CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल निबंध लेखन
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- निबंध में विषय के अनुरूप भाषा होनी चाहिए।
- निबंध लिखते समय वर्तनी की शुद्धता तथा विराम चिह्नों का यथास्थान ध्यान रखना चाहिए।
- निबंध में वर्णित विचार एक-दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
- निबंध में विषय संबंधी सभी पत्रों पर चर्चा करनी चाहिए।
- सारांश में उन सभी बातों को शामिल किया जाना चाहिए जिनका वर्णन पहले हो चुका है।
- यदि निबंध लेखन में शब्द-सीमा दी गई है तो उसका अवश्य ध्यान रखें।
निबंध के तत्व :
निबंध के निम्नलिखित प्रमुख तत्व माने जाते हैं –
- विषय प्रतिपादन-निबंध में विषय के चुनाव की छूट रहती है, परंतु विषय का प्रतिपादन आवश्यक है।
- भाव-तत्व-भाव-तत्व होने पर ही कोई रचना निबंध की श्रेणी में आती है अन्यथा वह मात्र लेख बनकर रह जाती है।
- भाषा-शैली-निबंध की शैली के अनुरूप ही उसमें भाषा का प्रयोग होता है। निबंध एक शैली में भी लिखा जा सकता है तथा उसमें अनेक शैलियों का सम्मिश्रण भी हो सकता है।
- स्वच्छंदता-निबंध में लेखक की स्वच्छंद वृत्ति दिखाई देनी चाहिए, परंतु भौतिकता भी बनी रहनी चाहिए।
- व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति-निबंध में लेखक के व्यक्तित्व की झलक अवश्य होनी चाहिए।
- संक्षिप्तता-निबंध में सक्षिप्तता उसका अनिवार्य गुण है।
निबंध के अंग :
निबंध के मुख्य रूप से तीन अंग माने जाते हैं –
- भूमिका/परिचयं-यह निबंध का आरंभ होता है। इसलिए भूमिका आकर्षक होनी चाहिए जिससे पाठक पूरे निबंध को पढ़ने हेतु प्रेरित हो सके।
- विस्तार- भूमिका के पश्चात निबंध का विस्तार शुरू होता है। इस भाग में निबंध के विषय से संबंधित प्रत्येक पक्ष का अलग अलग अनुच्छेदों में वर्णन किया जाता है। प्रत्येक अनुच्छेद की अपने पहले तथा अगले अनुच्छेद से संबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए विचार क्रमबद्ध होने चाहिए।
- उपसंहार-इस अंग के अंतर्गत निबंध में व्यक्त किए गए सभी विचारों का सारांश प्रस्तुत किया जाता है।
निबंध के प्रकार :
मुख्य रूप से निबंध के चार प्रकार माने जाते हैं –
- वर्णनात्मक
- विवरणात्मक
- विचारात्मक
- भावात्मक
1. -
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4. -
- प्रश्न-पत्र में दिए गए शब्दों की सीमा का ध्यान रखें।
- भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें तथा विराम चिह्नों का यथास्थान प्रयोग करें।
- निबंध लेखन में मौलिकता अवश्य होनी चाहिए।
- विषय के अनावश्यक विस्तार से बचें।
- निबंध के प्रारंभ या अंत में किसी सूक्ति, उदाहरण, सुभाषित या काव्य पंक्ति के प्रयोग से निबंध आकर्षक बन जाता है।
- विचारों की क्रमबद्धता का ध्यान रखें।
- आवश्यकतानुसार मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करें।
(1) लड़का-लड़की एक समान
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- प्रस्तावना
- प्राचीन काल में नारी की स्थिति
- आधुनिक काल में नारी की स्थिति
- उपसंहार
- नारी में अधिक मानवीयगुण
- मध्यकाल में नारी की स्थिति
- नारी की स्थिति और पुरुष की सोच
प्रस्तावना – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलती रहे इसके लिए दोनों पहियों अर्थात स्त्री-पुरुष दोनों का बराबर का सहयोग और सामंजस्य ज़रूरी है। यदि इनमें एक भी छोटा या बड़ा हुआ तो गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल सकेगी। इसी तरह समाज और देश की उन्नति के लिए पुरुषों की नहीं नारियों के योगदान की भी उतनी आवश्यकता है। नारी अपना योगदान उचित रूप में दे सके इसके लिए उसे बराबरी का स्थान मिलना चाहिए तथा यह ज़रूरी है कि समाज लड़के
और लड़की में कोई भेद न करे।
ढोल गँवार शूद्र पशु नारी।
ये सब ताड़न के अधिकारी॥
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥
(2) विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत
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- प्रस्तावना
- आदर्श मित्रता के उदाहरण
- सच्चे मित्र के गुण
- उपसंहार
- मित्र की आवश्यकता
- छात्रावस्था में मित्रता
- मित्रता का निर्वहन
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ॥
जे न मित्र दुख होय दुखारी।
तिनहिं विलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज कर जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।
(3) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम
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- प्रस्तावना
- शिक्षा-दीक्षा
- राष्ट्रपति डॉ कलाम
- सादा जीवन उच्च विचार निबंध-लेखन
- जीवन-परिचय
- मिसाइल मैन डॉ० कलाम
- सम्मान एवं अलंकरण
- उपसंहार
(4) क्रिकेट का नया प्रारूप-ट्वेंटी-ट्वेंटी
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- प्रस्तावना
- टेस्ट क्रिकेट –
- टी-ट्वेंटी प्रारूप
- उपसंहार
- क्रिकेट के विभिन्न प्रारूप
- एक दिवसीय क्रिकेट
- टी-ट्वेंटी का रोमांच एवं सफलता
(5) अनुशासन की समस्या
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- प्रस्तावना
- छात्र और अनुशासन
- अनुशासनहीनता के कारण
- उपसंहार
- अनुशासन की आवश्यकता
- प्रकृति में अनुशासन
- समाधान हेतु सुझाव
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौ पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय॥
True
(6) भ्रष्टाचार
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- प्रस्तावना
- भ्रष्टाचार के कारण
- उपसंहार
- भ्रष्टाचार के विविध क्षेत्र एवं रूप
- भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय
(7) मनोरंजन के विभिन्न साधन
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- प्रस्तावना
- मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व
- प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन
- आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन
- भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति
- उपसंहार
True
(8) दूरदर्शन का मानव जीवन पर प्रभाव
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- प्रस्तावना
- दूरदर्शन का प्रभाव
- दूरदर्शन से हानियाँ
- दूरदर्शन का बढता उपयोग
- दूरदर्शन के लाभ
- उपसंहार
(9) यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता
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- प्रस्तावना
- पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था
- गरीब छात्रों के लिए विशेष प्रयास
- उपसंहार
- मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था
- परीक्षा प्रणाली में सुधार .
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बढ़ावा .
(10) देश के विकास में बाधक बेरोज़गारी
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- प्रस्तावना
- बेरोज़गारी के कारण
- बेरोज़गारी के परिणाम
- बेरोज़गारी का अर्थ
- समाधान के उपाय
- उपसंहार
(11) वन रहेंगे हम रहेंगे
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- प्रस्तावना
- वनों के विभिन्न लाभ
- हमारा दायित्व
- वनों से प्राकृतिक संतुलन
- नगरीकरण का प्रभाव
- उपसंहार
वनों के विभिन्न लाभ – वनों से मनुष्य को इतने लाभ हैं कि उनका आकलन सरल नहीं है। वनों के लाभों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
1. प्रत्यक्ष लाभ-वन मनुष्य को फल-फूल, इमारती लकड़ी और जलावनी लकड़ी, गोद, शहद, पत्तियाँ, जानवरों के लिए चारा और छाया देते हैं। इनसे हमारे उद्योग-धंधों को मज़बूत आधार मिलता है। बहुत से उद्योगों के लिए कच्चा माल इन्हीं वनों से मिलता है। कागज़, प्लाइवुड, रेशम, दियासलाई अगरबत्ती जैसे उद्योगों का आधार वन हैं।
2. अप्रत्यक्ष लाभ-वनों से अनेक ऐसे लाभ हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं। वन सभी प्राणियों के लिए जीवनदायी ऑक्सीजन
देते हैं जिसके मूल्य का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। इसके अलावा वन पशु-पक्षियों को आश्रय एवं भोजन उपलब्ध कराते हैं। वन एक ओर वर्षा लाने में सहायक हैं तो दूसरी ओर मिट्टी का कटाव रोककर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनाए रखते हैं। इस मिट्टी को बहकर नदियों में जाने से रोककर वृक्ष बाढ़ रोकने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा वन धरा का शृंगार हैं जो अपनी हरियाली से उसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं।
(12) कंप्यूटर के लाभ
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- प्रस्तावना
- कंप्यूटर की उपयोगिता
- विद्यार्थियों के लिए उपयोगी
- उपसंहार
- वर्तमान युग-कंप्यूटर युग
- कंप्यूटर और इंटरनेट का मेल
- प्रकाशन क्षेत्र में कंप्यूटर
(13) जीवन में खेलकूद का महत्त्व
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- प्रस्तावना
- खेल बढ़ाते मानवीय गुण
- खेलों के लिए प्रोत्साहन
- खेलों से शारीरिक एवं मानसिक विकास
- खेल-एक आकर्षक कैरियर
- उपसंहार
True
(14) मेरी अविस्मरणीय यात्रा
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- प्रस्तावना
- यात्रा की अविस्मरणीय बातें
- उपसंहार
- यात्रा की तैयारी
- अविस्मरणीय होने के कारण
(15) विज्ञान के वरदान
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- प्रस्तावना
- विज्ञान से हानियाँ
- उपसंहार
- विज्ञान के विभिन्न वरदान
- विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग
विज्ञान से हानियाँ –
विज्ञान के कारण मनुष्य को जहाँ अनेक लाभ हुआ है वहीं कुछ हानियाँ भी हैं। ये हानियाँ किसी सिक्के के दूसरे पहलू की भाँति हैं। विज्ञान की मदद से मनुष्य ने शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए हैं। इनमें परमाणु बम जैसे घातक हथियार भी हैं। ये अस्त्र-शस्त्र गलत हाथों में पड़कर समूची मानवता के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा विज्ञान ने मनुष्य को भ्रम से दूर किया है जिससे मोटापा, रक्तचाप, अपच जैसी बीमारियाँ उसे घेर रही हैं।
विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग – किसी भी वस्तु का विवेकपूर्ण उपयोग ही लाभदायक होता है। ऐसी ही स्थिति विज्ञान की है। विज्ञान
द्वारा प्रदत्त चाकू का प्रयोग हम सब्जी काटने के लिए करते हैं या दूसरे की हत्या के लिए, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। यदि कोई विज्ञान का दुरुपयोग करता है तो यह विज्ञान का दोष नहीं है। विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग ही मनुष्यता की भलाई जैसे कार्य करने में सहायक होगा।
(16) मेरी प्रिय पुस्तक-रामचरित मानस
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- प्रस्तावना
- मार्मिक प्रसंग
- उपसंहार
- आदर्शवादी व्यवहार
- पुस्तक की कथावस्तु
- कर्तव्यबोध का संदेश
- प्रेरणादायिनी
(17) फ़िल्म जो अच्छी लगी
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- प्रस्तावना
- फ़िल्म की कहानी
- उपसंहार
- कथानक एवं दृश्य
- फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद
(18) परोपकार
या
परहित सरिस धर्म नहिं भाई
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- प्रस्तावना
- परोपकारी प्रकृति
- परोपकार के विविध उदाहरण
- उपसंहार
- परोपकार-मानवधर्म
- परोपकार के विविध रूप
- वर्तमान स्थिति
अहा! वही उदार है, परोपकार जो करे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर करत न पान।
कह रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥
True
(19) समय का सदुपयोग
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- प्रस्तावना
- समय का अधिकाधिक उपयोग
- प्रकृति से सीख
- समय नियोजन का महत्त्व
- आलस्य समय के सदुपयोग में बाधक
- उपसंहार
True
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब॥
काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रांकलहेन वा॥
(20) पत्र-पत्रिकाओं के नियमित पठन के लाभ
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- प्रस्तावना
- पढने की स्वस्थ आदत का विकास
- पत्र-पत्रिकाएँ कितनी लाभदायी
- उपसंहार
- ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
- रंग-बिरंगी पत्र पत्रिकाएँ
- पत्रिकाओं से दोहरा लाभ