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CBSE Class 10 Hindi B संवाद लेखन

September 28, 2019 by LearnCBSE Online

CBSE Class 10 Hindi B लेखन कौशल संवाद लेखन

संवाद दो शब्दों ‘सम्’ और ‘वाद’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-बातचीत करना। इसे हम वार्तालाप भी कहते हैं। दो व्यकि तयों के मध्य होने वाली बातचीत को संवाद कहा जाता है।

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संवाद व्यक्ति के मन के भाव-विचार जानने-समझने और बताने का उत्तम साधन है। संवाद मौखिक और लिखित दोनों रूपों में किया जाता है। संवाद में स्वाभाविकता होती है। इसमें व्यक्ति की मनोदशा, संस्कार, बातचीत करने का ढंग आदि शामिल होता है। व्यक्ति की शिक्षा-दीक्षा उसकी संवाद शैली और भाषा को प्रभावित करती है। हमें सामने वाले की शिक्षा और मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर संवाद करना चाहिए। इसी बातचीत का लेखन संवाद लेखन कहलाता है।

प्रभावपूर्ण संवाद बोलना और लिखना एक कला है। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • संवाद की भाषा सरल, स्पष्ट और समझ में आने वाली होनी चाहिए।
  • संवाद बोलते समय सुननेवाले की मानसिक क्षमता का ध्यान रखना चाहिए।
  • वाक्य छोटे और सरल होने चाहिए।
  • संवादों को रोचक एवं सरस बनाने के लिए सूक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग करना चाहिए।
  • संवाद लिखते समय विराम चिह्नों का प्रयोग उचित स्थान पर करना चाहिए।
  • बोलते समय बलाघात और अनुतान को ध्यान में रखना चाहिए।
  • एक बार में एक या दो वाक्य बोलकर सुनने वाले की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

संवाद-लेखन के कुछ उदाहरण

प्रश्नः 1.
उत्तराखंड में पिछले सप्ताह भूकंप आ गया था। आप अपने मित्र के साथ भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए जाना चाहते हैं। आप अपने मित्र और स्वयं के बीच हुए संवाद का लेखन कीजिए। आप समीर हैं।
उत्तरः
समीर – संजय, क्या तुम्हें उत्तराखंड में आए भूकंप की कुछ जानकारी मिली?
संजय – हाँ समीर, कल शाम को मैं अपने पापा के साथ दूरदर्शन पर समाचार देख रहा था तभी इस बारे में जान गया।
समीर – ऐसी प्राकृतिक आपदा देखकर मेरा तो मन भर आया।
संजय – ठीक कहा समीर तुमने, टूट-फूट चुके घर, तबाह हो गई जिंदगियाँ, धंसी ज़मीन, टूटी सड़कें, जगह-जगह शरणार्थी से बैठे लोगों को देखकर आँखों में आँसू आ गए।
समीर – मित्र, मैंने तो इन लोगों के आँसू पोछने के लिए सोचा है।
संजय – क्या मतलब? .
समीर – हमें इन लोगों की मदद करनी चाहिए।
संजय – हमारे पास साधन भी तो नहीं है।
समीर – दृढ़ इच्छा और लगन से सब कुछ संभव है। मैंने अपने स्कूल के कुछ छात्रों से बात की तो वे सहर्ष तैयार हो गए हैं। आज हम अपना-अपना सहयोग देंगे। इनमें दवाएँ, माचिस, मोमबत्तियाँ, कपड़े, खाने का सामान आदि होगा।
संजय -फिर?
समीर – इन्हें लेकर मैं उत्तराखंड के उन शिविरों में जाऊँगा, जहाँ पीड़ित भूखे-प्यासे बैठे हैं।
संजय – मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं भी उनकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ।
समीर – यह तो बहुत अछि बात होगी।
संजय – मैं कल सवेरे ही तुमसे मिलता हूँ।

प्रश्नः 2.
किसी क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि पर फैक्ट्रियाँ लगाई जा रही हैं। इससे किसानों की भूमि और रोटी-रोजी छिन रही है। इस संबंध में दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
अमन – अरे! श्याम, कहाँ से चले आ रहे हो?
श्याम – अपने मित्र के घर गया था, जो नहर के उस पार वाले गाँव में रहता है।
अमन – क्यों, क्या ज़रूरत आ गई थी?
श्याम – उस गाँव के पास कुछ फैक्ट्रियाँ लगाए जाने की योजना है। वहाँ के किसानों की भूमि अधिगृहीत की जा रही है।
अमन – देश के विकास के लिए फैक्ट्रियों की स्थापना ज़रूरी है।
श्याम – वह तो है पर क्या कभी सोचा है कि इससे किसानों की रोटी-रोजी छिन जाएगी। वे भूखों मरने को विवश हो जाएँगे।
अमन – सुना है कि सरकार परिवार के किसी एक व्यक्ति को नौकरी देती है।
श्याम – एक व्यक्ति के नौकरी के बदले सोना उगलने वाली ज़मीन पर फैक्ट्री लगाना ठीक नहीं है। इससे लाभ कम नुकसान अधिक है।
अमन – वह कैसे?
श्याम – फैक्ट्रियाँ लगाने से हरियाली नष्ट तो होगी ही साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होगा, जिसका दुष्प्रभाव दूरगामी होता है।
अमन – इसका उपाय क्या है?
श्याम – इसका एक विकल्प यह है कि इन फैक्ट्रियों को ऐसी जगह पर स्थापित किया जाए जहाँ की भूमि पथरीली या ऊसर हो।
अमन – इस विषय पर सरकार को विचार करना चाहिए।
श्याम – हाँ, इससे हमारा पर्यावरण संतुलित रह सकेगा और खाद्यान्न भी मिलता रहेगा।

प्रश्नः 3.
बढ़ते आतंकवाद पर चिंता प्रकट कर रहे दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए।
उत्तरः
अजय – नमस्ते विजय, कैसे हो?
विजय – नमस्ते अजय, मैं ठीक हूँ। कुछ चिंतित से दिख रहे हो, क्या बात है?
अजय – मेरी चिंता का कारण है, आज के समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर छपी खबर जिसे शायद तुमने नहीं पढ़ा है।
विजय – आज मेरे घर अखबार नहीं आया है। बताओ तो सही ऐसी क्या खबर है।
अजय – आज पठानकोट पर हुए आतंकी हमले की खबर पढ़कर दुख हुआ। चिंता इस बात की है कि इतना प्रयास करने के बाद भी आतंकवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।
विजय – मित्र, यह कुछ गुमराह युवकों की गलत सोच, लालच और बुरे कार्यों का परिणाम है जिसमें निर्दोषों की जान जाती है और समाज में अशांति फैलती हैं।
अजय – आतंकवादं अब नासूर बन गया है। एक घटना का घाव भरने भी नहीं पाता है कि आतंकी दूसरा घाव दे जाते हैं। पता नहीं आतंकी ऐसा क्यों करते हैं?
विजय – कुछ आतंकी तो धन की लालच में ऐसा करते हैं जबकि कुछ आतंकियों के मस्तिष्क में जाति, धर्म, भाषा आदि का जहर इस तरह भर दिया जाता है कि वे अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
अजय – पर यह मानवता के लिए कलंक के समान है। इसे रोका जाना चाहिए।
विजय – यह काम अकेले सरकार से नहीं होगा। इसके लिए युवाओं को भी अपनी सोच बदल लेनी चाहिए।

प्रश्नः 4.
अभय पुलिस सेवा में जाना चाहता है जबकि उमंग इंजीनियर बनना चाहता है। दोनों के बीच होने वाली बातचीत
को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
अभय – नमस्ते उमंग, कैसे हो?
उमंग – नमस्ते अभय, मैं ठीक हूँ। अपनी कहो, कैसे हो?
अभय – मैं भी बिलकुल ठीक हूँ। तुम आजकल कहाँ रहते हो? दिखाई ही नहीं देते।
उमंग – मित्र, इन छुट्टियों को मैं खेलकूद में नहीं बिताना चाहता हूँ। मैं ग्यारहवीं की पढ़ाई में अभी से जुट गया हूँ।
अभय – अरे! क्या बनना चाहते हो, बड़े होकर, जो इतनी मेहनत कर रहे हो?
उमंग – मैं इंजीनियर बनना चाहता हूँ। इसके लिए ग्यारहवीं-बारहवीं की विज्ञान की कठिन पढ़ाई और फिर बाद में आई०आई०टी० का उच्च स्तरीय टेस्ट पास करने के लिए मेहनत ज़रूरी है।
अभय – ठीक कहते हो, आज की इस मेहनत के बाद प्रतिष्ठा और पैसा दोनों ही तुम्हारे कदम चूमेंगे।
उमंग – अरे! मैंने तो पूछा ही नहीं कि बड़े होकर तुम क्या बनना चाहते हो?
अभय – मैं आई०पी०एस० बनना चाहता हूँ।
उमंग – अच्छा तो मोटा पैसा कमाना चाहते हो।
अभय – नहीं अभय, मैं पुलिस अधिकारी बनकर देश द्रोहियों और आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी फेरना चाहता हूँ। पैसा कमाना होता तो मैं आई०ए०एस० बनने की सोचता।
उमंग – इरादे तो तुम्हारे नेक हैं। ईश्वर तुम्हें सफलता दे।
अभय – धन्यवाद, उमंग, ईश्वर तुम्हें भी लक्ष्य तक पहुँचाए।
उमंग – धन्यवाद! अच्छा फिर मिलते हैं।

प्रश्नः 5.
भारत द्वारा एशिया कप (क्रिकेट)-2016 जीतने पर दो मित्रों के बीच हुई बातचीत का संवाद लेखन कीजिए।
उत्तरः
राजन – अरे! मधुर, क्या तुमने कल का क्रिकेट मैच देखा था?
रमेश – राजन, यह भी कोई पूछने वाली बात हुई। मैं तो पूरा मैच देखकर ही सोया था।
राजन – मैं तो डर रहा था कि कहीं एशिया कप का फाइनल मैच धुल ही न जाए।
रमेश – वर्षा और तूफ़ान के कारण शुरू में तो ऐसा ही लग रहा था, पर भगवान की कृपा से मैच शुरू हो ही गया।
राजन – देखा तुमने धोनी के टास जीतने से भारत के जीत की संभावना बन गई थी।
रमेश – नहीं ऐसा नहीं है। 20 ओवर से कम करके 15 ओवर का कर दिया गया था, इसलिए बँगलादेशी बल्लेबाजों ने शुरू से खुलकर खेलना शुरू कर दिया था।
राजन – आखिरी ओवरों में उनकी बल्लेबाजी बहुत अच्छी थी।
रमेश – पर अंतिम ओवर में जसप्रीत बुमरा ने बहुत अच्छी गेंदबाजी की।
राजन – कुछ भी हो पर भारत की शुरूआत अच्छी थी।
रमेश – ठीक कहते हो, रोहित शर्मा के जल्दी आउट होने का भारतीय बल्लेबाजों पर असर नहीं हुआ और कोहली एवं शिखर धवन का उत्कृष्ट रूप सामने आया।
राजन – पर धोनी के छह गेंदों पर बनाए गए 23 रन और उन छक्कों को कैसे भूला जा सकता है।
रमेश – धोनी ने जिस तरह से मैच समाप्त किया वह अद्भुत था। भारत ऐसे ही एशिया का चैंपियन नहीं बन गया है।

प्रश्नः 6.
आपको किसी पर्वतीय स्थल पर यात्रा करने का अवसर मिला। आपका सामान उठाने में वहाँ के एक भारवाहक
रऊफ ने आपकी मदद की। उसके साथ हुए संवाद को अपने शब्दों में लिखिए। आप जयंत हो।
उत्तरः
रऊफ – बाबू जी नमस्ते! कहाँ जाना है आपने?
जयंत – मुझे भैरों मंदिर जाना है। कितनी दूर है यहाँ से?
रऊफ – बाबू जी, भैरों मंदिर यहाँ से है तो दो ही किलोमीटर दूर पर चढ़ाई बहुत है और आपके पास सामान भी तो
जयंत – तुम उचित मज़दूरी ले लेना और सामान लेकर साथ चलो।
रऊफ – ठीक है बाबू जी!
जयंत – जम्मू है तो बहुत सुंदर, इस जगह पर वैष्णों देवी का पर्वतीय सौंदर्य अत्यंत मनोरम है।
रऊफ – पर साहब पर्वतीय जगहों का जीवन बड़ा कठोर होता है। यहाँ रोटी के लिए एड़ी-चोटी का पसीना एक करना पड़ता है।
जयंत – पर यहाँ के लोग स्वस्थ तो होते हैं।
रऊफ – साहब यहाँ की मेहनत और जलवायु स्वस्थ तो बनाती है पर पत्थरों पर चलते-चलते हमारे पैरों में छाले पड़ जाते हैं। हममें से शायद ही कोई बड़े पेट या चर्बी वाला मिले।
जयंत – पर हम सैलानियों को यहाँ की यात्रा बहुत अच्छी लगती है।
रऊफ – साहब दूर के ढोल सुहावने तो होते ही हैं। अब आप ही देखो आप लोगों का सामान ढो-ढोकर हमें पेट भरना पड़ता है।
जयंत – ठीक कहते हो जयंत। जो इतने निकट से यहाँ के लोगों को देखेगा वही इसे समझ पाएगा।

प्रश्नः 7.
सिनेमाहाल में फ़िल्म देखकर लौटे वरुण की अरुण से हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
वरुण – नमस्ते अरुण! इस समय कहाँ से चले आ रहे हो।
अरुण – नमस्ते वरुण! मैं इस समय फ़िल्म देखकर आ रहा हूँ।
वरुण – अरे! कोई नई फ़िल्म आई है क्या?
अरुण – नहीं वरुण, यह नई फ़िल्म नहीं है। बड़े भाई साहब दो-तीन साल पहले कह रहे थे कि ‘सरफरोश’ अच्छी फ़िल्म है, मौका मिले तो देखना।
वरुण – अरुण, कौन-कौन से अभिनेता-अभिनेत्रियों ने इसमें काम किया है?
अरुण – इस फ़िल्म में मुख्य रूप से आमिर खान, सोनाली बेंद्रे, नसीरुद्दीन शाह आदि ने प्रभावपूर्ण अभिनय किया है।
वरुण – इस फ़िल्म की कहानी का आधार क्या है?
अरुण – इस फ़िल्म की कहानी का आधार देशभक्ति, देश में व्याप्त नशीले पदार्थ और हथियारों का क्रय-विक्रय और देश में अस्थिरता फैलाने और देश के दुश्मनों का पर्दाफ़ाश करना है।
वरुण – आमिर खान की इस फ़िल्म में भूमिका क्या है ?
अरुण – इस फ़िल्म में आमिर खान ने एक जाँबाज पुलिस अफसर की भूमिका निभाई है जो देश के दुश्मनों का पर्दाफ़ाश करते हुए इसके मुखिया की असलियत सभी के सामने लाते हैं।
वरुण – इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह की क्या भूमिका है?
अरुण – इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह कला प्रेमी हैं जो अपनी कला की आड़ में काले-धंधे चलाते हैं।
वरुण – फिर तो इस रविवार को मैं भी इस फ़िल्म को देखूगा।

प्रश्नः 8.
आपने उद्यान में माली को काम करते देखा। आपने उसके पास जाकर बातचीत की। इस बातचीत को संवाद रूप में लिखिए। आप सुधीर हैं।
उत्तरः
सुधीर – माली काका राम-राम।
माली – राम-राम बेटा! अरे सुधीर कैसे हो?
सुधीर – माली काका आप इस उद्यान में कब से काम कर रहे हैं ?
माली – बेटा, मैं यहाँ बीस वर्षों से काम कर रहा हूँ।
सुधीर – आप इस उद्यान को हरा-भरा रखने के लिए बहुत परिश्रम करते होंगे न।
माली – हाँ बेटा, इन पौधों की रखवाली और इनके पेड़ बनने तक देखभाल करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।
सुधीर – यह आम का पेड़ अभी तो बहुत छोटा है। यह कब तक फल देगा?
माली – बेटा यह आम देशी प्रजाति का है जो पाँच साल के बाद ही फल देता है।
सुधीर – माली काका, उस पेड़ के आम काले क्यों पड़ते जा रहे हैं?
माली – सुधरी बेटा, बढ़ते प्रदूषण और ईंट के भट्ठों से निकलने वाले धुएँ के कारण आम के फल पर यह बीमारी हो जाती है। इससे आम काले पड़कर गिर जाते हैं।
सुधीर – माली काका, यह प्रदूषण मनुष्य एवं जीव-जंतुओं के अलावा पेड़-पौधों पर भी असर डालने लगा है। इससे पेड़ पौधे जल्दी मर रहे हैं।
माली – प्रदूषण रोकने के दिशा में युवा पीढ़ी को आगे आना चाहिए।
सुधीर – काका, इस वर्षा ऋतु में मैं भी कई पौधे लगाऊँगा।
माली – पर्यावरण बचाने के लिए यह बहुत अच्छा कदम होगा।

प्रश्नः 9.
आप गाजियाबाद निवासी अंकुर हैं। आपको चंडीगढ़ जाना है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के काउंटर पर बैठे क्लर्क
से हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
उत्तरः
अंकुर – नमस्ते सर!
क्लर्क – नमस्ते! कहिए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?
अंकुर – जी मुझे चंडीगढ़ जाना है। मुझे वहाँ जाने के लिए बस कब तक मिलेगी?
क्लर्क – गाजियाबाद से दिल्ली के लिए कोई सीधी बस नहीं है।
अंकुर – फिर मुझे क्या करना चाहिए?
क्लर्क – आप यहाँ से अंतरराज्यीय बस अड्डा कश्मीरी गेट चले जाइए। वहाँ से आपको हर एक घंटे बाद बस मिल जाएगी।
अंकुर – क्या वहाँ से वातानुकूलित बस भी मिल जाएगी?
क्लर्क – वातानुकूलित बसें भी वहाँ से मिल जाएँगी, पर उनका समय आपको वहीं से पता चल पाएगा।
अंकुर – क्या आप दिल्ली से चंडीगढ़ का किराया बता सकते हैं ?
क्लर्क – (कोई पुस्तक देखकर) जी, वातानुकूलित बस का किराया 550 रु. है। शायद इस पर कुछ टैक्स भी लगे।
अंकुर – आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ।
क्लर्क – आपकी यात्रा मंगलमय हो।

प्रश्नः 10.
आपका नाम मयंक है। आप ग्यारहवीं में विज्ञान वर्ग में प्रवेश लेना चाहते हैं। इस संबंध में विद्यालय के प्रधानाचार्य के साथ हुई बातचीत को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
मयंक – सर नमस्ते! क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?
प्रधानाचार्य – नमस्ते! अंदर आ जाइए।
मयंक – सर मुझे विज्ञान वर्ग में ग्यारहवीं में प्रवेश लेना है।
प्रधानाचार्य – दसवीं कक्षा में आपको कौन-सा ग्रेड मिला है?
मयंक – जी मुझे ‘ए’ ग्रेड मिला है।
प्रधानाचार्य – विज्ञान, गणित और अंग्रेजी विषयों में कौन से ग्रेड मिले हैं?
मयंक – जी मुझे तीनों ही विषयों में ‘ए’ ग्रेड मिला है।
प्रधानाचार्य – आप विज्ञान विषय ही क्यों पढ़ना चाहते हैं ?
मयंक – विज्ञान विषय में मेरी विशेष रुचि है।
प्रधानाचार्य – क्या आपको नहीं लगता है कि विज्ञान कठिन विषय है?
मयंक – सर मेरे पिता जी बी०एस०सी० करके बैंक में क्लर्क हैं और माँ एम०एस०सी० करने के बाद प्राइवेट स्कूल में विज्ञान शिक्षिका हैं।
प्रधानाचार्य – तब आप इस सरकारी विद्यालय में क्यों पढ़ना चाहते हैं ?
मयंक – सर, मेरी पढ़ाई शुरू से ही सरकारी स्कूल में हुई है। मैंने इस विद्यालय का बड़ा नाम सुना है। मेरे दो मित्र भी यहाँ बारहवीं में पढ़ते हैं।
प्रधानाचार्य – आप कक्षाध्यापक मि. शर्मा के पास फ़ीस जमा करवाकर प्रवेश ले लीजिए।
मयंक – जी बहुत-बहुत धन्यवाद।

प्रश्नः 11.
फ़िल्मों में दिनोंदिन अश्लीलता बढ़ती जा रही है। ‘पाप’ फ़िल्म देखकर लौटे अनुज की अपने मित्र से हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
अनुज – नमस्ते, रमन कहो इस समय कहाँ से आ रहे हो?
रमन – नमस्ते अनुज! इन छुट्टियों में कई दिनों से फ़िल्म देखने को मन हो रहा था। इस समय मैं फ़िल्म देखकर आ रहा हूँ।
अनुज – अच्छा! कौन-सी फ़िल्म देख रहे हो?
रमन – फ़िल्म का नाम था-पाप।।
अनुज – फ़िल्म के नाम से तो लगता है कि यह न तो देखने की चीज़ है और न करने की बल्कि उससे कोसों दूर रहने की चीज़ है।
रमन – कुछ ऐसा ही समझ लो।
अनुज – क्या फ़िल्म का विषय धार्मिक था?
रमन – मित्र मैंने समझा था कि कोई नया विषय होगा सो चला गया पर अब पता चला कि इसे देखकर समय और पैसा दोनों ही बरबाद किया।
अनुज – क्यों फ़िल्म की कहानी अच्छी नहीं थी?
रमन – अरे! ये फ़िल्म वाले भी न जाने क्या सोचकर बिना सिर-पैर वाली फ़िल्में बनाते हैं।
अनुज – फ़िल्म निर्माताओं का एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना रह गया है।
रमन – ठीक कहते हो तभी तो वे ज़बरदस्ती हिंसा, नग्नता और अश्लीलता को फ़िल्मों के माध्यम से दर्शकों के सामने परोसते हैं।
अनुज – इसमें हमारे समाज का भी दोष है। लोगों को ऐसी फ़िल्में नहीं देखनी चाहिए।
रमन – ठीक कहते हो मित्र तभी ऐसे फ़िल्म निर्माताओं को अक्ल आएगी।

प्रश्नः 12.
लोगों की बढ़ती स्वार्थवृत्ति के कारण वनों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। वनों के इस सफ़ाए पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
उत्तरः
उत्सव – अरे अनुराग! इतने दिन कहाँ थे? छुट्टियों में दिखाई ही नहीं दिए।
अनुराग – उत्सव, मैं दिखता कैसे?
उत्सव – क्यों अदृश्य होने का कोई फार्मूला हाथ लग गया है क्या?
अनुराग – अरे नहीं यार, इन छुट्टियों में मैं अपने दादा-दादी से मिलने गाँव चला गया था।
उत्सव – फिर तो बड़ा मज़ा आया होगा।
अनुराग – ठीक कह रहे हो उत्सव। वहाँ की हरियाली देखकर, आमों के बाग, कटहल, जामुन, फालसा आदि खाकर सचमुच मज़ा ही आ गया।
उत्सव – तब तो वहाँ से आने का मन ही नहीं कर रहा होगा?
अनुराग – शुद्ध ताज़ी हवा, ताज़ी हरी सब्जियाँ, शुद्ध ताज़ा दूध और शोर शराबा-रहित वातावरण छोड़कर आने को मन नहीं था पर छुट्टियाँ बीतने को थीं इसलिए आ गया।
उत्सव – अनुराग तू भाग्यशाली है। मुझे तो शहर के इसी प्रदूषित और दमघोंटू वातावरण में हर साल छुट्टियाँ बितानी
पड़ती हैं।
अनुराग – शहरों में प्रदूषण बढ़ाने में हम लोग भी ज़िम्मेदार हैं।
उत्सव – वह कैसे?
अनुराग – लोग अपने स्वार्थ के लिए वनों का सफाया करते हैं, बस्तियाँ बसाते हैं। धनी लोग इन वनों को काटकर फैकि ट्रयाँ स्थापित करते हैं। वे खुद तो लाभ कमाते हैं पर वायुमंडल को प्रदूषित और असंतुलित करते हैं।
उत्सव – मैं इस वर्षा ऋतु में अपने साथियों से खूब सारे पेड़ लगाने के लिए कहूँगा।
अनुराग – इसी में हम सभी की भलाई है।

प्रश्नः 13.
आजकल बच्चे अपनी पढ़ाई से विमुख होकर कार्टून फ़िल्में देखते हैं। इससे बच्चों के मन में हिंसा की भावना पनप
रही है। इस विषय पर दो सहेलियों रूपा और रश्मि के बीच हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
रुचि – नमस्ते रश्मि! कैसी हो?
रश्मि – मैं ठीक हूँ! तुम कैसी हो?
रुचि – मैं भी ठीक हूँ रश्मि! चलो घर चलते हैं। वहीं बैठकर बातें करते हैं।
रश्मि – नहीं रुचि, फिर कभी-अभी नहीं।
रुचि – अरे! अभी क्यों नहीं?
रश्मि – मेरे बेटे पप्पू को टीवी पर कार्टून देखने की आदत लग गई है। वह मौका पाते ही टीवी से चिपक जाता है।
रुचि – बच्चों को थोड़ी देर टीवी भी देखने देना चाहिए
रश्मि – रश्मि पर वह तो हर समय कार्टून फ़िल्में ही देखना चाहता है।
रुचि – फिर तो उसकी पढ़ाई प्रभावित हो रही होगी।
रश्मि – सिर्फ पढ़ाई ही नहीं उसका व्यवहार भी प्रभावित हो रहा है। इन कार्टूनों की मारधाड़ और हिंसक प्रवृत्ति उसके स्वभाव का अंग बन रही है। इतना ही नहीं उसका व्यवहार भी क्रूर होता जा रहा है।
रुचि – ऐसा कैसे पता लगा?
रश्मि – कल वह डॉगी को बिस्कुट खिला रहा था। जब डॉगी ने बिस्कुट नहीं खाया तो उसने उसका सिर पकड़कर दीवार से टकरा दिया।
रुचि – बच्चे को अच्छी कार्टून फ़िल्में देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि उनके स्वभाव में क्रूरता न आने पाए।
रश्मि – ठीक कह रही हो रुचि, हमें शुरू से ही इस पर ध्यान देना चाहिए था। लगता है अब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।
रुचि – हमें यूँ हिम्मत नहीं हारना चाहिए। चलो मैं ही उसे कुछ समझाती हूँ।
रश्मि – यह तो बहुत अच्छा रहेगा। हम एक कप चाय भी साथ पी लेंगे।

प्रश्नः 14.
आजकल युवाओं में अंग्रेजी साहित्य पढ़ने और अंग्रेज़ी को महत्त्व देने का चलन बन गया है। वे हिंदी को उपेक्षित मानने लगे हैं। इसी विषय पर दो मित्रों कमल और केशव की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
कमल – कैसे हो केशव, इस समय कहाँ से आ रहे हो?
केशव – कमल मैं एकदम ठीक हूँ। इस समय मैं बाज़ार गया था।
कमल – बाज़ार! क्या खरीदना था, भाई ?
केशव – गरमी की इन छुट्टियों में पढ़ने के लिए अंग्रेज़ी की कुछ पत्रिकाएँ और तीन-चार उपन्यास।
कमल – उपन्यास तो तुमने हिंदी का खरीदा होगा!
केशव – नहीं कमल मैं हिंदी का उपन्यास नहीं पढ़ता। मैंने उपन्यास भी अंग्रेज़ी का ही खरीदा है। इनमें से एक ‘चार्ल्स डिकेन्स’ और दूसरा रूडयार्ड किपलिंग द्वारा लिखित है।
कमल – तुम हिंदी का उपन्यास क्यों नहीं पढ़ते हो।
केशव – अंग्रेज़ी के उपन्यास पढ़ना गर्व की बात है। जो बात अंग्रेज़ी के उपन्यासों में है, वह हिंदी के उपन्यासों में नहीं।
कमल – क्या तुमने कभी प्रेमचंद, शरद चंद, जयशंकर प्रसाद, मृदुला गर्ग, वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यासों को पढ़ा है। एक बार पढ़ो तो जानो।
केशव – कमल, हिंदी के उपन्यास पढ़ने को मेरा मन नहीं करता।
कमल – केशव, क्या तुमने कभी सोचा है कि यदि हम भारतवासी ही हिंदी का प्रयोग पढ़ने, लिखने-बोलने और अन्य रूपों में नहीं करेंगे तो कौन करेगा? क्या तुमने फ्रांस, चीन, जापान वालों को अंग्रेज़ी पढ़ते या बोलते सुना है?
केशव – नहीं।
कमल – कभी सोचा है क्यों? उन्हें अपनी भाषा पढ़ने-लिखने और बोलने में गर्व महसूस होता है। अपनी भाषा ही हमें उन्नति की ओर ले जाती है।
केशव – मित्र! तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं। मैं अभी इस अंग्रेजी साहित्य को लौटाकर प्रेमचंद, जयशंकर, वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यास लाऊँगा।

प्रश्नः 15.
हमारे देश के विकास के लिए सन् 20xx के बजट में गाँवों के विकास के लिए बजट बढ़ाकर उनके विकास का लक्ष्य रखा गया है। इसी विषय पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
लक्ष्य – अरे! कहाँ जा रहे हो?
वैभव – मैं इस समय अखबार लेने जा रहा हूँ। आज अखबार वाले ने अखबार नहीं दिया है।
लक्ष्य- कल हमारे देश के वित्तमंत्री जी ने सन् 20XX का बजट प्रस्तुत किया है वही पढ़ना है।
वैभव – मैंने तो टीवी पर देखा कि इस बार सरकार ने गाँवों के विकास पर जोर दिया है।
लक्ष्य – मित्र, ऐसा तो हर बार बजट के समय कहा जाता है।
वैभव – नहीं लक्ष्य, ऐसा नहीं है। इस बार बजट में ग्रामीण विकास के लिए बजट बढ़ा दिया गया है। किसानों को उन्नत औजार, खाद, बीज, दवाइयाँ आदि छूट के साथ दी जाएंगी।
लक्ष्य – पर किसानों के कर्ज का क्या होगा, जिसके कारण किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं?
वैभव – इसके लिए किसानों की फ़सलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाएगा। उनकी फ़सलों का बीमा किया जाएगा और बिचौलियों की भूमिका कम से कम की जाएगी।
लक्ष्य – इसके अलावा किसानों तक स्वास्थ्य सेवाएँ, बैंकिंग और प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ भी पहुँचानी होगी। गाँवों को सड़कों से जोड़ना होगा और कृषि पर आधारित उद्योग धंधों का प्रशिक्षण भी उन्हें दिया जाना चाहिए।
वैभव – इस बार सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से लगता है कि देश के अन्नदाता की दशा में सुधार अवश्य होगा।  लक्ष्य – भगवान करे ऐसा ही हो।
वैभव – अच्छा मैं चलता हूँ, नमस्ते।

प्रश्नः 16.
आज के नेता एक बार चुनाव जीतते ही इतने अमीर बन जाते हैं कि उनकी कई पीढ़ियों को काम करने की ज़रूरत ही नहीं रह जाती है। आज की राजनीति पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
सफल – अरे नमन नमस्ते, कहाँ से आ रहे हो?
नमन – नमस्ते सफल, मैं अपने वार्ड के पार्षद के घर से आ रहा हूँ।
सफल – क्या बात है? अभी से ठान लिया है कि नेता बनना है क्या?
नमन – नहीं सफल, ऐसी बात नहीं है। मैं तो भूलकर भी नेता नहीं बनूँगा।
सफल – क्यों ऐसी क्या बात हो गई ?
नमन – करीब दो घंटे पहले पार्षद जी मेरे पिता जी के पास आए थे।
सफल – क्या अब वे तुम्हारे पिता को नेता बनाना चाहते हैं?
नमन – मेरे पिता जी शहर के प्रसिद्ध वकील हैं। वह उन्हीं के पास आए थे।
सफल – अच्छा तो ज़रूर ही पार्षद जी ने गड़बड़-घोटाला किया होगा।
नमन – शायद तुम्हें पता नहीं, चार साल पहले पैदल चलकर वोट माँगने वाले इन पार्षद जी के पास आज चार-चार महँगी गाड़ियाँ हैं। अब इस मोहल्ले में सबसे बड़ी कोठी इन्हीं के पास है।
सफल – यार, यह राजनीति धन कमाने का साधन बनती जा रही है।
नमन -ठीक कहते हो। पहले लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, गांधी जी जैसे नेता भी थे जो लोगों की सेवा और कल्याण के लिए राजनीति में आए थे पर आज तो लोग अपना कल्याण करने के लिए राजनीति में आते हैं।
सफल – यही कारण है कि ईमानदार नेता अब उँगलियों पर गिनने जितने भी नहीं बचे हैं। इनके नाम अब घोटालों में संलिप्त पाए जाते हैं। जिसने जितना भ्रष्टाचार और घोटाला किया वह स्वयं को उतना ही बड़ा नेता समझता है।
नमन – क्या तुम्हारे पिता जी इनकी मदद करने को तैयार हो गए हैं?
सफल – नहीं इन्होंने इनका केस लड़ने से विनम्रतापूर्वक मना कर दिया?
नमन – अच्छा ही किया ताकि ये नेतागण राजनीति का असली उद्देश्य समझ सकें।

प्रश्नः 17.
उड्डयन क्षेत्र में प्राइवेट एअरलाइंस कंपनियों के आने से सरल, सुखद और सस्ती यात्रा की आशा जगी थी, पर इनके व्यवहार ने इस उम्मीद पर पानी फेरने का कार्य किया है। इस विषय पर दो मित्रों विपिन और सौम्य की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तरः
विपिन – अरे सौम्य! सप्ताह भर से कहाँ थे तुम, दिखे ही नहीं।
सौम्य – मैं अपने पिता जी के साथ श्रीनगर घूमने चला गया था।
विपिन – फिर तो बड़ा मज़ा आया होगा।
सौम्य – मित्र, श्रीनगर घूमने का मज़ा और भी बढ़ जाता यदि पापा ने प्राइवेट एअर लाइंस से टिकट बुक न करवाया होता।
विपिन – क्यों प्राइवेट एअर लाइंस ने ऐसा क्या कर दिया?
सौम्य – प्राइवेट एअर लाइंस वालों ने सस्ती यात्रा का विज्ञापन दिया था। इसे देखकर ही पिता जी ने टिकट बुक करवाया था, पर एअर पोर्ट पर हमसे टैक्स के नाम पर टिकट के मूल्य का दो गुने से भी अधिक चार्ज वसूला गया।
विपिन –फिर, क्या इसके बाद भी यात्रा अच्छी नहीं रही?
सौम्य – नहीं विपिन बात यहीं तक होती तो ठीक थी परंतु उनकी फ़्लाइट दस घंटे लेट होने की अचानक घोषणा से सारे यात्री परेशान हो उठे। व दस घंटे बिताना काफ़ी कठिन था।
विपिन – फिर?
सौम्य – उड़ान के समय विमान में भी उनकी सेवाएँ अच्छी नहीं थी।
विपिन – पर वापसी तो अच्छी रही होगी?
सौम्य – वापसी के समय शाम छह बजे की फ्लाइट रात्रि को तीन बजे की हो गई। एअर पोर्ट पर ये नौ घंटे कैसे बीते, यह हम सहयात्री ही जानते हैं। बस किसी तरह दिल्ली आ गए।
विपिन – हमें इन प्राइवेट एअर लाइंस वालों की शर्ते जान-समझ लेना चाहिए।
सौम्य – ठीक कहते हो। अब हम आगे से सावधान रहेंगे।

कुछ और उदाहरण

1. निरंतर बढ़ती जनसंख्या पर दो मित्रों में संवाद –

वैभव – नमस्कार सुमित! कहाँ से चले आ रहे हो?
सुमित – नमस्कार वैभव! एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन का साक्षात्कार देने गया था।
वैभव – पर तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?
सुमित – वहाँ मुझसे पहले ही पाँच सौ से अधिक लोग पहुँचे थे।
वैभव – हाँ, आजकल हालात तो ऐसे ही हैं, पर क्या तुम इसका कारण जानते हो?
सुमित – इसका कारण नौकरियों की कमी हो सकती है।
वैभव – नहीं मित्र, इसका कारण है, हमारी निरंतर बढ़ती जनसंख्या।
सुमित – जनसंख्या वृद्धि और नौकरी का क्या संबंध है?
वैभव – बहुत बड़ा संबंध है मित्र! जनसंख्या बढ़ने के कारण नौकरी चाहने वलों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है।
सुमित – ठीक कह रहे हो। दस पदों के लिए इतनी भीड़ देख मैं तो दंग रह गया।
वैभव – इस जनसंख्या ने नौकरी के अलावा और भी बहुत-सी समस्याओं को जन्म दिया है।
सुमित – आखिर कौन-कौन-सी समस्याएँ हैं वे?
वैभव – बढ़ती जनसंख्या ने आवास, परिवहन, स्वास्थ्य सेवाओं तथा खान-पान की सुविधाओं पर भी प्रतिकूल असर डाला है।
सुमित – पर इस समस्या पर नियंत्रण कैसे हो?
वैभव – इस समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए सरकारी प्रयासों के अलावा युवाओं को आगे आना होगा।
सुमित – मित्र तुम ठीक कहते हो। व्यक्ति समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है।

2. देश में बढ़ते भ्रष्टाचार पर दो नागरिकों के मध्य बातचीत –

राहुल – अरे, मित्र सार्थक! कहाँ से चले आ रहे हो?
सार्थक – अरे क्या बताऊँ ? टेलीफ़ोन के दफ्तर से आ रहा हूँ।
राहुल – क्यों, क्या बात हो गई ? कुछ बिल जमा करवाने थे क्या?
सार्थक – क्या बताऊँ राहुल? बात तो बिल की है। इस बार का बिल बीस हजार आठ सौ रुपए भेज रखा है।
राहुल – क्या पिछले बिल भी ऐसे आते रहे हैं ?
सार्थक – नहीं राहुल पिछले महीनों के बिल दो-ढाई हज़ार रुपए के ही आया करते थे।
राहुल – क्या उन्होंने बिल ठीक कर दिया?
सार्थक – नहीं राहुल, क्लर्क बिल ठीक करने के पाँच हज़ार रुपए माँग रहा था।
राहुल – क्या तुमने उसे रिश्वत के पैसे दे दिए?
सार्थक – क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आज तो समाज में हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
राहुल – यदि हमने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम न उठाया तो यह तो यूँ ही बढ़ता रहेगा।
सार्थक – तो हमें क्या करना चाहिए?
राहुल – करना क्या है, कल उसे बता दो कि दो-तीन दिन में रुपयों का इंतजाम होने पर दे दूंगा और हम दोनों इसी समय इंटेलीजेंस वालों को बताकर उसे रंगे हाथों पकड़वा देते हैं।
सार्थक – यही ठीक रहेगा। आखिर शुरुआत किसी-न-किसी को करनी ही पड़ेगी। चलो इसी समय इंटेलीजेंस कार्यालय चलते हैं।

3. दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों के विषय में दो विद्यार्थियों के मध्य संवाद –

शुभम – मित्र ध्रुव! विज्ञान ने दूरदर्शन के रूप में हमें कितना सुंदर उपहार दिया है।
ध्रुव – शुभम, बिलकुल ठीक कहते हो। आज यह हर घर की ज़रूरत बन गई है।
शुभम – ठीक कह रहे हो। बच्चे, बूढ़े और युवा सभी इसके कार्यक्रमों का आनंद उठाते हैं।
ध्रुव – शुभम, दूरदर्शन मनोरंजन का ही नहीं, बल्कि ज्ञान का भी साधन है।
शुभम – है तो पर इसके कई चैनल अश्लील कार्यक्रम भी दिखा रहे हैं जिन्हें परिवार के साथ बैठकर देखने में शर्म आती
ध्रुव – ऐसे कार्यक्रमों का युवाओं पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। फिर भी ऐसे कार्यक्रम पता नहीं क्यों दिखाए जाते हैं ?
शुभम – इन कार्यक्रमों के निर्माताओं को ऐसे कार्यक्रमों से अधिक लाभ मिलता है तथा उनकी टी०आर०पी० बढ़ती है।
ध्रुव – कुछ भी हो, पर इन अश्लील कार्यक्रमों पर रोक लगनी ही चाहिए।
शुभम – पर इन पर रोक कैसे लगे?
ध्रुव – सरकार को चार-पाँच सदस्यों के सहयोग से ‘दूरदर्शन कार्यक्रम नियंत्रण बोर्ड’ का गठन कर देना चाहिए। इसकी स्वीकृति के बाद ही कार्यक्रम प्रसारित किया जाना चाहिए।
शुभम – पर समाज की भी तो कुछ ज़िम्मेदारी होनी चाहिए।
ध्रुव – समाज को भी ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए ताकि समाज का वातावरण स्वस्थ बना रहे।

4. ग्राहक शोभित और दुकानदार (केमिस्ट) के मध्य बातचीत –

शोभित – नमस्कार भाई साहब! मुझे ये दवाइयाँ चाहिए।
दुकानदार – ये दवाएँ तो थोड़ी महँगी हैं। चल जाएँगी?
शोभित – लगभग कितने की होंगी?
दुकानदार – ये सब एक हज़ार रुपए से अधिक की होंगी।
शोभित – रहने दो, मैं इन्हें दो घंटे बाद ले जाऊँगा।
दुकानदार – रुको! मैं तुम्हें कुछ सस्ती दवाएँ दे देता हूँ जो सात सौ रुपए तक आ जाएँगी।
शोभित – दे दीजिए। यह ठीक रहेगा।
दुकानदार – ये रही आपकी दवाएँ और इनका दाम हुआ सात सौ बीस रुपए।
शोभित – (पैसे देकर दवाओं को ध्यान से देखकर) इन दवाओं पर तो ‘बिक्री के लिए नहीं’ की मुहर लगी है। इन पर कोई दाम भी नहीं लिखा है।
दुकानदार – तभी तो ये सस्ती हैं।
शोभित – तुम गलत कार्य करते हो। भोले-भाले ग्राहकों को लूटते हो। मैं अभी पुलिस को बुलाता हूँ।
दुकानदार – नहीं भाई साहब, ऐसा मत करो। ये लो अपने पैसे और दवाएँ मुझे दो। मैं किसी और को दे दूंगा।
शोभित – तुम गलत तरीके से दवाएँ बेचते हो। मैं शिकायत ज़रूर करूँगा।
दुकानदार — माफ़ करना, भाई साहब। अब से ऐसी दवाएँ नहीं बेचूंगा। इस बार माफ़ कर दो। ये दवाएँ भी तुम मुफ़्त में ले जाओ।
शोभित – मुझे ऐसी दवाएँ नहीं चाहिए। इन्हें किसी ऐसे व्यक्ति को दे देना, जिसके पास पैसे न हों।
दुकानदार – मैं ऐसा ही करूँगा। भविष्य में इस प्रकार की दवाओं का दाम किसी से नहीं लूँगा।

5. डॉक्टर और हर्ष के मध्य संवाद –

हर्ष – डॉक्टर साहब, नमस्ते।
डॉक्टर – नमस्ते! बताइए आपको क्या तकलीफ है ?
हर्ष – जी, मुझे दो दिन से बुखार आ रहा है।
डॉक्टर – यह थर्मामीटर मुंह में लगाओ। अब देखते हैं, तुम्हें कितना बुखार है?
हर्ष – (थर्मामीटर लगाने और डॉक्टर को देने के बाद) कितना बुखार है?
डॉक्टर – (थर्मामीटर देखकर) 102° फारेनहाइट। क्या तुम्हें सरदी भी लगती है?
हर्ष – हाँ मुझे कँपकँपी-सी होती है और अचानक बुखार बढ़ जाता है।
डॉक्टर – क्या तुम्हारे घर के आसपास मच्छर हैं ?
हर्ष – डॉक्टर साहब, मेरे घर के आसपास मच्छर हैं। वे रातभर सोने नहीं देते हैं।
डॉक्टर – ये दवाएँ दिन में तीन बार और यह दवा दिन में दो बार खाना और हाँ आज ही खून की जाँच करवा लेना, क योंकि मलेरिया के लक्षण लग रहे हैं।
हर्ष – आपको फिर दिखाने कब आऊँ?
डॉक्टर – कल खून की रिपोर्ट लेकर ज़रूर आना। तुम चिंता मत करना, बस दो-तीन दिन में ही ठीक हो जाओगे।
हर्ष – डॉक्टर साहब, ये रही आपकी फ़ीस और दवाओं का दाम।
डॉक्टर – धन्यवाद और दवाएँ समय से खाते रहना।
हर्ष – ठीक है। आपने जैसा बताया है वैसे ही खाऊँगा।

6. निरंतर बढ़ रही महँगाई पर दो स्त्रियों के मध्य संवाद –

तान्या – अरे मोना! ये थैला लिए कहाँ से आ रही हो?
मोना – मैं बाज़ार गई थी, सब्ज़ियाँ और कुछ अन्य सामान लेने।
तान्या – पर सब्जियाँ तो दिख नहीं रही हैं।
मोना – ठीक कहा। महँगाई इतनी है कि अब तो सामान ज़रा-ज़रा-सा मिलने लगा है।
तान्या – गरमी और बरसात के दिनों में सब्जियों के दाम कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाते हैं।
मोना – अब देखो न! टमाटर अस्सी रुपए किलो, प्याज साठ रुपए किलो, हरी सब्जियाँ सत्तर-अस्सी रुपए किलो से नीचे नहीं हैं।
तान्या – हाँ दूध और दालों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं।
मोना – इस महँगाई ने आम आदमी का जीना मुश्किल कर दिया है। यह सरकार भी महँगाई रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती।
तान्या – कुछ तो बरसात में माल न आने से महँगाई बढ़ती है और कुछ जमाखोरी और मुनाफाखोरी के कारण।
मोना – सरकार को इन जमाखोरों पर कार्यवाही करनी चाहिए।
तान्या – सरकार कार्यवाही तो कर रही है, पर फिर भी यह पर्याप्त नहीं है।
मोना – महँगाई कम हो, इसके लिए लोगों को स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति का भी त्याग कर अधिक मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा।
तान्या – कुछ भी हो पर महँगाई कम होनी ही चाहिए।
मोना – नई फ़सल आने पर ही शायद महँगाई कुछ कम हो, तब तक तो हमें इसकी मार झेलनी ही पड़ेगी।

7. पिता और पुत्र के मध्य मोबाइल फ़ोन दिलवाने के विषय में संवाद –

बेटा – पिता जी! यह देखिए मेरी रिपोर्ट बुक।
पिता जी – अरे वाह! तुम्हें भी सभी विषयों में ‘ए’ ग्रेड मिला है।
बेटा – अपनी कक्षा में हम पाँच छात्र हैं, जिन्हें ‘ए’ ग्रेड मिला है।
पिता जी – परिश्रम का फल तो सदैव मीठा होता है। जो परिश्रम करेगा, वह सफलता अर्जित करेगा।
बेटा – आपको याद है पिता जी, ‘ए’ ग्रेड लाने पर आपने कोई उपहार देने की बात कही थी।
पिता जी – बताओ तुम्हें क्या चाहिए?
बेटा – मुझे अच्छा-सा महँगा फ़ोन चाहिए।
पिता जी – नहीं बेटा, घर पर फ़ोन तो लगा है। तुम्हें इस उम्र में फ़ोन का क्या करना।
बेटा – मैं फ़ोन अपने साथ स्कूल ले जाऊँगा। साथियों को दिखाऊँगा और उनके साथ गेम खेलूँगा।
पिता जी – जानते हो, सी०बी०एस०ई० ने छात्रों को विद्यालय में फ़ोन ले जाने से मना कर रखा है। जरा सोचो, तुम्हारी अध्यापिका तुम्हें पढ़ा रही हों और तीन-चार छात्रों के फ़ोन की घंटियाँ बजने लगें तो?
बेटा – फिर तो पढ़ाई में बाधा आएगी।
पिता जी – इस उम्र में बच्चे फ़ोन का दुरुपयोग भी करते हैं। वे जब गाने सुनते हुए चलते हैं तो उन्हें आसपास का ध्यान नहीं रह जाता।
बेटा – हाँ पिता जी, पिछले महीने एक छात्र के साथ ऐसे ही दुर्घटना हो गई थी।
पिता जी – बच्चे इंटरनेट आदि के माध्यम से मोबाइल फ़ोन पर फ़िल्म या अन्य चित्र भी देखते रहते हैं। इससे इनकी पढ़ाई बाधित होती है।
बेटा – आप ठीक कहते हैं। खाली पीरियड या लाइब्रेरी में जाकर कुछ छात्र हमेशा फ़ोन पर गेम खेलते रहते हैं और अध्यापिका उन्हें डाँटती हैं।
पिता जी – तुम कोई और उपहार ले लो, पर मोबाइल फ़ोन अभी नहीं।
बेटा – ठीक है। मैं आपकी बात मानूँगा।
पिता जी – यह हुई न अच्छे बच्चों वाली बात।

8. रजत अपने जन्मदिन पर मोटरसाइकिल उपहार में चाहता है। इस संबंध में अमर और उसके पिता के मध्य हुई बातचीत का संवाद-लेखन –

रजत – पिता जी! परसों मेरा जन्मदिन है।
पिता जी – वह मैं कैसे भूल सकता हूँ। मुझे अच्छी तरह याद है।
रजत – पर, आप मुझे इस बार क्या उपहार देंगे?
पिता जी – तुम्हीं बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?
रजत – पिता जी, इस बार आप मुझे मोटरसाइकिल उपहार में दिलवा दीजिए।
पिता जी – बेटे, अभी तुम मोटरसाइकिल चलाने के लिए छोटे हो। तुमसे मोटरसाइकिल सँभाली न जाएगी।
रजत – मेरे दोस्त, जो मुझसे छोटे हैं, वे भी तो चलाते हैं।
पिता जी – तुम्हारी उम्र अभी अठारह साल नहीं हुई है। तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन सकता है।
रजत – ड्राइविंग लाइसेंस की क्या ज़रूरत है?
पिता जी – है, ड्राइविंग लाइसेंस की ज़रूरत। उसके बिना मोटरसाइकिल चलाना कानूनी अपराध है।
रजत – तो क्या मैं अठारह वर्ष से पूर्व मोटरसाइकिल नहीं चला सकता हूँ।
पिता जी – बिलकुल नहीं। सड़क दुर्घटनाएँ बढ़ने का कारण बच्चों द्वारा दुपहिया वाहन चलाना भी है।
रजत – फिर आप मुझे कुछ और उपहार दिलवा दीजिए।
पिता जी – ये ठीक रहेगा। चलो दोनों बाज़ार चलते हैं।

9. क्रिकेट मैच के विषय में दो मित्रों के मध्य संवाद

श्रेय – अरे! दीपक, क्या तुमने कल का क्रिकेट मैच देखा था?
दीपक – हाँ श्रेय, मैच देखकर मज़ा आ गया।
श्रेय – क्या कोई कह सकता है कि यह वही टीम इंडिया है जो इंग्लैंड में टेस्ट श्रृंखला बुरी तरह से हार रही थी।
दीपक – टेस्ट में तो हमारे सारे खिलाड़ी फुस्स हो रहे थे।
श्रेय – यह आई०पी०एल० मैचों का असर है कि एकदिवसीय प्रदर्शन अच्छा है परंतु टेस्ट में प्रदर्शन खराब हुआ है।
दीपक – कुछ भी हो, कल की 133 रनों की जीत टेस्ट मैचों में मिली हार के ज़ख्म पर मरहम का काम करेगी।
श्रेय – कल एक-दो खिलाड़ियों को छोड़कर सभी का प्रदर्शन अच्छा रहा था, जिससे वे 6 विकेट पर 304 रन बना सके। दीपक – सबसे बढ़िया प्रदर्शन सुरेश रैना का रहा, जिसने 75 गेंदों पर ही शतक लगा दिया। श्रेय – इसके अलावा उसने एक खिलाड़ी को आउट भी तो किया था। दीपक – देखा तुमने 305 रनों का पीछा करते हुए इंग्लैंड की टीम कैसे बिखरकर 160 के आसपास पवेलियन लौट आई।
श्रेय – देखो, अभी बाकी के मैचों में टीम का प्रदर्शन कैसा रहता है ?
दीपक – मित्र, देख लेना एकदिवसीय मैचों की सीरिज तो भारत ही जीतेगा।

10. ‘प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग प्रतिबंधित होना चाहिए’-विषय पर प्रभात और पल्लव के मध्य संवाद

प्रभात – अरे पल्लव! यह सामान कैसे बिखरा हुआ है?
पल्लव – दुकानदार ने घटिया थैलियों में सामान दे दिया था। उसके टूटते ही सारा सामान बिखर गया।
प्रभात – इसमें दुकानदार की क्या गलती है ?
पल्लव – फिर किसकी गलती है?
प्रभात – गलती तुम्हारी है। तुम घर से थैला लेकर क्यों नहीं आए?
पल्लव – इन प्लास्टिक की थैलियों में सामान लाने में क्या नुकसान है?
प्रभात – नुकसान है। ये प्लास्टिक की थैलियाँ पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं।
पल्लव – वो कैसे?
प्रभात – देखो, प्लास्टिक आसानी से सड़-गलकर मिट्टी में नहीं मिलता है। वह सालों-साल मिट्टी में बना रहता है। इससे ज़हरीली गैसें निकलती हैं।
पल्लव – पर ये पानी में तो गल जाती होंगी?
प्रभात – नहीं पल्लव, ये पानी में भी नहीं गलती हैं। ये नालियों और नालों में फँसकर उन्हें जाम कर देती हैं।
पल्लव – इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए?
प्रभात- इससे बचने के लिए हमें प्लास्टिक का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। हमें कपड़े के थैलों में सामान खरीदना चाहिए।
पल्लव – सरकार को इन प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगा देनी चाहिए।
प्रभात – वह तो ठीक है, पर हमें भी जागरूक बनना चाहिए। लोगों के सहयोग के बिना कोई काम सफल नहीं होता है।

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