(ग) स्वास्थ्यरक्षार्थं नरः ऋतोः अनुसारं (भुज्-विधिलिङ्) …………………………..
(घ) अद्य शिष्याः बहूनि फलानि (भक्ष्-लुट) …………………………..
उत्तर:
(क) जानीथ
(ख) अतिष्ठत्
(ग) भुञ्जीत
(घ) भक्षयिष्यन्ति।

5. पाठात् चित्वा विग्रहपदानां स्थाने समस्तपदानि, समस्तपदानां स्थाने च विग्रहान् लिखत (पाठ से चुनकर विग्रह पदों के स्थान पर समस्तपद, तथा समस्तपदों के स्थान पर विग्रहपदों को लिखिए) –
(क) बहूनि फलानि सन्ति यस्मिन् …………………………..
(ख) चकितशिष्याः …………………………..
(ग) वृक्षे स्थितः (तस्मिन्) …………………………..
(घ) न रुक् …………………………..
(च) यः हितं भुनक्ति …………………………..
(छ) मात्राम् अनतिक्रम्य …………………………..
उत्तर:
(क) बहुफले
(ख) चकिताः शिष्याः
(ग) वृक्षस्थिते
(घ) अरुक्
(च) हितभुक्
(छ) अतिमात्रम्।

6. कक्षा भागद्वये विभक्ता। एकः चरकवर्गः द्वितीयश्च सुश्रुतवर्गः। चरकवर्गः कर्तृवाच्ये सुश्रुतवर्गः च कर्मवाच्ये वदति। उभयोः वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं लिखत –
(कक्षा दो भागों में विभक्त है। एक चरकवर्ग है दूसरा सुश्रुत वर्ग। चरक वर्ग कर्तृवाच्य में बोलता है, सुश्रुतवर्ग कर्मवाच्य में। दोनों के वाक्यों में वाच्य परिवर्तन करके लिखिए) –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q6

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q6.1
उत्तर:
(क) शिष्यैः एकः विचित्रः शब्दः श्रुतः।
(ख) अद्य वयं बहूनि फलानि भक्षयिष्यामः।
(ग) स्वास्थ्यरक्षार्थ नरेण हितकरः आहारः सेव्येत।
(घ) किं यूयम् ऋतूनां संख्यां जानीथ?
(ङ) अपि भवद्भिः महर्षेः चरकस्य नाम श्रुतम्?
(च) अयं ध्वनिः कुतः आगच्छति?
(छ) सर्वैः सुखिभिः भूयताम्।
(ज) भवान् तु पक्षिणां वाचम् अवगच्छति।

7. निम्नलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्य स्थाने प्रयुक्तानि? पाठम् आधृत्य लिखत (निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित सर्वनाम पद किसके स्थान पर प्रयुक्त हुए हैं, पाठ के आधार पर लिखिए) –
(क) वृक्षे एकः विहगः अतिष्ठत् यः पुनः पुनः उच्चैः अरटत्। ………………………….. ।
(ख) जानीमः वयम् । ……………………..।
(ग) तेन लिखिता चरकसंहिता। ……………………..।
(घ) अस्य मूले उपविश्य सर्वं कथयामि। ……………………..।
(ङ) अस्य स्वरेण नूनम् अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता। ……………………..।
उत्तर:
(क) विहगः।
(ख) छात्राः।
(ग) महर्षिणा चरकेण।
(घ) वृक्षस्य।
(ङ) पक्षिणः।

8. प्रश्नान् उत्तरत (प्रश्नों के उत्तर दीजिए)
1. विहगः उच्चैः किं रटति स्म?
2. चरकसंहिता कस्य वेदस्य महान् ग्रन्थः?
3. हितकराः अपि पदार्थाः कथं भुक्ताः हानिकाराः भवन्ति?
4. ऋतवः कति सन्ति?
5. यः ऋतु-अनुसारं अश्नाति तस्य आयुः वर्धते वा क्षीयते वा?
6. व्यायामः कदा करणीयः?
7. कुत्र उपविष्टः विहगः उच्चैः रटति स्म?
उत्तर:
1. विहगः कोऽरुक्, कोऽरुक् इति उच्चैः रटति स्म।
2. चरकसंहिता आयुर्वेदस्य महान् ग्रन्थः।
3. हितकराः अपि पदार्थाः अतिमात्रम् भुक्ताः हानिकराः भवन्ति।
4. ऋतवः षट् सन्ति (ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, शिशिरः, हेमन्तः, वसन्तः चेति)।
5. यः ऋतु-अनुसारम् अश्नाति तस्य आयुः वर्धते।
6. व्यायामः प्रात:काले करणीयः।
7. वृक्षे उपविष्टः विहगः उच्चैः रटति स्म।

9. अधोलिखितेषु भावार्थयोः रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत (अधोलिखित भावार्थों के खाली स्थान भरिए) –
(क) तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्॥
उत्तर:
हितकरभोजनस्य वर्णनं कुर्वन् चरकः कथयति, येन …………….. विहारेण च स्वास्थ्यस्य ………….. भवेत्, न जातानां विकाराणाम् ………….. च न स्यात्, …………… सेवनीयम्। उत्तरम्- हितकरभोजनस्य वर्णनं कुर्वन् चरकः कथयति येन आहारेण विहारेण च स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवेत्, न जातानां विकाराणाम् उत्पत्तिः च न स्यात्, तत् सेवनीयम्।

(ख) प्रातःकाले व्यायामः, नित्यं दन्तविशोधनम्।
स्वच्छजलेन सुस्नानं, बुभुक्षायां च भोजनम्॥ अस्मिन् श्लोके स्वास्थ्यरक्षणार्थ चत्वारि …………… वर्णितानि सन्ति यथा यः प्रात:काले …………… नित्यं ……………., स्वच्छजलेन स्नान , ……………. एव भोजनं करोति, स एव स्वस्थ: नीरोगः च भवति।
उत्तर:
अस्मिन् श्लोके स्वास्थ्यरक्षणार्थ चत्वारि सूत्राणि वर्णितानि सन्ति यथा यः प्रात:काले व्यायाम, नित्यं करोति, स्वच्छजलेन स्नानं, बुभुक्षायाम् एव भोजनं करोति, स एव स्वस्थः नीरोगः च भवति।

10. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वये रिक्तस्थानपूर्तिः कार्या (निम्नलिखित श्लोकों के अन्वय में खाली स्थान भरिए) –
(क) अल्पादाने गुरूणां च, लघूनां चातिसेवने।
मात्राकारणमुद्दिष्टं, द्रव्याणां गुरुलाघवे॥
………………….. गुरुलाघवे, गुरूणां ……………. च, …………………… अतिसेवने च मात्रा (एव) …………….. उद्दिष्टम्।
उत्तर:
(क) द्रव्याणा, अल्पादाने, लघूनाम्, कारणम्।

(ख) तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्॥
येन ………………….. अनुवर्तते, यत् च ………………….. विकाराणाम् ………………….. (भवेत्), तत् च ………………….. प्रयुञ्जीत।
उत्तर:
स्वास्थ्यम्, अजातानां, अनुत्पत्तिकर, नित्यं।

(ग) तस्याशिताद्यादाहाराद्, बलवर्णञ्च वर्धते।
तस्यर्तुसात्म्यं विदितं, चेष्टाहारव्यपाश्रयम्॥
तस्य ………………….. व्यपाश्रयम् ………………….. विदितं, तस्य ………………….. आद्यात् आहारात् …………. च वर्धते।
उत्तर:
चेष्टाहार, ऋतुसात्म्यं अशित, बलवर्ण।

11. मञ्जूषायां प्रदत्तेभ्यः कथनेभ्यः स्वास्थ्यरक्षणार्थ ‘किं कर्तव्यं किं च न कर्तव्यम्’ इति पृथक् स्तम्भेषु लिखत
(मञ्जूषा में दिए गए कथनों से स्वास्थ्य रक्षा के लिए क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए पृथक्-पृथक् स्तम्भों में लिखिए)
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q11
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q11.1

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q11.2

ग. पाठ-विकासः

समानान्तरसूक्तयः
1. आहारविषये
आयुः सत्त्वबलारोग्य-सुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिराः हृद्याः, आहाराः सात्त्विकप्रियाः॥ (भगवद्गीता 17.8)
(आयु, शक्ति, बल, स्वास्थ्य, सूख तथा प्रीति बढ़ाने वाले, रसदार, चिकने, ठोस तथा रुचिकर पदार्थ सात्त्विक आहार होते हैं।) आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः, सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः। (छान्दोग्योपनिषद् 7/26/2)

2. मात्राविषये
भोजनं प्राणरक्षार्थ विद्यते नात्र संशयः।
अधिकं हानये तस्मात् युक्ताहारपरो भवेत्॥ (चरकसंहिता व्याख्या)
(भोजन प्राणरक्षा हेतु है, इसमें सन्देह नहीं, अधिक भोजन हानिकारक है अतः यथायोग्य आहार सेवन करें।)
अनारोग्यमनायुष्यमस्वयं चातिभोजनम्।
अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत्॥ (मनुस्मृति: 2/57)
(अतिभोजन न स्वास्थ्य, न आयु तथा न स्वर्ग, न पुण्य को देता है बल्कि लोगों से शत्रुता कराता है-अतः उसका त्याग करें)।
‘मिताहारो नरः सोढुं, शक्तः कष्ट-शतं सुखम्।
अनभ्यस्तो हि कष्टानामध्यशनो विपद्यते॥ (सुमनोवाटिका)
(कम खाने वाला नर सौ कष्टों को भी सहन कर लेता है। अधिक खाने वाला कष्टों को न सहन करता हुआ विपत्ति में ग्रस्त रहता है।)
भोजनं परमेशस्य, भक्तये जीवनाय च।
त्वं तु मूर्ख विजानासि, भोजनार्थ हि जीवनम्॥ (सुमनोवाटिका)
(भोजन परमेश्वर की भक्ति के लिए तथा जीवन के लिए होता है। हे मूर्ख, तुम तो यही ठीक समझते हो कि जीवन भोजन के लिए है।)

घ. पठितांश-अवबोधनम् |

1. अधोलिखितं संवादं (नाट्यांशं) पठित्वा प्रश्नान् उत्तरत।
आचार्यः – शिष्याः! शृणुत! एषः विहगः वदति ‘कोऽरुक् कोऽरुक्’ इति! अर्थात् कः अरुक्? कस्तावत् स्वस्थ: नीरोग: वा?
शिष्यः – आचार्य। तदा कः स्वस्थः?
आचार्यः – यः हितभुक्, मितभुक, ऋतुभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः।
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) ‘कोऽरुक् कोऽरुक्’ इति कः वदति?
(ii) आचार्य: केन संवादं करोति?
(iii) ‘कः स्वस्थः’ इति कः पृच्छति?
(iv) विहगः किं वदति?
उत्तर:
(i) विहगः
(ii) शिष्येन
(iii) शिष्यः
(iv) कोऽरुक्।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
स्वस्थः कः?
उत्तर:
यः हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक् च भवति स एव स्वस्थः।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) ‘कोऽरुक्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(क) कः + अरुक्
(ख) को + अरुक्
(ग) कः + रुक्
(घ) को + रुक्
उत्तर:
(क) कः + अरुक्

(ii) ‘नाट्यांशे ‘पक्षी’ पदस्य कः पर्यायः वर्तते?
(क) विहगः
(ख) खगः
(ग) पतंगः
(घ) पक्षगः
उत्तर:
(क) विहगः

(iii) ‘वदति’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) एषः
(ख) कोऽरुक
(ग) विहगः
(घ) शिष्याः
उत्तर:
(ग) विहगः

(iv) ‘अस्वस्थः’ पदस्य कः विपर्ययः अत्र लिखितः?
(क) स्वस्थः
(ख) रुक्
(ग) को
(घ) नीरोगः
उत्तर:
((क) स्वस्थः

2. शिष्याः – आचार्य! अस्य कः आशयः?
आचार्यः – शृणु! गरिष्ठद्रव्याणि अपि अल्पमात्रया सेवनेन सुपाच्यानि भवन्ति, लघुद्रव्याणि च अतिमात्रं सेवनेन हानिकराणि जायन्ते। अतः मात्रानुसारम् एव खादितव्यम्।
शिष्याः – अथ तावत् ऋतुभुक् इति कः भवति?
आचार्यः – साधु पृष्टम्। कति ऋतवः, जानीथ?

I. एकपदेन उत्तरत
(i) अल्पमात्रया सेवनेन कीदृशम् अपि द्रव्यं सुपाच्यं भवति?
(ii) गरिष्ठद्रव्याणि कथं सेवनेन सुपाच्यानि भवन्ति?
(iii) कियत् खादितव्यम्?
(iv) अतिमात्र सेवनेन किं हानिकरम्?
उत्तर:
(i) गरिष्ठद्रव्यम्
(ii) अल्पमात्रया
(iii) मात्रानुसारम्
(ii) लघुद्रव्यम्।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
आचार्यः शिष्यान् किं पृच्छति?
उत्तर:
आचार्यः शिष्यान् पृच्छति-‘कति ऋतवः’? इति।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) ‘भवति’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) इति
(ख) ऋतभुक्
(ग) तावत्
(घ) कः
उत्तर:
(घ) कः

(ii) अन्तिमे वाक्ये अव्यय पदं किम् वर्तते?
(क) पृष्टम्
(ख) कति
(ग) ऋतवः
(घ) जानीथ
उत्तर:
(ख) कति

(iii) ‘लाभकराणि’ इति पदस्य विपर्ययपदं किम्?
(क) हानिकराणि
(ख) हानि
(ग) मात्रानुसारम्
(घ) सुखकारी
उत्तर:
(क) हानिकराणि

(iv) अतः मात्रानुसारम् एव खादितव्यम्। अत्र क्रियापदं किम्? (क) एव
(ख) खादितव्यम्
(ग) अतः
(घ) मात्रानुसारम्:
उत्तर:
(ख) खादितव्यम्

3. आचार्य – श्रूयताम्! यः पुरुषः आहारविषयकम् ऋतुसात्म्यं जानाति तथा आचरति तस्य अशितं अर्थात् भुक्तं पीतं सर्वमपि बलवर्धकं, वर्णकान्तिजनकं, सुखवर्धकम्, आयुवर्धकञ्च भवति अतः ऋतोः अनुसारं भोक्तव्यम्।
शिष्यः – आचार्य! धन्यवादाः। अस्य विहगस्य स्वरेण नूनम् अस्माकम् ज्ञाने वृद्धिः जाता।
आचार्यः – प्रियच्छात्राः! संक्षेपेण स्वास्थ्य-रक्षणाय चत्वारि सूत्राणि सर्वदैव स्मर्तव्यानि।
प्रातःकाले व्यायामः नित्यं दन्तविशोधनम्।
स्वच्छजलेन सुस्नानं, बुभुक्षायाञ्च भोजनम्॥

I. एकपदेन उत्तरत
(i) ‘भुक्तं पीतं सर्व’ इति केन पदेन कथ्यते?
(ii) कस्य अनुसारं भोक्तव्यम्?
(iii) कस्य स्वरेण शिष्याणां ज्ञानवृद्धिः जाता?
(iv) स्वास्थ्यस्य कति सूत्राणि नित्यं स्मर्तव्यानि?
उत्तर:
(i) अशितम्
(ii) ऋतोः
(iii) विहगस्य
(iv) चत्वारि

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
कस्य अशितम् आयुवर्धकं भवति?
उत्तर:
यः पुरुषः आहारविषयकम् ऋतु-सात्म्यं जानाति तथा आचरति तस्य अशितम् आयुवर्धकम् भवति।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘आहारविषयकम्’ इति पदस्य कः विशेण्यः अस्ति?
(क) ऋतुसात्म्यम्
(ख) अशितम्
(ग) बलवर्धकम्
(घ) भुक्तम्
उत्तर:
(क) ऋतुसात्म्यम्

(ii) ‘अस्य विहगस्य स्वरेण अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता’ अस्मिन् वाक्ये किं कर्तृपदम् अस्ति?
(क) ज्ञाने
(ख) वृद्धिः जाता
(ग) अस्य
(घ) स्वरेण
उत्तर:
(ख) वृद्धिः जाता

(iii) ‘ज्ञानवृद्धिः’ अस्य स्थाने पाठे किं पदद्वयं प्रयुक्तम् अस्ति?
(क) ज्ञानस्य वृद्धिः
(ख) ज्ञानाय वृद्धिः
(ग) ज्ञाने वृद्धिः
(घ) ज्ञानम् वृद्धिः
उत्तर:
(ग) ज्ञाने वृद्धिः

(iv) ‘चत्वारि सूत्राणि सर्वदैव स्मर्तव्यानि’ अत्र क्रियापदं किम्?
(क) स्मर्तव्यानि
(ख) सर्वदैव
(ग) सूत्राणि
(घ) चत्वारि
उत्तर:
(क) स्मर्तव्यानि।

4. शिष्य – आचार्य! ‘हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक्’ इति एतेषां कः आशयः?
आचार्यः – अपि भवद्भिः महर्षेः चरकस्य नाम श्रुतम्?
सर्वे शिष्या-आम्। जानीमः। तेन एव लिखिता ‘चरकसंहिता’ इति आयुर्वेदस्य महान् ग्रन्थः।
आचार्यः – शोभनम्। एतेषाम् आशयः तु तत्रैव वर्तते! अधुना शृणुत-हितभुक् कः? यः हितकरं भुङ्क्ते। यथा हि –
I. एकपदेन उत्तरत
(i) आयुर्वेदस्य ग्रन्थः कोऽस्ति?
(ii) चरक संहिता कीदृशो ग्रन्थः वर्तते?
(iii) चरक संहिता केन रचिता?
(iv) शिष्यस्य प्रश्नस्य उत्तरं को यच्छति?
उत्तर:
(i) चरकसंहिता
(ii) महान्
(iii) महर्षि-चरकेण
(iv) आचार्यः

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
हितभुक् को भवति?
उत्तर:
यः हितकरं भुङ्क्ते सः एव हितभुक् भवति।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘नाट्यांशे ‘श्रुतम्’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) अपि
(ख) महर्षेः
(ग) भवद्भिः
(घ) नाम
उत्तर:
(ग) भवद्भिः

(ii) ‘महान् ग्रन्थः’ अनयोः पदयोः विशेष्यः कः?
(क) ग्रन्थ
(ख) ग्रन्थः
(ग) महान्
(घ) महत्
उत्तर:
(ख) ग्रन्थः

(iii) ‘यः हितकरं भुक्ते’। अत्र क्रियापदं किम्?
(क) भुङ्क्ते
(ख) यः
(ग) हितकरः
(घ) हितकरम्
उत्तर:
(क) भुङ्क्ते

(iv) ‘तेन एव लिखिता’। अत्र ‘तेन’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) खगाय
(ख) विहगाय
(ग) महर्षिणा
(घ) महर्षि चरकाय
उत्तर:
(घ) महर्षि चरकाय

5. अर्थात् यस्य आहारस्य सेवनेन स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवेत्, न जातानाम् अनुत्पन्नानां विकाराणाम् उत्पत्तिः न भवेत्, स एव आहारः सेवनीयः।
शिष्याः – आचार्य! किं फलसेवनं “हितकरम्”?
आचार्यः – आम्! फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि एव।

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कः सेवनीयः एव?
(ii) फलानि कीदृशाणि भवन्ति?
(iii) फलसेवनं कीदृशं भवति?
(iv) कस्य सेवनेन स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवति?
उत्तर:
(i) आहारः
(ii) स्वास्थ्य रक्षकाणि
(iii) हितकरम्
(iv) आहारस्य

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
कीदृशः आहारः सेवनीयः?
उत्तर:
यस्य आहारस्य सेवनेन स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवेत्, न जातानाम् अनुत्पन्नानाम् विकारणाम् उत्पत्तिः न भवेत्, स एव आहारः सेवनीयः।

III. निर्देशानुसारैण उत्तरत –
(i) ‘स एव आहारः सेवनीयः’। अत्र क्रियापदं किम्?
(क) सेवनीयः
(ख) एव
(ग) स
(घ) आहारः
उत्तर:
(i) (क) सेवनीयः

(ii) ‘अनुत्पन्नानां विकाराणाम्’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
(क) विकाराः
(ख) विकाराणाम्
(ग) अनुत्पन्नानाम्
(घ) अनुत्पन्नाः
उत्तर:
(ग) अनुत्पन्नानाम्

(iii) ‘लाभकरम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः अत्र लिखित:?
(क) सुखकरम्
(ख) हितकरम्
(ग) कष्टकरम्
(घ) दु:खकरम्
उत्तर:
(ख) हितकरम्
(iv) ‘भक्षकाणि’ इत्यस्य पदस्य विपर्ययपदं चिनुत।
(क) उत्पत्तिः
(ख) हितकराणि
(ग) खादनीयानि
(घ) रक्षकाणि
उत्तर:
(घ) रक्षकाणि

6. एकः शिष्यः -आचार्य! इदं वनं तु बहुफलम्। बुभुक्षा अपि वर्तते। अद्य तु वयं बहूनि फलानि भक्षयिष्यामः।
आचार्यः – मा मैवम्। हितकराः अपि पदार्थाः यदि अतिमात्रं भुज्यन्ते, तदा हानिकराः भवन्ति। पदार्थानां लघुता गुरुता च मात्रायां निर्भरा। श्रूयताम्।
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) वनं कीदृशम् वर्तते?
(ii) पदार्थानां लघुता गुरुता च कस्यां निर्भरा अस्ति?
(iii) अद्य शिष्याः कति फलानि भक्षयिष्यन्ति?
(iv) शिष्यं किं वर्तते?
उत्तर:
(i) बहुफलम्
(ii) मात्रायाम्
(iii) बहूनि
(iv) बुभुक्षा

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
पदार्थाः कदा हानिकराः भवन्ति?
उत्तर:
यदि हितकराः अपि पदार्थाः अतिमात्रं भुज्यन्ते तदा पदार्थाः हानिकराः भवन्ति।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) नाट्यांशे ‘वनम्’ इत्यस्य विशेष्यस्य विशेषणं किम्?
(क) इदम्
(ख) तु
(ग) बहुफलम्
(घ) बहु
उत्तर:
(ग) बहुफलम्

(ii) नाट्यांशे ‘वर्तते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) लघुता
(ख) बुभुक्षा
(ग) अपि
(घ) गुरुता
उत्तर:
(ख) बुभुक्षा

(iii) नाट्यांशे ‘लाभकराः’ इति पदस्य कः विपर्ययः लिखित:?
(क) हानिकराः
(ख) दु:खकराः
(ग) सुखकराः
(घ) ज्ञानकराः
उत्तर:
(क) हानिकराः

(iv) नाट्यांशे ‘अद्य तु वयं बहूनि फलानि भक्षयिष्यामः’। अत्र क्रियापदं किम्?
(क) फलानि
(ख) अद्य
(ग) वयम्
(घ) भक्षयिष्यामः
उत्तर:
(घ) भक्षयिष्यामः

शिष्याः – जानीमः वयम्। ऋतवः षट् –
ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, शिशिरः, हेमन्तः, वसन्तः चेति।
आचार्यः – सत्यम् उक्तम्। यदि आहारः ऋतोः अनुसारं न खाद्यते, तस्मादपि स्वास्थ्यस्य हानिः भवति।
I. एकपदेन उत्तरत –
(i) ऋतवः कति भवन्ति?
(ii) अन्तिमः ऋतुः कः?
(iii) ऋतोः अनुसारं किं खादितव्यम्?
(iv) आचार्येण किम् उक्तम्?
उत्तर:
(i) षट्
(ii) वसन्तः
(iii) आहारः
(iv) सत्यम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
कस्मात् स्वास्थ्यस्य हानिः भवति?
उत्तर:
यदि आहारः ऋतोः अनुसारं न खाद्यते, तस्मादपि स्वास्थ्यस्य हानिः भवति।

III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) ‘भवति’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) तस्मात्
(ख) तस्मादपि
(ग) हानिः
(घ) स्वास्थ्यस्य
उत्तर:
(ग) हानिः

(ii) ‘ऋतवः’ पदस्य विशेषणम् अस्ति –
(क) षट्
(ख) वयम्
(ग) जानीमः
(घ) चेति
उत्तर:
(क) षट्

(iii) नाट्यांशे ‘वयम्’ सर्वनाम पदं केभ्यः प्रयुक्तम्?
(क) आचार्याय
(ख) जनाय
(ग) शिष्याय
(घ) शिष्येभ्यः
उत्तर:
(घ) शिष्येभ्यः

(iv) नाट्यांशे ‘लाभः’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः लिखित:?
(क) हानिः
(ख) अलाभः
(ग) लाभकरः
(घ) हानिकरः
उत्तर:
(क) हानिः

2. निम्नलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत –
एकं वनम्। केचन शिष्या: गुरुः च वने विचरन्ति स्म। सहसा तत्र विचित्रः शब्दः श्रुतः-“कोऽरुक्, कोऽरुक्”, इति। चकिताः शिष्याः इतस्ततः पश्यन्ति। ‘अये! विचित्रः खलु अयं ध्वनिः कुतः आयाति? इति चिन्तयन्ति। तदैव एकस्य शिष्यस्य दृष्टिः वृक्षस्थे विहगे अपतत्। सः पुनः पुनः रटति स्म ‘कोऽरुक् कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति। विस्मितः शिष्यः आचार्य पृच्छति-गुरुवर! अयं किं वदति? आचार्यः
अकथयत्-शोभनम् पृष्टम् कथयिष्यामि। अस्य वृक्षस्य अधः उपविशन्तु! सर्व कथयामि। (सर्वे उपविशन्ति)

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) केचन शिष्याः कुत्र विचरन्ति स्म?
(ii) विहगः किं रटति स्म?
(iii) सर्वैः कस्य अधः उपविशन्ति?
(iv) सर्वैः कीदृशः शब्दः श्रुतः?
उत्तर:
(i) वने
(ii) कोऽरुक्
(iii) वृक्षस्य
(iv) विचित्रः

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
चकिताः शिष्याः किं चिन्तयन्ति?
उत्तर:
चकिताः शिष्याः चिन्तयन्ति-‘अये! विचित्रः खलु अयं ध्वनिः कुतः आयाति?’

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –
(i) ‘चकिताः शिष्याः इतस्ततः पश्यन्ति।’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
(क) चकिताः
(ख) इतस्ततः
(ग) शिष्याः
(घ) पश्यन्ति
उत्तर:
(ग) शिष्याः

(ii) ‘विचित्रः शब्दः’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?
(क) विचित्रः
(ख) शब्दः
(ग) विचित्र
(घ) शब्द
उत्तर:
(क) विचित्रः

(iii) अनुच्छेदे ‘गुरवः’ इति पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
(क) चकिताः
(ख) शिष्याः
(ग) अध्यापकाः
(घ) केचन
उत्तर:
(ख) शिष्याः

(iv) ‘स पुनः पुनः रटति स्म।’ अत्र ‘स’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) शिष्याय
(ख) गुरवे
(ग) आचार्याय
(घ) विहगाय
उत्तर:
(घ) विहगाय

3. निम्न श्लोकं पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्॥

I. एकपदेन उत्तरत
(i) भोजनं कदा प्रयुञ्जीत?
(ii) विकाराः कीदृशाः भवन्ति?
(iii) भोजनेन केषाम् उत्पत्तिः भवति?
(iv) उत्तमं भोजनं विकाराणां हेतुः कीदृशं भवति?
उत्तर:
(i) नित्यम्
(ii) अजाताः
(iii) विकाराणाम्
(iv) अनुत्पत्तिकरम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
कीदृशं भोजनं नित्यं प्रयुञ्जीत?
उत्तर:
येन स्वास्थ्यम् अनुवर्तते तादृशं भोजनं नित्यं प्रयुञ्जीत।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत’। अत्र क्रिया पदं किं वर्तते?
(क) तच्च
(ख) प्रयुञ्जीत
(ग) नित्यम्
(घ) तत्
उत्तर:
(ख) प्रयुञ्जीत

(ii) श्लोके ‘अनुवर्तते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) येन
(ख) स्वास्थ्यम्
(ग) येना
(घ) स्वास्थ्यः
उत्तर:
(ख) स्वास्थ्यम्

(iii) श्लोके ‘विकारणाम्’ विशेष्यस्य विशेषणपदं किं वर्तते?
(क) अजातः
(ख) अनुत्पत्तिकरम्
(ग) यत्
(घ) अजातानाम्
उत्तर:
(घ) अजातानाम्

(iv) ‘उत्त्पत्तिकरम्’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः श्लोके लिखितः?
(क) अनुत्पत्तिकरम्
(ख) उत्पत्तिः
(ग) अनुत्पतिः
(घ) अनुत्पत्तिकरः
उत्तर:
(क) अनुत्पत्तिकरम्

2. गुरुता च मात्रायां निर्भरा। श्रूयताम् –
अल्पादाने गुरूणां च लघूनां चातिसेवने।
मात्रा कारणमुद्दिष्ट, द्रव्याणां गुरुलाघवे॥
I. एकपदेन उत्तरत
(i) केषां पदार्थाणाम् अल्पादानं कर्तव्यम्?
(ii) केषाम् अतिसेवनं न कुर्यात्?
(iii) पदार्थाः कतिधाः भवन्ति?
(iv) पदार्थाणां सेवने किं कारणम् उद्दिष्टम्
उत्तर:
(i) गुरूणाम्
(ii) लघूनाम्
(iii) द्विधाः
(iv) मात्रा

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
कस्मिन् मात्रा एव कारणम् उद्दिष्टम् वर्तते?
उत्तर:
द्रव्याणां गुरूलधूवे-गुरूणाम् अल्पादाने लघूनां च अतिसेवने मात्रा एव कारणम् उद्दिष्टम् वर्तते।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘लघूनाम्’ इत्यस्य पदस्य क: विपर्ययः श्लोके लिखित:? .
(क) साधूनाम्
(ख) दीर्घाणाम्
(ग) जनानाम्:
(घ) गुरूणाम्
उत्तर:
(घ) गुरूणाम्

(ii) ‘न्यून’ पदस्य कः पर्यायः अत्र आगतः?
(क) अल्प
(ख) अल्पा
(ग) दाने
(घ) अल्पादाने
उत्तर:
(क) अल्प

(iii) श्लोके ‘उद्दिष्टम्’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) एव
(ख) कारणम्
(ग) मात्रा
(घ) मात्रः
उत्तर:
(ग) मात्रा

(iv) श्लोके ‘द्रव्याणाम्’ इति विशेष्यपदस्य किं विशेषणं लिखितम्?
(क) गुरूणाम्
(ख) अल्पादाने
(ग) अतिसेवने
(घ) उद्दिष्टम्
उत्तर:
(क) गुरूणाम्

3. यस्याशिताद्यादाहारात्, बलवर्णञ्च वर्धते।
तस्यर्तुसात्म्यं विदितम्, चेष्टाहारव्यपाश्रयम्॥ (चरकसंहिता सूत्रस्थान 6.3)

I. एकपदेन उत्तरत
(i) आहारात् किं वर्धते?
(ii) कस्य ऋतुसात्म्यं विदितम्?
(iii) कस्य व्यपाश्रयं भवेत्?
(iv) आहारस्य व्यपाश्रयं कस्य सात्म्यं विदितं वर्तते?
उत्तर:
(i) बलवर्णम्
(ii) चेष्टा-आहारव्यपाश्रयस्य
(iii) आहारस्य
(iv) ऋतोः

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
कथं जनानाम् बलवर्णञ्च वर्धते?
उत्तर:
चेष्टा-आहार-व्यपाश्रयेण ऋतु-सात्म्येन च आशित-आहारात् जनानां बलवर्णञ्च वर्धते।

III. निर्देशानुसार उत्तरत
(i) श्लोके ‘वर्धते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(क) विदितम्
(ख) बलवर्णञ्च
(ग) बलम्
(घ) वर्णम्
उत्तर:
(ख) बलवर्णञ्च

(ii) ‘भोजनात्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः श्लोके आगत:?
(क) आहारात्
(ख) आद्यात्
(ग) अशिताद्यात्
(घ) अन्नात्
उत्तर:
(क) आहारात्

(iii) ‘यस्याशिताद्याहारात्’ अस्मिन् ‘यस्य’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(क) भोजनाय
(ख) भुक्तजनाय
(ग) बलाय
(घ) वर्णाय
उत्तर:
(ख) भुक्तजनाय

(iv) ‘अशिताद्यात् आहारात्’ इत्यनयोः पदयोः विशेष्यपदं किम्?
(क) अशित
(ख) आद्यात्
(ग) आहारात्
(घ) अशिताद्यात्
उत्तर:
(ग) आहारात्

4. प्रातःकाले व्यायामः, नित्यं दन्तविशोधनम्।
स्वच्छजलेन सुस्नानं, बुभुक्षायाञ्च भोजनम्॥
I. एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायामः कदा करणीयः?
(ii) नित्यं किं कर्तव्यम्?
(iii) सुस्नानं केन भवति?
(iv) दन्तविशोधनम् कदा करणीयम्?
उत्तर:
(i) प्रात:काले
(ii) दन्तविशोधनम्
(iii) स्वच्छजलेन
(iv) नित्यम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
भोजनं कदा लाभप्रदं भवति?
उत्तर:
भोजनं बुभुक्षायाम् एव लाभप्रदं भवति।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘सायम्’ इति पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
(क) प्रातः
(ख) प्रभाते
(ग) काले
(घ) मध्याह्ने
उत्तर:
(क) प्रातः

(ii) ‘दन्तधावनम्’ इत्यस्य पदस्य कः पर्यायः श्लोके प्रयुक्तः अस्ति?
(क) विशोधनम्
(ख) दन्तशोधनम्
(ग) दन्तविशोधनम्
(घ) दन्तुलम्
उत्तर:
(ख) दन्तविशोधनम्

(iii) बुभुक्षायाञ्च भोजनम्। अत्र कः अव्ययः वर्तते?
(क) च
(ख) बुभुक्षा
(ग) भोजनम्
(घ) बुभुक्षायाम्
उत्तर:
(क) च

(iv) स्वास्थ्यस्य रक्षणाय कति सूत्राणि स्मर्तव्यानि?
(क) त्रीणि
(ख) द्वि
(ग) षट
(घ) चत्वारि
उत्तर:
(घ) चत्वारि

4. I. इदं वाक्यं कः कम् कथयति
1. गुरुवर! अयं किं वदति?
2. एषः विहगः वदति ‘कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति।
3. यः हितभुक्, मितभुक् ऋतभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः।
4. तेन एव ‘चरक संहिता’ इति महान् ग्रन्थः लिखितः।
5. यः हितकरं भुक्ते सः हितकरः।
6. फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि एव।
7. अद्य वयं तु बहूनि फलानि भक्षयिष्यामः।
8. गरिष्ठ द्रव्याणि अपि अल्पमात्रया सेवनेन सुपाच्यानि भवन्ति।
9. अस्य विहगस्य स्वरेण नूनम् अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q4

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q4.1

II. निम्न पतेः सन्दर्भ ग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी लिखत
(i) एषः विहगः वदति ‘कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति।
(ii) यः हितभुक् मित्भुक् ऋतुभुक् च भवति स सर्वदा स्वस्थः।
(iii) तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
(iv) फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि एव।
(v) पदार्थानां लघुता गुरुता च मात्रायां निर्भरा।
(vi) गरिष्ठद्रव्याणि अपि अल्पमात्रया सेवनेन सुपाच्यानि भवन्ति।
(vii) सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q4.2

5. निम्नलिखितं वाक्यं श्लोकं वा पठित्वा तस्य भावम् मञ्जूषायाः समुचितैः पदैः संपूरयत –
I. यः हितभुक्, मितभुक् ऋतुभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः।
अस्य भावोऽस्ति- यः जना सदैव (i) …………. भोजनं खादति, सीमित मात्रायां अथवा (ii) ………… भोजनं करोति ऋतूणाम् अनुकूलं (iii) ………….. करोति, कदापि ऋतूणां विपरीतं किञ्चिदपि न
(iv) …………….. स जनः स्वस्थजीवनं जीवति।
मञ्जूषा- पथ्यम्, हितकर, खादति, मितम् |
उत्तर:
(i) हितकरं
(ii) मितम्
(iii) हितकरं
(iv) खादति।

II. अल्पादाने गुरूणां च लघूनां चातिसेवने।
मात्रा कारणमुद्दिष्टं, द्रव्याणां गुरुलघवे॥
अर्थात्- सदैव पदार्थानां सेवनं (i) ………… एव कर्तव्यम्। यत गुरूणां पदार्थानाम् अपि (ii) …………. लाभकरं भवति परं लघूनां सुपाच्यानाम् च पदार्थानां अतीव सेवनं (iii) ………….. वर्तते अतः द्रव्याणां लघवे गुरवे वा सदैव तेषाम् (iv) ………….. एवं प्रमुखं कारणं वर्तते। अनेन सदैव वस्तूनां सेवनं विवेकेन सह एव कर्तव्यम्।
मञ्जूषा- मात्रा, अल्पसेवनं, हानिकर, विवेकेन
उत्तर:
(i) विवेकेन
(ii) अल्पसेवनं
(iii) हानिकरं
(iv) मात्रा।

III. यस्यशिताद्यादाहारात्, बलवर्णञ्च वर्धते।
तस्यर्तुसात्म्यं विदितम्, चेष्टाहारव्यपाश्रयम्॥
अस्य भावो वर्तते यत् यस्य मनुष्ययस्य (i) ………….. चेष्टाः भोजनादि विषयकं (ii) …………. व्यवहारादयः (iii) …………. अनुकूलं भवन्ति। तस्य शरीरस्य बलम् वर्णम् च (iv) ………….. वर्धन्ते। अतः जनैः स्व कार्यणि, चेष्टाः, भोजनादयः ऋतूणाम् अनुसारमेव कर्तव्यम्।
मञ्जूषा- ऋतूणाम्, कार्यपद्धतिः, भोजनादिभ्यः, ज्ञानम् |
उत्तर:
(i) कार्यपद्धतिः
(ii) ज्ञानम्
(iii) ऋतूणाम्
(iv) भोजनादिभ्यः

IV. सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। अर्थात्
प्राचीन काले अस्माकं (i) ………….. सदैव ईश-प्रार्थनां कुर्वन्ति स्म-प्रभो! अस्मिन् (ii) ………….. सर्वे जनाः सदा सुखयुक्ताः (iii) …………. एवमेव सर्वे जनाः सदैव (iv) ………….. भवेयुः। कश्चिदपि कदापि दुःखयुक्तः रुग्णः च न भवेत्।
मञ्जूषा- | भवेयुः, स्वस्थाः, ऋषयः, संसारे |
उत्तर:
(i) ऋषयः
(ii) संसारे
(iii) भवेयुः
(iv) स्वस्थाः

6. निम्नलिखितं श्लोकं पठित्वा तस्य अन्वयं रिक्त स्थानेषु पूर्यताम् –

1. तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत, स्वास्थ्यं येनानुवर्तते।
अजातानां विकाराणा मनुत्पत्तिकरं च यत्॥
अन्वयः
येन (i) ……………… अनुवर्तते यत् च (ii) ……………..विकारणाम् (iii) …………….. तत् च (iv) …………….. प्रयुञ्जीत।
उत्तर:
(i) स्वास्थ्यम्
(ii) अजातानाम्
(iii) अनुत्पत्तिकरं
(iv) नित्यम्।

2. अल्पादाने गुरूणां च लघूनां चातिसेवने।
मात्रा कारणमुििदष्टं, द्रव्याणां गुरुलघवे॥
अन्वयः
द्रव्याणां (i) …………….. गुरूणाम् अल्पादाने (ii) ………………… च (iii) ………….. मात्रा एवं (iv) …………….. उद्दिष्टम्।
उत्तर:
(i) गुरुलघवे
(ii) लघूनाम्
(iii) अतिसेवने
(iv) कारणम्।

3. यस्याशिताद्यादाहारात्, बलवर्णञ्च वर्धते।
तस्यतु सात्म्यं विदितम्, चेष्टाहार व्यपाश्रयम्॥
अन्वयः
यस्य चेष्टा (i) …………….. व्यपाश्रयम् ऋतु (ii) ………. विदितम् तस्य अशित (iii) ………… आहारात् (iv)…….. च वर्धते।
उत्तर:
(i) आहार
(ii) सात्म्य म्
(iii) आद्यात्
(iv) बलवर्णम्

4. प्रातःकाले व्यायामः, नित्यं दन्तविशोधनम्।
स्वच्छजलेन सुस्नानं, बुभुक्षायाञ्च भोजनम्॥
अन्वयः
प्रात:काले (i) …………… नित्यं दन्त (ii) ……………. स्वच्छजलेन (iii) ………….. (iv)………….. च भोजनम् (हितकरं भवति)।
उत्तर:
(i) व्यायामः
(ii) विशोधनम्
(iii) सुस्नानं
(iv) बुभुक्षायाम्

7. निम्नवाक्यानि पठित्वा तानि कथायाः अनुसारेण क्रमबद्धानि लिखत –

1. (i) चकिताः शिष्याः इतस्ततः पश्यन्ति।
(ii) आचार्य! तदा कः स्वस्थः?
(iii) शिष्याः! यः हितभुक्, मितभुक् ऋतुभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः।
(iv) विस्मितः शिष्यः आचार्य पृच्छति-गुरुवर! अयं किं वदति? ।
(v) सहसा तत्र विचित्रः शब्दः श्रुतः- “कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक्” इति।
(vi) तदैव एकस्य शिष्यस्य दृष्टिः वृक्षस्थे विहगे अपतत्।
(vii) केचन शिष्याः गुरुः च वने विचरन्ति स्म।
(viii) सः पुनः पुनः रटति स्म-‘कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति।

2. (i) आम्। जानीमः तेन भगवता एव आयुर्वेदस्य महान् ग्रन्थः चरकसंहिता लिखिता।
(ii) आम्। फलानि स्वास्थ्यरक्षकाणि एव।
(iii) शोभनम्। एतेषाम् आशयः तु तत्रैव वर्तते! अधुना शृणुत-हितभुक् कः? यः हितकरं भुङ्क्ते।
(iv) अपि भवद्भिः महर्षेः चरकस्य नाम श्रुतम्?
(v) आचार्य! ‘हितभुक्, मितभुक्, ऋतुभुक्’ इति एतेषां कः आशयः?
(vi) यस्य आहारस्य सेवनेन स्वास्थ्यस्य रक्षणं भवति।
(vii) आचार्य! किं फलसेवनं हितकरं भवति?
(viii) सः आहारः एव सेवनीयः, स एव हितभुक् भवति।

3. (i) यदि आहारः ऋतोः अनुसारं न खाद्यते तस्मात् अपि स्वास्थ्यस्य हानिः भवति।
(ii) आचार्य! धन्यवादाः। अस्य विहगस्य स्वरेण नूनम् अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता।
(iii) वयं जानीमः। ऋतवः षट् भवन्ति।
(iv) अथ तावत् ‘ऋतुभुक्’ इति कः भवति?
(v) प्रियच्छात्रा! संक्षेपेण स्वास्थ्यस्य रक्षणाय चत्वारि सूत्राणि सर्वदा स्मरणीयानि।
(vi) यः पुरुषः आहार विषयकं ऋतु-सात्म्यं जानाति तस्य बलं वर्णकान्तिः च वर्धेते।
(vii) ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, हेमन्तः शिशिरः वसन्तः च इति।
(viii) अतः ऋतोः अनुसारं भोक्तव्यम्।।

4. 1. सर्वेभवन्तु सुखिनः आदि प्रार्थनां अस्माकं ऋषयः कुर्वन्ति स्म।
2. शिष्याः! शृणुत। एषः विहगः वदति-‘कोऽरुक्, कोऽरुक्, कोऽरुक्’ इति।
3. मा, मा एवम्। हितकराः अपि पदार्थाः यदि अतिमात्रं भुज्यन्ते तदा हानिकराः भवन्ति।
4. तेन एव लिखिता एषः महान् ग्रन्थः ‘चरक संहिता’ इति।
5. केचन शिष्याः गुरूणा सह वने विचरन्ति स्म।।
6. यः हितभुक्, मितभुक् ऋतुभुक् च भवति स एव सर्वदा स्वस्थः भवति।
7. यदि आहारः ऋतोः अनुसारं न खाद्यते, तस्मात् अपि स्वास्थ्यस्य हानिः भवति।
8. आचार्य! धन्यवादाः। अस्य विहगस्य स्वरेण नूनम् अस्माकं ज्ञाने वृद्धिः जाता।
उत्तर:
1. (vii), (v), (i), (vi), (viii), (iv), (ii), (iii)
2. (v), (iv), (i), (iii), (vi), (viii), (vii), (ii)
3. (iv), (iii), (vii), (i), (vi), (viii), (ii), (v)
4. (v), (ii), (vi), (iv), (vii), (viii), (i), (iii)

8. ‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः अथैः सह मेलनं कुरुत –
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q8
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 2 सर्वे सन्तु निरामयाः Q8.1
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit

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