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CBSE Class 10 Hindi B Question Paper 2015 (Delhi) with Solutions
          निर्धारित समय : 3 घण्टे
          
          अधिकतम अंक : 80
         
          सामान्य निर्देश :
          
          (i) इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैं- क, ख, ग और घ
          
          (ii) चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
          
          (iii) यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
         
खण्ड-क ( अपठित बोध )
          प्रश्न 1.
          
          निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए: [9]
          
          चरित्र का मूल भी भावों के विशेष प्रकार के संगठन में ही समझना चाहिए। लोकरक्षा और लोक – रंजन की सारी व्यवस्था का ढाँचा इन्हीं पर ठहराया गया है। धर्म शासन, राज – शासन, मत – शासन – सबमें इनसे पूरा काम लिया गया है । इनका सदुपयोग भी हुआ है और दुरुपयोग भी । जिस प्रकार लोक-कल्याण के व्यापक उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनुष्य के मनोविकार काम में लाए गए हैं उसी प्रकार संप्रदाय या संस्था के संकुचित और परिमित विधान की सफलता के लिए भी। सब प्रकार के शासन में चाहे धर्म – शासन हो, चाहे राज – शासन, मनुष्य जाति से भय और लोभ से पूरा काम लिया गया है। दंड का भय और अनुग्रह का लोभ दिखाते हुए राज-शासन तथा नरक का भय और स्वर्ग का लोभ दिखाते हुए धर्म – शासन और मत – शासन चलते आ रहे हैं। इसके द्वारा भय और लोभ का प्रवर्तन सीमा के बाहर भी प्रायः हुआ है और होता रहता है। जिस प्रकार शासक-वर्ग अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं उसी प्रकार धर्म-प्रवर्तक और आचार्य अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए भी इनसे काम लेते आए हैं। शासक वर्ग अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति के लिए भी डराते और ललचाते आए हैं। मत- प्रवर्तक अपने द्वेष और संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भी कँपाते और डराते आए हैं। एक जाति को मूर्ति-पूजा करते देख दूसरी जाति के मत – प्रवर्तकों ने उसे पापों में गिना है। एक संप्रदाय को भस्म और रुद्राक्ष धारण करते देख दूसरे संप्रदाय के प्रचारकों ने उनके दर्शन तक को पाप माना है।
          
          (क) लोकरंजन की व्यवस्था का ढाँचा किस पर आधारित है? तथा इसका उपयोग कहाँ किया गया है ?[2]
          
          (ख) दंड का भय और अनुग्रह का लोभ किसने और क्यों दिखाया है? [2]
          
          (ग) धर्म-प्रवर्तकों ने स्वर्ग-नरक का भय और लोभ क्यों दिखाया है? [2]
          
          (घ) शासन व्यवस्था किन कारणों से भय और लालच का सहारा लेती है? [2]
          
          (ङ) प्रतिष्ठा और लोभ शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए। [1]
          
          उत्तर:
          
          (क) लोकरंजन की व्यवस्था का ढाँचा ‘भावों के विशेष प्रकार के संगठन’ पर आधारित है। इसका प्रयोग धर्म – शासन, राज – शासन तथा मत- शासन में किया गया है।
          
          (ख) दंड का भय और अनुग्रह का लोभ ‘राज-शासन’ ने दिखाया है। वे ऐसा अपनी रक्षा और स्वार्थसिद्धि के लिए करते हैं।
          
          (ग) धर्म- प्रवर्तकों ने स्वर्ग-नरक का भय और लोभ अपने स्वरूप वैचित्र्य की रक्षा और अपने प्रभाव की प्रतिष्ठा के लिए दिखाया है।
          
          (घ) शासन व्यवस्था अपने अन्याय और अत्याचार के विरोध की शान्ति तथा अपने द्वेष तथा संकुचित विचारों के प्रचार के लिए भय और लालच का सहारा लेती है ।
          
          (ङ) प्रतिष्ठा = सम्मान; लोभ = लालच।
         
          प्रश्न 2.
          
          निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए : [6]
          
          मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता असफलता की चिन्ता किए बिना अपने कर्त्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फँसे बिना उसे निरंतर कर्त्तव्यरत रहना है। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किन्तु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की सम्पत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते हैं, वह पूरा नहीं होता। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं। उद्देश्य की पूर्ति के लिए दुबारा प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म – शक्ति, वरन् उसके समस्त जीवन को ही ढँक लेता है। निराशा की गहनता के कारण लोग कभी-कभी आत्महत्या तक कर बैठते हैं। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्न-बाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिन्ता किए बिना कर्त्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनन्द एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है, ऐसा जीवन ही सफल है।
          
          (i) मनुष्य को किस प्रकार से कर्त्तव्य पालन करना चाहिए। [2]
          
          (ii) कर्त्तव्य पूरा होने पर क्या प्राप्त होती है? [1]
          
          (iii) असफलता को सफलता की कुंजी क्यों कहा गया है? [1]
          
          (iv) कैसे व्यक्तियों का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है? [1]
          
          (v) निराशा की गहनता से लोग कभी-कभी किस प्रकार का कदम उठा लेते हैं? [1]
          
          उत्तर:
          
          (i) मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिन्ता किए बिना अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए। आशा या निराशा में न फँसकर उसे निरंतर कर्त्तव्यरत रहना चाहिए |
         
(ii) जब हमारा कर्त्तव्य पूरा हो जाता है तब हमें उस कर्त्तव्य का फल प्राप्त होता है । कर्त्तव्य के पूरा होने पर ही हमें सफलता या असफलता प्राप्त होती है।
(iii) असफलता को सफलता की कुंजी इसलिए कहा गया है क्योंकि असफल व्यक्ति अनुभव की सम्पत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। इसलिए असफल होने पर हमें निराश न होकर सफलता की ओर प्रयत्नशील रहना चाहिए।
(iv) उन व्यक्तियों का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है जो असफलता को सहर्ष स्वीकार करके निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दुबारा प्रयत्नशील नहीं होते।
(v) निराशा का अंधकार मनुष्य की न केवल कर्म – शक्ति, वरन् उसके समस्त जीवन को त्रस्त कर देता है। इसी निराशा की गहनता के कारण लोग कभी-कभी आत्महत्या तक कर बैठते हैं।
खण्ड – ख ( व्यावहारिक व्याकरण )
          प्रश्न 3.
          
          निम्नलिखित प्रश्नों में रेखांकित पदबंधों का प्रकार बताइए । [1 × 4 = 4]
         
          (क)
          
           कमज़ोर नींव
          
          से सारा मकान कमज़ोर है।
          
          (ख) मैं तुमसे
          
           पाँच साल बड़ा हूँ
          
          और हमेशा रहूँगा ।
          
          (ग) तुमने एकाएक
          
           इतना मधुर
          
          गाना क्यों छोड़ दिया ?
          
          (घ) गाँव में हर वर्ष
          
           पशु-पर्व का आयोजन
          
          होता है।
          
          उत्तर:
          
          (क) कमज़ोर नींव -संज्ञा पदबंध
          
          (ख) पाँच साल बड़ा – विशेषण पदबंध
          
          (ग) इतना मधुर – विशेषण पदबंध
          
          (घ) पशु-पर्व का आयोजन क्रिया विशेषण पदबंध
         
 
          प्रश्न 4.
          
          निर्देशानुसार उत्तर दीजिए : [1 × 3 = 3]
          
          (क) मैं ठीक समय पर पहुँच गया परंतु सुरेश नहीं आया। ( रचना के आधार पर वाक्य भेद लिखिए )
          
          (ख) गरजते बादलों में बिजली कौंध रही है। (संयुक्त वाक्य में बदलिए)
          
          (ग) जो परिश्रम करता है उसकी पराजय नहीं होती । ( सरल वाक्य में बदलिए)
          
          उत्तर:
          
          (क) संयुक्त वाक्य |
          
          (ख) बादल गरज रहे हैं और बिजली कौंध रही है।
          
          (ग) परिश्रम करने वालों की पराजय नहीं होती ।
         
          प्रश्न 5.
          
          (क) निम्नलिखित का विग्रह करके समास का नाम लिखिए: [1 + 1 = 2]
          
          माता-पिता, महापुरुष ।
          
          उत्तर:
          
          माता-पिता-माता और पिता- द्वंद्व समास ।
          
          महापुरुष – महान् है जो पुरुष कर्मधारय समास ।
         
          (ख) निम्नलिखित का समस्त पद बनाकर समास का नाम लिखिए : [1 + 1 = 2]
          
          बाढ़ से पीड़ित, नीला है जो गगन
          
          उत्तर:
          
          बाढ़ से पीड़ित – बाढ़ पीड़ित – तत्पुरुष समास ।
          
          नीला है जो गगन – नीलगगन – कर्मधारय समास ।
         
          प्रश्न 6.
          
          निम्नलिखित वाक्यों में निहित भाव के अनुसार उपयुक्त मुहावरे लिखिए: [1 × 2 = 2]
          
          (क) सीता ने सारी बातें सच बोलकर मेरी लाज रख ली।
          
          (ख) मैंने एक ऐसा प्रश्न पूछा कि सोहन का मुँह बंद हो गया ।
          
          उत्तर:
          
          (क) लाज रखना ( सम्मान बचाना )
          
          (ख) मुँह बंद होना ( चुप होना)
         
          प्रश्न 7.
          
          निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि अर्थ स्पष्ट हो जाए : [1 + 1 = 2]
          
          (क) आँखों में धूल झोंकना
          
          (ख) हक्का-बक्का रह जाना।
          
          उत्तर:
          
          (क) वह चोर मेरी आँखों में धूल झोंककर मेरे घर का कीमती सामान ले गया।
          
          (ख) शांत स्वभाव वाले आदित्य का अद्भुत नृत्य देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
         
खण्ड – ग ( पाठ्यपुस्तक )
          प्रश्न 8.
          
          निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
          
          किस्सा क्या हुआ था उसको उसके पद से हटाने के बाद हमने वज़ीर अली को बनारस पहुँचा दिया और तीन लाख रुपया सालाना वज़ीफा मुकर्रर कर दिया। कुछ महीने बाद गवर्नर जनरल ने उसे कलकत्ता (कोलकाता) तलब किया। वज़ीर अली कम्पनी के वकील के पास गया जो बनारस में रहता था और उससे शिकायत की कि गर्वनर जनरल उसे कलकत्ता में क्यूँ तलब करता है। वकील ने शिकायत की परवाह नहीं की । उलटा उसे बुरा-भला सुना दिया । वज़ीर अली के तो दिल में यूँ भी अंग्रेज़ों के खिलाफ़ नफ़रत कूट-कूट कर भरी है, उसने खंजर से वकील का काम तमाम कर दिया।
          
          (क) वज़ीर अली कौन था? उसे किसने बनारस पहुँचाया? [2]
          
          (ख) वज़ीर अली ने वकील की हत्या क्यों की? [2]
          
          (ग) पद से हटाए जाने के बदले में वज़ीर अली को क्या दिया गया? [1]
          
          उत्तर:
          
          (क) वज़ीर अली अवध का शासक था । अंग्रेज शासकों ने उसे पद से हटाने के बाद बनारस पहुँचा दिया था।
          
          (ख) गवर्नर जनरल ने वज़ीर अली को कलकत्ता बुलाया था। वज़ीर अली ने कम्पनी के वकील से पूछा कि उसे गवर्नर द्वारा कलकत्ता में क्यों बुलाया गया है तो वकील ने उसकी बात का जवाब देने के बदले उसे खरी-खोटी सुना दी। वज़ीर अली क्रोधित हो गया और उसने खंजर से वकील की तुरन्त हत्या कर दी।
          
          (ग) पद से हटाए जाने के बदले वज़ीर अली को तीन लाख रुपये सालाना वजीफ़ा दिया गया।
         
अथवा
          निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
          
          (क) मैदान का आकर्षण छोटे भाई को कहाँ ले जाता था और क्या-क्या करवाता था ? कहानी ‘बड़े भाई साहब’ के आधार पर लिखिए । [2]
          
          (ख) ‘कारतूस’ पाठ के आधार पर लिखिए कि सआदत अली कौन था? उसने वज़ीर अली की पैदाइश को अपनी मौत क्यों समझा ? [2]
          
          (ग) प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं? [1]
          
          उत्तर:
          
          (क) छोटे भाई को मैदान की सुखद हरियाली, हवा के हल्के-हल्के झोंके, फुटबाल की वह उछल-कूद, कबड्डी के वह दाँव – घात, वालीबॉल की तेज़ी और फुर्ती का आकर्षण खेल के मैदान की ओर ले जाता था । वहाँ वह कभी कंकर उछालता था तो कभी कागज़ की तितलियाँ उड़ाता रहता था । कभी वह फाटक पर सवार होकर मोटर साइकिल चलाने जैसा आनंद लेता था।
         
(ख) सआदत अली अवध का नवाब था । वह वज़ीर अली का शत्रु था। वह नवाब आसिफ़उद्दौला का भाई था। नवाब आसिफ़उद्दौला के यहाँ सन्तान होने की कोई उम्मीद नहीं थी परन्तु जब उसके घर में वज़ीर अली ने जन्म लिया तो सआदत अली को वह अपनी मौत नज़र आया । उसे लगा कि असली वारिस वज़ीर अली के बड़ा होने पर राजगद्दी उसे सौंप दी जायेगी ।
(ग) जो लोग आदर्शरूपी शुद्ध सोने के साथ व्यावहारिकता रूपी ताँबा मिला देते हैं, वे प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहलाते हैं।
          प्रश्न 9.
          
          तताँरा और वामीरो की मृत्यु कैसे हुई? पठित पाठ के आधार पर लिखिए । [5]
          
          उत्तर:
          
          तताँरा निकोबार द्वीप के एक गाँव का सुंदर एवं बलिष्ठ युवक था । वह बहुत नेक और मददगार था । वह समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना कर्त्तव्य समझता था। अतः लोग उसे बहुत पसंद करते थे। उसके पास लकड़ी की एक जादुई तलवार रहती थी। एक दिन समुद्र तट पर उसकी मुलाकात वामीरो से हुई। वह लपाती गाँव की सुंदरी थी और बहुत मधुर गाती थी । तताँरा वामीरो से प्रेम करने लगा था। वामीरो भी तताँरा जैसा ही योग्य जीवनसाथी चाहती थी। परंतु स्थानीय परम्परा के अनुसार वामीरो का विवाह किसी अन्य गाँव के नवयुवक से नहीं हो सकता था। वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे तथा साथ रहना चाहते थे। जब लोगों के सामने वामीरो की माँ तथा गाँववालों ने उसका अपमान किया तो वह क्रोध से भर उठा। उसने अपनी तलवार ज़मीन में गाढ़ दी और धरती को दो टुकड़ों में काट दिया । तँतारा लहुलुहान हो चुका था । अचेत होने के बाद तताँरा समुद्र के जल में बह गया। बाद में उसका क्या हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं थी । तताँरा के खो जाने के बाद वामीरो पागलों की तरह व्यवहार करने लगी। वह तताँरा को खोजती रहती । उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया था । अन्ततः वामीरो का भी दुःखद अंत हो गया। दोनों प्रेम की बलिवेदी पर भेंट चढ़ गए।
         
 
          प्रश्न 10.
          
          निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही उत्तर लिखिए: [5]
          
          चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
          
          विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
          
          घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
          
          अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी ।
          
          तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
          
          वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ||
         
          (क) अभीष्ट मार्ग से क्या तात्पर्य है? विघ्न-बाधा आने पर क्या करना चाहिए? [2]
          
          (ख) कवि के अनुसार सच्चा मानव कौन है? [1]
          
          (ग) समर्थ भाव क्या है ? कवि परस्पर मेलजोल बढ़ाने का परामर्श क्यों देता है? [2]
          
          उत्तर:
          
          (क) अभीष्ट मार्ग से तात्पर्य अपनी इच्छा के मार्ग से है।
          
          विघ्न-बाधा आने पर हमें उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए।
          
          (ख) कवि के अनुसार सच्चा मानव वही है जो अभीष्ट मार्ग में, बढ़ता रहे।
          
          (ग) दूसरों को सफलता दिलाकर स्वयं सफलता पाना ही समर्थ भाव है।
          
          भेदभाव न बढ़ने देने के लिए कवि परस्पर मेलजोल बढ़ाने का परामर्श देता है।
         
अथवा.
          निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
          
          (क) प्रकृति का वेश किस प्रकार बदल रहा है? पंत की कविता के आधार पर लिखिए । [2]
          
          (ख) ‘पौथी पढ़ – पढ़ कर भी ज्ञान प्राप्त न होने से कबीर का क्या तात्पर्य है? [2]
          
          (ग) 1857 की तोप का क्या आशय है? [1]
          
          उत्तर:
          
          (क) पावस ऋतु में प्रकृति पल-पल में अपना रूप परिवर्तित करती है। इस ऋतु में पहाड़ी निर्झर पूरे यौवन की स्थिति में होते हैं अर्थात् झरने पूरे वेग से बह रहे होते हैं। पेड़-पौधे पुष्पों तथा नव – पल्लवों से लद जाते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। आकाश में बादल छा जाते हैं तथा प्यासी धरती का हृदय आनंद से खिल उठता है।
         
(ख) ‘पौथी पढ़-पढ़’ कर भी ज्ञान प्राप्त न होने से कबीर का तात्पर्य यह है कि पुस्तकों के पढ़ने मात्र से कोई व्यक्ति पंडित या ज्ञानी नहीं बन जाता । पुस्तकों को पढ़ते-पढ़ते संसार के लोग मर जाते हैं लेकिन वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती । ईश्वर की प्राप्ति पुस्तकीय ज्ञान या पोथियाँ पढ़ने से नहीं हो सकती । ईश्वर तो केवल उसे मिलता है जो प्रभु से प्रेम कर सके और उसे समर्पित हो सके।
(ग) कविता में उल्लेखित 1857 की तोप, जो कि उस समय के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयोग की गई थी, से आशय है कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक न एक दिन उसकी सत्ता का अंत होता ही है। इस तोप ने भारतीयों पर अनेक अत्याचार किए थे परन्तु अब यह केवल प्रदर्शन मात्र की वस्तु ही रह गई है।
          प्रश्न 11.
          
          मीराबाई ने हरि से स्वयं का कष्ट दूर करने की जो विनती की है उसमें स्वयं का कृष्ण से कौन-सा संबंध बताया है? जिन भक्तों के उदाहरण दिए हैं उनमें से एक पर की गई कृष्ण कृपा को संक्षेप में लिखिए। [5]
          
          उत्तर:
          
          मीराबाई ने हरि ( श्रीकृष्ण) से स्वयं के कष्टों को दूर करने की जो विनती की है उसमें उन्होंने स्वयं को श्रीकृष्ण की सेविका के रूप में दर्शाया है। वह श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वह स्वयं को उनकी दासी कहती हैं। वह उनसे अपने कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करती हैं। हरि से अपनी पीड़ा को हरने की विनती करते समय मीरा उन्हें समय-समय पर औरों पर की गई उनकी दया का स्मरण कराती हैं।
         
मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती करते समय उनकी उदारता के अनेक उदाहरण दिए हैं। द्रौपदी के चीरहरण का उदाहरण – हस्तिनापुर की सभा में जब पांडव कौरवों से जुए में सब कुछ हार गए थे तब उन्होंने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। परंतु दुर्भाग्यवश वे द्रौपदी को भी हार बैठे। जब दुशासन पांडवों का अपमान करने के उद्देश्य से भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने लगा तो द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण कर सहायता के लिए प्रार्थना की। उनकी करुण पुकार सुन श्रीकृष्ण ने उनकी साड़ी के चीर को इतना बढ़ा दिया कि दुशासन साड़ी खींचते – खींचते थक गया परंतु द्रौपदी का चीरहरण न कर पाया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज की रक्षा की।
          प्रश्न 12.
          
          आप कैसे कह सकते हैं कि हरिहर काका संयुक्त परिवार के मूल्यों के प्रति एक समर्पित व प्रेरक मानव थे? पठित पाठ के आधार पर समझाइए | [5]
          
          उत्तर:
          
          हरिहर काका चार भाई थे। हरिहर काका की दो शादियाँ हुई थीं परंतु उनके कोई बच्चा नहीं हुआ और उनकी दोनों बीवियाँ भी मर चुकी थीं। उनका परिवार एक संयुक्त परिवार था। परिवार के पास 60 बीघे ज़मीन थी । उस हिसाब से हरिहर काका के हिस्से में 15 बीघे ज़मीन आती थी। वैसे तो उनके भाइयों ने अपनी पत्नियों से कह रखा था कि वे हरिहर काका की खूब सेवा करें पर वे इस बात का पालन नहीं करती थीं। हरिहर काका को खाने में बचा खुचा भोजन ही मिलता था। जब कभी उनकी तबियत खराब हो जाती तो उनको कोई पानी तक नहीं पूछता था। अपने ही घर में उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था। परंतु इतना सब कुछ होने के बाद भी वह अपने भाईयों के साथ ही रहना चाहते थे। वे संयुक्त परिवार के मूल्यों के प्रति एक समर्पित व्यक्ति थे। यदि वह चाहते तो अपने परिवार से अलग रहकर सुखी जीवन बिता सकते थे। परंतु उन्हें मिल-जुलकर रहने में ही सुख की अनुभूति होती थी। उनके भाइयों ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रभावित करना चाहा जिससे काका अपने हिस्से की ज़मीन उनके नाम करके उन्हें समृद्ध कर दें, परंतु जब इससे भाइयों को कुछ प्राप्त न हुआ तो उनकी पत्नियों तथा बच्चों ने काका को जबरन घर में कैद कर लिया। उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा और ज़मीन के कागजातों पर ज़बरदस्ती अँगूठा लगवा लिया। हरिहर काका अपने परिवार के स्वार्थ को भली-भाँति समझते थे परंतु फिर भी वे अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य से अत्यंत प्रेम करते थे।
         
खण्ड – घ ( लेखन )
          प्रश्न 13.
          
          दिए गए संकेत- बिन्दुओं के आधार पर निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 80-100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए : [5]
          
          (क) शिक्षक – शिक्षार्थी संबंध
          
          • प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य संबंध
          
          • वर्तमान युग में आया अन्तर
          
          • हमारा कर्त्तव्य ।
         
          (ख) मित्रता
          
          • आवश्यकता
          
          • मित्र किसे बनाएँ
          
          • लाभ।
         
          (ग) युवाओं के लिए मतदान का अधिकार
          
          • मतदान का अधिकार क्या और क्यों?
          
          • जागरूकता आवश्यक
          
          • सुझाव ।
          
          उत्तर:
          
          (क) शिक्षक-शिक्षार्थी संबंध
          
          सांसारिक जीवन पिता-पुत्र/पुत्री, माता-पुत्र/पुत्री, पति-पत्नी आदि कई संबंधों से बंधा हुआ है। इसके अतिरिक्त संसार में एक महत्त्वपूर्ण संबंध गुरु-शिष्य संबंध भी है। यह एक ऐसा संबंध है जिसमें गुरु को समर्पित होने के पश्चात् गुरु शिष्य के लिए सम्पूर्ण जीवन सम्माननीय रहता है। वैसे तो हमारे जीवन में कई जाने-अनजाने गुरु होते हैं जिनमें हमारे माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है फिर शिक्षकगण एवं अन्य। भारत में गुरु-शिष्य परंपरा सदियों पुरानी है तथा पुराणों में तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना गया है। गुरु अपना समस्त ज्ञान शिष्य को दे देता है। इसके पीछे गुरु का एकमात्र उद्देश्य यह होता है कि उसका शिष्य उससे भी अधिक विद्वान बने । गुरु के लिए शिष्य उसकी संतान से बढ़कर होता है क्योंकि वह अपने शिक्षार्थी को अपने समस्त ज्ञान से सींचकर बड़ा करता है । प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य संबंध बहुत ही सम्माननीय होता था । शिष्य अपने गुरु का मान रखकर गुरु-दक्षिणा के रूप में अपना सर्वस्व दे देने से भी पीछे नहीं हटते थे। इस परंपरा में एकलव्य का नाम सर्वोपरि है, जिसने गुरु के कहने पर अपना अंगूठा तक काटकर गुरु-दक्षिणा स्वरूप अपने गुरु द्रोणाचार्य को दे दिया ।
          
          परंतु वर्तमान युग में गुरु-शिष्य के संबंध में बहुत परिवर्तन आ गया है। इस युग में प्राचीन युग के समान शिक्षक और शिक्षार्थी में मधुर संबंध नही रहा । आज गुरुओं को केवल शिक्षा प्रदान करने वाला साधन मात्र समझा जाता है। जैसे-जैसे शिक्षार्थी बड़ा होता जाता है, अधिक ज्ञान अर्जित करता जाता है तथा सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है वैसे-वैसे वह अपने पुराने शिक्षकों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाता है और अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय स्वयं के कड़े संघर्ष एवं मेहनत को देने लगता है। इसमें कतई कोई संदेह
          
          नहीं कि मेहनत के बिना कोई कार्य सिद्ध हो परंतु शिक्षकों के उचित मार्गदर्शन के बिना कड़ी से कड़ी मेहनत भी रंग नहीं लाती। अतः यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम सदैव अपने गुरुओं का सम्मान करें, उन्हें अपनी सफलता का श्रेय दें, अपने जीवन में किए गए उनके योगदान को कभी न भूलें और जीवन भर अपने गुरुओं की लम्बी आयु की कामना करें।
         
          (ख) मित्रता
          
          मानव-जीवन में प्रत्येक मनुष्य को मित्र की आवश्यकता होती है। अपने मन की बात कहने के लिए मित्र का होना परमावश्यक है। मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है। मित्रता बड़ा अनमोल रत्न है। मित्र के जीवन की व्याधियों में औषधि के समान होता है, इसलिए मित्रता का बहुत महत्त्व है। प्रत्येक प्राणी घर से बाहर मित्र की तलाश करता है।
          
          सच्चा मित्र तो ईश्वर का वरदान है तथा सच्चा मित्र मिलना ही सौभाग्य की बात होती है । मित्रता के नाम पर औपचारिकता मात्र निभाने वाले तथा हमारे सुख में हमारा साथ देने वाले मित्र तो बहुत मिल जाते हैं किन्तु सच्चे मित्र तो कुछ और ही होते हैं जो हमेशा हमारा साथ देते हैं। इसलिए सच्चे मित्र का चुनाव करने में सतर्कता बरतनी चाहिए। जो मित्र के दुख को बड़ा समझे, हमारे अवगुणों को हमारे सामने प्रकट कर उन्हें दूर करने में सहायता करे, हमें सही मार्ग दिखाए, प्रेरणा दे, पीठ पीछे अहित न करे और मन में कुटिलता न रखे, उसी को जाँच-परखकर मित्र बनाना चाहिए। इतने गुणों से परिपूर्ण मित्र का मिलना वास्तव में खज़ाना पा लेने के समान है।
          
          मित्रता के बहुत लाभ होते हैं। मित्रों से मन की बात कहकर मन हल्का किया जा सकता है, अन्यथा एकाकीपन अभिशाप की भांति हमें सताता है। सच्चे मित्र संकट के समय आगे खड़े रहते हैं। वे जीवन की हर परिस्थिति में हमारा साथ निभाते हैं। अच्छे मित्र हमेशा सही प्रकार मार्गदर्शन करते हैं। मित्र जीवन का वह साथी है जो हमें हर बुराई से बचाता है। हमें भलाई की ओर बढ़ने के लिए सहायता करता है तथा साधन भी जुटाता है। यही नहीं पतन से बचाकर उत्थान के पथ पर लाता है और हमारे जीवन को आनंदमय बना देता है।
          
          • मित्र किसे बनाएँ
          
          • लाभ।
         
          (ग) युवाओं के लिए मतदान का अधिकार
          
          मतदान का अर्थ होता है-मत का दान अर्थात् अपने देश के लिए कौन-सा व्यक्ति उचित है और कौन-सा अनुचित, इस आधार पर अपनी इच्छानुसार चयन करना। मतदान एक नागरिक का महत्त्वपूर्ण अधिकार है। लोकतंत्र में मतदान का बहुत महत्त्व है। इसके माध्यम से ही देश के नागरिक अपने लिए उचित सरकार का चयन करते हैं। वास्तव में मत देने का अधिकार उनके अधिकारों के प्रति उनके सजग होने का परिचायक है। अपने इस अधिकार का प्रयोग कर नागरिक स्वयं के और देश के भविष्य को विकास व प्रगति प्रदान कर सकते हैं। नागरिकों द्वारा किए गए मतदान के आधार पर विजयी पार्टी ही सरकार बनाती है। हमारे देश में मतदान करने की आयु कम से कम 18 वर्ष है। एक युवा, जो भारत का नागरिक हो एवं जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो, मतदान कर सकता है।
          
          भारत में मतदान के लिए जागरुकता की अति आवश्यकता है। नागरिकों को अपने अधिकार के प्रति जागरूक होना चाहिए। चुनावों के समय अधिकतर नागरिक अपने इस अधिकार का प्रयोग ही नहीं करते तथा कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो पैसों के लोभ में आकर अपना कीमती वोट बेच देते हैं। आज भी लगभग 40 प्रतिशत नागरिक मतदान केन्द्र पर अपना मत देने जाते ही नहीं। आज के युग में मतदान का मनमाने ढंग से दुरुपयोग किया जा रहा है। भ्रष्ट तथा स्वार्थी नेता लोगों को पैसे अथवा अन्य लालच देकर उनसे अपने अनुसार मतदान करवाते हैं। परंतु यह देश के हित में नहीं है। मतदान का अधिकार इसलिए नहीं दिया गया कि कोई भी व्यक्ति अपने हित को ऊपर रखकर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करे। बल्कि मतदान का अधिकार इसलिए दिया गया है कि इसका सोच-समझकर तथा देशहित में प्रयोग किया जाए। हमें समझना होगा कि मतदान हमारे लिए एक सशक्त हथियार है जिसके माध्यम से हम योग्य सरकार का चयन करके देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं और देश के विकास में ही निस्संदेह हमारा विकास निहित है। अतः हमें किसी लोभ में न पड़कर, सोच-समझकर अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करना चाहिए ।
         
 
          प्रश्न 14.
          
          दूरदर्शन निदेशालय को पत्र लिखकर अनुरोध कीजिए कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले अधिकाधिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की ओर ध्यान दिया जाये। [5]
          
          उत्तर:
          
          सेवा में
          
          मुख्याधिकारी जी
          
          दूरदर्शन निदेशालय
          
          नई दिल्ली।
          
          दिनांक
          
          विषय देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण |
          
          महोदय,
          
          मैं एक सजग किशोर के रूप में आपका ध्यान दूरदर्शन पर कम दिखाए जाने वाले देशभक्ति के कार्यक्रमों की ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ। सर्वविदित है किशोरों में आजकल देशभक्ति की भावना कम ही दृष्टिगत होती है। आज का युवावर्ग केवल चकाचौंध ही पसंद करता है, जो सर्वथा अनुचित है। आजकल दूरदर्शन पर केवल एक ही देशभक्ति का कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है।
          
          अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि किशोरों के लिए देशभक्ति की प्रेरणा देने वाले अधिकाधिक कार्यक्रमों को प्रसारित किया जाए जिससे उनमें देशभक्ति की भावना में वृद्धि हो सके।
          
          धन्यवाद! भवदीय
          
          क० ख०ग०
         
अथवा
          आपके घर के पास पूजा स्थल में रात-दिन लाउडस्पीकर का शोर होता रहता है और आप पढ़ नहीं पाते। इसकी शिकायत करते हुए अपने क्षेत्र के थाना अध्यक्ष को पत्र लिखिए।
          
          उत्तर:
          
          परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकर के शोर की शिकायत करते हुए थानाध्यक्ष को पत्र :
          
          सेवा में
          
          श्रीमान थानाध्यक्ष
          
          सब्जी मंडी पुलिस स्टेशन
          
          दिल्ली
          
          विषय – लाउडस्पीकरों के शोर की समस्या हेतु पत्र ।
          
          महोदय,
          
          मैं इस पत्र के माध्यम से लाउड स्पीकरों के शोर के कारण होने वाले कष्ट का वर्णन करना चाहता हूँ। हमारे मोहल्ले में एक ओर श्री सत्यनारायण भगवान का मंदिर है और एक ओर गुरुद्वारा। ऐसा लगता है मानो जैसे दोनों में होड़ लगी हुई है कि कौन अधिकाधिक ऊँची आवाज़ में सोते प्रभु को जगाकर अपनी राम कहानी सुना सकता है। धर्मग्रंथों में कथा – संकीर्तन अथवा गुरुवाणी का बखान प्रातः चार बजे से शुरू हो जाता है। मेरी दसवीं की परीक्षा है और इस शोर के कारण मैं न तो दिन में पढ़ सकता हूँ और न रात को । शोर इतना तीव्र होता है कि मैं खीझ जाता हूँ जिससे मेरा व्यवहार भी गलत हो गया है।
          
          आपसे मेरा निवेदन है कि मुझे इस समस्या से छुटकारा दिलाएँ जिससे मैं अपनी पढ़ाई मन लगाकर कर सकूँ । धन्यवाद ।
          
          क० ख०ग०
          
          212, मल्का गंज
          
          दिल्ली
          
          दिनांक : ………
         
          प्रश्न 15.
          
          विद्यालय में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए योजनाबद्ध कार्यक्रम के निर्धारण हेतु सभी कक्षाओं के प्रतिनिधियों की बैठक के लिए समय, स्थान आदि के विवरण सहित सूचना लगभग 20-30 शब्दों में तैयार कीजिए । [5]
          
          उत्तर:
          
          डी०ए०वी० पब्लिक स्कूल
          
          पूसा रोड, नई दिल्ली।
          
          दिनांक : …………..
         
| सूचना सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में स्वच्छता अभियान चलाए जाने के लिए विचार-विमर्श हेतु सभी कक्षाओं के प्रतिनिधियों की एक बैठक 25 मई, 2015 को दोपहर 12 बजे की जाएगी। यह बैठक स्कूल हॉल में आयोजित की जाएगी। सबकी उपस्थिति अनिवार्य है। इस बैठक में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए योजनाबद्ध कार्यक्रम के निर्धारण हेतु सभी कक्षाओं के प्रतिनिधि अपने – अपने सुझाव देने के लिए स्वतंत्र हैं। प्रधानाचार्य हस्ताक्षर | 
          प्रश्न 16.
          
          अपनी सोसायटी के मुख्य सीवर की मरम्मत करवाने हेतु सचिव को ई-मेल भेजिए । [5]
          
          उत्तर:
          
          From अ०ब०स०@gamil.
          
          To क。ख०ग@gamil.
          
          विषय : सीवर मरम्मत हेतु अनुरोध महोदय
          
          हमारी सोसायटी का मुख्य सीवर टूट गया है, जिसके कारण नाले का गंदा पानी सड़कों पर आ रहा है, जिस कारण बहुत अधिक बदबू व गंदगी फैल रही है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस नाले की जल्द से जल्द मरम्मत करवाएँ।
          
          अ०ब०स
         
          प्रश्न 17.
          
          ‘क-ख-ग’ कम्पनी द्वारा निर्मित जल की विशेषताएँ बताते हुए एक विज्ञापन का आलेख लगभग 25-50 शब्दों में लिखिए। [5]
          
          उत्तर:
         
          ‘क-ख-ग’ कम्पनी द्वारा निर्मित जल-स्वच्छ जल बेहतर कल
          
          स्वच्छ, कीटाणु रहित, फिल्टर किया हुआ
          
          मीठा एवं शुद्ध जला
          
          “एक बार पीकर देखिए बार-बार पीना चाहेंगे”
          
          सम्पर्क करें कम्पनी की किसी भी शाखा से।
         
 
 
 
 
