CBSE Class 11 Sanskrit सन्धिः
अत्यन्त समीपवर्ती दो वर्गों के मेल को सन्धि (Combination of Letters) कहते हैं। जैसे-‘विद्यालय:’ में विद्या व आलयः पदों के दो अत्यन्त समीपवर्ती आ वर्गों का मेल होकर एक आ हो गया है। सन्धि को पहिता भी कहते हैं। सन्धि और संयोग में अन्तर-दो व्यञ्जनों के अत्यन्त समीपवर्ती होने पर उनका मेल संयोग कहलाता है किन्तु संयोग की अवस्था में उन वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन नहीं होता। सन्धि में परिवर्तन हो जाता है। वाक्चातुर्यं में क्, च् का संयोग है किन्तु वाङ्मयः में म् में सन्धि है (वाक् + मयः)।
सन्धि के नियम :
निकट होने के कारण दो वर्गों में कभी सुविधा से तो कभी शीघ्रता के परिणामस्वरूप परिवर्तन हा जाता है। यह परिवर्तन कई प्रकार का होता है; जैसे –
-
कभी दोनों के स्थान पर एक नया वर्ण बन जाता है
तत्र + उक्तः = तत्रोक्तः। (‘अ’ तथा ‘उ’ के मेल से नया वर्ण ‘ओ’ बन गया है।) – -
कभी पूर्व वर्ण में परिवर्तन होता है
असि + अभिहतः = अस्याभिहतः। (असि के अंतिम वर्ण ‘इ’ को ‘अ’ परे होने पर ‘य’ हो गया है।) इसी प्रकार प्रति + एकं = प्रत्येकं। प्रति + उवाच = प्रत्युवाच।
सन्धि के भेद (Types of Sandhi)
सन्धि के निम्न तीन प्रकार हैं:
1. स्वर-सन्धि या अच् सन्धि (Combination of Vowels)
यदि दो समीपस्थ स्वरों में परिवर्तन हो तो उसे स्वर-सन्धि कहते हैं; जैसे-न + अवलेढि = नावलेढि (यहाँ ‘अ’ तथा ‘अ’ दोनों स्वरों में सन्धि की गई है।)
2. व्यञ्जन-सन्धि या हल सन्धि (Combination of Consonants)
यदि दो व्यञ्जनों में सन्धि की जाती है तो उसे व्यंजन-सन्धि कहेंगे। जैसे – जगत् + जननी = जगज्जननी (यहाँ त् तथा ज् व्यञ्जनों में सन्धि की गई है)। यदि पहला वर्ण व्यञ्जन हो और दूसरा वर्ण स्वर, तो व्यञ्जन में परिवर्तन होने के कारण इसे भी व्यञ्जन-सन्धि ही कहा जाता है; जैसे-जगत् + ईशः = जगदीशः (यहाँ ‘त्’ व्यञ्जन तथा ‘इ’ स्वर में सन्धि की गई है।)
3. विसर्ग-सन्धि (Visarga Sandhi)
यदि पहला वर्ण विसर्ग है और बाद का वर्ण स्वर अथवा व्यंजन में से कोई भी है, तब विसर्ग में परिवर्तन होने के कारण इसे विसर्ग-सन्धि कहा जाता है। जैसे-वृतः + उपाध्यायः + यत् = वृत उपाध्यायो यत् (यहाँ. वृतः + उपाध्यायः में विसर्ग का लोप, ‘उपाध्यायः + यत्’ में विसर्ग को ‘उ’ होकर पूर्ववर्ती अकार से मिलकर ‘ओ’ हो जाता है)।
1. स्वर सन्धि के भेद
(Types of Vowel Combination)
स्वर सन्धि के अनेक भेद होते हैं, यथा–दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण, अयादि, पूर्वरूप, पररूप, प्रकृतिभाव।
(क) दीर्घ सन्धि (Dirgha Sandhi)
समान वर्ण परे होने पर अक् (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ) वर्गों के स्थान पर एक समान वर्ण, किन्तु दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ऋ) आदेश हो जाता है।
1. अ से परे अ हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है-अ + अ = आ। जैसे –
2. अ (ह्रस्व) से परे आ (दीर्घ) हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है-अ + आ = आ। जैसे –
3. आ (दीर्घ) से परे अ (ह्रस्व) हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है- आ + अ = आ। जैसे –
4. आ (दीर्घ) से परे आ (दीर्घ) हो तो दोनों के स्थान पर आ (दीर्घ) हो जाता है-आ + आ = आ। जैसे –
5. इ (ह्रस्व) के बाद इ (ह्रस्व) होने पर दोनों को मिलाकर दीर्घ ई हो जाता है- इ + इ = ई। जैसे –
6. इ (ह्रस्व) के परे ई (दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ई हो जाता है-इ + ई = ई। जैसे –
7. ई (दीर्घ) के परे इ (ह्रस्व) होने पर दोनों के स्थान में दीर्घ ई होता है-ई + इ = ई। जैसे –
8. ई (दीर्घ) के परे ई (दीर्घ) हो, तो भी दोनों के स्थान पर ई (दीर्घ) आदेश हो जाता है – ई + ई = ई। जैसे –
9. उ (ह्रस्व) के परे उ (ह्रस्व) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – उ + ऊ = ऊ। जैसे –
10. उ (ह्रस्व) के परे ऊ (दीर्घ) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – 3 + ऊ = ऊ। जैसे –
11. ऊ (दीर्घ) के परे उ (ह्रस्व) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – ऊ + उ = ऊ। जैसे –
12. ऊ (दीर्घ) के परे ऊ (दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) हो जाता है – ऊ + ऊ = ऊ। जैसे –
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम् चमू + ऊर्जः = चमूर्जः
13. ऋ, ऋ (ह्रस्व या दीर्घ) से परे ऋ, ऋ (ह्रस्व या दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ऋ हो जाता है – ऋ या ऋ + ऋ या ऋ = ऋ। जैसे –
मातृ + ऋणम् = मातृणम् पितृ + ऋद्धिः = पितृद्धिः
विशेष –
ऋ से परे यदि ल हो तो वहाँ भी दोनों के स्थान में दीर्घ ऋ हो जाती है। जैसे-होतृ + लकारः = होतृकारः (होत्लुकारः, होतृलकारः भी रूप बनता है।)
परन्तु हस्व ऋ से परे ह्रस्व ऋ होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ऋ विकल्प से होती है। जैसे –
पितृ + ऋणम् = पितॄणम्, पितृणम्। होत + ऋकारः = होतृकारः, होतृकारः।
दीर्घ-सन्धि अपवाद –
(ख) गुण सन्धि (Guna Sandhi)
अ या आ के अनन्तर ह्रस्व या दीर्घ इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ तथा लु आएँ तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर्, अल्, आदेश हो जाते हैं (अ, ए, ओ, गुण स्वर कहलाते हैं इसलिए इस सन्धि को गुण सन्धि कहते हैं)। 1. ह्रस्व अ के बाद ह्रस्व इ होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है-अ + इ = ए। जैसे –
2. ह्रस्व अ के बाद दीर्घ ई होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है-अ + ई = ए। जैसे –
3. दीर्घ आ के पश्चात् ह्रस्व इ होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है- आ + इ = ए। जैसे –
4. दीर्घ आ के परे दीर्घ ई होने पर भी, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है-आ + ई = ए। जैसे –
5. ह्रस्व अ के परे ह्रस्व उ होने पर दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-अ + उ = ओ। जैसे –
6. ह्रस्व अ के पश्चात् दीर्घ ऊ होने पर, दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-अ + ऊ = ओ। जैसे –
7. दीर्घ आ के पश्चात् ह्रस्व उ होने पर, दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-आ + उ = ओ। जैसे –
8. दीर्घ आ के पश्चात् दीर्घ ऊ होने पर भी दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-आ + ऊ = ओ। जैसे –
9. ह्रस्व अ से परे ऋ होने पर दोनों के स्थान पर अर् आदेश हो जाता है-अ + ऋ = अर। जैसे –
10. दीर्घ आ के परे ऋ होने पर भी दोनों के स्थान पर अर् आदेश होता है-आ + ऋ = अर्। जैसे –
11. अ (ह्रस्व) के बाद ल होने पर दोनों के स्थान पर अल् आदेश होता है-अ + ल = अल। जैसे –
तव + लकारः = तवल्कारः मम + लृकारः = ममल्कारः
12. दीर्घ आ के बाद ल होने पर दोनों के स्थान पर अल् आदेश होता है-आ + ल = अंल। जैसे –
माला + लकारः = मालल्कारः शाला + लृकारः = शालल्कारः
(ग) वृद्धि सन्धि (Vriddhi Sandhi)
अ अथवा आ के अनन्तर यदि ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ हो जाता है और यदि ओ या औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है। इस सन्धि को वृद्धि सन्धि कहते हैं। (ऐ तथा औ वृद्धि स्वर कहलाते हैं)।
1. अ + ए = ऐ
(घ) यण् सन्धि (Change into Semi-Vowels)
ह्रस्व या दीर्घ इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ल (इक्) के अनन्तर कोई असवर्ण स्वर (अच्) आए तो इ, उ, ऋ, ल के स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल् (यण्) आदेश हो जाते हैं।
1. इ + असमान वर्ण (इ, ई से भिन्न स्वर) = य् + असमान वर्ण
2. ई + असमान वर्ण (इ, ई से भिन्न स्वर) = य् + असमान वर्ण
3. उ + असमान वर्ण (उ, ऊ से भिन्न स्वर) = व् + असमान वर्ण
4. ऊ + असमान वर्ण (उ, ऊ से भिन्न स्वर) = व् + असमान वर्ण
5. ऋ + असमान वर्ण (ऋ, ऋ से भिन्न स्वर) = र् + असमान वर्ण
6. ल + असमान वर्ण (ल से भिन्न स्वर) = ल् + असमान वर्ण
(ङ) अयादि सन्धि (Change into अय् etc.)
ए, ओ, ऐ, औ (एच्) के अनन्तर कोई भी स्वर (अच्) हो तो ए, ओ, ऐ, औ (एच) के स्थान पर क्रमशः अय्, अव्, आय्, आव् (अयादि) हो जाते हैं।
1. ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर
ने + अति = न् + अय् + अति = नयति
हरे + ए = हर् + अय् + ए = हरये
2. ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर
भो + अति = भ् + अव् + अति = भवति
पो + अनः = प् + अव् + अनः = पवनः
विष्णो + ए = विष्ण् + अव् + ए = विष्णवे
3. ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई स्वर
नै + अकः = न् + आय् + अकः = नायकः
ग्लै + अति = ग्ल् + आय् + अति = ग्लायति
4. औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर
प्रचोदितौ + अगायताम् = प्रचोदितावगायताम्।
क्षीरनिधौ + इव = क्षीरनिधाविव।
तौ + अग्राहयत = तावग्राहयत।
करौ + इव = कराविव
(च) पूर्वरूप सन्धि
यह अयादि सन्धि का अपवाद है। इसके अनुसार पदान्त (पद के अन्त) में ए या ओ होने पर और उसके बाद ह्रस्व अ होने पर अयादि सन्धि का नियम लागू नहीं होता अपितु अ को पूर्वरूप हो जाता है। पूर्वरूप होने पर वह अ पहले शब्द के अंतिम स्वर में मिल जाता है तथा उसकी सूचना मात्र के लिए 5 (अवग्रह) चिह्न लगा दिया जाता है। जैसे –
विद्यते + अयनाय = विद्यतेऽयनाय।
हरे + अव = हरेऽव
को + अत्र = कोऽत्र
अरण्ये + अगच्छत् = अरण्येऽगच्छत्
राज्यतन्त्रे + अस्मिन् = राज्यतन्त्रेऽस्मिन्
(छ) पररूप सन्धि
यदि अकारान्त उपसर्ग के बाद ऐसी धातु आए जिसके आदि में ए, ओ हो तो दोनों के स्थान पर क्रम से ए, ओ (पररूप) हो जाता है। जैसे –
प्र + एषयति = प्रेषयति
अव + ओषति = अवोषति
प्र + एजते = प्रेजते
उप + ओजति = उपोजति
(ज) प्रकृतिभाव सन्धि (Prakriti Bhava Sandhi)
नियम –
यदि कोई ऐसा पद हो जो द्विवचनान्त हो तथा उसके अन्त में ई, ऊ, ए में से कोई एक हो तथा आगे कोई स्वर हो तो ई, ऊ, ए ज्यों-के-त्यों रहते हैं। जैसे –
2. व्यञ्जन (हल) सन्धि
(Consonant Sandhi)
व्यञ्जन (हल) का किसी व्यञ्जन (हल) के साथ अथवा स्वर (अच्) के साथ मेल होने पर व्यञ्जन में जो परिवर्तन होता है उसे व्यञ्जन (हल) सन्धि कहते हैं। जैसे-तत् + चित्रम् = तच्चित्रम्, तत् + टीकते = तट्टीकते। इन उदाहरणों में त् + च् मिलने से प्रथम अक्षर के स्थान पर च तथा त् + ट् मिलने से प्रथम अक्षर त् के स्थान पर ट् हो गया है। व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद है। जैसे-अनुस्वार श्चुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व आदि।
1. अनुस्वार सन्धि
1. पदान्त न् परे यदि च् या छ् हो तो न् के स्थान पर अनुस्वार तथा श् दोनों हो जाते हैं। जैसे –
2. पदान्त न् से परे ट् या ठ हो तो अनुस्वार और ष् हो जाते हैं। जैसे –
3. पदान्त न् से परे यदि त् थ् हो तो न् के स्थान पर अनुस्वार के साथ ‘स्’ हो जाता है। जैसे –
4. पद के अन्दर रहने वाले न् और म् से परे वर्णों से पहले वर्णों तथा श्, ए, स्, ह में से कोई वर्ण आ जाने पर न और म् को अनुस्वार हो जाता है। जैसे –
2. परसवर्ण
अपदान्त अनुस्वार के अनन्तर यय् (वर्गों के 1, 2, 3, 4 वर्ण और य, र, ल, व) वर्गों में से कोई एक हो तो अनुस्वार को आगे आने वाले वर्ग के वर्ण का पाँचवाँ अक्षर (परसवर्ण) हो जाता है। जैसे –
(क) अपदान्त अनुस्वार के बाद कवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर छु हो जाता है। जैसे –
(ख) अपदान्त अनुस्वार के बाद चवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर बू हो जाता है। जैसे –
(ग) अपदान्त अनुस्वार के बाद टवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर ण हो जाता है। जैसे –
(घ) अपदान्त अनुस्वार के बाद तवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर न हो जाता है। जैसे –
(ड़) अपदान्त अनुस्वार के बाद पवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान में म् हो जाता है। जैसे –
सं + भोजनम् = सम्भोजनम्
(च) पदान्त ‘म्’ से परे कोई भी व्यञ्जन हो तो म् को अनुस्वार हो जाता है। जैसे –
हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
मधुरम् + हसति = मधुरं हसति
सत्वरम् + याति = सत्वरं याति
3. श्चुत्व
स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के साथ श् और चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ज्) में से कोई वर्ण आ रहा हो तो स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के स्थान पर क्रमशः श् और चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ज्) हो जाते हैं। जैसे –
अपवाद – श् के परे तवर्ग को चवर्ग नहीं होता। जैसे-विश् + नः = विश्नः, प्रश् + नः = प्रश्नः आदि।
4. ष्टुत्व
स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के साथ यदि ष् और टवर्ग (ट्, त्, ड्, द, ण) में से कोई हो तो स् और तवर्ग को क्रमशः ष् और टवर्ग आदेश हो जाते हैं। जैसे –
परन्तु कुछ अवस्थाओं में यह नियम लागू नहीं होता। जैसे, यदि पद के अन्त में टवर्ग हो और उसके पश्चात् न् के अतिरिक्त तवर्ग का वर्ण अथवा स् हो तो उसके स्थान पर टवर्ग नहीं होता। जैसे –
षट् + सन्तः = षट् सन्तः (यहाँ स् का ष् नहीं होगा)
किन्तु न् को ण होने के उदाहरण मिलते हैं यथा
इसी प्रकार तवर्ग के किसी वर्ण के पश्चात् मूर्धन्य ष् हो तो तवर्ग के वर्ण के स्थान पर टवर्ग का वर्ण नही होता। जैसे –
सन् + षष्ठः = सन् षष्ठः।
5. जश्त्व
किसी शब्द में यदि झल् अर्थात् वर्णों के पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा वर्ण तथा श्, ए, स्, ह हों तथा उसके अनन्तर कोई भी अन्य वर्ण हो तो झलों को जश् (उसी वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ग, ज्, ड्, द्, ब्) हो जाता है। नियम व्यापक रहने पर भी भाषा में उदाहरण ऐसे ही मिले हैं जिनके अनुसार क्, च्, ट्, त्, प् पद के अन्त में होते हैं और अनन्तर कोई वर्ण होता है तो इनका क्रमशः ग्, ज, ड्, द्, ब् हो जाता है। जैसे –
2 (क) सत्व-विधानम्
स् से पूर्व अ, आ से भिन्न स्वर होने पर स् के स्थान पर ष् हो जाता है, जैसे- मुनिषु, (मुनि + सु), साधुषु (साधु + सु), रामेषु (रामे + सु) आदि। लतासु में स् को ष् नहीं होगा, क्योंकि यहाँ स् से पूर्व ‘आ’ है।
2 (ख) णत्व-विधानम्
अन्य शब्द – ऋणम्, परिणामः, रामचन्द्रेण, वर्णनम्, भीषणम्, पुरुषेण।
ऊपर के सब उदाहरणों में ‘ण’ दिखाई देता है। ध्यान से देखिए कि इन सब में ण् से पूर्व ऋ, ऋ, र्, ष् में से कोई एक वर्ण अवश्य आया है, इसीलिए न् के स्थान पर ण् हुआ है
कृपया बताएँ ण से पहले ऋ/ऋ//ष् में से इन उदाहरणों में कौन-सा वर्ण है? जैसे-रामेण में ण् से पूर्व र है।
(i) मातृणाम् में ण् से पूर्व……………है।
(ii) ऋषीणाम् में ण् से पूर्व……………है।
(iii) गृहाणि में ण् से पूर्व……………….है।
(iv) ऋणम् में ण से पूर्व………………..है।
(v) रामचन्द्रेण में ण् से पूर्व……………….है।
(vi) भीषणम् में ण् से पूर्व………………….है।
(vii) नराणाम् में ण् से पूर्व………………..है।
(viii) मनुष्याणाम् में ण् से पूर्व……………है।
(ix) प्रियाणि में ण् से पूर्व…………………है।
(x) परिणामः में ण् से पूर्व…………….है।
(xi) वर्णनम् में ण् से पूर्व… ………है।
(xii) पुरुषेण में ण् से पूर्व…………..है।
एक ही पद में न् से पहले ऋ/ऋ// में से कोई वर्ण न हो तो न् को ण नहीं होता।
उदाहरण – देवेन, देवानाम्, फलानि, वचनम्, अनामिका, दासेन, सदनम्, खगेन आदि। इन उदाहरणों में ‘न्’ से पूर्व कहीं भी ऋ/ऋ/ष् में से कोई वर्ण नहीं है अतः न् को ण् होने का कोई कारण नहीं है। पदान्त में न् → न्
किन्तु पदान्त में न् को ण् नहीं होता भले ही पदान्त न् से पूर्व ऋ/ऋार में से कोई वर्ण क्यों न हो। जैसे रामान्।ऋषीन्। मनुष्यान्। हरीन्। प्रियान्। नरान्। पितृन्। रक्षन्। कुर्वन्। स्पृशन्। आरोहन्।
नियम (2) पदान्त में न् को ण् नहीं होता।
रामान् में र पदान्त न से पूर्व है इसलिए न् को ण् नहीं हुआ।
ऋषीन् में ष् पदान्त न् से पूर्व है इसलिए न् को ण् नहीं हुआ।
निम्न वाक्यों को पूरा करें।
(i) मनुष्यान् में ष् पदान्त न् से पूर्व है ……………………………………।
(ii) हरीन् में र् पदान्त न् से पूर्व है ……………………………………….।
(iii) प्रियान में र् पदान्त न् से पूर्व है ……………………………………..।
(iv) नरान् में र् पदान्त न् से पूर्व है ……………………………………….।
(v) पितॄन् में ऋ पदान्त न् से पूर्व है ………………………………………।
(vi) रक्षन् में र् ……………………………………… इसलिए न् को ण् नहीं हुआ।
(vii) कुर्वन् में र् ……………………………………… इसलिए न् को ण् नहीं हुआ।
(viii) स्पृशन् में ऋ ………………………………………. इसलिए न् को ण नहीं हुआ।
(ix) आरोहन् में र् ………………………………………. इसलिए न् को ण नहीं हुआ।
अब ऐसे उदाहरण दिए जा रहे हैं जिन पदों में ऋ/ऋ//ष् के बाद न् को ण् नहीं हुआ और न् इनके अन्त में भी नहीं है। जैसे –
रचना। रत्नम्। रटनम्। प्रपञ्चेन। प्रवासेन। रत्नेन। रटन्तम्। आराधना। मारीचेन। रक्तेन। प्रलापेन। दर्शनानि। परिवर्तनम्। मूर्तीनाम्। गृहस्थेन। प्रधानम्। ईदृशेन। प्रतिमानम्।
अब यह सोचना पड़ेगा कि ऋ/// के बाद तथा न् से पहले कौन-से वर्ण हों तो न् को ण् होगा तथा कौन-से वर्ण नहीं हों तो न् को ण् नहीं होगा।
सह्याव्यवधान – ऋ/ऋ//ष् के बाद न् को ण् होने में जो वर्ण कोई व्यवधान या रुकावट नहीं डालते उन वर्णों को सह्य व्यवधान कहते हैं।
असह्यव्यवधान – ऋ/ऋ//ष् के बाद नं को ण् होने में जो वर्ण व्यवधान या रुकावट पैदा करते हैं उन वर्णों को असह्य व्यवधान कहते हैं।
सह्यव्यवधान-तालिका
इनके बीच में होने पर न् का ण होता है।
न् → ण् (सह्य वर्गों के उदाहरण)
प्राणाः – सह्य वर्ण (आ)
पुरुषेण – सह्य वर्ण (उ, ए)
कृपणः – सह्य वर्ण (प्, अ)
प्रियाणि – सह्य वर्ण (इ, य्, आ)
लक्ष्मणः – सह्य वर्ण (म्, अ)
उपर्युक्त सब उदाहरणों में सह्य वर्ण सह्यव्यवधान तालिका में से हैं।
असाव्यवधान – तालिका
(वाधकवर्णतालिका)
इनके बीच में होने पर न् का ण होता है।
रचना – असह्यवर्ण [८]
रत्नम् – असह्यवर्ण [त्]
(i) प्रपञ्चेन – असह्यवर्ण [………………….].
(ii) रत्नेन – असह्यवर्ण [………………..]
(iii) आराधना – असह्यवर्ण [………………]
(iv) रक्तेन – असह्यवर्ण [………………]
(v) दर्शनानि – असह्यवर्ण [……………
(vi) मूर्तीनाम् – असह्यवर्ण [……………….
(vii) प्रधानम् – असह्यवर्ण [………………..
(viii) प्रतिमानम् – असह्यवर्ण [………………]
(ix) रटनम् – असह्यवर्ण […………….]
(x) प्रवासेन — असह्यवर्ण [………………]
(xi) रटन्तम् – असह्यवर्ण [……………….]
(xii) मारीचेन – असह्यवर्ण [………………..]
(xiii) प्रलापेन – असह्यवर्ण [……………]
(xiv) परिवर्तनम् – असह्यवर्ण [………….]
(xv) गृहस्थेन – असह्यवर्ण [……………]
(xvi) ईदृशेन – असह्यवर्ण […………..]
3. विसर्ग सन्धि (Visarga Sandhi)
विसर्ग से परे स्वर या व्यञ्जन के होने पर विसर्ग में होने वाले परिवर्तन को विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे –
रामः + आगच्छति = ‘राम आगच्छति’ में रामः के विसर्ग का लोप हो गया है क्योंकि विसर्ग के बाद दीर्घ आ स्वर पड़ा है (लोप)।
देवः + गच्छति = देवो गच्छति। यहाँ गच्छति का ग् विसर्ग से परे है, अतः देवः के स्थान पर देवो रूप बन गया है तथा विसर्ग के स्थान पर हुआ ‘उ’ देव के आकार में मिलकर ‘ओ’ हो गया है (उत्व)।
विसर्ग सन्धि के भी अनेक भेद हैं। यहाँ कुछ प्रमुख भेदों का ही विचार किया जाएगा.
1. यदि पदान्त ‘र’ के परे वर्णों का पहला, दूसरा तथा श, ष, में से कोई वर्ण हो या अन्य का ‘स्’ हो तो उनके स्थान पर विसर्ग हो जाता है। जैसे –
पुनर् + पतितः = पुनः पतितः हरि + स् = हरिः राम + स् = रामः।
2. सत्व-विसर्ग से परे च्, छ् होने पर विसर्ग का श् हो जाता है, ट्, ठ् परे होन पर ष् हो जाता है तथा त्, थ् परे होने पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे –
3. विसर्ग के बाद श्, ष, स् हों तो विसर्ग को श्, ष, स् विकल्प से होंगे। जैसे –
4. रुत्व-विसर्ग से पहले अ तथा आ को छोड़कर यदि कोई और स्वर हो और विसर्ग से परे कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व्, ह में से कोई वर्ण हो तो उस विसर्ग को र् हो जाता है। जैसे –
5. उत्व विधि-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और परे भी ह्रस्व ‘अ’ ही हो तो विसर्ग को उ हो जाता है तथा विसर्ग पूर्व अ के साथ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती अ का पूर्वरूप हो जाता है और उसके स्थान में 5 चिह्न लिख दिया जाता है। जैसे –
6. उत्व-यदि विसर्ग के पूर्व अ हो, किन्तु विसर्ग के अनन्तर किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण हो अथवा य, र, ल, व् तथा ह् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग सहित अ को ओ हो जाता है। जैसे –
7. विसर्ग लोप –
(i) यदि पूर्व नियम की भाँति ह्रस्व अ के अनन्तर विसर्ग हो, किन्तु विसर्ग के पश्चात् अ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे
पुरुषः + एव = पुरुष एव धर्मः + एव = धर्म एव वृतः + उपाध्यायः = वृतउपाध्यायः
(ii) यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और परे कोई स्वर या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह इन वर्गों में से कोई हो तो वहाँ पर विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग का लोप होने पर यदि कोई सन्धि प्राप्त हो तो वह नहीं होती।
प्राक्तनाः + इव = प्राक्तना इव पुरुषः + एव = पुरुष एव भवादृशाः + एव = भवादृशा एव
(iii) अ, इ, उ के अनन्तर (विसर्गों के स् के रु का) र विद्यमान हो तथा उसके पश्चात् भी र् हो तो पहले (विसर्ग के) र का लोप हो जाता है। लोप होने पर अ, इ, उ को दीर्घ भी हो जाता है। जैसे –
(iv) सः और एषः के पश्चात् कोई व्यञ्जन हो तो इनके विसर्गों का लोप हो जाता है। जैसे –
सः पठति = स पठति एषः विष्णु = एष विष्णुः
यदि सः, एषः के पश्चात् ह्रस्व अ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उसका भी लोप हो जाता है।
जैसेसः एति =.स एति एषः + गृहीतः = एष गृहीतः
किन्तु यदि सः, एषः के परे ह्रस्व अ हो तो विसर्ग सहित अ को ओ हो जाता है। जैसे –
सः + अस्ति = सोऽस्ति एषः + अपि = एषोऽपि
(v) भोः, भगोः के विसर्गों का भी लोप हो जाता है यदि विसर्ग से परे कोई स्वर अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो। जैसे –
भोः + लक्ष्मी = भो लक्ष्मी भगोः + नमस्ते = भगो नमस्ते अघोः + याहि = अघो याहि
8. नमः, पुरः, तिरः शब्दों के विसर्ग को क्या प् के परे होने पर स् हो जाता है। जैसे
अभ्यासः
1. अधोदत्तानां पदानां सहायतया प्रतिवाक्यम् स्थूलपदयोः सन्धिं चित्वा लिखत।
(नीचे दिए गए पदों की सहयता से प्रत्येक वाक्य के मोटे पदों की सन्धि चुनकर लिखिए।)
(Choose join the bold words in each sentence by given words.)
(i) देव! तव स्वागताय तत्परः + अस्मि।
(क) तत्परःस्मि
(ख) तत्परोऽस्मि
(ग) तत्परोस्मि
(घ) तत्परःअस्मि
(ii) कुत्रस्ति जगत् + ईशः।
(क) जगदीशः
(ख) जगतीशः
(ग) जगतीशाः
(घ) जगदिशः
(iii) यज्ञदत्तः वृक्षं वि + अलोकयत्।।
(क) व्यलोकयत्
(ख) विलोकयत्
(ग) विलोकस्य
(घ) विअलोकयत्
(iv) वनेषु गजैः + गम्यते।
(क) गजैगम्यते
(ख) गजैगम्यते
(ग) गजैस्गम्यते
(घ) गजैष्णम्यते
(v) तत्र + एव मम मित्रम् आगमिष्यति।
(क) तत्रेव
(ख) तत्रैव
(ग) तत्रएव
(घ) तत्राएव
(vi) सः निर + रसं जलं किमर्थं पिबति?
(क) निरीसं
(ख) निरसं
(ग) निससं
(घ) नीरसं
2. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु निम्नलिखितानां पदानां सहायतया उचितं सन्धिच्छेवं सन्धि वा चित्वा लिखत।
(नीचे लिखे वाक्यों में स्थूल पदों में नीचे दिए गए शब्दों की सहायता से उचित सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि चुनकर लिखिए।)
(Choose the separate or join the bold words in the following sentences by given words.)
(i) मुनिः बद्धाञ्जलिः तामवदत्।
(क) बद्ध + अञ्जलिः
(ख) बद्धा + अञ्जलिः
(ग) बद्ध + आञ्जलिः
(घ) बद्धा + अञ्जलिः
(ii) एका बलाका तस्य + उपरि विष्ठाम् उदसृजत्।
(क) तस्यउपरि
(ख) तस्योपरि
(ग) तस्युपरि
(घ) तस्यूपरि
(iii) हितोपदेशे कथानां सङ्कलनम् अस्ति।
(क) सम् + कलनम्
(ख) सं + कलनम्
(ग) सन् + कलनम्
(घ) सङ् + कलनम्
(iv) साम्प्रतं वदतु, कोऽहम्।
(क) कः + अहम्
(ख) को + अहम् ।
(ग) कौ + अहम्
(घ) को + हम्
(v) एतत् + चिन्तयित्वा राजा पण्डितसभा कारितवान्।
(क) एतचिन्तयित्वा
(ख) एतच्चिन्तयित्वा
(ग) एतचिन्तयित्वा
(घ) एतञ्चिन्तयित्वा
(vi) दन्तैः + हीनः शिलाभक्षी परपादेन गच्छति।।
(क) दन्तैहीनः
(ख) दन्तैस्हीनः
(ग) दन्तैीनः
(घ) दन्तैष्हीनः
3. अधोदत्तेषु पदेषु शुद्धं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।
(नीचे दिए पदों में से शुद्ध पद चुनकर रिक्त स्थानों को भरें।)
(Fill in the blanks by the following suitable words.)
(i) च + इति = …………
(क) चेति
(ख) चैति
(ग) चिति
(घ) च्येति
(ii) अनयोर्विधेयः
(क) अनयो + रविधेयः
(ख) अनयोः + विधेयः
(ग) अनयो + विधेयः
(घ) अनयोर् + विधेयः
(iii) किञ्चित् = …………………. + …………………
(क) किम् + चित्
(ख) किञ् + चित्…
(ग) किन + चित्
(घ) किं + चित्
4. अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा अधो दत्तैः शुद्धपदैः चित्वा लिखत।
(नीचे लिखे रेखांकित शब्दों की सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि नीचे दिए गए शुद्ध शब्दों द्वारा चुनकर लिखिए।)
(Choose the separate or join the following underlined by the given correct words.)
(i)
आयुर्वेदः
तृतीया विद्या आसीत्।
(क) आयुर् + वेदः
(ख) आयुष् + वेदः
(ग) आयुः + वेदः
(घ) आयु + वेदः
(ii)
मम + एतत्
सौभाग्यं वर्तते।
(क) ममेतत्
(ख) ममीतत्
(ग) ममैतत्
(घ) ममुतत्
(iii) तस्मै स्नेहं
ददाम्यहम्
।
(क) ददामि + अहम्
(ख) ददानि + अहम्
(ग) ददामी + अहम्
(घ) ददामि + हम्
(iv)
काष्ठात् + अग्निः
मथ्यामानात् जायते।
(क) काष्ठादग्निः
(ख) काष्ठाताग्नि
(ग) काष्ठाताग्निः
(घ) काष्ठादाग्निः
(v)
भूमिः + तोयं
खन्यमाना ददाति।
(क) भूमिष्तोयं
(ख) भूमिस्तोयं
(ग) भूमिायं
(घ) भूमितोयं
(vi) तच्चन्दनपादपस्य शाखायां सर्पाः वसन्ति।
(क) तत् + चन्दनपादपस्य
(ख) तद् + चन्दनपादपस्य
(ग) तच् + चन्दनपादपस्य
(घ) तन् + चन्दनपादपस्य
5. अधोलिखित रेखाङ्कितपदेषु यथास्थानं सन्धिः/विच्छेदो निम्नस्थानेषु दत्तैः उचितैः पदैः चित्वा लिखत।
(नीचे लिखे रेखांकित शब्दों की सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि निम्न दिए गए उचित पदों से चुनकर लिखिए।)
(Choose the separate or join the following underlined words by given the correct words.)
(i) मुनयः ईशभक्तौ
तत् + लीनाः
अभवन्।
(क) तल्लीनाः
(ख) तच्लीनाः
(ग) तन्लीनाः
(घ) तंलीनाः
(ii) राक्षसाः
नीरसम्
भोजनं खादन्ति। .
(क) निर् + रसम्
(ख) नी + रसम्
(ग) नीर् + रसम्
(घ) नि + रसम्
(iii)
आपणेषु + अपि
विद्युत् गता।
(क) आपणेषपि
(ख) आपणेष्वपि
(ग) आपणेषुअपि
(घ) आपणेषुपि
(iv) एते छात्राः
सच्छीलाः
सन्ति।
(क) सम् + छीलाः
(ख) सद् + शीलाः
(ग) सच् + शीलाः
(घ) सत् + शीलाः
(v)
यदि + अपि
त्वं धर्मेन्द्रः तथापि सत्यं न जानाति।
(क) यदिपि
(ख) यदिअपि
(ग) यद्यपि
(घ) यदपि
(vi)
पुनरपि
त्वं अत्र आगमिष्यसि।
(क) पुनर् + रपि
(ख) पुनः + अपि
(ग) पुनर् + अपि
(घ) पुनार् + अपि
6. अधोलिखितम् रेखाङ्कितपदेषु सन्धिच्छेदं/सन्धि अधोलिखितैः शुद्धपदैः चित्वा लिखत।
(नीचे लिखे रेखांकित पदों की सन्धि विच्छेद अथवा सन्धि नीचे दिए गए पदों में से शुद्ध पर चुनकर लिखिए।)
(Choose the separate or join the underlined words by choose the following correct words.)
(i)
अद्यावकाशः
अस्ति।
(क) अद्य + अवकाशः
(ख) अद्या + वकाशः
(ग) अद्य + आवकाशः
(घ) अद्या + आवकाशः
(ii) मुनिः
बद्ध + अंजलिः
अवदत्।
(क) बद्धांजलिः
(ख) बद्धंजलिः
(ग) बद्धजांलिः
(घ) बद्धर्जलिः
(iii) एका बलाका
तस्योपरि
विष्ठाम् उदसृजत्।
(क) तस्यो + परि
(ख) तस्य + उपरि
(ग) तस्य + परि
(घ) तस्य + ओपरि
(iv) साम्प्रतं वदतु
कोऽहम्
।
(क) को + हम्
(ख) को + अहम्
(ग) को + ऽहम्
(घ) कः + आहम्
(v)
दन्तैहीनः
शिलाभक्षी परपादेन गच्छति।
(क) दन्तैः + हीनः
(ख) दन्तैर + हीनः
(ग) दन्तै + हीनः
(घ) दन्तै + हीनः
(vi)
रमा + ईशः
विद्यालयं गच्छति।
(क) रमेशः
(ख) रामेशः
(ग) रमीशः
(घ) रमिशः
पाठ्यपुस्तके प्रदत्तपदानां सन्धिच्छेदः सन्धिः वा करणम्
निम्न रेखांकित पदानां सन्धि विच्छेदं का कृत्वा लिखत
(निम्नरेखांकित पदों का सन्धि अथवा विच्छेद करके लिखिए-)
पाठः 1
(1) शं
नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु
।
(2) शं नः सिन्धवः शमु
सन्त्वापः
।
(3)
मित्रस्याहं
चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षा
(4) अभयं
ज्ञातादभयं
पुरो यः।
(5)
यत्किञ्च
जगत्यां जगत्।
उत्तर:
(1) नः + चतस्त्रः, प्रदिशः + भवन्तु
(2) सन्तु + आपः
(3) मित्रस्य + अहं
(4) ज्ञातात् + अभयं
(5) यत् + किम् + च
पाठः 2
(1)
कोऽरुक्
, कोऽरुक्, कोऽरुक्।
(2)
तदैव
एकस्य शिष्यस्य दृष्टिः वृक्षस्थे विहगे अपतत्।
(3)
एकम् + वनम्
आसीत्।
(4)
तत् + च
नित्यं प्रभुञ्जीत।
(5) स्वास्थ्यं
येनानुवर्तते
।
(6) मा
मा + एवम्
।
(7) ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, शिशिरः, हेमन्तः, वसन्तः,
चेति
।
(8)
तस्याशिताद्यादाहारात
(9)
बलवर्णञ्च
वर्धते।
(10)
तस्यत्सात्मयं
विदितम्।
(11)
प्रियच्छात्राः
।
(12) चत्वारि सूत्राणि
सर्वदा + एव
स्मर्तव्यानि।
उत्तर:
(1) को + अरुक्/कः + अरुक्
(2) तदा + एव
(3) एकं वनम्
(4) तच्च
(5) येन + अनुवर्तते
(6) मैवम्
(7) च + इति
(8) तस्य + अशित + आद्यात् + आहारात्
(9) बलवर्णम् + च
(10) तस्य + ऋतुसात्मयं
(11) प्रिय + छात्राः
(12) सर्वदैव
पाठः 3
(1) सङ्कथनं
सम्प्रीतिश्च
परस्परम्।
(2) आशायाः ये
दासास्ते
दासाः सर्वलोकस्य।
(3) अव्यवस्थितचित्तानां
प्रसादोऽपि
भयङ्करः।
(4)
कराविव
शरस्य।
(5)
नेत्रयोरिव
पक्ष्मणी।
(6)
आरभन्ते + अल्पमेव + अज्ञाः
।
(7) महारम्भाः
कृतधियस्तिष्ठन्ति
।
(8)
अनुग्रहः + च, दानम् + च
शीलमेतत् प्रशस्यते।
उत्तर:
(1) सम्प्रीतिः + च
(2) दासाः + ते
(3) प्रसादः + अपि/प्रसादो + अपि
(4) करौ + इव
(5) नेत्रयोः + इव
(6) आरभन्तेऽल्पमेवाज्ञाः
(7) कृतधियः + तिष्ठन्ति
(8) अनुग्रहश्च, दानञ्च
पाठः 4
(1) पुरतः
हिमाच्छन्नः
गिरिराजः।
(2) नैव,
नैव
। त्वां हत्वा गां रक्षामि।
(3) वनस्य रक्षार्थं नियुक्तः
किकरोऽस्मि
।
(4) भगवान् शिवः
ममापि
आराधनीयः देवः।
(5) मम नाम
कुम्भोदरः
।
(6) भवता तु
रुद्र + ओजसा
अस्यां प्रहारः कृतः।
(7)
न + एतत्
शक्यम्।
(8) अहं
मूढोवा
बुधो वा।
(9) नवं वयः कान्तमिदं
वपुश्च
।
(10)
किमप्यहिंस्यस्तव
चेन्मतोऽहम्।
(11)
पिण्डेषु + अनास्था
खलु भौतिकेषु।
(12) मातः!
क्वासौ
सिंहः?
उत्तर:
(1) हिम + आच्छन्नः
(2) न + एव
(3) किङ्करो + अस्मि/किङ्करः + अस्मि
(4) मम + अपि
(5) कुम्भ + उदरः
(6) रुद्रौजसा
(7) नैतत्
(8) मूढः + वा
(9) वपुः + च
(10) किम् + अपि + अहिंस्यः + तव
(11) पिण्डेष्वनास्था
(12) क्व + असो
पाठः 5
(1) कुरु निर्मलम्
उज्ज्वलम्
अयि।
(2) शान्तं
तवच्छन्दः
।
(3)
निर् + संशयं
कुरु है।
उत्तर:
(1) उत् + ज्वलम्
(2) तव + छन्दः
(3) निस्संशयं
पाठः 6
(1) बालमित्रैः सह विविधाः क्रीडाः
कुर्वनपि
दोषपूर्णम् आचरणं न कृतवान्।
(2) अयं राज्यलोभं परित्यज्य
स्वाग्रजस्य
अनुमत्या वनं प्राविशत्।
(3) असौ बहुवारं तस्करैः दुष्टैः च गृहीतः
पीड़ितश्च
।
(4)
मान + अपमानौ
तस्य कृते समौ आस्ताम्।
(5)
महाजनो येन
ग्रातः स पन्थाः ।
(6)
धन्याः + तु
ते भारतभूमि भागे।
(7)
स्वर्गापवर्गास्पदमार्ग
भूते।
(8) विद्यासखा
परमबन्धुरवेह
लोके।
(9) नष्टं द्रव्यं प्राप्यते
हि+उद्यमेन
।
(10)
नष्टारोग्यं सूपचारैः
सुसाध्यम्।
(11) नाभ्यर्थितो
जलधरोऽपि
जलं ददाति।
(12)
भोगा न
भुक्ताः वयमेव भुक्ताः।
(13)
मनस्तु
साधुध्वनिभिः पदे पदे।
(14)
नैको मुनिः + यस्य
मतं प्रमाणम्।
उत्तर:
(1) कुर्वन् + अपि
(2) स्व + अग्रजस्य
(3) पीडितः + च
(4) मानापमानौ
(5) महाजनः + येन
(6) धन्यास्तु
(7) स्वर्ग + अपवर्ग + आस्पदमार्ग
(8) परमबन्धुः + अव + इह
(9) युद्यमेन
(10) नष्ट + आरोग्यं, सु + उपचारैः
(11) जलधरो + अपि/जलधरः + अपि
(12) भोगाः + न
(13) मनः + तु
(14) न + एकः, मुनिर्यस्य