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NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 1 मम मित्रं भवन्तु

August 19, 2019 by LearnCBSE Online

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 1 मम मित्रं भवन्तु (मेरे मित्र हो जाएँ)

पाठपरिचयः, सारांशः च

पाठपरिचयः
अस्मिन् पाठे चत्वारः, मन्त्राः विविधेभ्यः वेदेभ्यः सङ्कलिताः सन्ति। प्रथमः मन्त्रः ऋग्वेदात्, द्वितीयः यजुर्वेदात्, तृतीयः अथर्ववेदात्, चतुर्थः च पुनः यजुर्वेदात् एव सङ्कलितः। एते मन्त्राः अस्मान् मैत्रीभावस्य, भ्रातृभावस्य, समताभावस्य, त्याग, भावस्य च पाठं शिक्षयन्ति।

सारांशः
प्रथमः मन्त्रः शिक्षयति यत् सूर्योदयः सवेषां कल्याणाय भवेत्। चतस्त्रः दिश दृढतया स्थिताः भवेयुः। पर्वताः, सरितः, सागरः, जलानि च सर्वेषां मङ्गलम् कुर्वन्तु। सम्पूर्णा प्रकृतिः सर्वेभ्यः शुभदा भवेत्।
द्वितीयः मन्त्रः शिक्षयति यत् सर्वे प्राणिनः मम मित्राणि सन्ति। मित्रता सुखदा भवति। यत्र परस्परं स्नेहः, विश्वासः च भवतः तत्र आनन्दमयं वातावरणम् भवति। सर्वे जनाः मित्रभावेन परस्परम् अवलोकयन्तु। अहम् अपि सर्वान् मित्रभावेन पश्यानि।
तृतीयः मन्त्रः शिक्षयति यत् अस्माकं जीवन निर्भयं भवेत्, कस्मादपि मित्रात् शत्रोः वा भयं न भवेत्। मित्रभूताः सर्वाः दिशः अस्मभ्यम् सुखम् आनयन्तु।

चतुर्थः मन्त्र शिक्षयति यत् संसारे पदार्थानां भोगः तु करणीयः, किन्तु असौ उपभोगः आसक्ति विना करणीयः। वयं परेषां सम्पत्तिं, वैभवं च प्रति कदापि लोभम् न कुर्याम। त्यागभावेन एव भोगाः भोक्तव्याः।
सर्वेषाम् मन्त्राणाम् अयं सारांशः अस्ति यत् अद्यत्वे अपि समाजे लोभमयम्, कलहपूर्णम्, भयावहम्, शत्रुतापूर्णम् च वातवरणम् दृश्यते। वयं कलहं, भयं, लोभं, शत्रुतां च त्यक्त्वा स्नेह, अभयं, त्यागं, मैत्रीभावम् च स्वीकर्तुं सङ्कल्पं कुर्याम।
अद्यत्वे समाजे वयं द्वेषपूर्ण कलहपूर्णं च वातावरणं पश्यामः। प्रायः लोभाकृष्टाः जना लोकविरुद्धम् आचरन्ति। समाजस्य सुखाय लोभः न कर्तव्यः। अस्माभिः परस्परं मैत्रीभावेन व्यवहर्तव्यम्। सर्वा प्रकृतिः अपि मानवेभ्यः कल्याणमयं सन्देशं यच्छति। अस्मिन् पाठे वयम् इमं सन्देशम् एव पठामः।

हिन्दीभाषायां पाठपरिचयः
इस पाठ में चार मन्त्र विविध वेदों से लिए गए हैं। पहला मन्त्र ऋग्वेद से, दूसरा यजुर्वेद से, तीसरा अथर्ववेद से और चौथा पुनः यजुर्वेद से लिया गया है। इन मन्त्रों में मैत्रीभाव, भ्रातृभाव, समताभाव व त्यागभाव का पाठ पढ़ाया गया है।

सारांश
पहला मन्त्र सिखाता है कि सूर्योदय सबके कल्याण के लिए होवे। चारों दिशाएँ दृढ़ता से स्थित हों, पर्वत, नदियाँ, सागर और जल सबका मंगल करें, सम्पूर्ण प्रकृति सबके लिए शुभकारक हो।
दूसरा मन्त्र सिखाता है कि सब प्रणाली मेरे मित्र हैं। मित्रता सुख देने वाली होती है। जहाँ आपस में प्रेम और विश्वास होता है। वहाँ आनन्द का वातावरण होता है। सब लोग मित्रभाव से एक-दूसरे को देखें। मैं भी सबको मित्रभाव से देखू।
तीसरा मन्त्र सिखाता है कि हमारा जीवन निडर बने। किसी मित्र अथवा शत्रु से भी भय न होवे। मित्र बनकर सब दिशाएँ हमें सुख प्रदान करें।चौथा मन्त्र सिखाता है कि संसार के पदार्थों का भोग तो करना चाहिए पर वह भोग आसक्ति से रहित होकर करना चाहिए। हम दूसरों की सम्पत्ति या वैभव के प्रति लोभ का भाव न रखें तथा त्यागभाव से ही सभी भोगों को भोगें।

सब मन्त्रों का संक्षेप में यही सार है कि आजकल समाज में जो लोभ, कलह, भय तथा शत्रुता का वातावरण बना हुआ है, हम उसके स्थान पर स्नेह, अभय, त्याग और मैत्रीभाव को स्वीकार करने का संकल्प करें और ब्रह्मभाव में स्थित हो जाएँ।
आजकल समाज में हम द्वेषपूर्ण तथा क्लेशपूर्ण वातावरण देख रहे हैं। प्रायः लोभी लोग लोकविरुद्ध आचरण करते हैं। समाज के सुख के लिए लोभ नहीं करना चाहिए। हमें परस्पर मैत्रीभाव से व्यवहार करना चाहिए। सारी प्रकृति भी मनुष्यों को कल्याण का सन्देश देती है। इस पाठ में यही सन्देश दिया गया है।

क. मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, भावार्थः, सरलार्थश्च

शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेत, शं नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु, शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः॥1॥ (ऋग्वेद 7/35/8)

शब्दार्थाः – उरुचक्षा – अतिप्रकाशवान् (तेजोमय)। सूर्य: – रविः (सूरज)। न: – अस्मभ्यम् (हमारे लिए)। शम्कल्याणम् (कल्याण, सुख)। उदेतु (उत् + एतु) – उदयतु (उदय हो)। चतस्त्रः प्रदिशः – चतस्त्रः दिशाः (चारों दिशाएँ)। भवन्तु – सन्तु (हों)। पर्वता: – गिरयः (पर्वत)। ध्रुवयः – दृढाः. दृढतया स्थिताः (मबूत, स्थिर)। सिन्धवः – सरितः, सागराः (नदियाँ, सागर)। उ – अथ, च (और)। आपः- वहन्ति जलानि (बहते हुए पानी)। शम् – कल्याण कराणि (कल्याणकारक)। सन्तु- भवन्तु (हों)।

सरलार्थ – अतिप्रकाशवान सूर्य का उदय हम सबके कल्याण के लिए हो। पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण ये चारों दिशाएँ हमारा कल्याण करें। दृढ़ता से स्थित होकर पर्वत, नदियाँ तथा समुद्र हम सबका कल्याण करें तथा बहता हुआ जल कल्याणकारक हो। सम्पूर्ण प्रकृति सबके लिए कल्याण करने वाली हो।

मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य
चक्षुषा वयं सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे॥2॥ (यजुर्वेदः 36/10/18)

शब्दार्था: – सर्वाणि- सर्वे (सब)। भूतानि- प्राणिनः (प्राणी)। मा- माम् (मुझे)। मित्रस्य- सुहृदः (मित्र की)। चक्षुषा- नेत्रेण, दृष्ट्या (नेत्र से, दृष्टि से, नजर से)। समीक्षन्ताम्- पश्यन्तु (देखें)। अहम्- अयं जनः (मैं)। सर्वाणि भूतानि- सर्वान् प्राणिनः (सब प्राणियों को)। समीक्षे- पश्यानि (देखू)। वयम्- वयं सर्वे इमे जनाः (ये हम सब लोग)। समीक्षामहे- पश्याम (देखें)।

सरलार्थ – सब प्राणी मुझे मित्र की दृष्टि से देखें। मैं मित्र की नजर से सब प्राणियों को देखू। हम सब मित्रभाव से (मित्रवत्) सब प्राणियों को देखें। लोगों में आपस में मित्रता का सम्बन्ध विकसित हो।

अभयं मित्रादभयममित्राद्, अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः।
अभयं नक्तमभयं दिवा नः, सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु॥3॥ (अथर्ववेदः 19/15/6)

टिप्पणी -‘पुरो यः’ के स्थान पर परोक्षात् तथा पुरो यः दोनों पाठ प्राप्त होते हैं।
शब्दार्था: – मित्रात्- मित्रतः (मित्र से)। अभयम्- निर्भयता (निर्भीकता)। न:- अस्मभ्यम् (हमें)। अमित्रात्- शत्रोः (शत्रु से)। ज्ञाताम्- परिचितात् जनात् (परिचित जन से)। परोक्षात्- अज्ञातात्, अपरिचितात् जनात (अज्ञात, अपरिचित जन से)। नक्तम्- रात्रौ (रात में)। दिवा- दिने (दिन में)। सर्वाः आशा:- सर्वाः दिशः (सब दिशाएँ)। मम- मामकीनम् (मेरी)। भवन्तु- सन्तु (हों)। पुरः- समक्षम् (सामने)। यः- जो।
सरलार्थ – कोई व्यक्ति मित्र से, शत्रु से, परिचित से अथवा जो सामने है, उससे तथा अपरिचित से भयभीत न हों। हम दिन या रात्रि में भय रहित हों। सब दिशाएँ हमारे लिए मित्र बन जाएँ। (हमारा जीवन भय रहित तथा मित्रता से पूर्ण हो।)

ईशा वास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्॥4॥ (यजुर्वेदः 40/1)

शब्दार्थाः जगत्याम् – संसारे (संसार में)। यत् किम् च – यत् किञ्चिद् अपि (जो कुछ भी)। सर्वम्- सम्पूर्णम् (सब)। जगत् – परिवर्तनशीलम् (परिवर्तनशील)। ईशा – ईश्वरेण (ईश्वर के द्वारा)। वास्यम् – आच्छादितम् (आच्छादित, ढका हुआ, व्याप्त)। तेन – अतः (इसलिए) त्यक्तेन – त्यागभावेन, आसक्तिं विना (बिना आसक्ति के, त्याग भाव से)। भुञ्जीथाःउपभोगं कुरु (उपभोग करो)। कस्यस्विद् – कस्यापि (किसके भी)। धनम् – सम्पत्तिम् (धन का)। मा गृधः – लोभं मा कुरु (लालच न करो)।

सरलार्थ – संसार में जो कुछ भी जड़-चेतन परिवर्तन है वह सब ईश्वर के द्वारा व्याप्त है अतः आसक्ति के बिना त्याग भाव से भोग करो। किसी के धन की लालच न करो।

ख. अनुप्रयोगस्य प्रश्नोत्तराणि

1. अधोलिखितानां पदानां शुद्धोच्चारणं कृत्वा तेषाम् अनुलेखनम् क्रियताम् (निम्नलिखित पदों का शुद्ध उच्चारण
करके उनको फिर से लिखें)
(क) समीक्षन्ताम् ……………………..
(ख) मित्रादभयममित्राद् ……………………..
(ग) नश्चतस्त्रः ……………………..
(घ) सन्त्वापः ……………………..
(ङ) यत्किञ्च ……………………..
उत्तर:
छात्र इन पदों को उनके सामने फिर से लिखें।

2. पाठम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धि-सन्धिच्छेदं वा कुरुत (पाठ के अनुसार निम्न पदों में सन्धि अथवा
सन्धिच्छेद कीजिए)
(क) शम् + नः = ………………………
(ख) प्रदिशो भवन्तु = ……………………… + ………………………
(ग) सर्वाः + आशाः = ………………………
(घ) उरुचक्षा उदेतु = …………………. + ……………………..
(ङ) यत् + किम् + च = ………………………
उत्तर:
(क) शं नः
(ख) प्रदिशः + भवन्तु
(ग) सर्वा आशाः
(घ) उरुचक्षाः + उदेतु
(ङ) यत्किञ्च

3. अधोलिखितानाम् अर्थानां स्थाने पाठे प्रयुक्तानि पदानि लिखत (निम्नलिखित अर्थों के स्थान पर पाठ में प्रयुक्त पदों को लिखिए) पदानि अर्थाः
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 1 मम मित्रं भवन्तु 1
उत्तर:
(क) समीक्षे
(ख) शम्
(ग) चक्षुष् (चक्षुः)
(घ) अमित्रम्
(ङ) पुरः
(च) पर्वताः
(छ) नः
(ज) आपः
(झ) ज्ञात:
(ञ) नक्तम्।

4. उचितसर्वनामपदैः रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत (उचित सर्वनाम पदों से रिक्त स्थानों को भरिए)
(क) सर्वे प्राणिनः ……………. मित्रदृष्ट्या पश्यन्तु। (अस्मद्)
(ख) ……………. वस्तूनाम् उपभोगः आसक्तिं विहाय एव कर्तव्यः। (सर्व)
(ग) ………….. त्यक्तेन भुञ्जीथाः। मा गृधः कस्यस्विद् धनम्। (तत्)
(घ) दिने वा रात्रौ वा ……………….. भयरहिताः भवेम। (अस्मद्)।
(ङ) अहं मित्रस्य चक्षुषा …………………. भूतानि समीक्षे। (सर्व)
उत्तर:
(क) सर्वे प्राणिनः मां मित्रदृष्ट्या पश्यन्तु।
(ख) सर्वेषां वस्तूनाम् उपभोगः आसक्तिं विहाय एव कर्तव्यः।
(ग) तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।
(घ) दिने वा रात्रौ वा वयम् भयरहिताः भवेम।
(ङ) अहं मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।

5. पाठात् चित्वा विशेषणानि योजयत (पाठ से चुनकर विशेषण जोडिए) विशेषणानि
विशेष्याणि
NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit Chapter 1 मम मित्रं भवन्तु 2
उत्तर:
(क) ध्रुवयः
(ख) सर्वाणि
(ग) इदं
(घ) चतस्त्र
(ङ) सर्वाः
(च) उरुचक्षाः।

6. अधोलिखितवाक्येषु कोष्ठकात् उचितं क्रियापदं विचित्य योजयत (निम्नलिखित वाक्यों में कोष्ठक से उचित क्रियापद चुनकर जोड़िए)
(क) अहं मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि ………….। (समीक्षे । समीक्षामहे)
(ख) वयं अहर्निशं भयरहिताः ………….। (भवेयम् । भवेम)
(ग) त्वं त्यागपूर्वकं वस्तूनि ……….। (भुञ्जीथाः । भुञ्जीत)
(घ) आपः अस्माकं कल्याणाय …………..। (अस्तु । सन्तु)
(ङ) सर्वाः दिशः मम मित्रं …………। (भवन्तु / भवतु)
उत्तर:
(क) समीक्षे
(ख) भवेम
(ग) भुञ्जीथाः
(घ) सन्तु
(ङ) भवन्तु।

7. अधोलिखितान् प्रश्नान् संस्कृतभाषया उत्तरत (निम्नलिखित प्रश्नों के संस्कृत भाषा में उत्तर दीजिए)
(क) सर्वाणि भूतानि कथं द्रष्टव्यानि?
(ख) इदं सर्वं जगत् केन व्याप्तम्?
(ग) कति प्रदिशः अस्माकं कल्याणं कुर्वन्तु?
(घ) ध्रुवयः पर्वताः अस्माकं कृते कीदृशाः भवेयुः?
(ङ) मम मित्रं काः भवन्तु?
(च) केभ्यः अस्माकम् अभयं भवेत्?
उत्तर:
(क) सर्वाणि भूतानि मित्रस्य चक्षुषा द्रष्टव्यानि।
(ख) इदं सर्वं जगत् ईश्वरेण व्याप्तम्।
(ग) चतस्त्रः प्रदिशः अस्माकं कल्याणं कुर्वन्तु।
(घ) ध्रुवयः पर्वताः अस्माकं कृते कल्याणकारकाः भवेयुः।
(ङ) मम मित्रं सर्वाः आशाः (दिशाः) भवन्तु।
(च) मित्रात् अमित्रात् ज्ञातात् परोक्षात् च अस्माकम् अभयं भवेत्।

8. अधोलिखितेषु अन्वयेषु उचित-रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत। (निम्नलिखित अन्वयों में उचित रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।)
(क) जगत्यां यत् किञ्च ………………………. इदं सर्वम् ईशा वास्यम्, तेन ……………………… भुञ्जीथाः। कस्यस्विद् धनम् मा …………………….।
(ख) उरुचक्षा ……………….. नः शम् उदेतु। चतस्रः ……………….. नः शं भवन्तु। ध्रुवयः पर्वताः ……………. शं भवन्तु। सिन्धवः नः शम्। उ ………………….. शं सन्तु।
उत्तर:
(क) जगत्यां यत् किञ्च जगत् इदं सर्वम् ईशा वास्यम्, तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः। कस्यस्विद् धनम् मा गृधः।
(ख) उरुचक्षा सूर्यः नः शम् उदेतु। चतस्त्रः प्रदिशः नः शं भवन्तु। ध्रुवयः पर्वताः नः शं भवन्तु। सिन्धवः नः शम्। उ आपः शं सन्तु।

9. अधोलिखितपक्तीनां भावम् अनुसृत्य पाठात् चित्वा पक्तिं लिखत। (निम्नलिखित पंक्तियों के भाव के अनुसार पाठ से चुन कर पंक्ति लिखिए।)
(क) सकलाः दिशः मम मित्रभूताः सन्तु। ………………..
(ख) सरितः सागराः च अस्माकं कल्याणं कुर्वन्तु। ………………..
(ग) सर्वे प्राणिनः मां मित्रवत् पश्यन्तु। ………………..
(घ) सर्वः संसारः ईश्वरेण व्याप्तः। ………………..
उत्तर:
(क) सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।
(ख) शं नः सिन्धवः।
(ग) मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
(घ) ईशा वास्यमिदं सर्वम्।

10. अधः केषाञ्चित् श्लोकानां भावार्थः दत्तः। उचितपदैः रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत। (नीचे कुछ श्लोकों का भावार्थ दिया गया है उचित पदों से रिक्त स्थान भरिए।)
(क) सर्वे प्राणिनः मां……………………… पश्यन्तु। अहम् अपि तान् मित्रवत् ………………….। यतः मित्रता सुखदायिनी भवति। यस्मिन् परिवारे समाजे वा ……………….. स्नेहः भवति तत्र आनन्दमयं वातावरणं जायते। अतः जनेषु मैत्रीसम्बन्धः …………………… प्राप्नोतु।
उत्तर:
सर्वे प्राणिनः मां मित्रवत् पश्यन्तु। अहम् अपि तान् मित्रवत् पश्यामि। यतः मित्रता सुखदायिनी भवति। यस्मिन् परिवारे समाजे वा परस्परं स्नेहः भवति तत्र आनन्दमयं वातावरणं जायते। अतः जनेषु मैत्रीसम्बन्धः विकासं प्राप्नोतु।।

(ख) एषः जडचेतनरूपः संसारः …………………………. व्याप्तः। संसारे लभ्याः ………………………….. आहारादिकं च प्राणिनाम् उपभोगाय सन्ति। वस्तूनाम् उपभोगः आसक्तिं ………………………. एव कर्तव्यः। अन्येषां जनानां धनादिकं प्रति ……………………. न कर्तव्यः ।
उत्तर:
एषः जडचेतनरूपः संसारः ईश्वरेण व्याप्तः। संसारे लभ्याः पदार्थाः आहारादिकं च प्राणिनाम् उपभोगाय सन्ति। वस्तूनाम उपभोगः आसक्तिं विना एव कर्तव्यः। अन्येषां जनानां धनादिकं प्रति लोभः न कर्तव्यः।

(ग) अस्माकं जीवनं ………………………….. भवेत्। मित्रात्, शत्रोः परिचितात् नरात् वस्तुनः वा ……………………….. भयं न स्यात्। दिने वा ………………………. वा वयं भयरहिताः भवेम। मित्रभूताः सर्वाः दिशः अस्मान् ………………….।
उत्तर:
अस्माकं जीवनं भयरहितं भवेत्। मित्रात्, शत्रोः परिचितात् नरात् वस्तुनः वा किमपि भयं न स्यात्। दिने वा रात्रौ वा वयं भयरहिताः भवेम। मित्रभूताः सर्वाः दिशः अस्मान् सुखयन्तु।

ग. पाठ-विकासः

महान् ज्ञानराशिग्रन्थः वेदः। वेदाः चत्वारः सन्तिः- ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्ववेदश्च इति। आदर्शा समाजव्यवस्था अत्र उपदिष्टा। यथा
संगच्छध्वं, संवदध्वं, सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥ (ऋग्वेद: 1.191.2)
प्रतिगृहम् अपि परस्परं सम्मानभावः भवेत्।
अनुव्रतः पितुः पुत्रो, मात्रा भवतु संमनाः। (अथर्ववेदः 3.30.2)
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शान्तिवाम्॥
अपि च
न स सखा यो न ददाति सख्ये। (ऋग्वेदः 10.117.4)
केवलाघो भवति केवलादी। (ऋग्वेदः 10.117.6)

वेद महान् ज्ञानराशि से युक्त ग्रन्थ हैं। वेद चार हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। इनमें आदर्श समाज व्यवस्था का उपदेश दिया गया है। मिल कर चलो, मिलकर बोलो, सब तुम्हारे हृदयों को अपने समान जानें। जिस प्रकार पहले विद्वान् सम्यक् जानते हुए व्यवहार करते हैं वैसे ही तुम भी व्यवहार करो।
हर घर के प्रति आपस में सम्मान का भाव हो, पुत्र पिता का आज्ञाकारी हो। माता के साथ एक मन वाला हो। पत्नी पति को माधुर्य से युक्त शान्तिप्रद वचन बोले।
और भी, वह मित्र नहीं जो मित्र को नहीं दे। स्वयं खाने वाला केवल पाप को खाता है।
समानान्तरप्रयोगाः (पाठों के भावों से मिलते-जुलते मन्त्र)

(क) मेधां मे वरुणो ददातु, मेधामग्निः प्रजापतिः।
मेधामिन्द्रश्च वायुश्च, मेधां धाता ददातु मे॥ (यजुर्वेदः 32/35)

भावार्थ: – वरुणः मह्यम् बुद्धिं ददातु, अग्निः प्रजापतिः अपि मह्यं बुद्धिं ददातु।
विश्वस्य धारणकर्ता ईश्वरः अपि मह्यम् बुद्धिं ददातु।।
(वरुण मुझे बुद्धि दे. अग्नि तथा प्रजापति भी मुझे बुद्धि दें। विश्व के धारणकर्ता ईश्वर भी मुझे बुद्धि दें।)

(ख) शं नो मित्रा शं वरुणः, शं नो भवत्वर्यमा।
शं न इन्द्रो बृहस्पतिः, शं नो विष्णुरुरुक्रमः॥ (ऋग्वेदः 1/90/9)

भावार्थ: – मित्राणिः अस्मभ्यं सुखकराणि भवन्तु, वरुणः, अर्यमा, इन्द्रः, बृहस्पतिः, दूरात्दूरं गमने समर्थः विष्णुः-एते सर्वे एव अस्मभ्यं सुखकराः भवन्तु।
(मित्र हमारे लिए सुखद हो, वरूण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति तथा विष्णु जो दूर से दूर जाने में समर्थ हैं, ये सब ही हमारे लिए सुखकर हों।)

(ग) यतो यतः समीहसे, ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥ (यजुर्वेदः 40/16)

भावार्थ: – हे देवानां देव! यस्मात् एव स्थानात् त्वं प्रकटितः भवसि, तस्मात् एव स्थानात् अस्मभ्यं निर्भयतां प्रयच्छ, अस्माकं सन्ततिः, पशवः च भयमुक्ताः भवेयुः।।
(हे देवों के देव, जिस स्थान से तुम प्रकट हुए हो, उस स्थान से हमें निर्भयता प्रदान करो, हमारी सन्तानें तथा पशु भयरहित हों।)

(घ) अनमित्रं नो अधराद् अनमित्रं न उत्तरात्, इन्द्रानमित्रं नः पश्चाद् अनमित्रं पुरस्कृधि॥
भावार्थ: – हे इन्द्र! भवान् अस्मभ्यं सर्वतः शत्रुराहित्यं प्रददातु। सर्वतः अस्मभ्यं अभयदानं प्रापयतु। (हे इन्द्र! आप हमें शत्रुओं से रहित करें। सबसे सब तरफ से अभय प्रदान करें।)

घ. पठितांश-अवबोधनम्

1. अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नान् उत्तरत।
(क) शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु, शं नश्चतस्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु, शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः॥1॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कीदृशः सूर्यः उदेतु?
(ii) कति प्रदिशः नः शं भवन्तु?
(iii) ध्रुवयः पर्वताः केभ्यः शं भवन्तु?
(iv) आपः कथं सन्तु?
उत्तर:
(i) उरुचक्षाः
(ii) चतस्रः
(iii) नः
(iv) शम्।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
के के सर्वेषां कल्याणं कुर्वन्तु?
उत्तर:
चतस्त्रः दिशः, दृढतया स्थिताः पर्वताः, सरितः, सागराः, अन्यानि जलानि च सर्वेषां कल्याणं कुर्वन्तु।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत1. ध्रुवयः केषां विशेषणम् अस्ति?
(i) पर्वतानाम्
(ii) खगानाम्
(iii) जनानाम्
(iv) नक्षत्राणाम्
उत्तर:
(i) पर्वतानाम्

2. अत्र ‘सूर्यस्य’ विशेषणं किम् अस्ति?
(i) चक्षा
(ii) उरु
(iii) उरुचक्षा
(iv) शं नः ।
उत्तर:
(iii) उरुचक्षा

3. कोष्ठकगत शब्देभ्यः उचितपदानि अवचित्य रिक्तस्थानं पूरयत –
(सिन्धवः, ध्रुवयः, प्रदिशः, उदेतु)
(i) शं नः सूर्य उरुचक्षा ……………….।
(ii) शं नश्चतस्रः ………………. भवन्तु।
उत्तर:
(i) उदेतु
(ii) प्रदिशः।

(ख) मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा वयं सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) कस्य चक्षुषा अहं सर्वाणि भूतानि समीक्षे?
(ii) सर्वाणि भूतानि कं मित्रस्य चक्षुषा समीक्षन्ताम्?
(iii) वयं मित्रस्य केन सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे?
(iv) कति भूतानि माम् मित्रवत् पश्यन्तु?
उत्तर:
(i) मित्रस्य
(ii) मा
(iii) चक्षुषा
(iv) सर्वाणि।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत
मित्रस्य चक्षुषा वयं किं कुर्याम?
उत्तर:
मित्रस्य चक्षुषा वयं सर्वाणि भूतानि पश्येम (समीक्षामहे वा)।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत –

(i) ‘सर्वाणि’ कस्य पदस्य विशेषणम् अस्ति?
(क) भूतानि पदस्य
(ख) चक्षुषा पदस्य
(ग) मित्राणि पदस्य
(घ) नेत्राणि पदस्य
उत्तर:
(क) भूतानि पदस्य

(ii) अत्र कर्मकारके किं सर्वनामपदं प्रयुक्तम्?
(क) वयं
(ख) सर्वाणि
(ग) भूतानि
(घ) मा
उत्तर:
(घ) मा

(iii) कोष्ठकगत उचितपदाभ्यां रिक्तस्थानं पूरयत –
(वयम् सर्वाणि, भूतानि, समीक्षामहे)
(क) मित्रस्य चक्षुषा ……….. सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे।
(ख) मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि ………….. समीक्षन्ताम्।
उत्तर:
(क) वयम्
(ख) भूतानि।

(ग) अभयं मित्रादभयममित्राद्, अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः। अभयं नक्तमभयं दिवा नः, सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) सर्वा आशा कस्य मित्रं भवन्तु?
(ii) ज्ञातात् किं भवतु?
(iii) केषाम् दिवा अभयं भवतु?
(iv) अस्माकं किम् अभयं भवेत्?
उत्तर:
(i) मम
(ii) अभयम्
(iii) नः
(iv) नक्तम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
(i) मित्रात् नः किम् भवेत्?
(ii) काः मम मित्रं भवन्तु?
उत्तर:
(i) मित्रात् नः अभयं भवेत्।
(ii) सर्वाः आशाः मम मित्रं भवन्तु।

III. निर्देशानुसार उत्तरत
(i) मन्त्रे ‘आशाः’ इत्यस्य पदस्य किं विशेषणं प्रयुक्तम्?
(ii) ‘भवन्तु’ इत्यस्याः क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
(iii) मन्त्रे ‘यः’ सर्वनाम पदं कस्मै आगतम्?
(iv) ‘दिवा’ इत्यस्य पदस्य कः विपर्ययः अत्र आगतः?
उत्तर:
(i) सर्वाः
(ii) सर्वा आशा
(iii) जनाय
(iv) नक्तम्

(घ) ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्॥

I. एकपदेन उत्तरत –
(i) सर्वं जगत् केन वास्यं वर्तते?
(ii) जगत्यां किं वर्तते?
(iii) कस्यास्विद् धनस्य कः मा भवेत्?
(iv) ईशा किं वास्यम् अस्ति?
उत्तर:
(i) ईशा
(ii) जगत्
(iii) गृधः
(iv) सर्वम्

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत –
(i) जगत् कथं भुञ्जीथाः?
(ii) किं प्रति गृधः मा भवेत्?
उत्तर:
(i) जगत् त्यक्तेन भुञ्जीथाः।
(ii) कस्यस्विद् धनं प्रति गृधः मा भवेत्।

III. निर्देशानुसार उत्तरत –
(i) मन्त्रे ‘वास्यम्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
(ii) ‘संसारम्’ इति पदस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः?
(iii) मन्त्रे ‘इदं’ सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(iv) ‘इदं सर्वं’ अनयोः पदयोः विशेषणं किम्?
उत्तर:
(i) ईशा
(ii) जगत्
(iii) जगते
(iv) इदम्

2. I. कः कम् कथयति –
(i) ‘मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।’
(ii) ‘अभयं मित्रादभयममित्राद्, अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः।’
(iii) ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।’
उत्तर:
(i) यजुर्वेदः जनान् कथयति।।
(ii) अथर्ववेदः जनान् कथयति।
(iii) यजुर्वेदः जनान् कथयति।

II. सन्दर्भग्रन्थस्य लेखकस्य च नामनी
(i) ‘शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु।’ ।
(ii) ‘मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।’
(iii) ‘सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।’
(iv) ‘ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्।’
उत्तर:
(i) ग्रन्थः – ऋग्वेदः, लेखकः-अग्निः ऋषिः
(ii) ग्रन्थः – यजुर्वेदः, लेखकः-वायुः ऋषिः
(iii) ग्रन्थः – अथर्ववेदः, लेखक:-अगिरा ऋषिः
(iv) ग्रन्थः – यजुर्वेदः, लेखकः-वायुः ऋषिः

3. निम्न मन्त्रं पङ्क्तिं वा आश्रित्य उचितैः पदैः भाव पूर्ति करोतु भवान् –

I. शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु, शं नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु, शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः॥
अस्य भावोऽस्ति- हे ईश्वर! अस्माकं कल्याणाय अतीव प्रकाशितः (i) ………………….. उदयं प्राप्नोतु। समस्ताः चतस्रः (ii) …………… अपि (iii) …………… कल्याणाय भवन्तु। अस्मिन् संसारे दृढ़तया स्थिताः पर्वताः, (iv) ………………………….. वहन्ति जलानि अपि अस्माकं कल्याणं कुर्वन्तु।
मञ्जूषा – सागराः, सूर्यः, अस्माकं, दिशः
उत्तर:
(i) सूर्यः
(ii) दिशः
(iii) अस्माकं
(iv) सागराः

II. “मित्रस्य चक्षुषा वयं सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे’। अर्थात्
अस्मिन् (i) ……………… वयं सर्वे जनाः सर्वान् (ii) ………………. मित्रवत् पश्येम। कोऽपि कदापि कैश्चित् सह (iii) ………………… न कुर्यात्। सर्वस्मिन् संसारे प्रेमशान्तिदयादीनां प्रसारो भवेत् येन सर्वे जनाः (iv) …………………. सन्तु।
मञ्जूषा – संसारे, द्वेषभावं, जनान्, सुखिनः
उत्तर:
(i) संसारे
(ii) जनान्
(iii) द्वेषभावं
(iv) सुखिनः

III. अभयं मित्रादभयममित्राद्, अभयं ज्ञातादभयं पुरोयः।
अभयं नक्तमभयं दिवा नः, सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु॥
भावार्थ: – मनुष्यः ईश्वरं प्रार्थयति हे प्रभो! वयं सुदृढ़ात् शत्रोः वा कदापि (i) …………………. न प्राप्नुवाम। यत् वस्तु ज्ञातं वर्तते अथवा (ii) ………………….. अस्ति तस्मादपि अस्मभ्यम् अभयं प्राप्नुयात्। दिवसि रात्रौ वा कदापि अस्मभ्यं (iii)…………………. न प्राप्नुयात्। सर्वासु दिक्षु यद्यपि वस्तु चेतनः अचेतनः वा वर्तते तस्मादपि वयम् (iv) ……………… भवेम।
मञ्जूषा  – भयम्, निर्भयाः, भयं, अज्ञातम् |
उत्तर:
(i) भयं
(ii) अज्ञातम्
(iii) भयम्
(iv) निर्भयाः

IV. ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।’
भावार्थ: – अस्य आश्योऽस्ति यत् ईश्वरः उपदिसति-अस्मिन् संसारे यद्यपि (i) ………………….. अचेतनः वा यद् वस्तु वर्त्तते तत् सर्वम् (ii) …………………. आच्छादितम् अस्ति। अतः लोभं त्यक्त्वा (iii) …………………. दानं वा मत्त्वा वस्तूनाम् उपयोगं कुरु। कदापि कस्यचिदपि वस्तुनः (iv) …………………. मा कर्तव्यम्। यतः सर्वेषां वस्तूनाम् स्वामी ईश्वरः एव वर्तते।
मञ्जूषा – ईश्वरस्य, चेतनः, लोभ, ईश्वरेण |
उत्तर:
(i) चेतनः
(ii) ईश्वरेण
(iii) ईश्वरस्य
(iv) लोभ

4. निम्न-मन्त्रं पठित्वा तस्य अन्वयपूर्तिम् उचितैः पदैः करोतु भवान्
I. शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु, शं नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु, शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः॥
अन्वयः – उरुचक्षा (i) ………………….. नः शम् उदेतु (ii) ………………….. प्रदिशः नः शम् भवन्तु। ध्रुवयः (iii) …………. नः शं भवन्तु, सिन्धवः नः शम्उ (iv)………………….. शं सन्तु।
उत्तर:
(i) सूर्यः
(ii) चतस्रः
(iii) पर्वताः
(iv) आपः

II. मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।
मित्रस्य चक्षुषा वयं सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे॥2॥
अन्वयः – सर्वाणि (i) ………………….. मा मित्रस्य चक्षुषा (ii) ………………….. अहम् मित्रस्य (iii)………………….. सर्वाणि भूतानि समीक्षे। (iv) …………………. मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षामहे।
उत्तर:
(i) भूतानि
(ii) समीक्षन्ताम्
(iii) चक्षुषा
(iv) वयम्।

III. अभयं मित्रादभयममित्राद्, अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः।
अभयं नक्तभयं दिवा नः, सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु॥3॥
अन्वय – मित्रात् नः (i) …………. अमित्रात् अभयम् (ii) ………… अभयम् यः पुरः अभयम् (iii) …………. अभयम् नः दिवा अभयम्। सर्वाः (iv) ………………….. मम मित्रम् भवन्तु।।
उत्तर:
(i) अभयम्
(ii) ज्ञातात्
(iii) नक्तम्
(iv) आशाः

IV. ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद् धनम्॥1॥
अन्वय – जगत्यां यत् (i) ……………… च सर्वं जगत् (ii) ………………… वास्यम् (अस्ति)। तेन (iii) ……………. भुञ्जीथाः कस्यस्विद् (iv) ………. मा गृधः।।
उत्तर:
(i) किम्
(ii) ईशा
(iii) त्यक्तेन
(iv) धनम्।

5. निम्नलिखितानां रेखाकितानांपदानां प्रसङ्गानुसारेण शुद्धम् अर्थ चीयताम् –
1. शं नः सूर्येः उरुचक्षा उदेतु।
(i) कीर्तिमान्
(ii) अतिप्रकाशवान्
(iii) गतिमान्
(iv) धनवान्
उत्तर:
(ii) अतिप्रकाशवान्

2. शं नः पर्वताः ध्रुवयः भवन्तु।
(i) दृढाः
(ii) शक्तिधराः
(iii) महाकायाः
(iv) रुपाकाराः
उत्तर:
(i) दृढाः

3. मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
(i) जनान्
(ii) प्राणिनः
(iii) वस्तूनि
(iv) धनानि
उत्तर:
(ii) प्राणिनः

4. मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे ।
(i) पश्यामि
(ii) अपश्यम्
(iii) पश्येयम्
(iv) पश्यानि
उत्तर:
(iv) पश्यानि

5. अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः।
(i) दूरम्
(ii) निकटम्
(iii) समक्षम्
(iv) पृष्ठम्
उत्तर:
(iii) समक्षम्

6. सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।
(i) कामनाः
(ii) दिशः
(iii) संकल्पाः
(iv) इच्छाः
उत्तर:
(ii) दिशः

7. ईशा वास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
(i) संसारे
(ii) परलोके
(iii) धारायाम्
(iv) जले।
उत्तर:
(i) संसारे

8. मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।
(i) त्यागः
(ii) वैराग्यः
(iii) लोभः
(iv) लोभम्
उत्तर:
(iv) लोभम्

NCERT Solutions for Class 11 Sanskrit

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