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CBSE Class 9 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश

October 1, 2019 by LearnCBSE Online

CBSE Class 9 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश

अपठित काव्यांश :

अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है, जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। यह अंश छात्रों द्वारा पहले पढ़ा गया नहीं होता बल्कि नया होता है।

अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।

अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।

अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए-

  • काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
  • कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
  • प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
  • प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
  • प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
  • उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
  • यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं, तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
  • शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
  • शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
  • अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
  • प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।
  • काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें-

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

CBSE Class 9 Hindi B Unseen Passages अपठित काव्यांश

प्रश्नः 1.
मिट्टी को मातृरूपा बनाने में किसका योगदान है? वह यह काम किस तरह करता है?
उत्तर:
मिट्टी को मातृरूपा बनाने में किसान का योगदान होता है। वह पथरीली जमीन को हल से जोतता है, उसे भुरभुरा बनाकर फ़सल पैदा करने योग्य बनाता है।

प्रश्नः 2.
मिट्टी को प्रजारूप कैसे प्राप्त होता है? इस रूप से कौन सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं?
उत्तर:
कुम्हार मिट्टी को चाक पर चढ़ाकर सुंदर और मनोहर खिलौने बनाता है। इन खिलौनों के रूप में मिट्टी को प्रजा रूप मिल जाता है। इससे बच्चे सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं और इन्हें पाने के लिए मचल उठते हैं।

प्रश्नः 3.
मिट्टी सबसे बड़ा देवत्व किसे बताती है और क्यों?
उत्तर:
मिट्टी, मनुष्य द्वारा पुरुषार्थ करने के गुण को सबसे बड़ा देवत्व बताता है, क्योंकि किसान, कुम्हार मूर्तिकार आदि रूपों में मनुष्य मिट्टी को तरह-तरह के रूप-स्वरूप प्रदान करता है।

उदाहरण (उत्तर सहित)

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिएत-

1. ज्यों निकलकर बादलों की गोद से,
थी अभी इक बूंद कुछ आगे बढ़ी।
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी।

दैव, मेरे भाग्य में है क्या बदा,
मैं बनूंगी या मिलूँगी धूल में,
जल उलूंगी गिर अँगारे पर किसी,
चू पडेंगी या कमल के फूल में।

बह उठी उस काल इक ऐसी हवा,
वह समंदर ओर आई अनमनी।
एक सुंदर सीप का था मुँह खुला,
वह उसी में जा गिरी, मोती बनी।

लोग अकसर हैं झिझकते-सोचते,
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।
किंतु घर का छोड़ना अकसर उन्हें,
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।

प्रश्नः 1.
बूंद कहाँ से निकलकर आई ? वह क्या सोचने लगी?
उत्तर:
बूंद बादलों की गोद अर्थात घर से बाहर आसमान में आई । बूंद सोच रही थी कि वह अपना घर छोड़कर इस तरह क्यों निकल आई।

प्रश्नः 2.
बूंद को इस तरह निकल आने का दुख क्यों हो रहा था?
उत्तर:
बूंद को इस तरह निकल आने का दुख इसलिए हो रहा था, क्योंकि उसका जीवन अब भाग्य के भरोसे ही है। उसे पता नहीं है कि वह धूल में मिलेगी या अंगार पर पड़कर जल जाएगी या कमल के फूल पर गिरेगी, कुछ पता नहीं

प्रश्नः 3.
बूंद का अंत सुखद रहा या दुखद-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बूंद का अंत सुखद रहा, क्योंकि हवा का एक झोंका उसे समुद्र की ओर ले गया। वहाँ बूंद एक खुले सीप के मुँह में जा गिरी और सुंदर-सी मोती बन गई। इस तरह बूंद का अंत सुखद रहा।

2. हारा हूँ सौ बार, गुनाहों से लड़-लड़कर
लेकिन बारंबार लड़ा हूँ, मैं उठ-उठ कर।
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा,
मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा।
डूबा हूँ हर रोज़ किनारे तक आ-आकर
लेकिन मैं हर रोज उगा हूँ जैसे दिनकर बनकर।
इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी,
मैंने अपनी सुंदरता भी इस तरह सँवारी।

प्रश्नः 1.
कवि अपने हर गुनाह को कैसे जीत पाया?
उत्तर:
कवि गुनाहों से निरंतर संघर्ष करता रहा। इस संघर्ष में वह कभी हारता तो कभी जीतता। सैकड़ों बार इस तरह संघर्ष करने से उसका गुनाह हारता गया और अंततः वह विजयी रहा।

प्रश्नः 2.
“डूबा हूँ हर रोज किनारे तक आ-आकर” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि अपने लक्ष्य को पाने के लिए सतत प्रयास करता रहा। इस प्रयास के कारण वह लक्ष्य के समीप तक पहुँच गया, परंतु इसके बाद भी लक्ष्य को प्राप्त न कर सका।

प्रश्नः 3.
काव्यांश का मुख्य संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश का संदेश यह है कि मनुष्य को अपने जीवन की असफलताओं से हारे बिना निरंतर संघर्ष एवं प्रयास करना चाहिए। सफलता की प्राप्ति में देरी होने पर भी हमें निराश नहीं होना चाहिए तथा आशावान बने रहना चाहिए।

3. वह आता
दो टूक कलेजे के करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता,
दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूट आसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।

प्रश्नः 1.
किसे देखकर मन में दया भाव उठ रहे हैं और क्यों?
उत्तर:
वृद्ध भिखारी को देखकर मन में दया भाव उठ रहे हैं, क्योंकि भूख के मारे उसका पेट चिपक कर कमर से जा लगा है। वह लाठी के सहारे धीरे-धीरे चल रहा है।

प्रश्नः 2.
दोनों बच्चे क्या कर रहे हैं? ऐसा करने के लिए वे विवश क्यों हैं ?
उत्तर:
दोनों बच्चे भी वृद्ध भिखारी के साथ भीख माँग रहे हैं। वे भूख से बेहाल हैं। उनके होठ सूख गए हैं। वे बाएँ हाथ से पेट मलते हुए चल रहे हैं, इसलिए भीख माँगने के लिए विवश हो रहे हैं।

प्रश्नः 3.
वे किस तरह अपमानित महसूस करते हैं? उन्हें भूख मिटने में क्या बाधा है?
उत्तर:
भीख माँगने पर लोगों द्वारा दुत्कार दिए जाने पर वे अपमानित महसूस करते हैं। वे सड़क के किनारे पड़े पत्तलों में पड़े जूठन को चाटकर भूख मिटाना चाहते हैं, पर उस जूठन को झपटने के लिए कुत्ते भी डटे हुए हैं।

4. संकटों से वीर घबराते नहीं
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं
लग गए जिस काम में पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।

हो सरल अथवा कठिन हो रास्ता
कर्मवीरों को न इससे वास्ता।
बढ़ चले तो अंत तक ही बढ़ चले
कठिनतर गिरिशृंग ऊपर चढ़ गए।

कठिन पंथ को देख मुसकाते सदा
संकटों के बीच वे गाते सदा।
है असंभव कुछ नहीं उनके लिए
सरल संभव कर दिखाते वे सदा।

यह असंभव कायरों का शब्द है
कहा था नेपोलियन ने एक दिन
सच बताऊँ जिंदगी ही व्यर्थ है
दर्प बिन, उत्साह बिन और शक्ति बिन।

प्रश्नः 1.
काव्यांश के आधार पर वीरों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
वीरों की विशेषताएँ हैं

  • वीर आपदाओं से घबराते नहीं हैं। .
  • वे संकटों से मुँह नहीं मोड़ते हैं।
  • वे काम को पूरा करके ही छोड़ते हैं।
  • वे काम करके पश्चाताप नहीं करते हैं।

प्रश्नः 2.
कर्मवीर अपने किन कार्यों से दूसरों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं ?
उत्तर:
कर्मवीर कठिन या सरल रास्तों की परवाह किए बिना आगे बढ़ते जाते हैं। वे पर्वत की कठिन चोटियों पर भी चढ़ते – जाते हैं। वे संकटों में भी प्रसन्न रहते हैं। अपने इन कार्यों से वे अनुकरणीय बन जाते हैं।

प्रश्नः 3.
नेपोलियन और कर्मवीरों के बीच की समानता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नेपोलियन का मानना था कि असंभव कायरों का शब्द है। इसी प्रकार कर्मवीरों के लिए भी कुछ असंभव नहीं होता है। यही-नेपोलियन और कर्मवीरों में समानता है।

5. बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी सुनहली फसलों की मुसकान
-बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर भोगे
धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
-बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूंघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
-बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
-बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी-भर तालमखाना खाया
गन्ने चूसे जी भर
-बहुत दिनों के बाद

बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ भू पर
-बहुत दिनों के बाद

प्रश्नः 1.
कवि ने युवतियों को क्या करते देखा? उनका स्वर कैसा था?
उत्तर:
गाँव में कवि ने किशोरियों को धान कूटते देखा। धान कूटते हुए वे गीत गा रही थी। उनका स्वर कोयल के समान कर्णप्रिय और मधुर था।

प्रश्नः 2.
कवि ने किन फूलों को सूंघा? उनकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कवि ने गाँव में बहुत दिनों के बाद मौलसिरी के फूल सूंघे। मौलसिरी के ये फूल बहुत सारे जो ताजे-ताजे खिले थे।

प्रश्नः 3.
कवि ने अपनी किन-किन इंद्रियों को तृप्त किया और कैसे?
उत्तर:
कवि ने अपनी नाक, कान, जीभ, आँख और त्वचा और पाँचों इंद्रियों को तृप्त किया। उसने फूल सँघकर नाक को, गायन सुनकर कान को, गन्ने चूसकर जीभ को, फ़सलों को देखकर आँख को तथा चंदनवर्णी धूल छूकर त्वचा को तृप्त किया।

6. मैं मज़दूर, मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।
अंबर में जितने तारे, उतने वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा।
धरती को सुंदरतम करने की ममता में
बिता चुका है कई पीढ़ियाँ, वंश हमारा।
और आगे आने वाली सदियों में
मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे।
इस प्यासी धरती के हित में ही लाया था
हिमगिरि चीर सुखद गंगा का निर्मल धारा।
मैंने रेगिस्तानों की रेती धो-धोकर
वंध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?

प्रश्नः 1.
धरती को कौन स्वर्ग बनाते हैं और कैसे?
उत्तर:
धरती को स्वर्ग बनाने का कार्य मज़दूर वर्ग करता है। यह वर्ग अपने कठोर श्रम से असंभव से लगने वाले कार्य को संभव कर दिखाते हैं और असुंदर को सुंदर बनाते हैं।

प्रश्नः 2.
वे यह काम कब से करते आ रहे हैं और भविष्य में कौन करेगा?
उत्तर:
मज़दूर यह काम आकाश में तारों की संख्या अर्थात् गणित वर्षों से करते आ रहे हैं। यह काम पहले उनके पुरखों ने किया। अब आने वाले समय में यह काम उनकी आने वाली पीढ़ियाँ करेंगी।

प्रश्नः 3.
उन्होंने धरती को स्वर्ग बनाने के क्रम में क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर:
मज़दूरों ने धरती को स्वर्ग बनाने के क्रम में
(क) हिमालय पर्वत को चीर कर गंगा की पावन धारा ले आए।
(ख) रेगिस्तान की रेती में अपने परिश्रम से सुनहले फूल खिलाए।
(ग) ऊँचे-ऊँचे भवन और अट्टालिकाएँ बनाईं।

7. कुछ भी बन बस कायर मत बन!
ठोकर मार पटक मतमाथा ।
तेरी राह रोकते पाहन
कुछ भी बन बस कायर मत बन!
ले-देकर जीना, क्या जीना?
कब तक गम के आँसू पीना
मानवता ने सींचा तुझको
बहा युगों तक खून-पसीना
कुछ न करेगा किया करेगा
रे मनुष्य बस कातर क्रंदन
कुछ भी बन बस कायर मत बन!
‘युद्ध देहि’ कहे जब पामर
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पद चूमे तस्कर
प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है
पर कायरता अधिक अपावन
कुछ भी बन बस कायर मत बन !

प्रश्नः 1.
राह की बाधाओं को देखकर कायर क्या करते हैं ? कवि उन्हें क्या करने की सलाह देता है?
उत्तर:
राह की बाधाओं को देखकर माथा पटक कर परेशान होते हैं और हिम्मत से काम नहीं लेते हैं। कवि ऐसे लोगों को सलाह देता है कि वे इन बाधाओं को ठोकर मारकर आगे बढ़ जाएँ।

प्रश्नः 2.
‘ले-देकर जीना क्या जीना’ का आशय स्पष्ट कीजिए। इस तरह जीने वाले क्या किया करते हैं?
उत्तर:
‘ले-देकर जीना, क्या जीना’ का आशय है-दुख एवं बाधाओं से समझौता करते हुए जीना, उन बाधाओं का मुकाबला करने से बचने का प्रयास करना। इस तरह समझौता करने वाले बस कातर क्रंदन किया करते हैं।

प्रश्नः 3.
पामर के ललकारने पर कवि क्या करने के लिए कहता है?
उत्तर:
पामर के ललकारने पर कवि कहता है कि, या तो उसे प्रेम के बल पर जीत ले या उसे हरा दे और वह चरण चूमने पर विवश हो जाए।

8. वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बँधा यौवन
नत नयन, प्रिय कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु-मालिका अट्टालिका-प्रकार ।
चढ़ रही थी धूप;
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गई,
प्रायः हुई दुपहर
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
तो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार;
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर
ढलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा
वह तोड़ती पत्थर।

प्रश्नः 1.
मज़दूरनी कहाँ और किस तरह अपने कर्म में लीन थी?
उत्तर:
मज़दूरनी इलाहाबाद की एक सड़क के किनारे बैठी पत्थर तोड़ रही थी। वह धूप में बैठी थी, वहाँ कोई छायादार पेड़ न था। वह आँखें नीची किए भारी हथौड़े से बार-बार प्रहार करती हुई अपने कर्म में लीन थी।

प्रश्नः 2.
स्पष्ट कीजिए कि मज़दूरनी विपरीत परिस्थितियों में काम कर रही थी?
उत्तर:
मज़दूरनी ग्रीष्म की चिलचिलाती धूप वाली दोपहरी में काम कर रही थी। दिन के इस तमतमाते रूप में झलसाती हई लू चल रही थी, जिससे धरती रुई की तरह जल रही थी। इस तरह वह विपरीत परिस्थितियों में काम कर रही थी।

प्रश्नः 3.
कैसे पता चलता है कि काव्यांश में समाज में फैली घोर विषमता की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
मज़दूरनी चिलचिलाती धूप में वहाँ काम करने को विवश थी, जहाँ कोई छायादार पेड़ भी न था। दूसरी ओर उसके सामने ही मल्लिका से सजी अट्टालिकाएँ और महल थे, जो समाज में फैली घोर विषमता की ओर संकेत कर रहे थे।

9. और पैरों के तले है एक पोखर
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा,
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी
प्यास जाने कब बुझेगी!
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान निद्रा चोंच में
नीचे गले के डालता है।

प्रश्नः 1.
तालाब कहाँ है ? उसमें लहरियाँ क्यों उठ रही हैं ?
उत्तर:
कवि जहाँ बैठा है ठीक उसी के पास में तालाब है। शांत ग्रामीण वातावरण में हवा चल रही है। हवा चलने से तालाब के शांत पानी में लहरियाँ उठ रही हैं।

प्रश्नः 2.
तालाब के किनारे पत्थरों को देखकर कवि क्या कल्पना करता है?
उत्तर:
तालाब के किनारे पड़े पत्थरों को देखकर कवि यह कल्पना करता है कि ये पत्थर पता नहीं कब से प्यासे हैं, जो लगातार पानी पिए जा रहे हैं। इनकी प्यास पता नहीं कब शांत होगी।

प्रश्नः 3.
बगुला किसका प्रतीक है? ऐसा आपको क्यों लगता है?
उत्तर:
बगुला धूर्त एवं स्वार्थी लोगों का प्रतीक है। जिस तरह स्वार्थी लोग भोले-भाले लोगों को अपना शिकार बनाकर शोषण कर लेते हैं, उसी प्रकार चंचल मछलियों को देखते ही अपना ध्यान भंग करता है और उन्हें खा जाता है।

10. मैत्री की राह बताने को
सबको सन्मार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आए,
पांडवों का संदेशा लाए।
“दो न्याय अगर तो आधा दो
पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम
रखो अपनी धरती तमाम
हम वहीं खुशी से खाएँगे
परिजन पर असि न उठाएँगे।”

प्रश्नः 1.
मैत्री की राह बताने की आवश्यकता किसे थी? यह कार्य करने कौन आया था?
उत्तर:
कौरव, मित्रता और न्याय की बातें भूलकर युद्ध करने को तत्पर थे। वे कोई बात मानने को तैयार न थे। कौरवों को मित्रता की राह बताने के लिए श्रीकृष्ण पांडवों का दूत बनकर हस्तिनापुर आए थे।

प्रश्नः 2.
काव्यांश में किस भीषण विध्वंस की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
काव्यांश में उस विध्वंस की ओर संकेत किया गया है, जो कौरव एवं पांडवों के बीच समझौता न हो पाने के कारण हो सकता था। ऐसी दशा में यहायुद्ध होना तय था।

प्रश्नः 3.
श्रीकृष्ण, पांडवों का क्या संदेश लेकर, किसके पास गए थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण, दुर्योधन के पास पांडवों का यह संदेश लाए थे कि न्याय के अनुसार आधा राज्य दे दो, पर इसमें यदि कोई बाधा हो तो पांडवों को केवल पाँच गाँव ही दे दो। वे वहीं खुशी से रह लेंगे और हथियार नहीं उठाएँगे।

11. तितली तितली! कहाँ चली हो नंनद-वन की रानी-सी।
वन-उपवन में, गिरि कानन में फिरती हो दीवानी-सी।
फूल-फूल पर, अटक कर करती कुछ मनमानी-सी।
पत्ती-पत्ती से कहती कुछ अपनी प्रणय कहानी-सी।
यह मस्ती, इतनी चंचलता किससे अलि! तुमने पाई ?
कहाँ जा रही हो इस निर्जन उषा में अलसाई ?
सोते ही सोते मीठी-सी सुधि तुमको किसकी आई?
जो चल पड़ी जाग तुम झटपट लेते लेते अंगड़ाई ?

प्रश्नः 1.
तितली किसके समान लग रही है? कवि उसे देखकर क्या कल्पना कर रहा है?
उत्तर:
तितली नंदनवन की रानी-सी लग रही है। उसे देखकर कवि यह कल्पना करता है कि तितली मनमानी करती हुई फिर रही है। वह फूल-पत्तियों को देखकर रुक-रुक जाती है और उसे अपनी प्रेम कहानी सुनाती है।

प्रश्नः 2.
कवि तितली को देखकर उससे क्या पूछता है?
उत्तर:
कवि तितली से पूछता है कि
(क) हे सखी! तुम्हें इतनी चंचलता कहाँ से मिली?
(ख) इस सुनसान सुबह में अलसाई-सी कहाँ जा रही हैं?

प्रश्नः 3.
जाती तितली को देखकर कवि क्या सोचता है, और क्यों?
उत्तर:
जाती हुई तितली को देखकर कवि सोचता है कि तितली को सोए-सोए ही किसी की याद आ गई और उसी से मिलने के लिए वह जागते ही झटपट अंगड़ाई लेती हुई चल पड़ी है।

12. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे, खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुककर झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, चूंघट सरके।
मेंघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की;
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’
बोली अकुलाई लता, ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
क्षितिज-अटारी गहराई दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

प्रश्नः 1.
मेघ आने पर वातावरण में क्या-क्या बदलाव हुए?
उत्तर:
मेघ आने से हवा चलने लगी, आँधी चलने से पेड़ झुकने लगे, धूल उड़ने लगी, नदी ठिठक गई, लताएँ लहराने लगीं, आसमान में बिजली चमकने लगी और अंत में वर्षा शुरू हो गई।

प्रश्नः 2.
बूढ़ा पीपल किसका प्रतीक है? उसने मेघ का स्वागत कैसे किया?
उत्तर:
बूढ़ा पीपल घर के बुजुर्ग व्यक्ति का प्रतीक है। उसे मेघ रूपी मेहमान को घर आया देखकर आगे बढ़कर उसका स्वागत किया और कुशल-क्षेम पूछा।

प्रश्नः 3.
लता की क्रियाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति की किस परंपरा का निर्वाह किया गया है? इस परंपरा का निर्वाह कविता में और कौन-कौन कर रहे हैं ?
उत्तर:
लता ने घर के सदस्यों की उपस्थिति के कारण अपने पति से दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर बात की। यहाँ भारतीय संस्कृति की इसी परंपरा का निर्वाह किया गया है। कविता में नदी, पीपल और तालाब भी इसका निर्वाह कर रहे हैं।

13. मन समर्पित, तन समर्पित
और यह, जीवन समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब,
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण,
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।
माँज दो तलवार को लाओ न देरी
बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी,
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी हूँ।

प्रश्नः 1.
कवि देश की धरती से क्या निवेदन कर रहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि देश की धरती से यह निवेदन कर रहा है कि जब भी उसे अवसर मिले और वह इसकी रक्षा के लिए अपना बलिदान कर दे, तो उसका यह समर्पण स्वीकार कर लिया जाए, क्योंकि धरती माँ का उस पर बहुत ऋण है और उसे चुकाने के लिए उसके पास कुछ नहीं है।

प्रश्नः 2.
कवि देश के लिए अर्पित होने से पहले क्या चाहता है?
उत्तर:
देश के लिए अर्पित होने से पहले कवि चाहता है कि उसकी तलवार पर धार लगाकर उसे दे दी जाए और कमर पर ढाल बाँध दी जाए तथा उसके मस्तक पर मातृभूमि की थोड़ी-सी धूल मल दी जाए।

प्रश्नः 3.
कवि अपनी मातृभूमि के लिए क्या-क्या न्योछावर करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपनी मातृभूमि के लिए अपना तन, मन, जीवन, अपने सपने और अपनी आयु का एक-एक क्षण अर्पित करना चाहता है। वह इतने से भी संतुष्ट नहीं होता। वह देश के लिए और भी बहुत कुछ देना चाहता है।

14. गाते थे खग कल-कल कर स्वर से
सहसा एक हँस ऊपर से
गिरा, बद्ध होकर खर-शर से
हुई पक्ष की हानी।
हुई पक्ष की हानी
करुणा भरी कहानी।
चौंक उन्होंने उसे उठाया
नया जन्म था उसने पाया,
इतने में आखेटक आया,
लक्ष्य-सिद्धि का मानी।
लक्ष्य सिद्धि का मानी,
कोमल कठिन कहानी।

प्रश्नः 1.
अच्छी-भली कहानी अचानक करुण क्यों हो उठी?
उत्तर:
अचानक एक तीक्ष्ण बाण से घायल होकर आसमान में उड़ता हंस ज़मीन पर आ गिरा। उसके पंखों में घाव होने से हंस घायल हो गया था। इसी तरह अच्छी-भली कहानी करुण हो उठी।

प्रश्नः 2.
गौतम ने पक्षी को किस तरह नया जीवन दिया?
उत्तर:
बगीचे में टहल रहे गौतम ने जब गिरे घायल हंस को देखा तो उन्होंने उसे तुरंत उठाया और मरने से बचाया। इस तरह उन्होंने हंस को नया जीवन प्रदान किया।

प्रश्नः 3.
अचानक गौतम के सामने कौन आया? उसे किस पर अभिमान था?
उत्तर:
अचानक गौतम के सामने हंस को मार गिराने वाला शिकारी आ गया, जो उनका ही चचेरा भाई था। उसे अपने अचूक निशाना लगाने पर बड़ा अभिमान था।

15. वीर जवानो, सुनो, तुम्हारे सम्मुख एक सवाल है।
जिस धरती को तुमने सींचा,
अपने खून-पसीनों से
हार गई दुश्मन की गोली,
वज्र सरीखे सीनों से।
जब-जब उठी तुम्हारी बाँहें, होता वश में काल है।
जिस धरती के लिए सदा,
तुमने सब कुछ कुरबान किया।
शूली पर चढ़-चढ़ हँस-हँस कर,
कालकूट का पान किया।
जब-जब तुमने कदम बढ़ाया, हुई दिखाएँ लाल हैं।
उस धरती को टुकड़े-टुकड़े,
करना चाह रहे दुश्मन।
बड़े गौर से अजब तुम्हारी,
चुप्पी थाह रहे दुश्मन।
जाति-पाँति, वर्गों-फिरकों के, वह फैलाता जाल है।
कुछ देशों की लोलुप नज़रें,
लगी तुम्हारी ओर हैं।
कुछ अपने ही जयचंदों के,
मन में बैठा चोर है।
सावधान कर दो उसको जो पहने कपटी खाल है।

प्रश्नः 1.
वीर जवानों ने देश की रक्षा के लिए क्या-क्या किया?
उत्तर:
वीर जवानों ने अपने देश की रक्षा के लिए

  • वज्र जैसे सीने पर गोलियाँ खाईं।
  • हँसते-हँसते शूली पर चढ़ गए
  • विष पीते हुए देश के लिए सब कुछ कुरबान कर दिया।

प्रश्नः 2.
दुश्मन कौन-सी इच्छा लिए घात लगाए बैठे हैं ? इसके लिए वे क्या-क्या कर रहे हैं ?
उत्तर:
दुश्मन हमारे देश के टुकड़े-टुकड़े करने की इच्छा लिए घात लगाए बैठे हैं। इसके लिए वे बहुत ध्यान से जवानों एवं भारतवासियों की गतिविधियों को देख रहे हैं। वे लोगों में फूट डालने के लिए जाति-धर्म, वर्ग के जाल फैला रहे हैं।

प्रश्नः 3.
जयचंद किन्हें कहा गया है? उनके प्रति कवि देशवासियों से क्या करने के लिए कह रहे हैं?
उत्तर:
देश के प्रति गद्दारी करने वालों को जयचंद कहा गया है। कवि ऐसों से देशवासियों को सावधान कर रहा है, क्योंकि वे हमारे ही बीच कहीं छिपे बैठे हैं और मौके का इंतज़ार कर रहे हैं।

16. इंद्रदेवता कोटर में तोते से आकर यूँ बोले।
‘सब पक्षी उड़ गए यहाँ से तुमने पंख न खोले।
रहने लायक हरे वृक्ष देखो हैं कितने। इस वन में?’
सूख गया वट वृक्ष गिरेगा, सोच रहे हो क्या मन में?’
तोता बोला, ‘इंद्रदेव! मैंने कोटर में जन्म लिया।
वट के फल खाए, इसने रक्षा की, सम्मान दिया।।
सुख-सम्पत्ति के साथी, विपदा आए करें किनारा।
देवराज! अब स्वयं बताओ क्या कर्तव्य हमारा?’
इंद्र हुए खुश, बोले, ‘प्रिय! जो माँगों वह वरदान मिले।’
तोता बोला, ‘देव! कृपा से हरा-भरा यह दूंठ खिले।।’
‘तथास्तु’ कहकर देवराज फिर दिए न कहीं दिखाई।
हरा-भरा वट वृक्ष हुआ फिर हरियाली लौट आई।।
जननी जन्मभूमि की खातिर कितना मन बलिदानी।
मन प्राणों में जगी रहे, तोते की यह अमर कहानी।।

प्रश्नः 1.
इंद्रदेवता ने कोटर में बैठे तोते से क्या पूछा?
उत्तर:
इंद्रदेवता ने कोटर में बैठे तोते से पूछा कि जब सारे पक्षी इस पेड़ को छोड़कर जा चुके हैं, तब तुम क्यों नहीं उड़े। वन में और भी हरे-भरे पेड़ रहने लायक हैं। यह सूखा वृक्ष गिरने वाला है, फिर तुम क्या सोचकर रुके हो।

प्रश्नः 2.
तोते ने इंद्रदेव को क्या जवाब दिया?
उत्तर:
तोते ने इंद्र को बताया कि मैंने इस पेड़ के फल खाए, इसने हमारी रक्षा की और हमें सम्मान दिया, तो संकट के समय इसका साथ छोड़ना कहाँ तक ठीक रहेगा। हे देवराज! आखिर इस पेड़ के प्रति हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है।

प्रश्नः 3.
तोते की अमर कहानी मन-प्राण में बसी रहे, कवि ऐसा क्यों चाहता है ?
उत्तर:
तोते ने सूखे पेड़ का साथ छोड़ने के बजाए इंद्रदेव से वरदान माँगकर उसे हरा-भरा करा दिया। तोते में जननी और जन्मभूमि के प्रति ऐसा समर्पण भाव देखकर ही कवि चाहता है कि तोते की अमर कहानी उसके मन प्राण में बसी रहे।

17. हँस लो दो क्षण खुशी मिली,
वरना जीवन भर क्रंदन है।
किसका जीवन हँसी-खुशी में
इस दुनिया में रहकर बीता?
सदा-सर्वदा संघर्षों को
इस दुनिया में किसने जीता?
खिलता फूल म्लान हो जाता
हँसता रोता चमन-चमन है।
कितने रोज़ चमकते तारे
कितने रह-रह गिर जाते हैं,
हँसता शशि भी छिप जाता है
जब सावन घन घिर आते हैं।
उगता-ढलता रहता सूरज
जिसका साक्षी नील गगन है।

प्रश्नः 1.
कविता में मनुष्य को क्या संदेश दिया गया है और क्यों?
उत्तर:
कविता में मनुष्य को यह संदेश दिया गया है कि वह खुशी के दो पलों का भरपूर आनंद उठाए, क्योंकि यह जीवन दुखों से भरा है जहाँ खुशियाँ बहुत ही कम हैं।

प्रश्नः 2.
दुख से मनुष्य ही नहीं प्रकृति भी दुखी है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दुख से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य सदैव संघर्ष करता है, पर दुखों से मुक्त नहीं हो पाता है। इसी प्रकार फूल खिलने पर चमन हँसता है, पर फूल के मुरझाने पर वही चमन रोने लगता है। इस तरह दुख से मनुष्य और प्रकृति दोनों ही दुखी है।

प्रश्नः 3.
सूरज का उगना-ढलना किसका प्रतीक है? वह किन बातों का साक्षी है?
उत्तर:
सूरज का उगना-ढलना, जीवन में सुख-दुख के आने-जाने का प्रतीक है। सूरज आसमान में चमककर गिरते तारों, चाँद के छिपने और सावन के बादलों के घिरने और नष्ट होने का साक्षी है।

18. है जनम लेते जगह में एक ही
एक ही पौधा उन्हें है पालता!
रात में उन पर चमकता चाँद भी
एक-सी ही चाँदनी है डालता।
छेदकर काँटा किसकी उँगलियाँ
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार डूबी तितलियों के पर कतर
भौरे का है वेध देता श्याम तन।
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भौरे को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधों का निराले ढंग से,
है सदा देता कली का जी खिला।
है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर-सीस पर
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।

प्रश्नः 1.
प्रकृति बिना भेदभाव के काम करती है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फूल और काँटे दोनों एक ही पौधे द्वारा पाले जाते हैं। इन दोनों में भेदभाव किए बिना चंद्रमा समान रूप से दोनों पर चाँदनी बिखेरता है। इससे स्पष्ट है कि प्रकृति भेदभाव के बिना काम करती है।

प्रश्नः 2.
काँटा सबकी आँखों में क्यों खटकता है?
उत्तर:
काँटा किसी की अंगुलियों में चुभ जाता है और किसी के कपड़ों में फँसकर सुंदर कपड़ों को फाड़ देता है। वह तितलियों के पंखों को काट देता है और भौंरे के शरीर में चुभ जाता है, इसलिए काँटा सबकी आँखों में खटकता है।

प्रश्नः 3.
फूल अपने नाम के अनुरूप बड़प्पन किस तरह बनाए रखता है?
उत्तर:
फूल तितलियों को अपनी गोद में उठाए रखता है और भौरों को अपनी सुगंध का रस पिलाता है। वह कली का मन खुश कर देता है। इस तरह वह अपने नाम के अनुरूप बड़प्पन बनाए रखता है।

19. गए विष्णु लोक,
बोले भगवान से,
“देखा किसान को
दिन भर में तीन बार
नाम उसने लिया है।
बोले विष्णु-“नारद जी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है,
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह
बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए,
तेल पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की।
ध्यान रहे सविशेष
एक बँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।

प्रश्नः 1.
नारद ने भगवान विष्णु को क्या बताया?
उत्तर:
नारद ने भगवान विष्णु को शिकायत करते हुए बताया कि आपको जो किसान सबसे अधिक प्रिय है, उस किसान ने पूरे दिन-भर में केवल तीन बार ही आपका नाम लिया है, फिर भी आपको वह सबसे प्रिय लगता है।

प्रश्नः 2.
विष्णु जी ने नारद का ध्यान हटाने के लिए क्या कहा?
उत्तर:
विष्णु जी ने नारद का ध्यान हटाने के लिए कहा कि नारद जी, एक दूसरा आवश्यक काम आ गया है। यह काम तुम्हारे अलावा कोई और नहीं कर सकता है।

प्रश्नः 3.
विष्णु जी ने नारद से क्या करने के लिए कहा?
उत्तर:
विष्णु जी ने नारद को आवश्यक कार्य बताते हुए कहा कि तेल भरा यह पात्र लेकर भूमंडल की परिक्रमा कर आइए, पर एक बात का विशेष ध्यान रहे कि इससे तेल की एक भी बूंद नहीं गिरनी चाहिए।

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